हा न्य्हन | ६ हू च्ज् 3-7॥४ अलम्वओं ४ ०१ की, है| ए99॥75"-5 97 हजस्त अबू हर्य पे | हि आह] । हजस्त या हर | ज्क् | हजरत अबू उब [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_830॥9_॥0/9/%५ शैतान सबसे ज्यादा खुश तब होता है जब वो किसी को इल्मे दीन हासिल करने से रोकता है एक रोज़ असत्र के बाद शैतान ने अपना तख़्त बिछाया, और शयातीन ने अपनी अपनी कार गुजारी की रिपोर्ट पेश करना शुरू की किसी ने कहा कि मैंने इतनी शराब पिलाई, किसी ने कहा मैंने इतने ज़िना कराए, शैतान ने सब की ने कहा कि मैने एक तालिबे इल्म को पढने से बाज़ रखा, शैतान सनते ही पर से उछल पड़ा और उस को गले से लगा लिया और कहा, "अनू त बने काम किया तूने काम किया, दूसरे शयातीन यह कैफियत देख कर जल गए कि उन्होंने इतने बड़े काम किये, उन पर तो शैतान खुश नहीं हुआ और इस मअमूली से काम करने वाले पर इतना खुश हो गया। शैतान बोला तुम्हें नहीं ४ जो कुछ तुमने किया सब इसी का सदक़ा है उन्हें इल्म होता तो वह गुनाह नं करते, लो तुम्हें >्ज्मब वह कौनसी जगह है जहाँ सब से बडा आबिद रहता है मगर वह आलिम नहीं और वहाँ एक आलिम भी रहता हो तो उन्होंने एक मक़ाम का नाम लिया सुबह को सूरज निकलने से पहले शयातीन को लिए हुए शैतान उस मकाम पर पहुँचा, शयातीन छुपे रहे और यह इन्सान की शक्ल बनकर रास्त में खड़ा हो गया, आबिद साहिब की नमाज़ तहज्जुद के बद फर्ज़ के वास्ते मस्जिद की तरफ तशरीफ लाए रास्ते में शैतान खड़ा था न अलैकुम, व ८ गम सलाम के बद कहा हज़रत मुझे एक मसला पूछना है द साहिब ने ०५42-३० के लिए मस्जिद में जाना है, शैतान ने जेब से एक छोटी सी री और पूछा, क्या अल्लाह क़ादिर है कि उन सारे आसमानों और जमीनों को इस छोटी सी शीशी में दाखिल करदे, आबिद साहिब ने सोचा और कहा कहाँ इतने बडे आसमान और जमीन और कहाँ यह छोटी सी शीशी बोला बस यही पूछना था तश्रीफ़ ले जाईए और शयातीन से कहा, देखो मैंने इस की राह मार उसको अल्लाह की कुदरत पर ही ईमान नहीं इबादत किस काम की, फिर सूरज निकलने के क़रीब एक आलिम जल्दी जल्दी करते हुए तशरीफ़ लाए शैतान ने कहा अस्सलामु अलैकुम मुझे एक मसला है ना है आलिम ने फ़रमाया, पूछो जल्द पूछो नमाज़ का वक़्त कम है, उसने शीशी दिखाकर वही सवाल किया, आलिम साहिब ने फ़रमाया मलऊन तू शैतान ५ अं होता है अरे वह क़ादिर है कि यह शीशी तो बहुत बड़ी है एक सुई के नाके के अंदर अगर चाहे तो करोड़ों आसमान व ज़मीन दाखिल करदे, "इन्नल्लाह अला कुल्लि शै इन क़दीर आलिम साहिब के तशरीफ़ ले जाने के बद शैतान ने शयातीन से कहा देखा यह इल्म ही की बरकत है और वह जिसने इल्म हासिल करने वाले को पढ़ने से रोका उसने बहुत बड़ा काम किया ताकि वह न पढ़े और न आलिम बन सके। ( मलफूजाते आला हज़रत जि:3, स:2-22) सबक: अब तो शैतान को खुश करने वाला न बनो दीन कि किताबो को पढो शैतान से इल्म के जरिये ईमान बचने के लिए दीन का इल्म बहुत बड़ी जरूरी और मुफीद चीज़ है, शैतान ऐसे इल्म वालो से बहुत डरता है क्‍यों कि इल्म वाले अपने इल्म की वजह से शैतान के जाल में नहीं फंसता, बिगैर इल्म के जुहद व इबादत भी ख़तरे में रहती है, खूद हुजूर सल्‍लल्लाहु अलैहि वसलल्‍्लम ने फ़रमाया है "फ़क्ीहुन वाहिदुन अशह अल-शैतानि मिन-अल्फि आबिदिन" यअनी शैतान पर एक आलिम हज़ार आबिद से भी ज़्यादा भारी है।" न क हक 56766 ५शशंगरी एद्वा]5टवया6/ [05://.86/50७7॥_॥|॥0| 0५ खा [25 //3।0[]/6 .0।0/6685/08[8993#776_3५॥9_॥72/ध५ म हि ्य सूचक मु छा न [बि्‌स्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 07 _।॥0 08५ कम ८6) जुमला हुकूकु बहक्क ना 80॥8 महफ्‌ज हे (6) नाम किताब : करामाते सहाबा रजिअल्लाहो अन्हुम लेखक : हजरत अल्लामा अब्दुल मुस्तफा आज़मी नाशिर : मकतबा इमामे आज़म दिल्ली-6 बऐहतेमाम : मोहम्मद जलालुद्दीन निज़ामी कृम्पोजिगं : निजामी ग्राफिक्स दिल्‍ली-6 पफुफ्रीडिंग : मनन्‍्जुरुलहकु जलाल निज़ामी सेटिंग : तिजामुद्दीन निजामी. सन्‍ने इशाअत्‌ू ४: 20॥4 तादाद : 700 सफुहात : 256 कोमत्‌ : न मक्तबा इमामे आजम्‌ । रजवी किताब घर 425,7-मटिया महल,जामा मस्जिद दिल्‍ली-6 | 423, मटिया महल, जामा मस्जिद दिल्ली-6 मोबाईल नं0- 0995842355], 09560054375 फोन 0.23264524 मोबाईल 9350505879 &ना।ह। : ॥रवदव/ग्यागवार42ाा(हिवागवां।.0ण॥, प20009॥गंटववा(62५779॥.00॥7 न कं हद 56766 ५शशंगरी एद्वा]56व्या6/ [[05://.86/5 07 _।॥0 08५ आ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6208099776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा ४९ यु मकक्‍तवा इमामे आज़म नमन एफ शा यर७२१ा “77 चनससस्स्सिन आधा िभ33तस3>स ् ििननन-ननभनणनननननननशझझशध७भ्भदशतनशभशभशशशशशनननन-नननननननननननननननननधधिभनननन।एए7”“पि7“ए7:्॒#झ्7ि "73 शनि ननननीन न नस. +०-न्‍मससमनम-+- जनक च्लाबक...॥ न पननि७न जन क्रामाते सहाबा फेहरिस्त मजामीन | 0 |शर्फ इन्तिसाब &£ तमहीदी तजल्लियाँ तहकीके करामात मोअजेज़ा और करामत मोअजेजा जरुरी करामत जरुरी नहीं करामत की किसमें मुर्दों को जिन्दा करना. मुर्दो से कलाम करना दुनिया के निज्ञाम पर कब्जा बहुत ज़्यादा खाना खा लेना हराम गिज़ाओं से महफूज़ रहना दूर की चीज़ों को देख लेना हेबत व दबदबा मुख्तलिफ सूरतों में ज़ाहिर हो जाना दुश्मनों की मक्कारियों से बचना जमीन क॑ ख॒ज़ानों को देख लेना परिशानियों का आसान हो जाना जनालवा चीज़ों का असर न करना 24 25 दरियाओं पर कब्जा अफ्जलुलऔलिया करामाते सहाबा हज़रत अबू बकर सिददीक्‌ .: करामत खाने में बड़ी बरकत माँ के पेट में क्‍या है? निगाहे करामत 35 |कलमए तस्यिवा से किला चूर चूर खून में पेशाब करने वाला 36 |सलाम से दरवाज़ा खुल गया आगे की बात जान लेना मदफन के बारे में गैबी आवाज जमीन का सिमट जाना पौधों से बात चीत शिफा-ए-अमराज जानवरों का फरमांबरदार हो जाना जमाने का कम हो जाना जमाने का लम्बा हो जाना 20 2] खामोशी व कलाम पर कुदरत । खाए पीए बगेर जिन्दा रहना न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.776/5 07॥॥#/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209099/776_30७॥9_॥0/8/% करामाते सहाबा ४४ है मकतवा इमामे आज़म दुश्मन खिन्‍्जीर व बंदर बन गए | | 72 कौन कहाँ मरगा कहाँ दफन होगा? 44 |शेखेन का दुश्मन क॒त्ता बन गया | हजरत उमर फारुक | 45 [(कराः !) कब्र वालों से गुफ्तग मदीना की आवाज नेहावन्द तक दरिया के नाम ख़त 49 |चादर देखकर आग बुझ गई 49 ।|मार से जलज़ला खत्म दूर से पुकार का जवाब | 53 कब्र में बदन सलामत 53 |जों कह दिया वह हो गया 54 |लोगों को तकदीर में क्‍या है? दुआ की मक्बलियत 58 |हज़रत उस्माने ग़नी :“ (करामत) ज़िनाकार आँखे 0 कम गुस्ताररी को सज़ा ख्वाब में पानी पी कर सैराब अपने मदफन की ख़बर 64 जरुरी इंतेबाह शहादत के बाद गैबी आवाज मदफन में फरिश्तों की भीड़ गुस्ताख़ दरिंदा क मुह में 06 पक हजरत अली मुर्तजा ८४ (करामत) कब्र वालों से सवाल व जवाब फालिज जदा अच्छा हो गया गिरती हुई दीवार थम गई आपका झूठा कहने वाला अंधा हो गया | 65 फारिशतों न चक्‍का चल में कब बवफात पाउगा ? 73 | 74 [दर ख़बर का वजन टा हुआ हाथ जोड़ दिया... 75 |शैहर औरत का बेटा निकला. | 76 जरा सी देर में करआन मजीद ग्त्म कर लेते ६गाए स दरिया को तुग्यानी ख़त्म 77 जासूस अंधा हा गया द 7 |तुमहारी मौत किस तरह होगी? 77 पत्थर उठाया तो पानी का... |. चश्मा निकल पड़ा 79 [हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लह (करामत) एक कब्र से दूसरी | (८6८ मी, हजरत जुबैर बिन अव्वाम 5.5 (करामत) ब-करामत बरछी _85 |फतेह फस्तातू_ 86 [हज़रत जुबैर की शक्ल में जिब्राईल अलैहिस्सलाम हज़रत अब्दरहमान बिन औफ .:: हज़रत उसमान को ख़िलाफत जन्नत में जाने वाला पहला मालदार इंसान माँ के पेट ही से नेक हज़रत सअद बिन अबी वकास :£' (करामत) बदनसीब बूढ़ा दुश्मने सहाबा का अंजाम गुस्ताख़ की ज़बान कट गई चेहरा पीठ की तरफ हो गया 5८664 ५शशंगर ए752८वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0[/0/9५ करामाते सहावा #4[25:॥#/0५6.009/06/ 4 &27999॥8 4५ | शिय््तवा इमामे आजम | («८ #] । 'िमन्‍न्‍मननन»»»नक-मनमनाा नरम तय ऑन तर कर कक न टन यमन न ७ < न ««++++-++--थभ ८८ नन-ा-ाननननमनन८3७७७५७५७५७७33७+ऊ५+भ+++«++७++++७+भ७3७33 ८८ ८८-ानमनम--ा----नमनन-ाननननन नमन ७७७५ +५७++++०++-+०++-++-०+७»+-+०»+००-७७०७७०००७७५++»+++»+०५»+«»+ा ० न न न +» के» _क कक कक नमक, बा... पन++ममम नमन... | फरिश्तों से खेमा भर गया ]]8 |हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर न बिन हजाम |]20 | (करामात) फरिश्तों ने साया किया कपफ़न सलामत बदन तरोताजा | ([2] कब्र में तिलावत 22 हजरत मअज़ बिन जबल अनननक ०5 जा के ७9:3+-नमा।. पाहाकाः []22।(करामात) मह & ] नकलता था | था गा ाााक25 २ उन» » कक नम कक» कक न कक कक कक का तन लललन्निन न नशभननम-+--«-++ -नन3+++++-+न-+++++--ल्‍. नी + -पन>«>«ऋ> 99 अर -.:.: ..... मरा साहह»-»-+- (करामात) कब्र मुबारक शिफा ख़ाना बन गई हजरत अब्दुल्लाह बिन बसर ४ 83 | (करामात) रिज़्क में कभी तंगी नहीं हुई ः | 32 | हज़रत अमर बिन हमक्‌ ४४ 32 | (करामात) अस्सी बरस को उम्र में सब बाल काले 33 हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर:<- (करामात) शेर दुम हिलाता हुआ भागा... ण्क से मुलाकात ज़्याद कैसे हलाकु हुआ? |6 [हज़रत सअद बिन मआज :£ 8 [| (करामात)जनाज़ा में ७० हजार फरिश्ते मिट॒टी मुश्क्‌ू बन गई 4 हजरत आसिम बिन साबित £ (करामात) शहद की मवखियों का पहरा 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0/0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209४099776_30७॥9_॥0/9/%५ ६ मकक्‍तवा इमामे आजम वि कक 33355 + पक कससससससससतसस सत्ज्जज्ज्ज्ज्क्ण क्र ननिओआआआआआआआंछछछऊऋऋचड वन भा करामाते सहाबा 6९ (करामात) मुस्तजाबुददआवात (दुआ) | |27 | (करामात) हाथ हर मर्ज को दवा 200 [हजरत सायब बिन अक्रअ्‌ :5 | [2॥8 | हज़रत उसामा बिन जैद 200 [करामात) तस्वीर ने खज़ाना बताया | |28 |बंअदबी करने वाले काफिर हो गए | | 20] [हजरत इरबाज़ बिन सारिया ४: | |29 | हजरत नाबगा ८४ (करामात) फरिश्ते से. 29 | (करामात) सौ बरस तक दाँत मुलाकात और गुफ़्तगू (बात) _ सलामत हज़रत ख़ुब्बाब बिन आरत:-- हज़रत उमर बिन तुफैल दोसी .- (करामात) खुश्क थनदूध से भरगया (करामात) नरानी कोड़ा _ |220 |हजुरत अग्र बिन मुर्रा जुहनी : 227 203 | हजरत मिक्‌दाद बिन असवद _ ॥ कंदी (६ (करामात) दुश्मन बलाओं में 204 | (करामात) चूहे ने 7 अशर्फियाँ गिरफ्तार नजर को हजरत ज़ैद बिन ख्वाजा अंसारी ८: (करामात) मौत के बाद गुफ्तगू (बात) हज़रत राफिअ्‌ बिन खदीज::: | 224 | (करामात) बरसों हल्क्‌ (गले) हि में तीर चुभा रहा 224 [हज़रत मोहम्मद बिन साबित हज़रत उरवा बिन अबी जुअद | बारकी :5६ (करामात) मिट॒टी भी खरीदते | तो नफ्‌्अ्‌ उठाते हज़रत अबू तलहा अंसारी: (करामात) लाश ख़राब नहीं हुई हजरत अब्दुल्लाह बिन हजश.:: (करामात) अनोखी शहादत _ हज़रत बराअ्‌ बिन मालिक: 2] | (करामात) फतेह व शहादत एक साथ 206 206 (करामात) चेहरा आईना बन गया | हज़रत मआविया बिन मक्रनः: 226 | (करामात)दो हज़ार फरिरते नमाजे जनाज़ा में हजरत एहबानबिनसैफीगिफारी ४ (करामात) कब्र सं कफन वापस हजरत नजला बिन मोआविया अंसारी ४४ (करामात) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के सहाबी हजरत उमैर बिन सअद अंसारी: हजरत अबू हुरैरा हज़रत उबाद बिन बशर : 22 करामत वाला ख़्वाब ह हज़रत उसैद बिन अयास अदवी (करामात) चेहरे से घर रौशन | | हजरत बशरबिन मआविया बकाई£ .. ्लमककक--मऋअा 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥70/]/07/9५ [[[05:/9/07५8.0/0/0895/(008/08876_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा, 0) मकतवा इमामे आज़म लिन न्‍कााा----- 23 ना -+नननन-न--ननवाबध वा ०० ० नननााणणण।।।ण।णणण/“7 7? डिि७२?लननब,नान- नमन -मनतपाकलााननन-ाण 7777-77 7777-77“ “7 सललााननाााद- नल ०33 कक न+--+-+3-+------+ का -च -++- 37-77 7777० 0... . ड़ >9अ अअअबकसज कक न्‍्ल्च््ै््ी न लि ड:,:, अ अअ अजअड ससनसक्‍ चतनततततन क्‍त क्तफतयओ& ख खनन सईअ अ _ :_ छ छसऑऑक्‍क कक कक्क्‍्चइ 5 । क्ए._यआ् न्ााा॥४।ा।यननन््ा खत खत नाना ता... आनताना अ्नचचक् लड:स?ज सडसजअअइअबउ:ऊ & अस्‍अऊ ह£४ ऑफ क सससससस क तन तन (करामात) ज़ाहिदाना जिंदगी हजरत उम्मे शरीक्‌ दोसिया:& | हज़रत अबू क्रसाफा :£ (करामात) गैबी डोल 237 [(करामात) सैंकड़ों मील दूर | |253 [खाली कूृप्पा घी से भर गया आवाज पहँँचती थी हजरत उम्मे साएब.:: हज़रत हस्सान बिन साबित | 253 [(करामात) दुआ से मुर्दा ज़िंदा 239 | (करामात) हज़रत जिब्राईल हो गया मसददगार हजरत जनीरा 772 करामत वाली कुव्वते शामा (करामात) अंधी आखें रोशन हजरत जैद बिन हारिसा .-: हो गई (करामात) सातवें आसमान स+ कलर फरिश्ता ज़मीन पर हि 242 [हज़रत उकबा बिन नाफअ्‌ फहरी के (करामात) एक पुकार से दर्रिंद फरार घोड़े की टाप से चश्मा जारी | हज़रत अबू जैद अंसारी :: (करामात) सौ बरस का जवान हजरत औफ बिन मालिक :: 245 | (करामात) पुकार पर मवेशी है दौड़ पड़े हज़रत फातिमातुज़्जहरा «- (करामात) बर्कत वाली सेनी 248 |शाही दावत 250 |उम्मुल मोमिनीन हजरत क्‍ आईशा सिद्दयौका 5: (करामात) हज़रत जिब्राईल उनको सलाम करते थे उनके लिहाफ में वही उतरी आप के वसीले से बारिश हजरत उम्मे अमन ४५४ (करामात) कभी प्यास नहीं लगी | 250 नि ड़ हि 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥॥#/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/620909776_30७॥9_॥0/9/% शफू इत्तिसाब्‌ हजराते सहाबाए किराम रजियल्लाहु अन्हुम के दरबारे फजीलत में एक नियाज मन्द मुसलमान का मुहनन्‍्नत का नलराना मेरे आका के जितने भी असहाब हैं उस मुबारक जमाअत पे लाखों सलाम व्राकपाएं सहाबा:- अब्दुल मुस्तफा आज़गी अफ़ी जन करीमुद्दीनपुर, पोस्ट घोसी, जिला आजुमगढ़ नि कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍06/5 07॥॥#/_।॥0 0/9/५ | [[05:/9/079५8.0॥0/0895/(008/088706_30॥9_॥0/3/%५ कराजाते सहाबा &# |] मक्तवा इमामे आज़म बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीर मन्कुृबते सहाबा किराम्‌ £८ दो आलम न क्‍यों हो निसारे सहाबा कि है अर्श मन्जिल वकारे सहाबा अमीं हैं यह कुरआन व दीने खुदा के मदारे हुदा एऐतबारे सहाबा रिसालत की मंजिल में हर हर कदम पर नबी को रहा इंतेजारे सहाबा खिलाफत, इमामत, विलायत, करामत हर एक फजुल पर इक्तेदारे सहाबा नुमायाँ है इस्लाम के गुलसितां में हर एक गुल पे रंगे बहारे सहाबा कमाले सहाबा, नबी की तमनन्‍ना जमाले नबी है करारे सहाबा यह मोहरें हैं फरमाने ख़ात्मुर्रुसुल की है दीने खुदा शाहकारे सहाबा सहाबा हैं ताजे रिसालत के लएकर रस ले खा दा ताजदारे सहाबा उन्हीं में हैं सिद्दीक व फारुक व उसमाँ उन्हीं मे अली शहसवारे सहाबा उन्हीं में है बद्र व उहदद के मुजाहिद लकब जिनका है जॉनिसारे सहाबा उन्हीं में हैं अस्हाब शिजरा नुमायाँ जिन्हें कहते हैं राजदारे सहाबा उन्हीं में हुसैन व हसन, फातिमा हैं नबी के जो हैं गुल अजारे सहाबा पसे मर्ग ऐ आजमी यह दुआ है बन्‌ में ग॒बारे मजारे सहाबा अप पद है (25 ह 4 हि ] 8/5 है| | |_|7 | ) 0 ] | | |) 8 [५ 5८664 ५शशंगरा ए75०वाा6श [25://079५86.070/069॥8/(00[0ध08॥76 8५॥४ _॥0 करामाते सहाबा 0 हे मकतवा इमामे आजम बिस्मिल्लाहिर्हमानिरहीम ह तमहीदी तजल्लियाँ[ ६)५॥9॥ ,5॥5(::5।5| | 6४५७ (० ... ७.८. बुजु्गने दीन की करामतों का नूरानी ब्यान यूँ तो हर दौर में हमेशा होता रहा और इन उनवान पर तकरीबन हर जबान में किताबें भी ना जाता रहा मगर इस जमाने में इस का चर्चा बहुत ज़्यादा बढ़ गया ह। चुनान्च तजरबा है कि अक्सर तकरीर करने वाले अपनी तकरीरों की महफिलों में और बेशतर पिराने केबार अपने मुरीदीन की मजलिसों में बुजुर्गेने दीन के करामात के जिक्र म“महफिलों को गर्म किया करते हैं और सुनने वाले एक खास जज़्ड्रेटक साथ सुनते रहते हैं आर कुछ मुसन्‍नफान और मज़मून लिखने वाले भी इस उनवान पर अपना कलम कारियां क जोहर दिखा कर लोगों से खेराजे तहसीन हासिल करते रहते है और इस म॑ ज़रा भी शक नहीं कि बुजुर्गाने दीन की करामता का ब्यान एक एसा असरदार और दिल कश मज़मून है कि इस स रूह का नापाको, दिल में नूरे ईमान और दिल दिमाग के गोशा गोशा में इमाना तजाल्लया का सामान प॑दा हो जाता हे जिस से अहले ईमान की इस्लामी रगों में एक तूफानी लहर और बदन की बोटी बोछ में जोशे आमाल का एक इरफानी जज़्वा उभरता महसूस होता है, इस लिए मेरा नज़रिया यह है कि इस जमाने में बुजुर्गने दीन की इबादतों, रियाजतों और उन को करामतों का ज़्यादा से ज़्यादा जिक्र व व्यान और उन का चर्चा मुसलमाना म॑ जाश ईमान और जजबाए अमल पैदा करने का बहत ही असरदार जरिया ओर निहायत ही बेहतरीन तरीका है लंकिन करामात क जिक्र के सिलसिले में मेरे नजदीक एक वाकिआ बहुत ही हैरत नाक बल्कि इन्तेहाई तकलीफ देने वाला है कि मुतअख़्ख़रान ओलियाए कराम खास कर मजजूबों और बाबाओं के करफ व करामात और ख़ास कर दारे हाजिर के पीरों की करामतों का ््क््च्कतसिसतत खफऊर्:/!/ ै॑/।/0/|/॥/॥/॥॥"""््््््.ऱ़़़ग 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 52 !3 मकतवा इमामे आज़म तो इस क॒दर चर्चा है कि हर गली व बाज़ार बल्कि हर मकान व दुकान, होटलों ओर चाएख़ाानों में, किताबों और रिसालों के पन्नों में हर जगह इस का डका बज रहा है और हर तरफ इस की धूम मची हुई है मगर अफसोस कि उम्मते मुस्लेमा का वह औलिया का गरोह जो यकोनन तमाम उम्मत में “'अफूजलुल औलिया'' है यअनी “सहाब-ए-किराम लडन की विलायत व करामत का कहीं भी कोई तज़्किरा ओर चर्चा न कोई सुनाता है न कहीं सुनने में आता है, न किताबों और रिसालों के पन्‍नों में मिलता है, हालांकि उन बुजुर्गों की विलायत व करामत का दर्जा इस कृदर बलन्द व बाला है कि अगर तमाम ९: के अगले व पिछले औलिया को उन के नक्शे कृदम चूम लेने को खुश किस्मती नसीब हो जाए तो उन की विलायत व करामत ओर बलन्द हो जाए। क्योंकि हकीकत में यही हजरात तो विलायत व करामती हैं कि उन के नक्शे कदम पैरवी के बेगैर विलायत व करामत तो दूर किसी को ईमान भी नसीब नहीं हो सकता। यह लोग बिला वास्ता आफताबे रिसालत से विलायत का नूर हासिल करके आसमाने विलायत में सितारों की तरह चमकते और करामत क बाग में गुलाब के फूलों की तरह महकते हैं और तमाम दुनिया क॑ औलिया उन की विलायत के शाही महलों की पर भिकारी बन कर विलायत के नर की भीक मांगते रहते हैं। अल्लाहो अकबर! यह वह बड़ी और मुकदस हस्तियाँ हैं जो हुजूरे अनवर*४9#जलाल व जमाले नुबुवत को अपनी ईमानी नजरों से देख कर और हबीबे खुदा#ं##क शफे सुहबत से सरफराज होकर तमाम औलियाए उम्मत में इसी तरह नज़र आ रहे हैं जिस तरह टिमटमाते हुए चिरागों को महफिल में हज़ारों पावर का जगमगाता हुआ बिजली का बल्ब या सितारों की बारात में चमकता हुआ चाँद। अफसोस कि न तो हमारे मुकर्ररीने किराम ने अपनी तकरीरों में सहाबा-ए-किराम को करामतों को बयान किया न हमारे बुज्गों ने अपने मुरीदों को इस से तर किया न हमारे उलमाए अहले न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/॥.776/50॥॥_॥।॥॥0/09/4/9५ कम ॥[05:॥/8/079५8.0/5/0७68/5/6)08098/06_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहावा /£2 4 मकतवा इमामे आजम सुन्‍्नत ने इन उनवान पर कभी कुलम उठाने की जहमत गवारा की, हालाँकि राफजियों के मुकाबला में ज़्यादा से ज़्यादा इन उनवान पर लिखने और इस का तज्किरा और चर्चा करने की जरूरत थी और आज भी है क्‍योंकि हमारी ग़फूलतों का यह नतीजा हुआ कि हमारे अवाम जानते ही नहीं कि सहाब-ए-किराम भी औलिया हैं और उन बुजुर्गों से भी करामतों का जुहूर हुआ है। हकीकत में एक मुद्दत से मेरा यह तअस्सुर मेरे दिल का कांटा बना हुआ था। चुनान्चे यही वह जज़्बा है कि जिस से मुतअस्सिर हो कर म॑ अपनी कम हिम्मती और कम इल्मी के बावजूद फिलहाल एक सा (400) सहाबा-ए-किराम ल के मुकृदस हालात और उन के कमालात हे व करामात का एक मजमूआ गुल्दस्ता की सुरत में नाज़रीने किराम क्री खिदमत में नज़र | करने की सआदत हासिल कर रहा हूँ जो 'करामाते सहाबा'' के सीधे सादे नाम से मौसूम है। ७; ७ ५.3 ,< < 5 $)---सच पूछिए तो दर हकौक॒ृत मेरी नज़र में यह किताब इस काबिल ही नहीं थी कि इस को मंज़रे आम पर लाऊँ। क्‍योंकि इतने अहम उनवान पर इतनी छोटी सी किताब हरगिज़ अज़मते सहाबा के शान के लायक नहीं है। मगर फिर यह सोच कर कि हजराते सहाबा किराम£2के दरबारे अज़मत में फूल न सही तो कम से कम फूल की एक पंखड़ी हो नज़र करने की सआदत हासिल कर लूँ। इस किताब को छापने को हिम्मत कर ली है। फिर यह भी ख्याल आया कि शायद मुझे कम इल्म की इस कोशिश को देख कर दूसरे अहले इल्म मैदाने तसनीफ्‌ में अपनी कुलम कारी के जौहर देखाएं तो (८ ॥5 42५५४ -:»)(नेक काम की रहनुमाई करने वाला उस काम के करने वाले की तरह है) की नेक बख्ती मुझे नसीब हो जाएगी। में ने इस किताब में हज़राते ख़ुलफाए राशेदीन व हजराते अशरए मुबरशरह रिज़्वानुल्लाह अलैहिम के सिवा दूसरे सहाबए किराम के नामों और तज़्करों में जान बूझ कर किसी खास तरतीब का ख्याल नहों किया है। बल्कि दौराने मुताला जिन जिन सहाबा-ए- किराम की न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम हिल [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_830७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 2 5 मकतवा इमामे आज़म करामतों पर नज़र पड़ती रही उन को नोट करता रहा। यहाँ तक कि मेरी नोट बुक बढ़ते बढ़ते एक किताब बन गई। क्योंकि मेरा असल मकसद तो सहाबा-ए-किराम की करामतों का तज्किरा था। चाहे छोटे सहाबा का जिक्र पहले हो या बड़े सहाबा का। इस से असल मकसद में कुछ फूक्‌ नहीं पड़ता। तद॒वीन किताब लिखने के बारे में अजीजे मुहतरम मौलाना कुद्रतुल्लाह साहब दारूल उलूम फंजुरसूल बराओं शरीफ का शुक्र गुज़ार होकर उन के लिए दुआ करता हूँ कि उन्होंने किताब के कुछ हिस्सों के मसव्वदों को देखकर सही करके मेरे कुलम के बोझ को कुछ हलका कर दिया। इसी तरह अपने दूसरे मुझख्िलिस शागिरदे खास कर असअदुल उलमा मौलाना अलहाज म॒फ़्ती सैय्यद अहमद शाह बुखारी मुबल्लिगे अफ्रीका साकिन वझ्ुहान जिला कछ और मौलाना सैय्यद मुहम्मद यूसुफ शाह ख़॒तीब जामा मस्जिद चौक भुज जिला कछ और मौलाना अब्दुरहमान साहब मुदर्रिस मदरसा अहले सुन्नत कोठार जिला कछ का भी बहुत शुक्र गुज़ार हँ कि उन मुख्लिस अज़ीज़ों ने हमेशा मेरी किताबों को कद्र की निगाहों से देखा और मेरी किताबों के छपवाने में काफी हिस्सा लिया। /$>॥ (०० ,/५5 ५ ।॥ »»।5->७आखिर में दुआ करता हूँ कि ख़ुदा वन्दे करीम अपने हबीब अलेहिस्सलातु वत्तस्लीम के सदक में मेरी इस हकौर इल्मी व कुलमी ख्विदमत को अपने फजल व करम से शर्फे कुबूलियत अता फ्रमाए ओर इस को मेरे लिए और मेरे वालिदैन व असातजा व शागिर्द व अहबाब सब के लिए सामाने आखि्रत व जरिए मग्फ्रित बनाए।..।..)०॥॥ ५५५ ०-२२ ७-३ (3३० >3।2 02० 6०८7५ 53३/५०)| ५:-०-००५ (| ५०५ (२० तालिबे दुआ अब्दुल मुस्तफा अअजमी रहमुल्लाह अलह.. शैख़ल हदीस दारूल उलूम अहले सुनन्‍्नत फुजुर्रसूल बराओं शरीफ जिला बस्ती 25 शव्वाल 4398 हिजरी ब्न्नकून ब्ण्जी 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05:/.6/50॥7_|॥ताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/05869/|5/6209099776_30७॥9_॥20/9/%५ करामाते सहाबा /£2 (6 मकतबा इमामे आजम तहकीकु करामात जमान-ए-नुबूबत से आज तक कभी भी इस मसला में अहले हक के बीच इख्तिलाफ नहीं हुआ कि औलिया-ए -किराम की करामतें हक्‌ हैं और हर जमाने में अल्लाह वालों की करामतों का सुदूर व जहूर होता रहा और इन्शाअल्लाह कुयामत तक कभी भी इस का सिलसिला बन्द नहीं होगा। बल्कि हमेशा औलिया-ए-किराम से करामात सादिर व जाहिर होती ही रहेंगी। और इस मसला के सुबुत में करआन मजीद की मुकृद्दस आयतें और अहादीसे करीमा और सहाबा व ताबईन का इतना बड़ा ख़ज् किताबों में महफूज़ है कि अगर इन सब बिखरी मोतियों को एक लड़ी में पिरो दिया जाए तो एक ऐसा कीमती हार बन सकता है जो तअलीम व तअल्लुम क बाज़ार में निहायत ही अनमोल होगा और अगर इन बेखरे पन्नों को किताब में जमा कर दिया जाए तो एक भारी भरकम और बड़ा दफ्तर तैयार हो सकता है। करामत क्‍या है; मोमिन परहेजगार से अगर कोई ऐसा अजीब व गरीब तअज्जुब खुज़ चीज़ सादिर व जाहिर हो जाए जो आम तौर पर नहीं हुआ करती तो उस को “'करामत'' कहते हैं इसी किस्म की चीजें अगर अंबिया ब से ऐलाने नुब॒व्वत करने से पहले जाहिर हों तो '“टरहास'' और ऐलाने नुबुव्वत के बाद हों तो '“'मुअजेजह'' कहलाती हैं और अगर आम मोमिनीन से इस किस्म की चीजों का जहूर हो तो उस को “'मऊनत'' कहते हैं और किसी काफिर से कभी इस की ख्वाहिश के मुताबिक्‌ु इस किस्म की चीज़ जाहिर हो जाए तो इस को '*इस्तद्राज'' कहा जाता है। मुअजेजह और करामतः ऊपर ज़िक्र की हुई तफसील से मालूम हो गया कि मुअजेजह और करामत दोनों की हकीौकृत एक ही है। बस दोनों में फर्क सिर्फ इस कृदर है कि खिलाफे आदत व तअज्जुब ख़ज चीज़ें अगर किसी नबी की तरफ से जाहिर हों तो यह “'मुअजेजह नस >> ?्?्््आ् ्नहोौोाओओनतफ कच छ ंंत्च् नि उीीाआशीीरीा ा चलन िाध्ाननननतभ>भभऑऑभतररननन-नन+-3८--. -_-ननमसत+»-»०»णण-. -न्‍यआा न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/098099776_30७॥|॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 2 [7 मकक्‍तबा इमामे आजम कहा जाएगा। चुनानचा हजरत इमाम याफई अलैहिरहमा ने अपनी किताब “ नश्रूल महासिनिल गालिया''में तहरीर फरमाया कि इमामुल हरमन अबू बकर बाकलानी व अबू बकर बिन फौरक और हुज्जतुल इस्लाम इमाम ग़जाली व इमाम फखठ़ारूचद्योन राजी व नासिरूद्दोन बैजावी व मुहम्मद बिन अब्दुल मलिक सलमी व नासिरूचद्यीन तौसी व हाफिजुद्दीन सफ़ी व अबुल कासिम कुदैरी इन तमाम बड़े उलमाए अहले सुन्नत व मुहक्क॒कौने मिल्लत ने एक साथ यही तहरीर फ्रमाया कि मुअजेज़ह और करामत में यही फर्क है कि आदत के खिलाक्‌ का सदूर व जहूर किसी नबी की तरफ से हो तो उस को “'मुअजेजह'' कहा जाएगा और अगर किसी वली की तरफ से हो तो उस को '“करामत'' के नाम से याद किया जाएगा। हज़रत इमाम याफुई ने इन दस इमामों के नाम और उन की किताबों को इबारतें नकल फ्रमाने के बाद यह इरशाद फरमाया कि इन इमामों के इलावा दूसरे बुजुर्गाने मिललत ने भी यही फरमाया है लेकिन इल्म व फजल और तहकीक व बारीकी के उन पहाड़ों के नाम जिक्र कर देने के बाद और मुहक्केकीन (२९५९०७/८॥४ 50८॥0075) के नामों के जिक्र की कोई ज़रूरत नहीं। (हज्जतुल्लाह अलल आलमीन जिल्द 2, स॒ 849) मुअजेजुह जुरूरी करामत जरूरी नहीं: मुअजेजह और करामत में एक फर्क यह भी है कि वली के लिए करामत का होना जरूरी नहीं है मगर हर नबी के लिए मुअजेजह का होना जरूरी है क्‍योंकि वली के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह अपनी विलायत का ऐलान करे या अपनी विलायत का सुबूत दे। बल्कि वली के लिए तो यह भी ज़रूरी नहीं है कि वह ख़ुद भी जाने कि मैं वली हूँ चुनान्चे यही वजह है कि बहुत से औलिया अल्लाह ऐसे भी हुए कि उन को अपने बारे में यह मालूम ही नहीं हुआ कि वह वली हैं। बल्कि दूसरे औलिया-ए- किराम ने अपने कश्फ व करामत से उन की विलायत को जाना पहचाना और उन के वली होने का चर्चा किया। मगर नबी के लिए 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/0298099776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहाबा #&7 ]8 मकक्‍तवा इमामे आजम अपनी नुबुव्वत को साबित करना ज़रूरी है और चूँकि इन्सानों के सामने नुबुव्वत का सुबुत बेगैर मुअजेजह दिखाए हो नहीं सकता इस लिए नबी के लिए मुअजेजह का होना जरूरी और लाज़मी है। करामत हरी किसमें: औलिया-ए-किराम से सादिर व जाहिर होने वाली करामातें कितने तरह की हैं और उन की तादाद कितनी है? इस बारे में अल्लामा ताजुद्दोन सुबकी अलहिरहमा ने अपनी किताब ““तबकात'' में तहरीर फरमाया है फि मेरे ड़याल में औलिया- ए-किराम से जितनी किस्मों की करामतें सादिर हुई हैं उन किस्मों की तादाद (00) एक सौ से भी जायद है। इस के बाद अल्लामा मोसूफ ने कुछ तफसील क साथ करामत की (25) पचीस किस्मों का बयान फ्रमाया जिन को हम नाज़रीन की ख्विदमत में कुछ तफसील के साथ पेश करते हें। () मुदों को जिन्दा करना: यह वह करामत है कि बहुत से ओऔलिया-ए-किराम से इस का जुहूर हो चुका है। चुनानचे सही रिवायतों से साबित है कि अबू उबैद बसरी जो अपने दौर के बड़े अलिया में से हैं एक मर्तबा जिहाद में तशरीफ ले गए जब उन्होंने वतन को तरफ वापसी का इरादा फ्रमाया तो अचानक उन का घोड़ा मर गया। मगर उन की दुआ से अचानक उन का मरा हुआ घोड़ा ज़िन्दा हो कर खड़ा हो गया और वह उस पर सवार होकर अपने वतन ''बसर'' पहुच गए ओर नौकर को हुक्म दिया कि उस की जीन और लगाम उतार ले। खादिम ने जूँ ही जीन और लगाम को घोड़े से अलग किया फौरन ही घोड़ा मर कर गिर पड़ा। इसी तरह हजरत शेखर मुफरज जो इलाका मिस्र में ''सईद''के रहने वाले थे उनके दस्तरख्वान पर एक परिन्दा का बच्चा भुना हुआ रखा था। तो आप ने फ्रमाया कि “अल्लाह तआला" के हुक्म से उड़ कर चला जा। उन अलफाज़ का उन को जबान से निकलना था कि एक लमहा में वह परिन्दा का बच्चा जिन्दा हो गया और उड़ कर चला गया। इसी तरह हज़रत शैख्ध अहदल 5% ने अपनी मरी हुई बिल्ली को ]60 ५शं। ए5ट5गशाहशः [05://.क्‍6/50॥7_|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा /६९ 9 मकतवा इमामे आज़म पुकारा तो वह दौड़ती हुई शैख के सामने हाजिर हो गई। इसी तहर हजरत गौसे अअजम अब्दुल कादिर जीलानी 5&“ने टस्तरख़्वान पर पकी हुई मुर्गी को खा कर उस की हड़ौ्ियों को जमा करके फरमाया और यह इरशाद फरमाया कि ऐ मुर्गी) तू उस अल्लाह तआला के हुक्म से जिन्दा हो कर खड़ी हो जा जो सड़ी गली हड्डियों को जिन्दा फ्रमाणगा। ज़बाने मुबारक से इन अलफाज़ के निकलते ही मुर्गी जिन्दा हो कर चलने फिरने लगी। इसी तरह हज़रत शेख जैनुद्दीन शाफुई मुदर्रिस मदरसा शामिया ने उस बच्चे को जो मदरसे के छत से गिर कर मर गया था जिन्दा कर दिया। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2, स856 ) इसी तरह आम तौर पर यह मशहूर है कि बग़दाद शरीफ में चार बुजुर्ग ऐसे हुए जो माँ के पेट से ही वली पैदा हुए। अंधों और कोढ़ियों को ख़ुदा तआला के हुक्म से शिफा देते थे और अपनी दुआओं से मुर्दों को जिन्दा कर देते थे। शैद्ध अबू सअद केलवी व शेख बका बिन बतू व शैख़ अली बिन अबी नसर हेती व शैख अब्दुल कादिर जीलानी। (बहजतुल असरार शरीफ) (2) मुर्दों से कलाम करना: करामत की यह किस्म भी हज़रत शैख् अबू सईद ख़राज़ और हज़रत गौसे अअजम रहमुल्लाह वगैरह बहुत से औलिया-ए-किराम से बारहा और बहुत ज्यादा ब्यान किया गया है। (हुज्जतुल्लाह जिल्‍्द 2, स 856) गैख अली बिन अबी नसर हेती का बयान है कि में शैख् अब्दुल कादिर जीलानी £# के साथ हजरत मअरूफ करखी $&क मजारे मुबारक पर गया और सलाम किया तो कृत्रे अनवर से आवाज़ आईं कि «॥५)॥ (|७| ५... | 6 0५० ४५/०५ (बहजतुल असरार) ४ ग़ैख अली बिन अबी नसर हैती और बका बिन बतू यह दोनों बुजुर्ग हजरत गोौसे आजम शैख अब्दुल कादिर जीलानी #£के साथ हजरत इमाम अहमद बिन हंबल अलैहिरहमा के मज़ार पर हाज़िर हुए तो अचानक हजरत इमाम अहमद बिन हंबल अलैहिर्रहमा कृतब्र शरीफ 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा ४४2 20 मकतवा इमामे आजम .....................- ०००० बककककक््न - 3५333 “--. कक न-----७७७७99५५कक का न सन ष५ आश्रित |ःाशःाझ ़ ंआ़ नच्श््ल्चल आ आआआआओआआआआओओओ७ओओंंंषषधकषकक:&::::शह स2325ज,॥ध#नतहतैत़् मा कक नमुनमुननुनुननननुनुननुन॒॒॒॒ न आना"; ८ «कल मलुललूभु से बाहर निकल आए और फरमाया कि ऐ अब्दुल कादिर जीलानी। में इल्मे शरीअत व तरीकृत और इल्म काल व हाल म॑ तुम्हारा मुहताज हूँ। (बहजतुल असरार) (3) दरियाओं पर कब्जा: दरिया का फट जाना, दरिया का सूख जाना, दरिया पर चलना बहुत से औलिया-ए-किराम से उन करामतों का जुहर हुआ। खास कर सय्यदुल उलमा हज़रत तकौयुद्योन बिन दकौकूल ईद#&क लिए तो इन करामतों का बार बार जुहूर आम तोर पर लोगों में मशहूर है। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2, स॒ 856) (4) हकीकत का बदल जाना: किसी चीज को हकोक॒त का अचानक बदल जाना यह करामत भी कई बार औलिया-ए-किराम से हुआ है। चुनान्चे शैख़ ईसा हितार यमनी 5& के पास बतोर मज़ाक के किसी गुस्ताख ने शराब से भरी हुई दो मशकें तोहफा में भेज दीं। आप ने दोनों मश्कों का मुँह खोल कर एक दूसरे में शराब को उडेल दिया। फिर वहाँ पर मौजूद लोगों से फ्रमाया कि आप लोग इस को खायें। हाज़िरीन ने खाया तो इतना अच्छा और इस कदर बेहतरीन घी था कि ताउम्र लोगों ने भी इतना उमदा घी नहीं खाया। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2 स 856) (5) जमीन का सिमट जाना: सेकड़ों हज़ारों मील की दुरी का कुछ लमहों में तैय होना यह करामत भी इस कदर ज्यादा अल्लाह वालों से हुई है कि इस की रिवायत हद्चे तवातुर (किसी बात को इतने लोग ब्यान करें की उतने लोगों का एक ही बात पर झूठ बोलना ना मुम्किन हो)तक पहुँची हुई हें। चुनान्वे तरतूस की जामा मस्जिद में एक वली तशरीफ फरमा थे। अचानक उन्होंने अपना सर गिरेबान में डाला और फिर चन्द लमहों में गिरेबान से सर निकाला तो वह एक दम कअबा में पहुँच गए। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2, स॒ 856) (6) पेड़ पौधों से बात चीत:ः बहुत से जानवर,पेड़ पौधे और कककड़ पत्थरों ने औलिया-ए-किराम से बात की। जिन की कहानियाँ बहुत किताबों में हैं। चुनान्चे हज़रत इब्राहीम अद्हम अलैहिर्रहमा बैतुल न कं हद 56व7606 ५शशंगा एद्वा75टवयगा6/ [[05://.क्‍06/5 07॥#/_।॥0 0/9/५ | ॥05:॥/8/079५8.0/5/0668/5/6)0808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहावा &४2 2] मकतवा इमामे आज़म मुकदस के रास्ते में एक छोटे से अनार के पेड़ के साया में उतर पड़े तो उस पेड़ ने बआवाज़े बुलन्द कहा कि ऐ अबू इस्हाकु आप मुझे यह शफ अता. फरमाइए कि मेरा एक फल खा लीजिए। इस पेड़ का फल खट्‌्टा था मगर दरख़्त की तमन्ना पूरी करने के लिए आप ने इस का एक फल तोड़ कर खाया तो वह बहुत ही मीठा हो गया। और आप की बरकत से साल में दो बार फल देने लगा और वह पेड़ इस कदर मशहूर हो गया कि लोग इस को रूमानतुल आबेदीन (नेकों का अनार) कहने लगे। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2, स 856) (7) शिफाए अमराज: ओऔलिया-ए-किराम के लिए इस करामत का सुबूत भी बकस्रत किताबों में लिखा है। चुनान्वे हज़रत सिर्री सकृती अलैहिरहमा का ब्यान है कि एक पहाड़ पर मैंने एक ऐसे बुजुर्ग से मुलाकात की जो अपाहिजों, अंधों और दूसरे किस्म किस्म के मरीज़ों को ख़ुदा के हुक्म से शिफायाब फरमाते थे। (हज्जतुल्लाह जि 2, स 857) (8) जानवरों का फरमाँबरदार हो जाना: बहुत से बुजुर्गों ने अपनी करामत से खतरनाक दरिन्दों को अपना फ्रमॉबरदार बना लिया था। चुनानचे हज़रत अबू सईद बिन अबुल खैर सीनी अलैहिर्रहमा ने शेरों को अपना फरमाँ बरदार बना रखा था। और दूसरे बहुत से औलिया शेरों पर सवारी फ्रमाते थे जिन की हिकायात मरहूर हैं। (हज्जतुल्लाह जि 2, स 857) (9) जमाना का कम हो जाना: यह करामात बहुत से बुजुर्गों से मन्कूल है कि उन की बारगाह में लोगों को ऐसा महसूस हुआ कि पूरा दिन इस कदर जल्दी गुज़र गया कि गोया घंटा दो घंटा का वक़्त गुज़रा है। (हज्जतुल्लाह जि 2,स 857) (40) जमाना का लम्बा हो जाना: इस करामत का जुहूर सेकड़ों उलमा व मशाइख से इस तरह हुआ कि उन बुजुर्गों ने कम से कम बक्तों में इस क॒दर ज़्यादा काम कर लिया कि दुनिया वाले इतना काम महीनों बल्कि सालों में भी नहीं कर सकते। चुनान्चे इमाम शाफुई व न कं हद 56व77606 ५शशंगरा एद्वा75टवया6/ [[05://.86/5 07 _।॥0 08५ ाआ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/620909776_830॥9_॥20/9/%५ करामाते राहावा ॥7 3 मकतवा डमागे आजम हुज्जतुल इस्लाम इमाम गजाली व अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती व इमामुल हरमैन मुहियुद्दीन नौवी वगैरह। और चौदहवीं सदी हिजरी के इमाम अहमद रजा खान बरेलवी अलैहिर्रहमा जिन्हों ने तक्रीबन एक हजार किताबें पच्चास उलूम में लिखीं। उलमा-ए-दीन ने इस कदर ज्यादा तअदाद में किताबें लिखी हें कि अगर उन की उम्रों का हिसाब लगाया जाए तो रोज़ाना इतने ज़्यादा सफहें उन बुजुर्गों ने तसनीफ्‌ फ्रमाए हैं कि कोई इतने ज़्यादा सफहों को इतनी कम मुद्दत में नकल भी नहीं कर सकता। हालाँकि यह अल्लाह वाले तसनीफ के इलावा दूसरे काम भी करते थे और नफली इबादतें भी खूब अदा करते रहते थे इसी तरह मन्कूल है कि कुछ बुजुर्गों ने दिन रात में आठ आठ खात्मे कुरआन मजीद की तिलावत की है। जाहिर है कि उच बुजुर्गो के औकात में इस कृदर और इतनी ज़्यादा बरकत हुई है कि जिस को करामत के सिवा और क्‍या कहा जा सकता है? (हुज्जतुल्लाह जि 2, स॒ 857) (]) मकबूलियत की दुआ: यह करामत भी बहुत ज़्यादा बुजुर्गों से मन्कूल हेै। (।2)खामूशी व कलाम पर कुदरत: कुछ ब॒जर्गों ने बरसों तक किसी इंसान से कलाम नहीं किया और बाज बुजुर्गों ने नमाज़ों और ज़रूरियाते ज़िन्दगी के इलावा कई कई दिनों तक मुसलसल नसीहत फरमाया ओर दरस दिया है। (3) दिलों को अपनी तरफ खींच लेना: सैकड़ों औलिया-ए- किराम से यह करामत जाहिर हुई कि जिन बस्तियों या मजलिसों में लोग उन से दुश्मनी व नफ्रत रखते थे जब उन हजरात ने वहाँ कदम रखा तो उन की तवज्जुहात से नागहाँ सब के दिल उन की मुहब्बत से भर गए और सब के सब परवानों की तरह उन के क॒दमों पर निसार होने लगे। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2, स॒ 857) (4) गैब की खूबरें: उस की बे शुमार मिसालें मौजूद हैं कि ओलिया-ए-किराम ने दिलों में छुपे हुए ख़्यालात व शुब्हों को जान न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209809776_830॥9_॥0/8/%५ करामाते सहाबा 5२ »43 मकतवा इमामे आजम वरननानमनननननननननम कप 3+ मम कम पर कझसेाओ जा. काला सर सर 9 + कक न कक «मम म+नम.>«++म+++++ममम न कर कक + “नमन न न «नक्‍न+स नमन--नननन----ननननननमननन न» +म-मनन«नन«+ा+-मन--+++»-+नम-ममन---ननन-ाा ना नमन नमन कक्‍ न नय.ल्‍ आता "साह--नूहमम----ननूह छा... जा. सौ फीसद सही होती रही। (5) खाए पीए बगैर जिन्दा रहना: ऐसे बुजुर्गों की फेहरिस्त बहुत ही लम्बी है जो एक लम्बी मुद्दत तक बेगैर कुछ खाए पीए ज़िन्दा रह कर इबादतों में मसरूफ्‌ रहे और उन्हें खाना या पानी छोड़ देने से जर्रा बराबर कोई कमजोरी नहीं हुई। (6) दुनिया के निजाम पर कब्जा: मन्कूल है कि बहुत से बुजुर्गों ने सख्त सुखे क ज़माने में आसमान की तरफ उँगली उठा कर इशारह फ्रमाया तो फौरन आसमान स॑ मोसलाधार बारिश होने लगी। और मशहूर है कि हज़रत शैख अबुल अब्बास शातिर अलैहिर्रहमा तो दिरहमों के बदले बारिश बेचा करते थे। (हज्जतुल्लाह जिल्द 2, स॒ 857) (१7) बहुत ज़्यादा खाना खा लेना: बाज बुजुर्गों ने जब चाहा बीसियों आदमियों की खुराक अकेले खा गए और उन्हें कोइ तकलीफ भी नहीं हुई। क्‍ (।8) हराम खानों से महफज: बहुत से औलिया-ए-किराम की यह करामत मशहूर है कि हराम ग्रिज़ाओं से वह एक ख़ास किस्म की बदबू महसूस करते थे! चुनान्चे हज़रत शैख़ हारिस महलबसी अलैहिर्रहमा के सामने जब भी काई हराम गिज़ा लाई जाती थी तो उन्हें उस गिजा से ऐसी खराब बदब्‌ महसूस होती थी कि वह उस को हाथ नहीं लगा सकते थे और यह भी मन्कूल है कि हराम खाने को देखते ही उन की एक रग फड़कने लगती थी। चुनानचे मन्कूल है कि हजरत शैख अबुल अब्बास मुरसी के सामने लोगों ने इम्तिहान के तौर पर हराम खाना रख दिया। तो आप ने फ्रमाया कि अगर हराम गिजा को देख कर हारिस महलबसी अलैहिरहमा की एक रग फड़कने लगती थी तो मेरा यह हाल है कि हराम खाने के सामने मेरी सत्तर रगें फड़कने लगती हैं। (हज्जतुल्लाह जिल्द 2, स 857) न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा &? 24 मकक्‍तवा इमामे आजम . (१9) दूर की चीज़ों को देख लेना: शैख अबू इसहाक शिराजी अलैहिरहमा की यह मश्हर करामत है कि वह बगदाद शरीफ में बैठे हुए कअबा मुकर्रमा को देखा करते थे। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2, स 857) (20) हैबत व दबदबा: कुछ ओऔलिया-ए-किराम से इस करामत का सुदूर इस तौर पर हुआ कि उन की सूरत देख कर बाज लोगों पर इस कृदर खोफ व डर हुआ कि उन का दम निकल गया। चुनान्‍्चे हजरत ख़्वाजा बा यजीद बुस्तामी अलैहिरहमा की हैबत से उन की मजलिस में एक शख्स मर गया। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2, स 857) (2) मुख्तलिफ सरतों में जाहिर होना: इस करामत को सुफिया- ए-किराम की इस्तलाह में ''ज़लअ व लबस'' कहते हैं यअनी एक शक्ल को छोड़ कर दूसरी शक्ल में जाहिर हो 'जाना। हज़रः सुफिया का कौल है कि रूहों की जिन्दगी और आलमे अजसाम के +॑च एक तीसरी दुनिया भी है। जिस को आलमे मिसाल कहते हैं। इस दुनिया में एक ही शख्स की रूह मुख़्तलिफ जिस्मों में जाहिर हो जाया करती है। चुनान्चे उन लोगों ने कुरआन मजीद की आयते करीमा ।,&,।, (४: | _,, . से दलील ली है कि हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम हजरत बीबी मरयम के सामने एक तन्दुरूस्त जवान आदमी की सूरत में जाहिर हो गए थे। यह वाकिआ आलमे मिसाल में हुआ था। यह करामत बहुत से औलिया ने दिखाई है। चुनानन्‍चे हजरत 'उजीबुलबान मोसली अलैहिरहमा जिन का ओलिया के तबका-ए- अबदाल में शुमार होता है। किसी ने आप पर यह तुहमत लगाई कि आप नमाज़ नहीं पढ़ते। यह सुन कर आप जलाल में आ गए और फौरन ही अपने आप को उस के सामने चन्द सूरतों में ज़ाहिर किया। ओर पूछा कि बता तू ने किस सूरत में मुझ को नमाज़ छोड़ते हुए देखा है। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2, स 858) इसी तरह ब्यान किया गया है कि हज़रत मौलाना यअकूब चरखी अलैहिरहमा जो मशाइखे नक़्शबन्दिया में बहुत ही बड़े बुजुर्ग हैं। जब न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209099776_830॥9_॥0/9/%५ कराए।ते सहाबा ४7 2४६ मकतवा इमामे आज़म किन --2»-»>+++++--+--००--------०+++-नननननन--++++++++-------“--वकट--++ नल ---------“--“ 7 3---+*-:““--- ------+--+-+--++-++++++नननन-+++-+न न पक न पननिभननभीी नी तझ?तझ; &त,"“टत न तचचचा ब व्टननि्ननननरफसस<ञ तन :क्‍क्‍इखचआियन- हुमा न नं शिजा 3 मा हज़रत ख़्वाजा उबैदुल्लाह इहरार अलैहिरहमा उन की ख्व्रिदमत में मुरीद होने के लिए हाजिर हुए तो हजरत ख़्वाजा मौलाना यअकूब चरखी अलेहिरहमा के चेहरे अकृदस पर उन को दाग धब्बे नज़र आए जिस से उन के दिल में कुछ ना पसन्दीदगी पैदा हुई तो अचानक आप उन के सामने एक ऐसी नूरानी शक्ल में ज़ाहिर हो गए कि बे इख्तियार ख़्वाजा उबेदुल्लाह इहरार अलैहिरहमा का दिल उन कौ तरफ झुक गया और वह फौरन ही मुरीद हो गए। (रुशहातुल उयून) (22) दुश्मनों की मक्कारियों से बचना: ख़ुदावन्दे कुद्दूस ने कुछ ओऔलिया-ए-किराम को यह करामत भी अता फ्रमाई है कि जालिम हाकिम व बादशाह ने जब उन के कृत्ल या तकलीफ पहुंचाने का इरादा किया। तो गैब से ऐसे असबाब पैदा हो गए कि वह उन क शर से महफूज रहे जैसा कि हजरत इमाम शाफई अलैहिर्रहमा को खलीफा बुगदाद हारून रशीद ने तकलीफ पहुँचाने क ख्याल स॑ दरबार में तलब किया। मगर जब वह सामने गए तो खलीफा खुद परेशानियों में मुब्तला हो गया कि उन का कुछ न बिगाड़ सका। (हज्जतुल्लाह जि 2, स 858) (23) जमीन के खुजानों को देख लेना: कुछ ओऔलिया -ए-किर।म छपे हुए खूज़ानों को देख लिया करते थे और उस को अपनी करामत से बाहर निकाल लेते थे। चुनान्वे शैख अबू तुराब अलैहिर्रहमा ने एक ऐसे मकाम पर जहाँ पानी नहीं था ज़मीन पर एक ठोकर मार कर पानी का चश्मा (सोता) जारी कर दिया। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2, स अजुनि 58) (24) परिशानियों का आसान हो जाना: यह करामत बुजुगान दीन से बार बार और बेशुमार मर्तबा ज़ाहिर हो चुकी है जिस की सैकड़ों मिसालें ''तज़्किरतुल औलिया'' वगैरह मुस्तनद किताबों में हैं। कि (25) जान लेवा चीजों का असर न करना: मशहूर हैं कि एक कमीने बादशाह ने किसी ख़ुदा रसीदा बुजुर्ग को गिरफ़्तार किया और उन्हें मजबूर कर दिया कि वह कोई तअज्जुब ख़्ज़ करामत दिखाए वरना उन्हें और उन के साथियों को कृत्ल कर दिया जाएगा आप ने आय / 0 ॑ ॑ ऋ इऊऋ ऋ उछऊ न्‍ल्‍न्‍न्‍न्‍शशयफ्ि न नतननयओयय»य»"»?»?त ख ि आआततऋतततततततततत १5 ॒ुू॒ु॒समसम॒जाणणणणणईं ॥॥ ए5टदयशहश 05:/0.6/5फ॥7_|॥व|फवा५ ४ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62009809776_30७॥9_॥0/8/%५ करामाते सहाबा /४7 26 मकक्‍तवा इमामे आज़म उठ को मेगनियों की तरफ इशारा करके फूरमाया कि उनको उठा लाओ ओर देखो कि वह क्या हैं? जब लोगों ने उन को उठा कर देखा तो वह सोने के टुकड़े थे फिर आप ने एक खाली प्याले का उठा कर घुमाया और उलटा करके बादशाह को दिया तो वह पानी से भरा हुआ था। और उलटा होने के बावजूद उस म॑ से एक कृतरा भी पानी नहीं गिरा। यह दो करामतें देख कर वह बद अकोदा बादशाह कहने लगा कि यह बस नजर बन्दी के जादू का करिश्मा हैं। फिर बादशाह ने आग जलाने का हुक्म दिया। जब आग के शोअले बलन्द हुए तो बादशाह ने मजलिसे सिमाअ लगवाई। जब उन बुजुर्गों को सिमाअ सुन कर जोशे वज्द में हाल आ गया तो यह सब लोग जलती हुई आग में दाखिल हो कर नाचने लगे। फिर एक दरवेश बादशाह के बच्चे को गोद मे ले कर आग में कूद पड़ा और थोड़ी देर तक बादशाह की नजरों से गायब हो गया। बादशाह अपने बच्चे की जुदाई में बे चैन हो. गया। मगर फिर चन्द मिनटों में दरवेश ने बादशाह क बच्चे को उस हाल में बादशाह की गोद में डाल दिया कि बच्चे के एक हाथ में सेब और दूसरे हाथ में अनार था। बादशाह ने पुछा बेटा! तुम कहाँ चले गए थे? तो उस ने कहा कि मैं एक बाग में था जहाँ से में यह फल लाया हँँ। यह देख कर भी जालिम व बद अकोदा बादशाह का दिल नहीं पसीजा और उस ने एक बुजुर्ग क, बार बार जहर का प्याला पिलाया। मगर हर मर्तबा जहर के असर से उस बुजुर्ग के कपड़े फटते रहे और उन की जात पर ज़हर का कोई असर नहीं हुआ। (हज्जतुल्लाह जिल्द 2, स 858) करामत की यह वह पच्चीस किसमें हैं और उन की चन्द मिसालें हैं जिन को हजरत अल्लामा ताजुद्दीन सबको अलैहिरहमा ने अपनी किताब '““तबकात'' में तहरीर फ्रमाया है, वरना इस के इलावा करामात की बह॒त सी किसमें हैं और उन की मिसालें इस कदर ज़्यादा तअदाद में हैं कि अगर उन को जमा किया जाए तो हज़ारों पन्‍नों का एक भारी भरकम दफ़्तर तैयार हो सकता है मगर बतौर मिसाल जिस नि ड़ हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 7 _॥।॥0/0/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा &/ )ण मकतवा इमामे आजम निनिफि...---“-नननयनननन५५७७५<०००५००.५०७७.33०-७७७०७३७०७७३७७७७७७७७७७३७७७३७०३७३७३७००३०३७३०५५७७७००००००-----“ -----“------- --०७७७७७७७७३३७७३३७३३३७३३३३३३३३३३३३७३३३३३३३७३३७०३३००५७-५--.०------<3%- ८८ ००७३००-.3५335%-----------0---- “० --03*--- “-+नननवा०००->_ ्ायिक्थ्ण्ण्यप्षण्ण्ण्म्नभ्न्ब्६6६€6छ्६द६्६्््भ््ण्णन्शशशप् तसकीने रूह और दिल के इत्मिनान के लिए बहुत काफो हैं। रह गए बद अकाीदा मुन्करीन तो उन की हिदायत के लिए दलाइल तो क्या? दौरे रिसालत में उन को मुअजेजा ''शक्कूल कुमर'' भी फायदा मन्द नहीं हुआ। मिसाल मरहूर है कि:- फल की पत्ती से कट सकता है हीरे का जिगर मर्दे नादाँ पर कलामे नरम व नाजुक बे असर सहाबी जो मुसलमान बहालते ईमान हुजूर अनवरमक/&#मुलाकात से सरफ्राज़ हुए और ईमान ही पर उन का ख़ातमा हुआ उन खुश नसीब मुसलमानों को “सहाबी' कहते हैं। उन सहाबियों को तअदाद एक लाख से ज़्यादा है। चुनान्चे हज़रत इमाम बैहकी की रिवायत है कि हज्जतुल विदाअ में एक लाख चोबिस हज़ार सहाबा-ए-किराम हुजूर #88/के साथ हज क॑ लिए मक्का मुकर्रमा में जमा हुए और कुछ दूसरी रिवायत से पता चलता है कि हज्जतुल विदाअ में सहाबा-ए-किराम &2की तअदाद एक लाख चोबिस हज़ार थी। (वबल्लाह अअलम) (ज॒रकानी जिल्द उ, स॒ 06 मदारिज जिल्द 2 स 587) अफूजलुल औलिया तमाम उलमाए उम्मत व बड़े उलमा का इस मसला पर इत्तेफाक 'है कि सहाबा-ए-किराम &४'' अफ्जलुल औलिया'' हैं। यअनी कयामत तक के तमाम ओलिया अगरचे वह दर्जा-ए-विलायत की बुलन्द तरीन मंजिल पर पहुँच जाएँ। मगर हरगिज़ हरगिज़ कभी भी वह किसी सहाबी के कमालाते विलायत तक नहीं पहुँच सकते। ख़ुदाव-ः कुद्दूस ने अपने हबीब/##7की शमणए नुबूबत के परवानों को मर्तबए विलायत का वह बलन्द व बाला मुकाम अता फरमाया है और उन मुकदस हस्तियों को ऐसी ऐसी बड़ी बड़ी करामतों से सरफ्राज न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 07॥#/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा (४? 28 मकतवा इमामे आज़म पाक के इक तमाम ओलिया के लिए उस बलन्दी को तसव्बुर भी नहीं किया जा सकता। उस में शक नहीं कि हज़राते सहाबा-ए- किराम ४ से इस क॒दर ज़्यादा करामतों का सुदूर नहीं हुआ जिस कदर कि दूसरे औलिया-ए-किराम से करामतें मन्कूल हैं। लेकिन वाजेह रहे कि करामत का ज़्यादा होना बड़ा होने की दलील नहीं। क्योंकि विलायत असल (दास्तव) में कुर्बे इलाही का नाम है। यह कुर्ब इलाही जिस को जिस कदर ज़्यादा हासिल होगा उसी कृदर उस की विलायत का दर्जा बलन्द होगा। सहाबा-ए-किराम चूँकि निगाहे नुबूबत क अनवार और फेैजाने रिसालत के फुयूज़ व बरकात से माला माल हैं इसलिए बारगहे ख़ुदावन्दी में उन बुजुर्गों को जो कुर्ब व मर्तबा हासिल है वह दूसरे औलिया अल्लाह को हासिल नहीं। इस लिए अगरचे सहाब-ए-किराम से बहुत कम करामतें जाहिर हुई लेकिन फिर भी सहाबा-ए-किराम का मर्तबा दूसरे औलिया-ए-किराम से बहुत ज़्यादा अफूज़ल व आला और बलन्द व बाला हैं। बहर हाल अगरचे तअदाद में कम सही लेकिन फिर भी बहुत से सहाबा-ए-किराम से करामतों का सुदूर व जुहूर हुआ है। चुनान्चे हम अपनी इस मुख़््तसर सी किताब में कुछ सहाबा-ए-किराम की चन्द करामत का ब्यान ५७6रीर करने की सआदत हासिल करते हैं ताकि अहले ईमान प्यारे हबीब/## को शमओ नबुवत के उन परवानों की करामत के ईमान अफरोज तज़्किरों से अपनी दनियाए दिल को मुहब्बत व अकौदत से भर लें और दुश्मनाने सहाबा या तो आफताबे रिसालत के नूर से चमकने वाले उन रौशन सितारों से हिदायत की रोशनी हासिल करें या फिर अपनी गुस्से की आग में जल भुन कर जहन्नम का आग (ईधन) बन जाएँ। अश्रह मुब्श्शे्‌रह यूँ तो हुजूर रहमतुल लिलआलमीन###ने अपने बहुत से सहाबियों को अलग अलग समय में जन्नत की खुशखबरी दी और दुनिया ही में 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा 8 20 मक्‍तबवा इमामे आज़म उन के जन्‍नती होने का ऐलान फुरमा दिया। मगर दस ऐसे बड़े और ठ्ुश नसीब सहाबा-ए-किराम हैं जिन को आप ने मस्जिदे नबवी के मिम्बर शरीफ पर खड़े होकर एक साथ उन का नाम लेकर जनन्‍्नती होने की खुश ख़बरी सुनाई। तारीख़ में उन ख़ुश नसीबों का लक्‌ब '' अशरह मुबरशेरह'' है। जिन की मुबारक फेहरिस्त यह है। (।) हजरत अबू बकर सिद्दीक | 2) हज़रत उमर फारूक (3) हजरत उस्मान गनी | (4) हज़रत अली मुर्तजा (5) हज़रत तलहा बिन उबेदुल्लाह | |(6) हजरत जुबेर बिन अव्वाम (7) हजरत अब्दुरहमान बिन औफ | [(8) हजरत सअद बिन अबी वकास | (9) हज़रत सईद बिन जैद (0) हजरत अब उबेदह बिन जरीह _ (रजियल्लाहु अन्हुम अजमईन (तिर्मिज़ी जिल्‍्द 3, स 26, मनाकिब अब्दुररहमान बिन औफ) हम सब से पहले उन दस जन्‍्नती सहाबियों की चन्द करामतों का तज्किरा तहरीर करते हैं। उस के बाद दूसरे सहाबा-ए-किराम को करामतें भी तहरीर की जाएँगी और असहाबे किराम की करामतों के. साथ साथ चन्द मुकूइस ख़्वातीने इस्लाम की करामात भी पेश को जाएँगी जो सारी दुनिया की मोमिनात सालिहात में '“सहाबियात'' के मोअज्जज खेताब के साथ मुमताज़ हैं ताकि अहले ईमान पर उस हकीकत का जुहूर (ज़ाहिर) हो जाए कि फेज़ाने नुबुव्वत के अनवार व बरकात और आफताबे रिसालत की रोशनी से सिफ मर्दों ही का तबका फायदा नहीं उठाया बल्कि औरतों पर भी आफूताबे नुबुवत को नूरानी शुआएँ इस तरह जलवा रेज हुई कि वह भी मर्दों के दोश ब दोश मजहरे कमालात व साहिबे करामात हो गई। अल्लाहु अकबर! सच है कि:- जुल्मत को उन के नूर ने काफूर कर दिया जिस पर निगाह डाली उसे नूर कर दिया ३४ हु? है ६ नि ड़ हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | ) [[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_830७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा & 3 मकतवा इमामे आज़म बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर-रहीम नहमदुहू व नुसल्‍ली अला रसूलिहिल करीम क्रामाते सहाबा ४ सरकारे दो आलम से मुलाकात का आलम आलम में है मेअराजे कमालात का आलम यह राजी ख़ुदा से हैं ख़ुदा उन से है राजी या कहिए सहाबा की करामात का आलम हजरत अबू बकर सिद्दीक्‌ ££ खलीफ्‌-ए-अव्वल जानशीने पैग़म्बर अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्योकु अक्बर ४४ का नामे नामी “अब्दुल्लाह'' “अबू बकर' आप की कन्नियत और ''सिद्दीक्‌ व अतीक''आप का लकब है। आप क्रेशी हैं और सातवीं पुश्त में आप का नसब रसूलुल्लाह /#क खानदानी शजरह से मिल जाता है। आप आमुलफौल के ढाई साल बाद मक्का में पंदा हुए। आप इस कृदर कमाल और फजीलतों वाले हैं कि अंबिया#£#के बाद तमाम अगले और पिछले इंसानों में सब से अफ्‌जल व आला हैं। आज़ाद मर्दों में सब से पहले इस्लाम कबूल किया और सफर व वतन के तमाम हालात व इस्लामी जिहादों में मुजाहिदाना कारनामों के साथ शामिल हुए और सुलह व जंग के तमाम फसलों में आप शहंशाहे मदीना/&£7के वज़ीर व मुशीर बन कर नुब॒ुब्वत के मंजिलों के हर हर मोड़ पर आप के दोस्त व जाँ निसार रहे। दो साल तीन माह ग्यारह दिन मस्नदे खिलाफत पर रौनक अफरोज़ रह कर 22 जमादिल आखिर 43 हिजरी मंगल की रात वफात पाईं। हजरते उमर #४ ने नमाजे जनाजा पढ़ाई और रौजए मुनव्वरह में हुजूर रहमते आलम के पहलू में दफून हुए। (अकमाल व तारीखुल ख़ुलफा) ब्न्नयून बज ]60 ५शं। (ए75टवगशाहशः [05:/.क्‍6/50॥7_|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62009809776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा /£2 3] मकतवा इमामे आज़म करामात्‌ खाने में बड़ी बरकतः हज़रत अब्दुररहमान बिन अबू बकर सिद्दीक्‌ ५४ का बयान है कि एक मर्तबा हज़रत अबू बकर %£बारगाहे रिसालत के तीन मेहमानों को अपने घर लाए और ख़ुद हुजुरे अकरम/£/को पते अकृदस में हाजिर हो गए और बात चीत में व्यस्त रहे। यहाँ तक कि रात का खाना आप ने दस्तर ख़्वाने नुबुबत पर खा लिया और बहुत ज़्यादा रात गुज़र जाने के बाद मकान पर वापस तशरीफ्‌ लाए। उन की बीवी ने अर्ज किया कि आप अपने घर पर मेहमानों को बुला कर कहाँ गायब रहे? हज़रत सिद्दीेके अकबर £#ने फरमाया कि क्‍या अब तक तुम ने मेहमानों को खाना नहीं खिलाया? बीवी साहिबा ने कहा कि मैंने खाना पेश किया। मगर उन लोगों ने साहिबे खाना की गैर मौजूदगी में खाना खाने से इन्कार कर दिया। यह सुन कर आप साहबजाद हजरत अब्दरहमान ££पर बहत ज़्यादा नाराज़ हुए आर वह फ व दहशत की वजह से छुप गए और आप क सामने नहाँ आए ए॒ जब आप का गुस्सा ख़त्म हो गया तो आप मेहमानों के साथ खाने के लिए बैठ गए और सब मेहमानों ने खूब पेट भर कर खान ब्रा लिया। उन मेहमानों का बयान है कि जब हम खाने के बरतन में से लुक़्मा उठाते थे तो जितना खाना हाथ में आता था। उस से कहीं ज्यादा खाना बरतन में नीचे से उभर कर बढ़ जाता था। और जब हम खाने से फारिग हुए तो खाना बजाए कम होने के बरतन में पहले से ज्यादा हो गया। हजरते सिद्दीके अकबर#£ने हैरान हो कर अपनी बीवी साहिबा से फरमाया कि यह क्या मामला है कि बरतन में खाना पहले से कछ ज्यादा नजर आता है। बीवी साहिबा ने कृूसम खा कर कहा वाकई यह खाना तो पहले से तीन गुना बढ़ गया हैं। फिर आप उस ब्राने को बारगाहे रिसालत में ले गए। जब सुबह हुईं ता अचानक मेहमानों का एक काफिला दरबारे रिसालत में उतरा जिस मे बारह कबीलों के बारह सरदार थे और हर सरदार के साथ दूसरे सत्तर हैं. डे ५ की ,०+ किक कि 3 अमल ५ >> की किदेक मिस 3 अमल अर नि ड़ हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍06/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | करामाते सहाबा गो /वाता५३-गछ 7० 50999 5५३ 70 जता हमागे आजम सवार थे। उन सब लोगों ने यही खाना खाया और काफला के तमाम सरदार और तमाम मेहमानों का गरोह उस खाने से शिकम सैर होकर आसूदह हो गया। लेकिन फिर भी उस बरतन में खाना खत्म नहीं हुआ। बुख़ारी शरीफ जिल्द , स 506 मुझ़्तसर) माँ के पेट में क्या है?: हज़रते उरवह बिन जबैर £9 ब्यान करते हैं कि अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीक्‌ #8 ने अपने मरजे वफात में अपनी साहबज़ादी उम्मुल मोमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीका ४४ को वसीयत फ्रमाते हुए इरशाद फ्रमाया कि मेरी प्यारी बेटी! आज तक मेरे पास जो मेरा माल था वह आज वारिसों का माल हो चुका है और मेरी औलाद में तुम्हारे दोनों भाई अब्दुररहमान व मुहम्मद और तुम्हारी दोनों बहनें हैं इस लिये तुम लोग मेरे माल को कुरआन मजीद के हुक्म के मुताबिक्‌ तकुसीम करके अपना अपना हिस्सा ले लना। यह सुन कर हज़रते आइशा #&9ने अर्ज किया कि अब्बा जान! मेरी तो एक ही बहन “बीबी असमा'' हैं यह मेरी दूसरी बहन कौन है? आप ने इरशाद फ्रमाया कि मेरी बीवी ''बिन्ते खारजा'' जो हामिला है। उस क पेट में लड़को है। वह तुम्हारी दूसरी बहन है। चुनान्च ऐसा ही हुआ कि लड़की पैदा हुई जिन का नाम “'उम्मे कुलसूम'' रखा गया। (तारीखुल ख़ुलफा स 57) इस हदीस क बारे में हजरत अल्लामा ताजुद्दीन सबकी अलैहिरहमा ने तहरीर फ्रमाया कि इस हदीस से अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीक ४४ को दो करामतें साबित होती हैं। पहला: यह कि आप को वफात से पहले यह इल्म हो गया था कि मैं इसी मरज़ में दुनिया से कूच करूँगा। इसलिए वक़्ते वसियत आप ने यह फ्रमाया “कि मेरा माल आज मेरे वारिसों का माल हो चुका है।'' दुसरा: यह कि हामला के पेट में लड़का है या लड़की और जाहिर है कि उन दोनों बातों का इल्म यकीनन गैब का इल्म है जो बिला शुब्हा व बिल यकौन पैगम्बर के जानशीन हजरत अमीरूल मोमिनीन अबू बकर सिद्दीक#?की दो बड़ी करामतें हैं। (इजालतुल ख्िफा न कं हद 56व7606 ५शशंगा एद्वा75टवयगा6/ [[05://.क्‍76/5 07॥7/_।॥0 0/9/५ | ॥[05:॥/8/079५8.0/0/068/5/6)/808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहावा ४२ शु मकक्‍तवा इमामे आज़म मकसद नम्बर 2 स 2 व हुज्जतुल्लाह जि 2, स 860) जरुरी तम्बीह: ब्यान को गई हदीस और अल्लामा ताजुद्दीन सबको अलैहिरहमा की तक्रीर से मालूम हुआ कि मा फिल अरहाम (जो कुछ माँ के पेट में है उस का इल्म हज़रत अबू बकर सिद्दीक्‌ £४ को हासिल हो गया था। इसलिए यह बात दिमाग़ में बिठा लेनी चाहिए कि कुरआन मजीद्‌ को सूरह लुकमान में जो ५-४ .७।«/«.' आया है यअनी ख़ुदा के सिवा कोई इस बात को नहीं जानता कि माँ के पेट में क्या है?) इस आयत का यह मतलब है कि बेगैर ख़ुदा क॑ बताए हुए कोई अपनी अकल व समझ से नहीं जान सकता कि माँ के पेट में क्या है? लेकिन ख़ुदावन्दे तआला के बता देने से दूसरों को भी इस का इल्म हो जाता है। चुनान्चे हज़राते अंबिया &%# वही के ज़रिए और औलिया-ए-उम्मत कश्फ्‌ व करामत के तौर पर खुदा वन्दे कुद्दूस के बता देने से यह जान लेते हैं कि माँ के पेट में लड़का है या लड़को? मगर अल्लाह तआला का इल्म बगैर किसी के अता किए हुए, हमेशा रहने वाला और खत्म न होने वाला है और अंबिया व ओलिया का इल्म अताई व खत्म होने वाला और दुसरे का अता किया हुआ हैं। अल्लाह अकबर! कहाँ खुदा बन्दे कुद्दूस का इल्म और कहाँ बन्दों का इल्म? दोनों में बहुत फक है। निगाहे करामतः ह॒जूरे अकृदस/#की वफात के बाद जो कबाइले अरब मुरतद होकर इस्लाम से फिर गए थे। उन में कुबीलए कुन्दह भी था। चुनान्चे अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीक ४ ने उस कबीला वालों से भी जिहाद फ्रमाया और मुजाहिदीने इस्लाम ने उस कबीला के बड़े सरदार यअनी अशअस बिन कंस को गिरफ़्तार कर लिया और लोहे की जंजीरों में जकड़ कर उस को दरबारे खिलाफ में पेश किया। अमीरूल मोमिनीन के सामने आते ही अशअस बिन 'कैस ने बुलन्द आवाज से अपने जुर्म का इक्रार कर लिया और फिर फौरन ही तौबा करके सच्चे दिल से इस्लाम कबूल कर लिया। न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 07 ।॥0 08५ कम ॥0[05:॥/8/079५8.0/5/06७98/5/6)808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहावा &2 ३4 मकतवा इमामे आज़म और अपनी बहन हज़रत “'उम्मे फ्रदा'' #? से उस का निकाह करके उसको अपनी किस्म किस्म की इनायतों और नवाज़िशों से सरफराज कर दिया। तमाम हाज़रीने दरबार हैरान रह गए कि मुर्तद का सरदार जिस ने मुर्तद होकर अमीरूल मोमिनीन से बग़ावत और जंग की और बहुत से मुसलमानों का ख़ून किया ऐसे ख़ुंख्वार बागी और इतने बड़े ख़तरनाक मुजरिम को अमीरूल मोमिनीन ने इस कुदर क्‍यों नवाजा? लेकिन हज़रत अशअस बिन कुस £9 ने सच्चे मुसलमान होकर इराक के जिहादों में अपना सर हथेली पर रख कर ऐसे ऐसे मुजाहदाना कारनामे अंजाम दिए कि इराकु की जीत का सेहरा उन्ही के सर रहा ओर फिर हजरते उमर £9 के दौरे ख्िलाफत में जंगे कादसिया और किला मदाइन व जलूला व निहावन्द की लड़ाइयों में उन्होंने सर फरोशी व जाँबाज़ी के जो हैरतचाक कारनामे पेश किए उन्हें देख कर सब को मानना पड़ा कि वाकुई अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीकु£४ को निगाहे करामत ने हज़रते अशअस बिन कंस%#कोी जात में छिपे हुण कमालात के अनमोल जौहरों को सालों पहले देख लिया था वह किसी और को नज़र नहीं आए थे। यकोनन यह अमीरूल मोमिनीन हजरते अबू बकर सिद्दीकु ££४की एक बहुत बड़ी करामत है। (इज़ालतुल ख़्िफा मकसद नम्बर 2 स 59) इसी लिये मशहूर सहाबी हजरते अबदुल्लाह इब्ने मसऊद#४ आम तौर पर यह फरमाया करते थे कि मेरे नज़दीक तीन लोग ऐसे गज़रे हैं जो अकुल व समझ के बहुत ऊंचे मकाम पर थे। पहला: अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीक्‌ ४) कि उन की निगाहे करामत की नूरी समझ ने हज़रते उमर&४ के कमालात को ताड़ लिया और आपने हज़रते उमर को अपने बाद स्थिलाफत के लिए चुना जिस को तमाम दुनिया के तारीख लिखने वाले और दानिशवरों ने बेहतरीन कुरार दिया। कि दुसरा: हजरते मूसा/#की बीवी हज़रते सफूरा £# कि डन्हीनि हज़रते 5८वया664 शशंगर ए752८वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0/0/9५ ॥05:॥/8/079५8.0/5/06७68/5/6)0808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहावा &2 ३5 मकक्‍तवा इमामे आजम अपने वालिद हज़रत शुऐब/%#से अर्ज किया कि आप इस जवान को बतौर मजदूर अपने घर पर रख लें जब कि इन्तिहाई परिशानी के आलम म॑ं फिरिऔन के जुल्म से बचने के लिए हज़रते मूसा£ अकेले हिजरत करके मिस्र से ''मदयन'' पहुँच गए थे। चुनान्चे हज़रत शुऐब #&#ने उन को अपने घर पर रख लिया और उन की खूबियों को देख कर और उन के कमालात से मृतअस्सिर होकर अपनी बेटी हज़रत बीबी सफूरा का उन से निकाह कर दिया और उस के बाद खुदावन्व कुद्दूस ने हज़रते मूसा& को नुबूबत व रिसालत के शर्फ से सरफ्राज फरमा दिया। तीसरा: मिस्र के बादशाह कि उन्होंने अपनी बीवी हज़रते जुलेख्ड्ा को हुक्म दिया कि अगरचे हजरते युसुफ्‌ #हमारे खरीदे गुलाम बन कर हमारे घर में आए हैं मगर स़बरदार! तुम उन की इज्जत व इकराम का खास तौर पर एहतमाम व इन्तजाम रखना। क्योंकि अजीजे मिस्र ने अपनी निगाहे फरासत (समझ) से हज़रत युसुफ%के शानदार मुस्तकृबिल को समझ लिया था कि गोया आज गुलाम हें मगर यह एक दिन मिस्र के बादशाह होंगे। (तारीख़ुल सख़ुलफा स 57, व इजालतुल फा मकुसद नम्बर 2, स उउ) कलमए तैयबा से किला चूर चूर: अमीरूल मोमिनीन हजरते अबू बकर सिद्दीकु ४ ने अपने दोरे ख्िलाफृत में केसरे रूम (रूम का बादशाह) से जंग के लिए मुजाहिदीने इस्लाम की एक फौज रवाना फरमाई और हज़रते अबू उबेदा £# को उस फौज का कमान्‍न्डर मुक़ुर्रर फरमाया। यह इस्लामी फौज कुैसरे रूम की लश्करी ताक॒त के मुकाबले में जीरो के बराबर थी मगर जब उस फौज ने रूमी किला का घेराव किया और (५॥ |». , «०० 4...) ४) ५॥ ९)का नआ्रा मारा तो कलमए तैयबा की आवाज से कुेसरे रूम के किला में ऐसा जलजला आ गया कि पूरा किला चूर चूर होकर उस को ईट से ईंट बज गई और एक ही लम्हे में कला फतह हो गया। बिला शुब्हा यह अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीक्‌ #४ की बहुत ही शानदार करामत न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा75टवया6/ [[05:/.86/5 7 ॥।॥॥00/8५ कम ॥0[05:॥/8/079५8.0/5/068/5/6)0808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहावा &/2 36 मकक्‍तवा इमामे आज़म है क्योंकि आप ने अपने दस्ते मुबारक से झण्डा बांध कर और फतह की खुशखबरी दे कर उस फौज को जिहाद के लिए रवाना फरमाया था। (इज़ालतुल ख़्िफा मक्सद नम्बर 2, स 40) बून में ५शाब करने वाला: एक शख्ुप ने अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दीक्‌ £2 से अर्ज किया कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! मैं ने ख़्वाब में यह देखा है कि मैं ख़ून में पेशाब कर रहा हूँ। आप ने इन्तिहाई गुस्से और जलाल में तड़प कर फ्रमाया कि तू अपनी बीवी से हेज़ की हालत में सोहबत करता है। इस लिये उस गुनाह से तौबा कर और _। आगे हरगिज़ हरगिज व्यभो भी ऐसा मत करना। वह शख्स अपने उस छुपे हुए गुनाह पर नादिम व शारमिन्दा होकर हमेशा हमेशा के लिए तौबा कर लिया। (तरीख़ुल खुलफा स 72) सलाम से दरवाजा खुल गया: हज़रते अमीरूल मोमिनीन अबू बकर सिद्दोक्‌ &# का जनाज़ा लेकर लोग जब रौज़ए मुनव्वरह के पास पहुचे तो लोगों ने अर्ज किया कि अस्सलामु अलैका या रसुलल्लाह यह अबू बकर का जनाज़ा है यह अर्ज़ करते ही रौज़ए मनव्वरह का बन्द दरवाजा एक दम खुद बखुद खुल गया और तमाम हाज़िरीन ने कृब्रे अनवर से यह गैबी आवाज सुनी। ( ०.) (0०, +3)) (यअनी हबीब को हबीब के दरबार में ] करदो) (तफ्सीरे कबीर ज़िल्द 5, स 478) आगे की बात जान लेना: हुजूरे अकरम/&7ने अपनी वफाते अकृदस से सिर्फ चन्द दिन पहले रूमियों से जंग के लिए एक लश्कर की रवांगी का हुक्म फ्रमाया और अपनी बीमारी ही के दौरान अपने दस्ते मुबारक से जंग का झण्डा बांधा और हज़रत उसामा बिन जैद 59 के हाथ में यह निशाने इस्लाम दे कर उन्हें उस लश्कर का कमांडर बनाया। अभी यह लश्कर मकामे “'जर्फ' में खेमा जन था और फोौजियों का इज्तेमा हो ही रहा था कि वफात की ख़बर फैल गई और यह लश्कर मकामे “'जर्फ' से मदीना मुनव्वरा वापस आ गया। विसाल क बाद ही बहुत से कूबाइले अरब मुर्तद्‌ और इस्लाम से फिर ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05://.क्‍6/5 077 _|॥ताफावा५ करामाते सहावा तप मम शत किन है कल की हनन 9 4तवा इमामे आजम कर काफिर हो गए। साथ ही मुस्लिमतुल कज़्ज़ाब ने अपनी नुबुब्वत का दअवा करके कबाइले अरब में कुफ्र की आग भड़का दी और बहुत से कूबाइल काफिर हो गए। इस बिखराव क दौर में अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीकु ४४ ने तख्ते पर कृदम रखते ही सब से पहले यह हुक्म फरमाया कि “'जेशे उसामा' यअनी इस्लाम का वह लश्कर जिस को हुजूरे अकरम/&&/ने हज़रत उसामा ## की निगरानी में रणना फ्रमाया और वह वापस आ गया हैं दोबारा उस जिहाद क॑ लिए रवाना किया जाए। हजराते सहाबा-ए-किराम बारगाहे खिलाफत के इस ऐलान से बहुत डर गये और किसी तरह भी यह मामला उन की समझ में नहीं आरहा था कि ऐसी खतरनाक सूरते हाल में जब कि बहुत से कुबाइल इस्लाम से फिर कर मदीना मुनव्वरा पर हमलों को तैयारियाँ कर रहे हैं और झूठे नुब॒ुव्वत के दावा करने वालों ने अरब के पहाड़ में लूट मार और बगावत की आग भड़का रखी हे इतनी बड़ी इस्लामी फोज का जिस में बड़े बड़े नामवर ओर लड़ाकू सहाबा-ए- किराम मौजूद हें मुल्क से बाहर भेज देना और मदीना मुनव्वरा को बिलकल फौजियों से ग्ज्ली छोड़ कर ख़तरात मोल लेना किसी तरह भी अकले सलीम क॑ नजदीक काबिले कुबूल नहीं हो सकता। चुनान्‍्चे सहाबा-ए-किराम की एक चुनी हुई जमाअत जिस के एक फरर्द हज़रते उमर बिन खत्ताब 5 भी हैं बारगाहे स्थिलाफृत में हाजिर हुए और अर्ज किया कि ऐ जानशीने पैगम्बर! ऐसे खतरनाक माहौल में जब कि मदीना मुनव्वरा के चारो तरफ मुर्तदीन ने बग़ावत फला रखी है यहाँ तक कि मदीना मुनव्वरा पर हमला के दरपेश हैं। आप हज़रत उसामा के लश्कर को जाने से रोक दें ताकि उस फौज की मदद से काफिरों का मुकाबला किया जाए और उन पर जीत हासिल को जाए। यह सुन कर आप ने गुस्से में तड़प कर फ्रमाया कि खुदा को कसम! मुझे परिन्दे उचक ले जाएँ यह मुझे गवारा है लेकिन में उस फौज को जाने से रोक दूँ जिस को अपने दस्ते मुबारक से झण्डा बांध ध्ज्ट 83 ७७ --००००अााििष ० ऋौि...... न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 07 _।॥0/0/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा €&९४ ३38 मकतवा इमामे आज़म विश शक कप कमाााबभग_््भागग्ग__्_ग्ग्_्न्__्न्बबं कर हजूरे अकरम/&४ने रवाना फ्रमाया था यह हरगिज हरगिज़ किसी हाल में भी मेरे नज़दीक काबिले कूबूल नहीं हो सकता। में उस लश्कर को जरूर रवाना करूँगा और उस में एक दिन की भी देरी बरदाइत नहीं करूँगा चुनान्चे आपने तमाम सहाबा-ए-किराम को मना करने के बावजूद उस लश्कर को रवाना कर दिया। ख़ुदा को शान कि जब जोशे जिहाद में भरा हुआ लश्करे इस्लामिया का यह समन्दर मौजें मारता हुआ रवाना हुआ तो इर्द गिर्द के तमाम कूबाइल में शौकते इस्लाम का सिक्‍का बैठ गया और मुर्तद हो जाने वाले कूबाइल या वह कबीले जो मुर्तद होने का इरादा रखते थे मुसलमानों का यह भयानक लश्कर देख कर खौफ व दहशत से काँप गए और कहने लगे कि अगर खुलीफए वक़्त के पास बहुत बड़ी फौज रिजर्व मौजूद न होती तो वह भला इतना बड़ा लश्कर मुल्क के बाहर किस तरह *. ; सकते थे? इस ख्याल के आते ही उन जंगजू कृबाइल ने जिन्‍्हों ने मुर्तद होकर मदीना मुनव्वरा पर हमला करने का पलान बनाया था खोफ्‌ व दहशत से अपना इरादा ख़त्म कर दिया। बल्कि बहुत से फिर तोबा करके आगोशे इस्लाम में आ गए और मदीना मुनव्वरा काफिरों के हमलों से महफ्‌ज़ रहा और हज़रत उसामा बिन जैद## का लश्कर मकामे “'इब्नी'' में पहुंच कर रूमियों के लश्कर से जंग करने लगा और वहाँ बहुत ही ख़ूँरेज़ जंग के बाद लश्करे इस्लाम कामियाब हो गया और हजरते उसामा 5४ बेशुमार माले गनीमत लेकर चालीस दिन के बाद फातेहाना शानो शौकत के साथ मदीना मुनव्वरा वापस तशरीफ लाए और अब तमाम सहाबा-ए-किराम अन्सार व मुहाजिरीन पर यह राज़ खुल गया कि हजरते उसामा ४४ के लश्कर को रवाना करना हिकमत के मुताबिक्‌ था क्‍योंकि इस लश्कर ने एक + फ तो रूमियों की फौजी ताकत को तहस नहस कर दिया और दूसरी तरफ मुर्तदीन के हौसलों को भी पस्त कर दिया। यह अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीक्‌ ## को एक बड़ी करामत है कि आगे भी होने वाले वाकिआत आप पर वक़्त से वि क कक ककककककककककककिकककककककिककककिफफककककककककककककककककककककककककककककिककककककककककककककककककककिककिककककककककककीककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक कक कक डर नन्‍ननन...3..+>मननन २० >> चलनन-_____-_मंममनमममम न »+मम मम नमन %9३५५५०००००५४५ न कं हद 0व॥60 ५शंगी (75८ वा6ह/ [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ कम [05:॥4/0५8.०0/0७(॥8/6)08/9806_५॥8_॥0/8५ करामाते सहाबा &7 39 मक्‍तवा इमामे आजम पहले ही जाहिर हो गए और आपने उस फौजेकशी के मुबारक इकदाम को उस वक़्त अपनी निगाहे करामत से नतीजे के तौर पर देख लिया था जब कि वहाँ तक दूसरे सहाबा-ए-किराम को वहम व गुमान भी नहीं पहुंच सकता था। (तारिस्ुल ख्ुलफा स5, मदारिजुन्नबुवह जि 2, स 409 वगैरह) मदफन के बारे में गैबी आवाज: हजरते आइशा सिद्दौका ££ फ्रमाती हैं कि अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीक #४ के विसाल के बाद सहाबा-ए-किराम में इखितिलाफ पैदा हो गया कि आप को कहाँ दफन किया जाए? कुछ लोगों ने कहा कि उन को शुहदा-ए-किराम के कब्रस्तान में दफन करना चाहिए और कुछ हज़रात चाहते थे कि आप की कब्र शरीफ जननतुल बकौअ में बनाई जाए। लेकिन मेरी दिली ख्वाहिश यही थी कि आप मेरे उसी हुजरा में दफनाए जाएँ जिस में हुजूरे अकरम /#४# की कृब्र मुनव्वर है। यह बात चीत हो रही थी कि अचानक नींद लग गई और ख़्वाब में यह आवाज मैंने सुनी कि कोई कहने वाला कह रहा है कि ,॥| ..-.३......० .... | (यअनी हबीब को हबीब से मिला दो) ख़्वाब से उठ कर मैंने लोगों से उस आवाज का ज़िक्र किया तो बहुत से लोगों ने कहा कि आवाज हम लोगों ने भी सुनी है और मस्जिदे नबवी के अन्दर बहुत से लोगों के कानों में यह आवाज़ आईं है। उस क बाद तमाम सहाबा-ए-किराम का इस बात पर इत्तेफाक्‌ हो गया। आप हुजूरे अनवर &&#के पहलए अकदस में मदफून होकर अपने हबीब के कार्बे ख़ास से सरफ्राज़ हो गए। (शवाहिदुन्नबुबह स 50) ''टुश्मन'' खिन्‍्जीर व बन्दर बन गए: हज़रत इमाम मस्गफरी बड़े रावीयों से नकुल किया है कि हम लोग तीन आदमी एक साथ यमन जा रहे थे हमारा एक साथी जो कूफरो था वह हज़रत अबू बकर सिद्दीक व हजरत उमर०४६ की शान में बद्‌ ज़बानी कर रहा था। हम लोग उसको बार बार मना करते थे। मगर वह अपनी इस हरकत से बाज नहीं आता था। जब हम लोग यमन के करीब पहुँच गए और हम न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥0 08५ कम ॥05:॥/8/079५४8.0/5/06७9/5/6)/808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहाबा 672 40 मकतवा इमामे आज़म ने उस को नमाजे फज्र के लिए जगाया तो वह कहने लगा कि मेने अभी यह ख़्वाब देखा है कि /#मेरे सिरहाने तशरीफ्‌ फ्रमा हुए और मुझ से फ्रमाया कि ''ऐ फा[सिक्‌! ख़ुदा वन्दे तआला ने तुझको जलील व ख़्वार फ्रमा दिया और तेरा उसी तरह में चेहरा बदल दिया जाएगा'' उस के बाद फौरन ही उस के दोनों पावों बन्दर जैसे हो गए और थोड़ी देर में उस की सूरत बिल्कुल ही बन्दर जैसी हो गई। हम लोगों ने नमाजे फुज़ के बाद उस को पकड़ कर ऊँट के पालान के ऊपर रस्सियों से जकड़ कर बांध दिया और वहाँ से रवाना हुए। सूरज डूबने के वक्त जब हम एक जंगल में पहुँचे तो कुछ बन्दर वहाँ जमा थे। जब उस ने बन्दरों के झुंड को देखा तो रस्सी तोड़ का ऊंट के पालान से कूद पड़ा और बन्दरों के झुंड में शामिल हो गया। हम लोग हैरान हो कर थोड़ी देर वहाँ ठहर गए ताकि हम यह देख सके कि बन्दरों का झुंड उस के साथ किस तरह पेश आता है तो हम ने यह देखा कि यह बन्द्रों के पास बैठा हुआ हम लोगों की तरफ बड़ी अफसोस से देखता था और उस की आँखों से आँसू जारी थे घड़ी भर के बाद जब सब बन्दर वहाँ से दूसरी तरफ जाने लगे तो यह भी उन बन्दरों के साथ चला गया। (शवाहिदुन्नबुवा स 455) इसी तरह हजरत इमाम मस्गफ़्री 58 ने एक नेक आदमी से नकुल किया है कि कूफा का एक शख्स जो हज़रते अबू बकर व हज़रते उमर &# को बुरा भला कहा करता था हर चन्द हम लोगों ने उस को मना किया मगर वह अपनी ज़िद पर अड़ा रहा तंग आकर हम ने उस को कह दिया कि तुम हमारे काफिला से अलग हो कर सफर करो। चुनान्चे वह हम लोगों से अलग हो गया। जब हम लोग मंजिले मकुसूद पर पहुँच गए और काम पूरा करके वतन की वापसी का इरादा किया तो उस शख्स का गुलाम हम लोगों से मिला। जब हम ने उस से कहा कि क्‍या तुम और तुम्हारा मालिक हमारे काफिले के साथ वतन जाने का इरादा रखते हो? यह सुन कर गुलाम ने कहा कि मेरे आका का हाल तो बहुत ही बुरा है। ज़रा आप लोग मेरे साथ चल कर ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05://.क्‍6/50॥7_|॥ता|फावा५ करामाते सहाबा (ता05:/व0५6.09/0०७१६|27वंप्रथा6_4'ांव | प्रक्षतवा इमामे आजम उस का हाल देख लीजिए। गुलाम हम लोगों को साथ लेकर णए्क़ मकान में पहुँचा वह शख्स उदास होकर हम लोगों से कहने लगा कि मुझ पर तो बहुत बड़ी मुसीबत पड़ गई। फिर उस ने अपनी आसतीन से दोनों हाथों को निकाल कर दिखाया तो हम लोग यह देखकर हैरान रह गए कि उस के दोनों हाथ खिनन्‍्जीर के हाथों की तरह हो गए थे। हम लोगों ने उस पर तरस खा कर अपने काफिला में शामिल कर लिया लेकिन सफर ही में एक जगह चन्द ख्िन्जीरों का एक झुन्ड नजर आया और यह शख्स बिल्कूल ही अचानक बदल कर आदमी से बन गया और खिन्‍्जीरों के साथ मिल कर दौड़ने भागने लगा। मजबूरन हम लोग उस के गुलाम और सामान को अपने साथ कूफा तक लाए। (शवाहिदुन्नबुवा स 54) शैखैन (हजरते अबु बकर व उमर७#£)का दुश्मन कुत्ता बन गया: इसी तरह हज़रत इमाम मसग़फ्री #४ एक बुजुर्ग से नकल करते हैं कि मैंने मुल्के शाम में एक ऐसे इमाम के पीछे नमाज़ अदा की जिस ने नमाज़ के बाद हज़रत अबू बकर व उमर ४ के हक्‌ में बद दुआ को। जब दूसरे साल मैं ने उसी मस्जिद में नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ क बाद इमाम ने हज़रत अबू बकर व उमर ४# के हक्‌ में बेहतरीन दुआ मंगी। मेंने नमाज़ियों से पूछा कि तुम्हारा पुराना इमाम क्‍या हुआ? तो लोगों ने कहा कि आप हमारे साथ चल कर उसको देख लीजिए! में जब उन लोगों के साथ एक मकान में पहुँचा तो यह देख कर मुझ को बड़ी इब्शत हुई कि एक कुत्ता बैठा हुआं है और उस को दोनों आँखों आँस जारी हैं। मैंने उस से कहा कि तुम वही इमाम हो जो हलज़्राते शैखैन के लिए बद दुआ किया करता था तो उस ने सर हिला कर जवाब दिया कि हाँ! (शवाहिदुन्नबुवा स 56) अल्लाहु अकबर! सुब्हानअल्लाह! कितनी बड़ी है शान सहाबा-ए- किराम की। खास कर यारे गारे रसूल हज़रत अमीरूल मोमिनीन अबू बकर सिद्दीक #£ की। क्‍या ख़ूब कहा है किसी सहाबा को तअरीफ करने वाले ने:- न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 07 _।॥॥0/0/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830७॥9_॥0/9/%५ करामाते थहावा 67? 42 मकतबा इमामे आज़म खश्ि ख्ु्ख्ख्ख््््य्या झ ऋल्‍ल्‍ल्‍क्‍ल्‍ क्‍ल्‍ क्‍ क्‍ ल्‍चवल्‍शल्‍ आ्शशश्आओओ॥&4ओओनआ*<आि्कफ्््््ियययययय-फफ््फऊ अब .औऔक्‍--5333% 88% ४४४४++-----«७७७७७७७७४४अऋ---०००..७७७७७७७७४+--:ष छ .. 3. ०-०. | ड्शशशामा:-.-3००८-"---व२ाज.. जी. वनननमतभभनरभगरअरनननीनभ२त२त२एतपगग-%3गरनानओाओओल्‍ 3. >> ५५3. छह... छाच में शमअ थी और चारो तरफ परवाने हर कोई उसके लिए जान जलाने ठाला दअवा उलफते अहमद तो सभी करते है कोई निकले तो जरा रन्‍ज उठाने वाला काम उलफत के थे वह जिन को सहाबा ने किया क्या नहीं झ।द तुम्हें ''ग[र'' में जाने वाला तबसरा:-किसी काम के अन्जाम और आगे के हालात को जान लेना हर आदमी जानता है कि यकीनन यह गैब का इल्म है। अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दीकु #? की उपर लिखी हुई करामात से जाहिर हो जाता है कि अमीरूल मोमिनीन को अल्लाह तआला ने कश्फ्‌ व इलहाम के तौर पर उन गैबों का इल्म अता फरमाया था। लिल्लाह ! इन्साफ कीजिए कि जब को अल्लाह तआला ने इलहाम व कश्फ के ज़रिए इल्मे गैब की करामत अता फरमाई तो क्या उसने अपने पेग़म्बर#को अपनी मुकुदस वही के ज़रिए इल्मे जब का मुअजजा न अता फरमाया होगा? क्या मआजल्लाह! अल्लाह तआला को इल्मे गैब बताने की कुदरत नहीं या नऊजुबिल्लाह! नबी ##%म इल्मे गैब हासिल करने की सलाहियत नहीं। बताइए दनिया में कौन ऐसी बेवकूफ है जो खुदा की कुदरत और उस के नबी की सलाहियत से इनकार कर सकता है जब ख़ुदा की कदरत तस्लीम और नबी की सलाहियत तस्लीम है तो फिर भला नबी- ए-अकरम /#“क इल्मे गैब का इनकार किस तरह मुमकिन हो सकता है? मगर अफ सोस ! सद हजार अफ्सोस! कि वहाबी उलमा जो अजमते मुस्तफा###को घटाने के लिए लंगर लंगोट कस कर बल्कि नंगा होकर मैदान में उतर पड़े हैं। यह सब कछ जानते हुए और सैंकड़ों आयाते बय्यनात और दलीलों को देखते हुए भी छुपा कर हुजूर /##के इल्मे गैब का चिल्ला चिल्ला कर इनकार करते रहते हैं और अपने “गण चालों और हवा ख़्बाहों को इस दर्जा गुमराह कर चुके हैं कि ख़्वाहों को इस दर्जा गुमराह कर चुके हैं कि न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_830॥9_॥0/9/%५ 43 मकक्‍तवा इमामे आजम उन के अवाम गुमराही की भूल भुलैयों से निकल कर सीधे रास्ते पर आने क॑ लिए किसी तरह तैयार ही नहीं होते और कहावत मश्हूर है कि सोते को जगाना बहुत आसान है मगर जागते को जगाना बहुत मुश्किल है इस लिए अब हम उन लोगों की हिदायत से तकरीबन मायूस हो चुके हैं क्योंकि यह लोग जाहिल नहीं बल्कि मुतजाहिल (जान बुझ कर अनजान बनना) है यअनी सब कुछ जानते हुए भी जाहिल बने हुए हैं और यह लोग तालिबे हक्‌ नहीं हैं बल्कि दुश्मन हैं। यअनी हक्‌ के जाहिर होने के बाद भी हक्‌ को कूबूल करने के लिए तैयार नहीं हैं। इस लिए हम अपने सुन्‍नी हन्फी भाइयों की यही मुझख़लेसाना मशवरा बल्कि हुक्म देते हैं कि वह नबी-ए-अकरम ###के ग्रबदा होने के अकौदा पर खुद पहाड़ की तरह मजबूती के साथ कायम रहें और उन गुमराहों की तक्रीरों, तहरीरों और सोहबतों से बिल्कुल कृतई तौर पर परहेज करें। क्योंकि गुमराही क॑ वाइरस बहुत जल्द असर कर जाते हैं और हिदायत का नूर बड़ी मुश्किल और बहुत कोशिश के बाद मिलता है। ख़॒दावन्दे करीम हमारे बेरादराने अहले सुन्नत के ईमान व अकायद की हिफाजत फ्रमाए और तमाम गुमराहों, बददीनों और बेदीनों के बुराई से बचाए रखे। (आमीन) आखिर में ब्यान की गई तीन रवायतों से जाहिर है कि हज़रत अबू बकर व उमर&«छ/ की मुकूदस शान में बदगोई और बद जबानी का अनजाम कितना खतरनाक व इबरतनाक हे? जुमान-ए-हाल के तबराई रवाफिज़ के लिए यह रिवायात इबरत और नसीहत हैं कि वह लोग अपने सहाबा को बुरा भला कहने से बाज आजाएँ वरना हलाकतों और बरबादियों का सिग्नल डाउन हो चुका है और क्रीब है कि अजाबे इलाही की रेलगाड़ी उन जालिमों को रौंद कर चूर चूर कर डाले और ((७.०५४॥) इन्शाअल्लाह तआला यह कमीने भी दोनों जहाँ की लअनतों में गिरफ्तार होकर दुनिया में बदल कर ख़्िन्जीर व बन्दर ओर क॒त्ते बना दिए जाएँगे और आखिरत में कहरो ग़ज़बे जब्बार करामाते सहाबा 6२ न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 07 _।॥0 08५ कम [[[05:/8/079५8.0/0/0869 4 [280987706_30॥9 _॥0/9/% करामाते सहाबा छ? मकतवा इमामे आजम में गिरफ़्तार होकर अज़ाबे दोज़ख़ पाकर जलील व ख़्वार हो जाएँगे। हज़राते अहले सुन्नत को ज़रूरी है कि तमाम गुमराह फिकों की तरह रवाफिज व ख़्वारिज से भी इसी तरह अलग रहें और उन से तअल्लुक्‌ न रखें क्योंकि यह सब फिके जो शाने रिसालत व दरबारे सहाबियत व बारगाहे अहले बैत में गस्त करते हैं यकौनन बिला शुब्हा यह सब के सब जहन्नमी हैं और यह लोग यहाँ भी और जिस मजलिस में भी रहेंगे उन पर ख़ुदा की फटकार पड़ती रहेगी और ज़ाहिर है कि जो उन के पास बैठेगा और उन से मिलेगा। इस लिए खुरियत इसी में है कि आग से दूर ही रहिए वना अगर जलने से बचेंगे तो कम से कम उस की आंच से न बच सकेंगे। ख़॒दावन्दे करीम हज़राते अहले सुन्नत के ईमान की हिफाजत फरमाए। आमीन हजरत उमर फारुकु &£ जलीफ-ए-दोम जानशीने पैग़म्बर हज़रत उमर फारूके अआज़म # को कुन्नियत “अबू हफ्स*' और लक़ब''फारूके अआज़म'' है आप क्रेश के सरदारों में अपनी जाती व मर्तबा के लिहाज से बहुत ही मुमताज हैं। आठवें पुश्त में आप का खानदानी शजरा रसूलुल्लाह/&##क शजर-ए-नसब से मिलता है। आप वाकिआ फील के तीन साल बाद मक्का मुकर्रमा में पैदा हुए और ऐलाने नुबूबत के छठे साल सत्ताइस (27) साल की उम्र में मुशर्रफ बा इस्लाम हुए। जब कि एक रिवायत में है कि आप से पहले कुल उन्तालीस (39) आदमी इस्लाम कूबूल कर चुके थे। आप के मसलमान हो जाने से मुसलमानों को बे हद ख़ुशी हुई और उन को एक बह॒त बड़ा सहारा मिल गया। यहाँ तक कि हुजूर रहमते आलम/#“ने मुसलमानों की जमाअत क साथ खाना-ए-कअबा की मस्जिद में खुल्लम खुल्ला नमाज अदा फ्रमाई। आप तमाम इस्लामी जंगों में मुजाहिदाना शान के साथ कुफ़्फार से लड़ते _ न आर पंगम्बर इस्लाम#&“को तमाम इस्लामी कामों और रहे और पैगम्बरे इस्लाम/##7की तमाम इस्लामी कामों और न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍76/5 ७॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा (४२ 45 मकतवा इमामे आज़म सुलह व जंग वगैरह की तमाम मनसूबा बन्दियों में हुजूर सुलताने मदीना/४#के वजीर व मुशीर की हैसियत से वफादार साथी रहे। अमीरूल मुमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दीकु##ने अपने बाद आप का खलीफा चुना और दस साल छः: महीना चार दिन आप ने तख्त लाफत पर रौनक्‌ अफ्रोज़ होकर जानशीनी रसूल को तमाम जिम्मेदारियों को अच्छी तरह अन्जाम दिया। 26 जिलहिज्जा 25 हिजरी बुध के दिन नमाजे फज्र में अबू लूलू फोरोज़ मजूसी काफिर ने आप के पेट में खुन्जर मारा और आप यह जखम खा कर तीसरे दिन शफ शहादत से सरफराज हो गए। बवक्ते वफात आप की उम्र शरीफ तिरसठ (63)साल की थी। हज़रत सुहेब #9ने आप की नमाजे जनाज़ा पढ़ाई और रौज़ए म॒ुबार्का के अन्दर हज़रत सिद्दीके अकबर #£क पहलूए अनवर में मदफून हुए। कसी (तारीख़ुल ख़ुलफा व अज़ालतुल ख़्िफा वगैरह) करामात कब्र वालों से बात चीत: अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर फारूक /#>एक मर्तबा एक नेक नौजवान की कब्र पर तशरीफ ले गए और फरमाया कि ऐ फलाँ! अल्लाह तआला ने वअदा फ्रमाया कि ०७» “८५५ ५) (५.० 3५. (यअनी जो शख्स अपने रब के हुजूर खड़े होने से डर गया। उस के लिए दो जननतें हैं) ऐ नौजवान! बता तेरा कृब्र में क्या हाल है? उस नौजवान सालिह (नेक) ने कृत्र के अन्दर से आप का नाम ले कर पुकारा और बआवाजे बलन्द दो मर्तबा जवाब दिया कि मेरे रब ने यह दोनों जन्नतें मुझे अता फ्रमा दी हैं। (हज्जतुल्लाह अलल आलमीन ज़ि 2, स 860 बहवाला हाकिम) मदीना की आवाज नेहावन्द तकः अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमः फारूके अअज़म##ने हज़रत सारिया ##को एक लश्कर का कमान्डः बना कर नेहावन्द की सर जमीन में जिहाद के लिए रवाना फ्रम दिया। आप जिहाद में मसरुफ थे कि एक दिन हज़रत उमर # न कर हक 5 56व7606 ५शशंगा एद्वा75टवयगा6/ [[05://.86/5 07 _।॥0/0/8५ कम करामाते सहावार की /7०५०-०७/०४०५ ६ ९३५०॥० 3०४ 79 वा इमामे आजम मस्जिदे नबवी के मिंबर पर ख़ुतबा पढ़ते हुए अचानक यह इरशाद फरमाया कि ४० |. ५(यअनी ऐ सारिया! पहाड़ की तरफ अपनी पीठ कर लो) हाज़रीने मस्जिद हैरान रह गए कि हज़रत सारिया तो सर ज़मीने नेहावन्द में जिहाद कर रहे हैं और मदीना मुनव्वरा से सैंकड़ों मील की दूरी पर है।आज अमीरूल मोमिनीन ने उन्हें क्योंकर पुकारा? लेकिन नेहावन्द से जब जब हज़रते सारियां का खबरी आया तो उस ने यह खबर दी की मैदाने जंग में जब कुफ्फार से मुकाबला हुआ तो हमारी हार होने लगी। इतने में अचानक एक चीख़ने वाले की आवाज आई जो चिल्ला चिल्ला कर यह कह रहा था कि ऐ सारिया! तुम पहाड़ का तरफ अपनी पीठ कर लो। हज़रत सारिया#9ने फ्रमाया कि यह तो अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर फारूके अअजुम #&9 की आवाज़ हैं। यह कहा और फौरन ही उन्हों ने अपने लश्कर को पहाड़ का तरफ पीठ करके सफ्‌ बन्दी का हुक्म दिया और उस के बाद जो हमारा लश्कर की कुफ़्फार से टक्कर हुई तो एक दम अचानक जंग का पासा ही पलट गया और एक ही लम्हे में इस्लामी लश्कर ने कुफ़्फार को फाजों को रौंद डाला और फौजियों के जबरदस्त हमलों का ताब न लाकर कुफ़्फार का लश्कर मैदाने जंग छोड़ कर भाग निकला और अफूवाजे इस्लाम ने फतेह मुबीन का परचम लहरा दिया। (मिश्कात बाबुल करामात, स॒ 546 व हुज्जतुल्लाह ज़ि 2, स 860 व तारीखुल ख़ुलफा स 85) तबसेरा: हज़रत अमौरूल मोमिनीन फारूके अअज़म &$की इस हदीस करामत से चन्द बातें मालूम हुई जो तालिबे हक के लिए रोशनी का मिनारा हैं। द :- यह कि हज़रत अमीरूल मोमिनीन फारूके अअज़म और आप के कमान्डर दोनों साहिबे करामत हैं क्योंकि मदीना म से सेकड़ों मील की दूरी पर आवाज को पहुँचा देना यह अमीरूल मोमिनीन की करामत है और सैंकड़ों मील की दूरी से किसी आवाज को सुन लेना यह हज़रत सारिया#2की करामत है। ककक---- ८८-९७ -------------- ८-०७ ७०. स्‍-- न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 07 ।॥0॥ 08५ कम 4 “ अंवरलम कक 7 [2809/706_30॥9 _॥0/9/% करामाते सहावा &2 हु मरकतवा इमामे आज़म 2:- यह कि अमीरूल मोमिनीन ने मदीना तैयबा से सैंकड़ों मील की दूरी पर नेहावन्द्‌ के मैदाने जंग और उस के हालात व कैफियात को देख लिया और फिर इस्लामी फौजियों की मुश्किलात का हल भी मिंबर पर खड़े खड़े लश्कर के कमान्डर को बता दिया। इस से मालूम हुआ कि औलिया-ए-किराम के कान और आँख और उन की सुनने व देखने की ताक॒तों को आम इन्सानों क॑ कान व आँख ओर उन की कृव्वतों पर हरगिज़ हरगिज़ कूयास नहीं करना चाहिए बल्कि यह ईमान रखना चाहिए कि अल्लाह तआला ने अपने महबूब बन्दों के कान और आँख को आम इन्सानों से बहुत ही ज़्यादा ताकृत अता फ्रमाई है और उन की आँखों, कानों और दूसरे अंगों को ताकृत इस कृदर बे मिस्‍ल और बे मिसाल है और उन से ऐसे कारनामे अनजाम पाते हैं कि जिन को देख कर करामत के सेवा कुछ भी नहीं कहा जा सकता। उ:- ऊपर की हदीस से यह भी साबित होता है कि अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर फारूके अअज़म #9की हुकूमत हवा पर भी थी और हवा भी उन के कन्‍्ट्रोल में थी इस लिए कि आवाज़ों को दूसरों के कानों तक पहँँचाना दर हकीकत हवा का काम है कि हवा के बहने ही से आवाजें लोगों के कानों के पर्दो से टकरा कर सुनाई दिया करती हैं। हजरत फारूके अअज़म&£ने जब चाहा अपने करीब वालों को अपनी आवाज सुना दी और जब चाहा तो सैकड़ों मील दूर वालों को भी सुना दी। इस लिए कि हवा ४८" आप के जेरे फ्रमान थी जहाँ तक आप ने चाहा हवा से आवाज पहुँचाने का काम ले लिया। सुब्हानललाह! सच फरमाया हुजूर अकरम## ने कि. 4] ०४ ७-० 4।५ ।॥(यअनी अल्लाह का बन्दा फ्रमों बरदार बन जाता है तो ख़ुदा उस का काम बनाने वाला मदद गार बन जाता है इसी मज़मून को तरफ इशारा करते हुए हज़रत शैख् सअदी अलैहिर्रहमा ने क्या ख़ुब फ्रमाया) हे तेरे हुक्म से _ तजजुपाः वू खुदा के इक्‍न से न नि +। ॥॥ ए5टदयगशहश 05:/0.06/5फ॥7_|॥व।फएोवा५ ४ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा (४४ 48 मकतवा इमामे आज़म दुनिया की कोई चीज़ रूगरदानी न करे) दरिया के नाम खतः रिवायत है कि अमीरूल मोमिनीन हज़रते उमर फारूक #9#के दौरे ख्विलाफत में एक मर्तबा मिस्र का दरियाए नील सूख गया। मित्र के रहने वालों ने मिस्र के गवर्नर अम्र बिन आस &9से फरियाद की और यह कहा कि मिस्र की तमाम तर पैदावार का दारों मदार उसी दरियाए नील के पानी पर है। ऐे अमीर! अब तक हमारा यह दस्तूर रहा है कि जब कभी भी यह दरया सूख जाता था तो हम लोग एक ख़ुबसूरत कंवारी लड़की को इस दरिया में ज़िन्दा दफन करके दरिया की भेंट चढ़ाया करते थे तो यह दरिया जारी हो जाया करता था अब हम क्‍या करें? गवर्नर ने जवाब दिया कि अरहमुरीहिमीन और रहमतुल लिलआलमीन का रहमत भरा दीन हमारा इस्लाम हरगिज़ हरगिज कभी भी इस बे रहमी और जालिमाना काम को इजाजत नहीं दे सकता इस लिए तुम लोग इन्तज़ार करो। मैं दरबारे फत में ख़त लिख कर पूछता हूँ। वहाँ से जो हुक्म मिलेगा हम उस पर अमल करेंगे। . चुनान्चे एक कासिद गवर्नर का ख़त लेकर मदीना मुनव्वरा दरबारे कृत में हाजिर, हुआ। अमीरूल मोमिनीन ने गवर्नर का ख़त पढ़ कर दरियाए नील के नाम एक ख़त तहरीर फरमाया जिस का मजमून यह था कि ढ “ ऐ दरियाए ४* 3 ! अगर तू र्ुद कच बख्ुद जारी हुआ करता था तो हम को तेरी कोई ज़रूरत नहीं है और अगर तू अल्लाह तआला के * शी जारी होता था तो फिर अल्लाह तआला के हम से जारी अमीरूल मोमिनीन ने इस खत को कासिद के हवाला फ्रमाया और हुक्म दिया कि मेरे इस ख़त को दरियाए नील में दफन कर दिया जाए। चुनान्चे आप के फरमान के मुताबिक गवर्नर मिस्र ने उस ख़त को दरियाए चील के सूखे बालू में दफन कर दिया। ख़ुदा की शान कि जैसे ही न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/098099776_830७॥|॥9_॥0/9/% करामाते सहावा हू 49 मकक्‍तवा इमामे आज़म जारी हो गया और उस के बाद फिर कभी सूखा नहीं। (हुज्जतुल्लाह जि 2, स 86 व इजालतुल ख््रिफा मकुसद नम्बर 2, स॒ 466) तबसेरा: इस ब्यान से मालूम हुआ कि जिस तरह हवा पर अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर&# की हुकूमत थी उसी तरह दरियायो के पानियों पर भी आप की हुकमरानी का परचम लहरा रहा था और दरियाओं को रवानी भी आप की फ्रमाँ बरदार व गुज़ार थी। चादर देख कर आग बुझ गई: रिवायत में है कि आप की खिलाफत के दौर में एक मर्तबा अचानक एक पहाड़ क॑ गुर से एक बहुत ही खतरनाक आग जाहिर हुई जिस ने आस पास को तमाम चीज़ों को जला कर राख का ढेर बना दिया। जब लोगों ने दरबारे खिलाफत में फरियाद की तो अमीरूल मोमिनीन ने हज़रत तमीम दारी #2 को अपनी चादर मुबारक अता फ्रमाई और इरशाद फ्रमाया कि तुम मेरी यह चादर ले कर आग के पास चले जाओ। चुनान्चे हजरत तमीम दारी 59 इस पाक चादर को लेकर रवाना हो गए ओर जैसे ही आग के करीब पहुँँचे। फौरन वह आग बुझने और पीछे हटने लगी। यहाँ तक कि वह गार के अन्दर चली गई और जब यह चादर ले कर गार के अन्दर दाखिल हो गए तो वह आग बिल्कुल ही डझ गई और फिर कभी भी जाहिर नहीं हुई। (इजालतुल खिफा मक्सद नम्बर 2, स 72) तबसेरा: इस रिवायत से पता चलता है कि हवा और पानी की तरह आग पर भी अमीरूल मोमिनीन की हुक्मरानी थी और आग भी आप की फरमाँ बरदार थी। मार से जलजला ड़त्म: इमामुल हरमैन ने अपनी किताब “अइ्शामिल'' में तहरीर फ्रमाया है कि एक मर्तबा मदीना मुनव्वरा में जलजला आ गया और ज़मीन जोरों के साथ कांपने और हिलने लगी । अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर ५४ ने जलाल में आकर जमीन पर एक दुरी मारा और बलन्द आवाज़ से तड़प कर फ्रमाया / ४-५ ५,। « (|४--।( ऐ ज़मीन! ठहर जा क्या मैंने तेरे ऊपर अदल नहीं किया न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥0 08५ कम [[05://8/0/५४6 29797 72977 80७॥9_॥0/94% करामाते सहावा ४ 0) मकतवा डइमामे आजम है?) आप का फरमान जलालते निशान सुनते ही ज़मीन ठहर गई और जलजला ख़त्म हो गया। (हज्जतुल्लाह जि 2, स 864। व इजालतुल एिप्फा मक्सद नम्बर 2, स 72) तबसेरा: इस रिवायत से यह साबित होता है कि अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर#४£ की हुकूमत जिस तरह हवा, पानी, आग पर थी उसी तरह ज़मीन पर भी आप के फरमान शाही का सिक्‍का चलता था। ऊपर को चारों करामतों म॑ मालूम हुआ कि ओऔलिया अल्लाह को हुकूमत हवा, आग, पानी और मिट्टी सभी पर है और चूँकि यह चारों अनासिर अरबा कहलाते हैं यअनी उन्ही चारों से तमाम दुनिया को चीजें बनाई गई हैं तो लब उन चारों अनासिर पर औलिया-ए-किराम की हुकूमत साबित हो गई तो जो जो चीज़ें उन चारों अनासिर से बनी होती हैं। जाहिर है उन पर भी औलिया-ए- किराम की हुकमत हो गई। दूर से पुकार का जवाब: हजरत अमीरूल मोमिनीन फारूक अअजम&&न सरजमान रूम में मुजाहिदीने इस्लाम का एक लश्कर भेजा। फिर कुछ दिनों के बाद बिल्कुल ही अचानक मदीना मुनव्वरा में निहायत ही बलन्द आवाज़ से आप ने दो मर्तबा यह फरमाया: (० (९. (५।८,.।| ,(यअनी ऐ शख्स! में तेरी पुकार पर हाज़िर हूँ) अहले मदोना हरान रह गए और उन की समझ में कछ भी न आया कि अमीरूल मामिनीन किस पुकारने वाले की पुकार का जवाब दे रहे हैं? लेकिन जब कुछ दिनों के बाद वह लश्कर मदीना मुनव्वरा वापस आया और उस लश्कर का कमान्डर अपनी फुतृहात और अपने जंगी कारनामों का जिक्र करने लगा तो अमीरूल मोमिनीन ने फरमाया कि उन बातों को छोड़ दो! पहले यह बताओ कि जिस मुजाहिद को तुम ने जबरदस्ती दरिया में उतारा था और उस ने ॥॥।,००। , !०,५-।, (ऐ मेरे उमर! मेरी ख़बर लीजिए) पुकारा था उस का क्या वाकिआ था ? कमान्डर ने फारूकी जलाल से डर कर कांपते हुए अर्ज किया कि अमीरूल मोमिनीन! मुझे अपनी फौज को दरया के पार उतारना था न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥॥#/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09099776_30॥9_॥20/9/%५ करामाते सहावा 6४ 5] मकक्‍तवा इमामे आजम नि 3 &-2णननननननननत-+----““-+_>नय्ार--नकाटाझमरम रन धक-++-+-+-+ सनी लत 9»... चित निि७ ।७ आिनिननात-+++ ++++ ++--+त5 >> +++»» «नमन ऊनक»5५ ५ कान मनन न नमनममन-न-मम नमन न न न न न न न न न न न न नमन मनन कस र॒क्‍तररररनसररनीनीीनीननीननीनन-3ण न ओओओ3:न्‍ ोोोोोो आआा-_-_- रकम दरिया में उतरने का हुक्म दिया। चूंकि मौसम बहुत ही उन्डा था और तेज हवाएँ चल रही थीं इस लिए उस को सरदी लग गई और उस ने दो मर्तबा जोर ज़ोर से ॥।»००। (७ )००।/कह कर आप का पुकारा। फिर यकायक उस की रूह परवाज कर गई। ख़ुदा गवाह है कि मैंने हरगिज़ हरगिज़ उस को हलाक करने के इरादे से दरिया में उतरने का हुक्म नहीं दिया था। जब अहले मदीना ने कमान्डर की जबानी यह किस्सा सुना तो उन लोगों की समझ में आ गया कि अमीरूल मोमिनीन ने एक दिन जो दो मर्तबा।५< ,,॥ ॥» < ,॥ ,फ्रमाया था हकीकत म॑ यह उसी बेचारे मुजाहिद की फ्रियाद व पुकार का जवाब था। अमीरूल मोमिनीन कमान्डर का बयान सुन कर गुस्से में भर गए ओर फरमाया कि सर्द मौसम और ठण्डी हवाओं के झोंकों में उस मुजाहिद का दरिया की गहराई में उतारना यह कृत्ले ख़ता के हुक्म में है। इस लिए तुम अपने माल में से उस के वारिसों को उस का ख़ून बहा (बदला) अदा करो और ख़बरदार! आगे किसी सिपाही से हरगिज़ हरगिज़ कभी कोई ऐसा काम न लेना जिस में उंस की हलाकत का अन्देशा हो। क्योंकि मेरे नजदीक एक मुसलमान का हलाक होजाना बड़ी हलाकतों से भी कहीं बढ़ चढ़ कर बरबादी है। (अज़ालतुल ख़्िफा मकसद नम्बर 2, स 72) तबसेरा: अमीरूल मोमिनीन ने उस वफूात पाने वाले सिपाही की फरियाद और पुकार को सैकड़ों मील दूरी से सुन लिया और उस का जवाब भी दिया। इस रिवायत से ज़ाहिर होता है कि औलिया-ए- किराम दूर की आवाजों को सुन लेते हैं और उन का जवाब भी देते हें। दो गैबी शेर: रिवायत है कि बादशाहे रूम का भेजा हुआ एक अजमी (अरब के रहने वालों के अलावा को अजमी कहते हैं।)काफिर मदीना मुनव्वरा आया और लोगों से हज़रत उमर &% का पता पुछा। लोगों ने बता दिया कि वह दोपहर को खजूर के बागों में शहर से कुछ दूर कैलूला (दोपहर खाने के बाद आराम करना)फ्रमाते हुए तुम का न कं हद 56वख77606 ५शशंग्रा एद्वया)5टवया6/ [[05://.876/5 07 _।॥॥0/ 08५ कम ॥0[05:॥/8/07५8.0/5/06७698/5/6)0808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहाबा ४: 52 मकतबवा इमामे आज़म यह देखा कि आप अपना चमड़े का सोटा अपने सर के नीचे रख कर जमीन पर गहरी नींद में सो रहे हैं। अजमी काफिर इस इरादे से तलवार को नियाम से निकाल कर आगे बढ़ा कि अमीरूल मोमिनीन को कतल करके भाग जाए मगर वह जेसे ही आगे बढ़ा बिल्कुल ही अचानक उस ने यह देखा कि दो शेर मुँह फाड़े हुए उस पर हमला करने वाले हैं। यह खौफनाक मन्जर देख कर वह खौफ व दहशत से बिलबिला कर चीखा पड़ा और उस की चींछ़ा की आवाज से अमीरूल मोमिनीन बेदार हो गए और यह देखा कि अजमी काफिर नंगी तलवार हाथ में लिए हुए थर थर काँप रहा है। आप ने उस की गीख़ और दहशत का सबब पुछा तो उस ने सच सच सारा वाकिआ बयान कर दिया और फिर बलन्द आवाज़ से कलिमए तेयबा पढ़ कर मुशर्रफ बा इस्लाम हो गया और अमीरूल मोमिनीन ने उस के साथ निहायत ही रहम वाला बरताव फूरमा कर उस के कसूर को मआफ्‌ कर दिया। (इजालतुल खर्िफा मक्सद नम्बर 2, स 72 व तफ्सीरे कबीर जिल्द 5 स 478) तबसेरा: यह रवायत बता रही है कि अल्लाह तआला अपने खास बन्दों की हिफाजत के लिए गैब से ऐसा सामान इन्तिज़ाम फरमा देता है कि जो किसी के वहम व गुमान में भी नहीं आ सकता और यही गैबी सामान औलिया अल्लाह की करामत कहलाते हैं। हज़रत शैख सअदी अलैहिर्हमा ने उसी मजमून को तरफ्‌ इशारा फ्रमाते हुए इरशाद फ्रमाया। पा, |॥ (४27 3) 23 आय 94909 ० (४ >>. (/७४ मुहाल अस्त चूँ दोस्त दारद तेरा कि दर दस्त दुश्मन गुजरद तेरा तर्जमा: यअनी अल्लाह तआला जब तुम को अपना महबूब बन्दा बना ले तो फिर यह मुहाल है कि वह तुम को तुम्हारे दुश्मन के हाथ में परीशानी के आलम में छोड़ दे बल्कि उस की किब्रियाई जरूर दुश्मनों से हिफाज़त के लिए अपने महबूब बन्दों की गैबी तौर पर न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 07 _।॥0 08५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/05869|5/62098099776_30७॥9_॥0/8/%५ करामाते सहावा ४? 53 मकक्‍तवा इमामे आजम शिव रअ सकने आफ क++अ कल कमल दलील :....:नलिक मन निक कलम. ५ 5 ४4:०८ आ इमदाद व नुसरत का सामान पैदा फरमा देती है और यही ईमानी मदद फज़्ल रब्बानी बन कर इस तरह महबूबाने इलाही की दुश्मनों से हिफाजत करता ह॑ जिस को देख कर बे इख़्तियार यह कहना पड़ता है किः- दुश्मन अगर कवी अस्त निगहबान क्‌ृवी तरास्त'' कब्न में बदन सलामत: वलीद बिन अब्दुल मलिक अमवी के दौरे हुकूमत म॑ जब राजए मुनव्वरा की दीवार गिर पड़ी और बादशाह के हुक्म स दाबारा बनान॑ के लिए ब॒नियाद खोदी गई तो अचानक बुनियाद म॑ एक पाँव नज़र आया। लोग घबरा गए और सब ने यही ख़्याल किया कि यह हुजूर नबी अकरम&/#का पैर अकृदस है। लेकिन जब उरवा बिन जुबर सहाबी ##£ ने देखा और पहचाना फिर कुसम खा कर यह फ्रमाया कि यह हुजूरे अनवर /##7 का मूकृदस पाँव नहीं है बल्कि यह अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर #9 का कृदम शरीफ है तो लोगों की घबराहट और बे चैनी में कुछ सूकुन हुआ। बुखारी शरीफ जिल्द , स 86) तबसेरा: बुख्ारी शरीफ को यह रिवायत इस बात को जबरदस्त शहादत है कि कई औलिया-ए-किराम के मुकृद्दस जिस्मों को कृब्र की मिट्री सालों गुज़र जाने के बाद भी नहीं खा सकती। बदन तो बदन उन के कफन को भी मिट्री मैला नहीं करती। औलिया-ए-किराम का यह हाल है तो भला हजराते अन्बिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम का क्‍या हाल होगा। फिर हुजूर सय्यदुल अन्बिया ख़ातिमुन नबिईन शफौउल मुज़नबीन /&# के जिसमे अतहर का क्‍या कहना? जब कि वह अपनी कब्रे अनवर में जिस्मानी जिन्दगी के साथ जिन्दा हैं जेसा कि हदीस शरीफ में आया है। 53. .++ ५/॥ ६ (यअनी अल्लाह तआला के नबी जिन्दा है और उन को रोजी भी दी जाती है।) जो कह दिया वह हो गयाः रबीआ बिन उमैया बिन खूल्फ्‌ ने अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर #४ से अपना यह ख़्वाब बयान किया कि में ने यह ख्वाब देखा है कि मैं एक हरे भरे मैदान में हूँ फिर में आआछआछआछआ आ आऋ ऋ ऋ अऋ ऊ ऋ ऋ उऊ ऋ ऊऋ उऊ नस पपपपरपरंफरफरनन असर आवक चत5 न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.776/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 6९ 54 मकतवा इमामे आजम स्ल्क््क्जििरअडब्बखख्फच् ्््््ख्च्् चित.» न-नन- न >-ाा- मम दूर दूर तक घास या पेड़ का नाम व निशान भी नहीं था और जब में नींद से बेदार हुआ तो वाकई मैं एक बन्जर मैदान में था। आप ने फरमाया कि तू ईमान लाए गा। फिर उस के बाद काफिर हो जाएगा और कुफ्र ही की हालत में मरे गा। अपने ख़्वाब की यह ताबीर सुन कर वह कहने लगा कि मैंने कोई ख़्वाब नहीं देखा है मैंने यूँ ही झूठ मूठ आप से यह कह दिया है। आप ने फरमाया कि तू ने ख़्वाब देखा हो या न देखा हो मगर मैंने जो तअबीर बताई है वह अब पूरी हो कर रहेगी। चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि मुसलमान होने के बाद उस ने शराब पी और अमीरूल मोमिनीन ने उस को दुर्र मार कर सज़ा दी और उस को शहर बद्र करके ख़ैबर भेज दिया। वह जालिम वहाँ से भाग कर रूम को सर ज़मीन में चला गया और वहाँ जाकर वह मरदूद नसरानी हो गया और काफिर होकर क्‌फ्र ही की हालत में मर गया। (इजालतुल खिफा मकसद नमबर 2, स 70) लोगों की तकदीर में कया है?: अब्दुल्लाह बिन मुस्लेमा कहते हैं कि हमारे कुबीला का एक वफुद अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर :४ को बारगाहे ख्थिलाफत में आया। तो उस जमाअत में इश्तर नाम का एक शख़्स भी था। अमीरूल मोमिनीन उस को सर से पैर तक बार बार गरम निगाहों से देखते रहे। फिर मुझ से पुछा कि क्या यह शख्स तुम्हारे ही कूबीला का है? मैंने कहा कि ''जी हाँ उस वक्‍त आप ने फरमाया कि ख़ुदा उस को तबाह करे और उस के फितने व फसाद से उस उम्मत को महफूज़ रखे। अमीरूल मोमिनीन की इस दुआ के बीस साल बाद जब बागियों ने हज़रत उस्मान गनी %#£?को शहीद किया तो यही '“इशतर'' उस बागी गरोह का एक बहुत बड़ा लीडर था। इसी तरह एक मर्तबा हज़रत उमर ४&£ मुल्के शाम के कफ़्फार जिहाद करने के लिए लश्कर भरती फ्रमा रहे थे। अचानक एक टोली आप के सामने आई तो आप ने बहुत ही ना पसन्दीदगी के साथ उन लोगों की तरफ्‌ से मुँह फेर लिया। फिर दोबारा यह लोग आप के सामने आए तो आप ने मुँह फेर कर उन लोगों को इस्लामी फौज में रन 22722 %+-+-99333333333333-9+9%+-3+533335 कब ध् ०. ्नन««-ननना हिसआइ-+--० मारा अकनतटतननाननन न नं भम “नम न कं हद 56व7606 ५शशंगा एद्वा75टवयगा6/ [05://.क्‍06/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/05869/|5/6209809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा ४४ 55 मकतवा इमामे आजम फ.. भरती करने से इन्कार फरमा दिया। लोग आप के इस तर्ज अमल स॑ इन्तेहाई हैरान थे। लेकिन आख़िर में यह राज़ खुला कि इस टाली म “ असवद यजयई'' भी था जिस ने इस वाकिआ से बीस साल बाद हजरते उस्मान गनी #£ को अपनी तलवार से शहीद किया और उस टोली में अब्दुररहमान बिन मुलजम मुरादी भी था जिस ने इस वाकिआ से तक्रीबन छब्बीस (२६) साल के बाद हज़रते अली &£ का अपनी तलवार से शहीद कर डाला। (इजालतुल ख्रिफा मकसद नम्बर 2, स 69 वा 472) तबसेरा: उपर ब्यान की गई करामतों में आप ने रबीआ बिन उमंया बिन खलफ के खातमा के बारे में बरसों पहले यह ख़बर दे दी कि वह काफिर होकर मरे गा ओर बीस बरस पहले आप ने “इश्तर क फितनों व फ्साद से उम्मत के महफूज़ रहने की दुआ माँगी और “' असवद यजयई'' से इस बिना पर मेह फर लिया आर इस्लामी लश्कर में उस को भरती करने से इन्कार कर दिया कि यह दाना हजरते उस्मान गनी :#£ के कातिलों में से थे। छब्बीस बरस पहले आप ने अब्दुरहमान बिन मुलजम मुरादी को नापसन्दीदगी से दखा ओर इस्लामी लक्षकर में इस बिना पर भरती नहीं फरमाया कि वह हजरत॑ अली %££का कातिल था। इन सब रिवायतों से यह साबित होता है कि औलिया-ए-किराम को खूदावन्दे कुद्दस के बता देने से आदमियों की तकदीरों का हाल मालूम हो जाता है इसी लिए हजरत मौलाना जलालुद्दौन रूमी अलैहिरहमा ने अपनी मसनवी शरीफ में फ्रमाया हैं। +0० 3 $#* >.। 5 2| #(/४ (5 ०! # ! लोहे महफ्‌ज॒ अस्त पेशी औलिया अज़ चेह महफूज़ अस्त महफज़ अज ख़ता तर्जमा: यअनी लौहे महफूज़ औलिया-ए-किराम के सामने रहती है जिस को देख कर वह इन्सानों की तकदीरों में क्या लिखा है उस को जान लेते हैं। लौहे महफूज़ को इस लिए लोहे महफूज़ कहते हैं कि वह गलतियों और ख़ताओं से महफज हे। ब्न्नकून ब्ण्जी है ।॥॥ [) 57 4 .]] 8/5 (॥१॥[॥| ण'! ॥] 0 ] | | |) 8 [५ 5८466 ५शा। एव्वा52८वाा6/ ु ३7 [[[05:/9/079५४५86.070/069|5/(8[28093706_30॥9_॥2।3/% करामाते राहावा ॥४/7 50 मकक्‍तवा इमामे आजम ्््म्म्ज्स्‍्य्न्ब्ग्््म्णमाम्ग्ग्ग्म्8्भस्न्ण््न्न्ननन्नललन_नकआआथआथखथआिशथलशथशथथलथलथलथनलनलनललशए;ए्क”ःाए।ए। शा. छा छा न न आकत ताकत तक इलस सकल अइबइइइइइइललब न मकललललकलिलललललललकलक कद अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर %४ को यह ख़बर मिली कि इराक के लोगों ने आप के गवर्नर को उस के मँह पर कंकरियाँ मार कर जलील व र॒स्‍्वा करके शहर से बाहर निकाल दिया है तो आप को इस ख़बर से इन्तेहाई तकलीफ ओर बेचैनी हुई और आप बहुत ही ग़ज़बनाक होकर मस्जिदे नबवी में तशरीफ ले गए और उसी गुस्से की हालत में आप ने नमाज शुरू कर दी लेकिन चूँकि आप बहुत ही गुस्से से परीशान थे इस लिए आप को नमाज में सहव हो गया और आप इस रन्‍जो ग़म से और भी ज़्यादा बे ताब हो गए और इन्तेहाई रन्‍जो गम की हालत में आप ने यह दुआ मांगी कि या अल्लाह कबील-ए--सकीफ के लॉंडे (हज्जाज बिन यूसुफ सकूफी) को उन लोगों पर मुसल्लत फ्रमा दे जो ज़माना-ए-जाहलियत का हुक्म चला कर उए दगकियों के नेक ओर बुरे किसी को भी न बखझ्दे। चुनान्वे आप की यह दुआ कबूल हो गई और अब्दुल मलिक विन मरवान अमवी के दौरे हुकमत में हज्जाज बिन यूसुफ सकफी इराक्‌ का गवर्नर बना और उस ने इराक के रहने वालों पर जुल्म व सितम का ऐसा पहाड़ तोड़ा कि इराक को ज़मीन बिलबिला उठी। हज्जाज बिन यूसुफ सकफी इतना जालिम था कि उस ने जिन लोगों को रस्सी में बांध कर अपनी तलवार से कृत्ल किया उन मकृतूलों की तअदाद एक लाख या उस से ज़्यादा ही है और जो लोग उस के हुक्म से कत्ल किए गए उन की बनती का तो शुमार ही नहीं हो सका। हज़रत इब्ने रबीआ मुहद्दिस ने फ्रमाया कि जिस वक्‍त अमीरूल मोमिनीन ने यह दुआ मांगी .थी उस वक्‍त हज्जाज बिन यूसुफ सकृफी पैदा भी नहीं हुआ था। (इज़ालतुल ख्विफा मकसद नम्बर 2, स 72) तबसेरा: इस रिवायत से मालूम हुआ कि अल्लाह तआला अपने ओऔलिया-ए-किराम को गैब की बातों का भी इल्म अता फरमाता है। चुनान्चे उपर को रिवायत में आप ने देख लिया कि अभी हज्जाज बिन यूसुफ सकफी पैदा भी नहीं हुआ था लेकिन अमीरूल मोमिनीन हा नरक ८८3 ++++-र++॑-पसररुरव कर्क पपपस -मपन 3 433535 न पर रा & रन +न+++++++ननन+++<<७७आा+++ा+++न-+॑७७७ ८-८ ++- 33३८-3८ ८८८८-८८ २००००. .. >ववनाधााममवाक-- पक... या ल्‍अअअभगअभ£गकभगानन.. अनभगएता” खनन. जि... >>... 2अनभनतिनगभगभागभ0तव2भगगाननन---मममहा कम» > न ड़ हक 5 56वख766 ५शशंग्रा एद्वया)5टवद्या6/ [[05:/॥.776/50॥॥_॥|॥॥009/8/9५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_30॥9_॥0/9/%५ कराभाते सहावा ४7 57 मकतबवा इमामे आज़म का अइऋ न िनभिनग न नमन न भभप मद ॉौ न मनन न ननिभभभफअफनपफ च चचचचच च ख चननन्न्सससेेन्क्‍िचिनििि च च च नननतत5 हजरत उमर फारूके अअज़म # को यह मालूम हो गया था कि हज्जाज बिन यूसुफ सकृफी नामी एक बच्चा पैदा होगा जो बड़ा होकर गवर्नर बनेगा और इन्तेहाई जालिम होगा। जाहिर है कि वक्‍त से पहले उन बातों का मालूम हो जाना यकीनन यह गैब का इल्म है। अब यह मसला सूरज से भी ज़्यादा रोशन होगया कि जब अल्लाह तआला अपने औलिया को ग्रैब का इल्म अता फ्रमाता है तो फिर अंबिया-ए-किराम/##४/ खास कर हुजूर सय्यदुल अंबिया /&# को भी अल्लाह तआला ने यकौनन उलूमे गैबिया का ख़ज़ाना अता फ्रमाया है और यह हज़राते बे शुमार गैब को बातों को ख़ुदा तआला के बता देने से जानते हैं और दूसरों को भी बता देते हैं। चुनान्चे अहले हक हजराते उलमाए अहले सुननत का यहां अकीदा है कि अल्लाह तआला ने अंबिया-ए- किराम बिल ख़ुसूस हुजूर सैय्यदुल अंबिया ## को बे शुमार उलूमे गैबिया के ख़ज़ान॑ अता फरमाए हैं और यही अकीदः हज़राते ताबईन व हज़राते सहाबा-ए-किराम &## का भी था। चुनानचे मवाहिब लदुनिया शरीफ में है किः- >> 2६ ६०७४५०७-८। ०० 50 2) ५०) >0। ++| 32३१ “४ (जनाबे रसूलुल्लाह /#/#गुयूब पर मुत्तला ये बात सहाब-ए-किराम में आम तौर पर मशहूर और जबाने ज़द खास व आम थी।) इसी तरह मवाहिबुल्लदुनिया की शरह में अल्लामा मुहम्मद बिन अब्दुल बाकी ज़रकानी अलैहिर्रहमा ने तहरीर फरमाया हैं: ५३४ (4० ५० 0५%, /, »० )-> /.८८ ५॥॥ (| ५०) ५:-...०७ (यअनी सहाबा-ए-किराम &#का यह पुख्ता अकोदा था कि हुजूर /४% गैब की बातों से बा खबर हैं।) उन दो बुजुर्गों के अलावा दूसरे बहुत से उलमा-ए-किराम ने भी अपनी अपनी किताबों में इस बलासे को बयान फ्रमाया है। तफ्सील के लिए देखें '“'कुरआनी तकरीरें'' और '“"कुयामत कब आएगी? ' नि ड़ हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 7 _॥।॥0/0/8५ कम ॥0[05:॥/8/07५8.0/05/068/5/6)/8098/76_9५॥8 _॥0/8/9५ _करामाते सहावा £४ 58 मक्‍तवा इमामे आज़म हजरते उस्माने गनी £४ ख़लीफ-ए-सोम अमीरूल मोमिनीन हजरत उस्मान बिन अफ़्फान 22की कुन्नियत "अबू अम्र'' ओर लकुब “'जुन नूरैन'' (दो नूर वाले) है। आप क्रैशी हैं और आप का नसब नामा यह है। उस्मान बिन अफ़्फान बिन अबिल आस बिन उमय्या बिन अब्दे शमस बिन अब्दे मुनाफ। आप का खानदानी शजरा “'अब्दे मनाफ्‌' पर रसूलुल्लाह /## के नसब नामा से मिल जाता है आप ने शुरू इस्लाम ही में इस्लाम कूबूल कर लिया था और आप को आप के चचा और दूसरे काफिरों ने मुसलमान हो जाने की वजह से बहुत सताया। आप ने पहले हबशा की तरफ हिजरत फ्रमाई। फिर मदीना मुनव्वरा को तरफ हिजरत फ्रमाई। इस लिए आप “'साहिबुल हिजरतैन'' (दो हिजरतों वाले) कहलाते हैं। और चूँकि हुजूरे अकरम #&#की दो बेटियाँ एक एक करके आप के निकाह में आई इस लिए आप का लकब _'जुन नूरैन*' है आप जंगे बद्र के अलावा दुसरे तमाम इस्लामी जेहादों में कुफ़्फार से जंग फरमाते रहे। जंगे बद्र के मौकअ पर उन की जौजा मुहतरमा जो रसूलुल्लाह /#7 की साहबज़ादी थीं सख्त बीमार होगई थीं। इस लिए हुजूरे अकृदस #&#£ ने उन को जंगे बद्र में जाने से मना फरमा दिया लेकिन उन को मुजाहिदीने बद्र में शुमार फरमा कर माले ग़नीमत में से मुजाहिदीन के बराबर हिस्सा दिया और अजरो सवाब की खुर भी दो। हज़रत अमीरूल मोमिनीन उमर फारूके अअज॒म ## की शहादत के बाद आप खलीफा चुने गये और बारा बरस तक तख़ते ख़िलाफुत को सरफराज फरमाते रहे। आप क दौरे ख़िलाफत में इस्लामी हुकूमत की सरहदों में बहुत ज़्यादा फेलाव हुआ और अफ्रीका वगैरह बहुत से देश कब्जा में आ कर राशिदा के जेरे नगीं हुए। बयासी (82) बरस की उम्र में मिस्र के बागियों ने आप के मकान का घेराव कर लिया और 2 जिल हिज्जा या 8 ज़िल हिज्जा 35 हिजरी जुमा के दिन उन बागियों में से ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05://.76/5 077 _|॥ताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा &; 59 मक्‍तवा इमामे आजम एक बद नसीब ने आप को रात के वक़्त इस हाल में शहीद कर दिया कि आप कुरआने पाक की तिलावत फ्रमा रहे थे और आप के ख़ून के चन्द कृतरात कुरआन शरीफ की आयत “ 4॥ .(९,६९...४” पर पड़े। आप के जनाजा की नमाज हुजूरे अकदस/#“के फूफी जाद भाई हज़रत जुबेर बिन अवाम रजियल्लाहु अन्हु ने पढ़ाई और आप मदीना मुनव्वरा के कब्रस्तान जन्नतुल बक्ौअ में मदफून हें। कि तारीखुल खुलफा व इजालतुल खिफा वगैरह) क्रामात जिना कार आँखें: अल्लामा ताजुद्दीन सबकी अलैहिर्रहमा ने अपनी किताब ''तबकात'' में तहरीर फुरमाया है कि एक शख्स ने रास्ता चलते हुए एक अजनबी औरत को घूर घूर कर ग़लत निगाहों से | उस के बाद यह शख्स अमीरूल मोमिनीन हज़रत उसमाने ग़्नी #2की खिदमते अकृदस में हाजिर हुआ। उस शख्स को देख कर हजरत अमीरूल मोमिनीन ने निहायत ही पुर जलाल लेहजे में फरमाया कि तुम लोग ऐसे हालत में मेरे सामने आते हो कि तुम्हारी गरॉखों में जिना के असरात होते हैं। उस आदमी ने (जल भुन कर) कहा कि रसूलुल्लाह &##के बाद आप पर वही उतरने लगी है? आप को यह कैसे मालूम हो गया कि मेरी आँखों में ज़िना के असरात हैं ? अमीरूल मोमिनीन ने इरशाद फ्रमाया कि मेरे ऊपर वही तो नहीं नाजिल होती है। लेकिन मैं ने जो कुछ कहा है यह बिल्कुल ही कोौले हक और सच्ची बात है और कद्दूस ने मुझे एक ऐसी फ्रास्त (नूरानी बसीरत) अता फ्रमाई है जिस से में लोगों के दिलों क हालात व ख्यालात को मालूम कर लेता हूँ। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि 2, स 862, व इज़ालतुल खिफा मक्सद्‌ 2, स 227) . तबसेरा: कुरआन मजीद में ख़ुदा वन्दे कुद्दूस का इरशाद है कि ८ ,,),.०८, ५।८।, (१७५ (००७७ ““ २ ५४” यअनी आदमी जब कोई गुनाह करता है तो उस का यह असर होता है कि उस के दिल पर एक 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ ॥05:॥/8/07५8.0/5/06७9/5/6)0808/76_9५॥8 _॥0/8/% करामाते पहावा %४२ 600 मक्‍तवा इमामे आजम काला दाग़ और बदनुमा धब्बा पड़ जाता है और चूँकि दिल पूरे जिस्म का बादशाह है इस लिए दिल पर जब कोई असर पड़ता है तो पूरा बदन उस से मुतास्सिर हो जाता है तो अल्लाह के करीबी बन्‍्दे जिन की आंखों में नूरे बसारत देखने के साथ साथ नूरे बसीरत भी हुआ करता है वह बदन के हर हर हिस्सा में उन असरात को अपने नूरे फरासत और निया: करामत से देख लिया करते हैं। अमीरूल मोमिनीन हज़रत उसमान गरनी #£ चूँकि अहले बसीरत और साहिबे बातिन थे। इस लिए उन्हों ने अपनी निगाहे करामत से उस आदमी की आँखों में उस के गुनाह के असरात को देख लिया और उस की आँखों को इस लिए ज़िनाकार कहा। हदीस शरीफ में आया है कि >5५॥ ८५५४५ ५)" यअनी किसी अजनबी औरत को बुरी नियत से देखना यह आँखों का ज़िना है। बलल्‍लाहु अअलम! (!/+#) हाथ में कैंसर: हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रावी हैं कि अमीरूल मोमिनीन हजरत उस्माने ग़नी #$ मस्जिदे नबवी शरीफ के मिंबरे अकदस पर ख़ुतबा पढ़ रहे थे कि बिल्कुल ही अचानक एक बदनसीब और हौतान सिफत इन्सान जिस का नाम '“जहजाह गिफारी था खड़ा हो गया और आप के दस्ते मुबारक से छड़ी छीन कर उस को तोड़ डाला।आप ने अपने इल्म व हया की वजह से उस को कोई पकड़ नहीं फरमाई लेकिन ख़ुदा तआला की कृहहारी व जब्बारी ने उस बे अदबी और गुस्ताख़ी पर उस मरदूद को यह सजा दी कि उस क हाथ में कंसर का मरज़ हो गया और उस का हाथ कुल सड़ कर गिर पड़ा और वह यह सजा पा कर एक साल के अन्दर ही मर गया। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जिल्द 2, सफा 862 व तारीख़ुल ख़ुलफा सफा 2) गुस्ताख़ी की सजा: हज़रत अबू कलाबा&४ का बयान है कि मैं पुल्क शाम की सर जमीन में था तो मैंने एक शख्स को बार बार यह आवाज लगाते हुए सुना कि ““हाए अफ्सोस! मेरे लिए जहन्नम है'' में उठ कर उस के पास गया तो यह देख कर हैरान हो गया कि उस ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा &2 6] मकक्‍तवा इमामे आज़म शख्स के दोनों हाथ और पाव॑ कटे हुए हैं और वह दोनों आँखों से अंधा है ओर अपने चेहरे के बल ज़मीन पर ऑघधा पड़ा हुआ बार बार लगातार यही कह रहा है कि ““हाए अफसोस! मेरे लिए जहन्नम है यह मनजर देख कर मुझ से रहा न गया और मैंने उस से पूछा कि ऐ' शख्स! तेरा क्या हाल है? और क्‍यों और किस बिना पर तुझे अपने जहन्नमी होने का यकीन है? यह सुन कर उस ने यह कहा कि ऐ शख्स! मेरा हाल न पूछ। मैं उन बद नसीब लोगों में से हू जो अमीरूल मोमिनीन हज़रत उस्मान ग़नी ## का कृतल करने के लिए उन के मकान में घुस पड़े थे। मैं जब तलवार लेकर उन के क्रीब पहुँचा तो उन की बीवी साहिबा ने मुझे डांट कर शोर मचाना शुरू कर दिया। तो मैं ने उन की बीवी साहिबा को एक थप्पड़ मार दिया। यह देख कर अमीरूल मोमिनीन हजरत उस्मान ग़नी ££ ने यह दुआ मांगी कि “अल्लाह तआला तेरे दोनों हाथों और दोनों पावों को काट डाले और तेरी दोनों आँखों को अंधी कर दे और तुझ को जहन्नम मे झोंक दे'' ऐ शख्स! मैं अमीरूल मोमिनीन के पुर जलाल चेहरे को देख कर और उन की उस खतरनाक दुआ को सुन कर कॉँप उठा और मेरे बदन का एक एक रोंगटा खड़ा हो गया और में खाफ व दहशत से काँपते हुए वहाँ से भाग निकला। हम अमीरूल मोमिनीन की चार दुआवों में से तीन दुआवों को पकड़ में तो आ चुका हूँ। तुम देख रहे हो कि मेरे दोनों हाथ और पार्वों कट चुके और दोनों आँखें अंधी हो चुकीं। अब सिफ चौथी दुआ यअनी मेरा जहन्नम में दाखिल होना बाकी रह गया है और मुझे यकौन है कि यह मामला भी यकीनन हो कर रहे गा। चुनान्चे अब म॑ उस का इन्तजार कर रहा हूँ और अपने जुर्म को बार बार याद करके नादिम व शर्मशार हो रहा हँ और अपने जहन्नमी होने का इक्रार करता हू। (इजालतुल खिफा मक्सद 2, स 27) तबसेरा: ऊपर की दोनों रिवायतों और करामतां स॑ यह सबक मिलता है कि अल्लाह तआला अगरचे बहुत बड़ा सत्तार व ग्रक़्काः मिलता है कि अल्लाह __ल विनननननततननननततन न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम 4 शक. (809376_89५७॥9_॥7/५ हि करामाते सहाबा £ मंक्तवा इमामे आज़म व रहीम है लेकिन अगर कोई बद नसीब उस के महबूब बन्दों की शान में कोई गुस्ताख़ी व बे अदबी करता है तो ख़ुदा वन्दे क॒ुद्दस की कहहारी व जब्बारी उस मर्दूद को हरगिज़ मआफ नहीं फरमाती बल्कि जरूर दुनिया व आखिरत के बड़े बड़े अज़ाबों में गिरफ्तार कर देती है और वह दोनों आलम में कहरे कृहहार व गजबे जब्बार का इस तरह सज़ावार होजाता है कि दुनिया में लअनतों के मार और फटकार और आखिरत में अज़ाबे जहन्नम के सिवा इस को क॒छ नहीं मिलता। राफज्ी और वहाबी जिन के दीन व मजहब की बुनियाद ही महबूबाने ख़ुदा की बे अदबी पर है। हम ने उन गुस्ताख़ों ओर बे अदबों में से कई एक को अपनी आँखों से देखा है कि उन लोगों पर कहरे इलाही की ऐसे मार पड़ी हे कि तौबा तोबा अलअमान। और मरते वकुत उन लोगों का इतना बुरा हाल हुआ है कि तौबा तौबा। नउजु बिल्लाह! अल्लाह त्‌आला हर मुसलमान को अल्लाह वालों की बे अदबी व्‌ गुस्ताखी की लअनत से महफूज रखे और अपने महबूबों की तअजीम व तौकीर और उन्‌ कू अदब व्‌ एहत्राम की तौफीकु बख्शे (आमीन) ख़्वाब में पानी पी कर सैराब: हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम 59 फरमाते हैं कि जिन दिनों बागियों ने हज़रत उस्मान गनी £?के मकान का घेराव कर लिया और उन के घर में पानी की एक बून्द तक का जाना बन्द कर दिया था और हज़रत उस्मान ग़नी ££प्यास की सख्ती से तड़पते रहते 8 थे। में आप की मुलाकात के लिए हाजिर हुआ तो आप उस दिन रीज़ादार थे। मुझ को देख कर आप ने फरमाया कि ऐ अब्दुल्लाह बिन सलाम! आज में हुजूर नबी-ए-अकरम ##&“के दीदार पुर अनवार से ड़वाब में मुशर्रफ हुआ तो आप ने बहुत ही मुश्फिकाना लहजे में इरशाद फ्रमाया कि ऐ उस्मान! जालिमों ने पानी बन्द करके तुम्हें प्यास से बे करार कर दिया है? मैंने अर्ज़ किया कि जी हा! तो फौरन ही आप ने दरेची में से एक डोल मेरी तरफ लटका दिया जो निहायत मीठा और ठंडे पानी से भरा हुआ था। मैं उस को न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 ७7॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/62/09809776_30७॥|॥9_॥0/9/% करामाते सहावा 62 63 मकक्‍तवा इमामे आजम पी कर संराब हां गया ओर अब उस वक्‍त बेदारी की हालत में भी उस पानी की ठडक म॑ अपनी दोनों छातियों और दोनों कंथों के बीच महसूस करता हूँ। फिर हुजरे अकरम /&#ने मुझ से फरमाया कि ऐ उस्मान! अगर तुम्हारी ख्वाहिश हो तो उन बागियों के मुकाबला में तुम्हारी इमदाद व नुसरत करूँ। और अगर तुम चाहो तो हमारे पास आकर रोज़ा खोलो। ऐ अब्दुल्लाह बिन सलाम! मैं ने ख़ुश होकर यह अर्ज़ कर दिया कि या रसूलल्लाह /&7आप के दरबार पुर अनवार में हाजिर होकर रोज़ा इफ्तार करना यह जिन्दगी से हज़ारों लाखों दर्ज ज़्यादा मुझे प्यारी है। हज़रत अब्दल्लाह बिन सलाम 5४£फरमाते हैं कि मैं उस के बाद चला आया और उसी दिन रात में बागियों ने आप को शहीद कर दिया। (अल बदाया वन नहाया जि 7, स 82) अपने मदफन की खबर: हजरत इमाम मालिक अलैहिर्रहमा ने फ्रमाया कि अमीरूल मोमिनीन हज़रत उस्मान गनी £४एक मतंबा मदीना मुनव्वरा के कृब्रस्तान जन्नतुल बकीअ क उस हिस्सा में तशरीफ ले गए जो “'हिश्शे कोकब'' कहलाता है तो आप ने वहाँ खड़े होकर एक जगह पर यह फरमाया कि जल्द ही यहाँ एक नेक शख्स दफन कर दिया जाए गा। चुनान्चे उस के बाद ही आप को शहादत हो गई और बागियों ने आप के जनाजा मुबारका के साथ इस कृदर हुल्लड़ बाजी की कि आप को न रोज़-ए-मनव्वरा के क्रीब दफन किया जा सका न जननतुल बकोअ क॑ उस हिस्सा में मदफून किया जा सका जो बड़े सहाबा का कृब्रस्तान था बल्कि सब से दूर अलग थलग “'' हिद्शे कोकब''में आप दफन किए गिए। जहाँ कोई | सोच भी नहीं सकता था कि यहाँ अमीरूल मोमिनीन हजरत उस्मान ४४की कृब्रे मुबारक बनेगी क्‍योंकि उस वक्त तक वहाँ कोई कृब्र थी ही नहीं। (इजालतुल खिफा मक्सद 2, स 227) तबसेरा: इस रिवायत से मालूम हुआ कि अल्लाह तआला अपने औलिया को इन बातों का भी इल्म अता फ्रमा देता हे कि वह कब और कहाँ वफात पाएँगे? और किस जगह उन की कब्र बने गी? न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/05869/|5/6209809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा ।|82 04 मकतबा इमामे आजम उन अललाह वालों ने वक़्त से पहले लोगों को यह बता दिया है कि वह कब? और कहाँ और किस जगह वफात पाकर मदफान होंगे। हि जुरुरी इन्तेबाह: उस मौकूअ पर कुछ कम समझ और बदअकीदा लोग अवाम को बहकाते रहते हैं कि कुरआन मजीद में अल्लाह तआला ने यह फ्रमाया है; ' ७३० ० ७! (४५ ७३५।०५” (यअनी अल्लाह तआला के सिवा कोई उस को नहीं जानता कि वह कौन सी जमीन में मरेगा) इस लिए औलिया-ए-किराम के यह सब किस्से ग़लत हैं। उस का जवाब यह है कि कुरआन मजीद की यह आयत हक्‌ ओर बरहक्‌ है और हर मोमिन का उस पर ईमान है मगर इस आयत का मतलब यह है कि बेगैर अल्लाह तआला के बताए हुए कोई शख्स अपनी अकुल व समझ से इस बात को नहीं जान सकता कि वह कब ओर कहाँ मरेगा? लेकिन अल्लाह तआला अपने खास बनन्‍्दों, हज़राते अन्बिया -ए-किराम को बज़रिए वही औलिया-ए-किराम को बतरीक्‌ कश्फो करामत उन चीजों का इल्म अता फरमा दे तो वह भी जान लेते हैं कब और कहाँ उन का इन्तकाल होगा। खुलासा यह हँ कि अल्लाह तआला तो उस बात को जानता ही है कि कौन कहाँ मरेगा लेकिन अल्लाह तआला के बता देने से ख़ुदा के खास बन्दे भी इस बात को जान लेते हैं कि कौन कहाँ मंरेगा? मगर कहाँ अल्लाह तआला का इल्म और कहाँ बन्दों का इल्म ? अल्लाह तआला का इल्म हमेशगी वाला,जाती और क॒दीम है और बन्दों का इल्म अताई और खत्म होने वाला है। अल्लाह तआला का इल्मे अजली , अबदी : और गैर महदूद है और बन्दों का इल्म फानी और महदूद है। अब यह मसला निहायत ही सफाई के साथ खुल गया है कि कुरआनी इरशाद का मतलब यह कि अल्लाह तआला के सिवा कोई नहीं जानता कि कौन कब और कहाँ मरेगा? और अहले हंक का यह अकोदा कि औलिया-ए-किराम भी जानते हैं कि कौन कब और कहाँ मरेगा? यह दोनों बातें अपनी अपनी जगह पर सही हैं। और उन दोनों जगह पर सही हैं। और उन दोनों न कर हक 5 56व7606 ५शशंगा एद्वा75टवयगा6/ [[05://.क्‍76/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/098099776_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा &२ 65 मकक्‍तवा इमामे आज़म बातों में हरगिज़ हरगिज़ कोई टकराव नहीं क्‍योंकि जहाँ यह कहा गया कि अल्लाह तआला के पिया कोई नहीं जानता कि कौन कब ओर कहाँ मरेंगा। उस का मतलब यह है कि बेगैर ख़ुदा के बताये कोई नहीं जानता और जहाँ यह कहा गया कि हज़राते अंबिया व औलिया जानते हैं कि कोन कब और कहाँ मरे गा तो उस का मतलब यह है कि हज़राते अंबिया व औलिया ख़ुदा के बता देने से जान लेते हैं। अब नाजरीने किराम इन्साफ फ्रमाएँ कि इन दोनों बातों में कौन सा इख्तेलाफ और टकराव हे? दोनों ही बातें अपनी अपनी जगह पर सो फोसद सही और दुरूस्त हैं। बलल्‍लाहु अअलम शहादत के बाद गैबी आवाज: हज़रत अदी बिन हातिम सहाबी #£ का बयान है कि हजरत अमीरूल मोमिनीन उस्मान गनी#£ की शहादत के दिन मैंने अपने कानों से सुना कि कोई शख्स बलन्द आवाज से यह कह रहा था कि: ७, 3 ७७२) 3 (3७२ 0-० ७-२ >-य "| ५००) 3 0३४५ 05० (2३३३ (३०७० .०(यअनी हज़रत उस्मान बिन अफ़्फान 59% को राहत और ख़ुश्ब्‌ की खुशखबरी दो और न नाराज होने वाले रब की मुलाकात की खुरख़बरी सुनाओ ओर ख़ुदा की बख्टिश और खुशी की भी बशारत दे दो) हज़रत अदी बिन हातिम ४8 फरमाते हें कि में उस आवाज को सुन कर इधर उधर नज़र दौड़ाने लगा और पीछे मुड़ कर भी देखा मगर कोई शख़्स नज़र नहीं आया। (शवाहिदुन्नबुवा स 58) मदफन में फरिश्तों की भीड़: रिवायत है कि बागियों की हुल्लड़ बाजियों के सबब तीन दिन तक आप की मुकृदस लाश बे गोरो कफून पड़ी रही। फिर चन्द जाँ निसारों ने रात की तारीकी में आप के जनाज़ा मुबारका को उठा कर जननतुल बकौअ पहुँचा दिया और आप की मुकदस कृब्र लगे। अचानक उन लोगों ने देखा कि सवारों की एक बहुत बड़ी जमाअत उन के पीछे पीछे जन्नतुल बकीअ में दाखिल हुई उन सवारों को देख कर लोगों पर ऐसा खौफ तारी हुआ कि कुछ लोगों ने जनाज़ा मुबारका को छोड़ कर भाग जाने का इरादा कर लिया। रास ८+--++--------------------नननन--नन- "9 नम नननननननन॑ननकननीननननननननस्‍कननन- कक कक क क सो नमन कु ध 4 खब॒८< खो आच चचचि ंि अ चचखिि्््््््््््ेैौैौै॑।ै न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[05:/9/07५8.0/0/0893/09)[08/088706_30॥9_॥0/8/% मेकतवा करामाते सहाबा 6४ है क्तवा इमामे आज़म यह देख कर सवारों ने बआवाजे बलन्द कहा कि आप लोग ठहरे रहे और बिल्कुल न डरें हम लोग भी उन की तदफीन में शिरकत के लिए यहाँ हाजिर हुए हैं। यह आवाज़ सुन कर लोगों का खौफ दूर हो गया और इत्मीनान व सुकून के साथ लोगों ने आप को दफन किया। कब्रस्तान से लौट कर उन सहाबियों ने कसम खा कर लोगों से कहा कि यकोनन यह फरिश्तों की जमाअत थी। (शवाहिदुन्नबुवा स 458) गुस्ताख दरिन्दा के मुँह में: मन्‍्कूल है कि हाजियों का एक काफिला मदीना मुनव्वरा पहुँचा। तमाम अहले क्राफिला हज़रत अमीरूल मोमिनीन उस्मान ग़नी##के मज़ारे मुबारक पर जियारत करने और फातिहा झख़्वानी के लिए गए लेकिन एक शख्स जो आप से दुश्मनी त्ता था तौहीन व इहानत के तौर पर आप की ज़ियारत के लिए नहीं गया और लोगों से कहने लगा कि वह बहुत दूर है इस लिए मैं नहीं जाऊँगा। यह काफिला जब अपने वतन को वापस आने लगा तो काफिला के तमाम लोग खैरों आफियत और सलामती के साथ अपने अपने वतन पहुंच गए लेकिन वह शख्स जो आप की कुब्रे अनवर की जियारत के लिए नहीं गया था। उस का यह अनजाम हुआ कि बीच रास्ते में बीच काफिला के अन्दर एक दरिन्दा जानवर दहाड़ता और गुरीता हुआ आया और उस शख्स को अपने दाँतों से दबोच कर और पन्‍्जों से फाड़ कर टुकड़े टुकड़े कर डाला। यह मन्जर देख कर तमाम अहले काफिला ने यक जबान होकर यह कहा कि यह हज़रत उस्मान ग़नी##की बे अदबी व बे हुरमती का अजाम है। (शवाहिदुन्नबुवा स 58) तबसेरा: उपर की तीनों रवायतों से अमीरूल मोमिनीन हजरत उस्मान गनी #9? की जलालते शान और दरबारे ख़ुदावन्दी में उन की मक्‌बूलियत और विलायत व करामत का ऐसा अजीमुश्शान निशान जाहिर होता है कि उन के मर्तबे को बलन्दियों का कोई तसव्व॒ुर भी नहीं कर सकता और आखिरी रिवायत तो उन गुस्ताख्यों के लिए बहुत ही नसीहत वाली व खौफनाक है जो हज़रत उस्मान ग़नी&#की शान न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[05://8/0।५४6 अंक 80७॥9_॥0/94/% ॥। मकतवा इमामे आज़म मे बद ज़बान होकर तीनों खलीफों को ब॒रा भला कहा करते हैं। जैसा कि हमारे दौर के शीओं का सड़ा हुआ व नापाक तरीका है। अहल॑ सुन्नत हजरात पर जरूरी है कि उन की मजालिस में हरगिज़ हरगिज़ कृदम न रखें वरना कहरे इलाही में मुबतला होने का ब्र्तरनाक अन्देशा है ख़ुदा वन्दे करीम हर मुसलमान को अपने कहरो गजब स॑ बचाए रखे और हजरात ख़्ुलफा-ए-किराम और तमाम सहाबा-ए-किराम को मुहब्बत व अकीदत की दौलत अता फ्रमाए। आमीन! करामाते सहावा 6४ हज़रत अली मुर्तजा ## ख़लीफ्‌-ए-चहारूम जानशीने रसूल व जौजे बतूल हज़रत अली बिन अबी तालिब ## की कुन्नियत 'अबुल हसन' और “अबू तुराब' है। आप हुजूरे अकृदस/#के चचा अबू तालिब के बेटे है आमुल फौल के तीस बरस बाद जब कि हुजुरे अकरमा#/#को उम्र शरीफ तीस बरस की थी १३ रजब को जुमा के दिन हजरते अली # खानए कअबा के अन्दर पैदा हुए। आप की वालिदा माजिदा का नाम हजरत फातिमा बिन्ते असद हे। (&#) आप ने अपने बचपन ही में इस्लाम कूबूल कर लिया था और हुजूरे अस्कम ##£ के जेरे तरबियत हर वक्त आप की इमदाद व नुसरत में लगे रहते थे। आप मुहाजिरीने अव्वलीन और अशरए मुबश्शेरा में अपने कई ख़ुसूसी दरजात के लिहाज से बहुत ज़्यादा, मुमताज़ हैं। जंगे बद्र, जंगे उहुद, जंगे ख़॒न्दक्‌ आदि तमाम इस्लामी लड़ाइयों में अपनी बे पनाह बहादुरी के साथ जंग फरमाते रहे और कुफ़्फारे अरब के बड़े बड़े नामवर बहादुर और सूरमा आप की मुकुद्स तलवार जुल फिकार को मार से मकतूल हुए। अमीरूल मोमिनीन हजरत उस्मान ग़नी&# की शहादत के बाद अन्सार व मुहाजिरीन ने आप के दस्ते हक परस्त पर बैजत करके आप को अमीरूल मोमिनीन चुना और चार बरस आठ माह नो दिन तक आप मस्नदे खिलाफत को सर फ्राज़ फ्रमाते रहे। १७ रमज़ान ४० हिजरी न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा75८वयगशा6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | ॥0[05:॥/8/079५8.0/6/0668/5/6)0808/06_9५॥8 _॥0/8/% करामाते सहाबा 62 68 मकतवा इमामे आज़म को अब्दुररहमान बिन मुल्जिम मरादी खारजी मरदूद ने को अब्दुर्रहमान बिन मुल्ज़िम मरादी खारजी मरदूद ने नमाजे फज् को जाते हुए आप की मुकुददस पेशानी ओर नूरानी चेहरे पर ऐसी तलवार मारी जिस रो आप सख्त तौर पर ज़ख़मी हो गए और दो दिन जिन्दा रह कर जामे श७दत से सेराब हो गए और कुछ किताबों में है कि १९ रमजान जुमा को रात में आप जड़मी हुए और २१ रमजान की रात इतवार आप को शहादत हुई। (वल्लाहु तआला अअलम)आप के बड़े बेटे हज़रत इमाम हसन#9 ने आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और आप को दफन फ्रमाया। (तारीख़ुल ख़ुलफा व एजालतुल खिफा वगैरा) करामात्‌ . कब्र वालों से सवाल जवाब: हज़रत सईद बिन मुसस्यिब&४ कहते है कि हम लोग अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली %#४ के साथ मदीना मुनव्वरा के कृब्रस्तान जन्नतुल बकीअ में गए तो आप ने बढ्रों के सामने खाड़े होकर बआवाजे बलन्द फ्रमाया कि ऐ कब्र वालों अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह! क्‍या तुम लोग अपनी खबरें हमें सुनाओगे या हम तुम लोगों को तुम्हारी ख़बरें सुनाएँ? उस के जवाब में कब्री के अन्दर से आई “वअलैकस्सलाम व रहमतुल्लाह व बरकातहू ' ऐ अमीरूल मोमिनीन आप ही हमें यह सुनाइए कि हमारी मौत के बाद हमारे घरों में क्या क्या मामलात हुए? हज़रत अमीरूल मोमिनीन ने फ्रमाया कि ऐ कब्र वालो! तुम्हारे बाद तुम्हारे घरों की ख़बर यह है कि तुम्हारी बीवियों ने दूसरे लोगों से निकाह कर लिया और तुम्हारे माल व दौलत को तुम्हारे वारिसों ने आपस में तकसीम (बाँट) कर लिया और तुम्हारे छोटे छोटे बच्चे यतीम हो कर दरबदर फिर रहे हैं और तुम्हारे मज़बूत और ऊँचे ऊँचे महलों में तुम्हारे दुश्मन आराम ओर चेन के साथ ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं। उस के जवाब में कुब्रों में से एक मुर्दे की यह दर्द नाक आवाज आई कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! हमारी ख़बर यह है कि हमारे कुफन पुराने होकर ४: +80200. 4७.6... 4/: 25.88. 4५ 2008.8.405% न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 07 _।॥0/0/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४२ 69 मकतवा इमामे आज़म हम ने यहाँ पा लिया है और जो कुछ हम दुनिया में छोड़ आए थे उस में हमें घाटा ही घाटा उठाना पड़ा है। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि 2, स 863) तबसेरा: इस रिवायत से मालूम हुआ कि अल्लाह तबारक व तआला अपने महबूब बन्दों को यह ताकृत व कुदरत अता फ्रमाता है कि कब्र वाले उन के सवालों का बलन्द आवाज से इस तरह जवाब देते हैं कि दूसरे लोग भी सुन लेते हैं। यह कुदरत व ताकृत आम इन्सानों को हासिल नहीं है लोग अपनी आवाज़ें तो मुर्दों को सुना सकते हैं ओर मुर्दे उन की आवाज़ों को सुन भी लेते हैं। मगर कृब्र के अन्दर से मुर्दो की आवाज़ों को सुन लेना यह आम इन्सानों के बस की बात नहीं है बल्कि यह ख़ुदा के खास बन्दों का खास हिस्सा और खासा है जिस को उन की करामत के सिवा और कुछ भी नहीं कहा जा सकता और इस रिवायत से यह भी पता चला कि कब्र वालों का यह इकबाली बयान है कि मरने वाले दुनिया में जो माल व दौलत छोड़ कर मर जाते हैं उस मे मरने वालों के लिए सरा सर घाटा ही घाटा हैं और जिस माल व दौलत को वह मरने से पहले ख़ुदा की राह में खर्च करते हैं वही उन के काम आने वाला है। फालिज वाला अच्छा हो गया: अल्लामा ताजुद्दीन सबकी $% ने अपनी किताब “'तबकात'' में जिक्र फ्रमाया है कि एक मर्तबा अमीरूल मोमिनीन हजरत अली ##अपने दोनों बेटे हज़रत इमाम हसन व इमाम हुसैन ४# के साथ हमें कअबा में हाजिर थे कि बीच रात में अचानक यह सुना कि एक राख़्स बहुत ही गिड़ गिड़ा कर अपनी जरूरत के लिए दुआ मांग रहा है और खूब खूब रो रहा है। आप ने हुक्म दिया कि उस शख्स को मेरे पास लाओ। वह शख्स इस हाल में हाजिरे खिदमत हुआ कि उस के बदन को एक करवट फालिज जदा थी और वह ज़मीन में घसीटता हुआ आप क सामने आया। आप ने उस का किस्सा पूछा तो उस ने अर्ज किया ऐ अमीरूल मललननननननननुनननुननन्॒॒॒॒॒>-ृ एएएछ न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | रूरागाते सहावा दल 7 । । 0 अल /श््फतबा इमामे आजम पिन» मनन न कक कक न न कक कक कक कक कक न न न 9 न न न २ मिस न ससनससससस सट्टा «२७3. दिन रात व्यस्त रहता था और मेरा बाप जो बह॒त ही नेक और पाबन्द शरीअत मुसलमान था बार बार मुझ को टोकता और गुनाहों से मना करता रहता था। मैं ने एक दिन अपने बाप की नसीहत से नाराज होकर उस को मार दिया और मेरी मार खा कर मेरा बाप तकलीफ व गम में डूबा हुआ हर्म कअबा आया और मेरे लिए बद दुआ करने लगा। अभी उस की दुआ ख़त्म भी नहीं हुई थी कि विल्क॒ल ही अचानक मेरी एक करवट पर फालिज का असर होगया और में जमीन पर घिसट कर चलने लगा। इस गेबी सज़ा से मुझे बड़ी इबरत हामिल हुई और में ने रो रो कर अपने बाप से अपने जुर्म की मआफी मांगी और मेरे बाप ने अपनी शफूकते पिदरी (बाप की मुहब्बत) से मजबूर होकर मुझ पर रहम खाया और मुझे मआफ कर दिया और कहा कि बेटा चल! जहाँ में ने तेरे लिए बद दुआ की थी उसी जगह 3, , मैं तेरे लिए सेहत व सलामती की दुआ मांगूगा। चुनान्चे में अपने बाप को ऊँटनी पर सवार करके मक्का मुअज़्ज़मा ला रहा था कि रास्ते में बिल्कुल अचानक ऊँटनी एक मकाम पर बिदक कर भागने लगी और मेरा बाप उस की पीठ पर से गिर कर दो चट्टानों के बीच हलाक हो गया और अब म॑ अकला ही हर्म कअबा में आकर दिन रात रो रो कर ख़ुदा तआला से अपनी तन्दुरूस्ती के लिए दुआएं मांगता रहता हूँ। अमीरूल मोमिनीन ने सारी दास्तान सुन कर फरमाया कि ऐ शख्स! अगर वाकुई तेरा बाप तुझ से ख़ुश हो गया था तो इतमीनान रख कि व्र॒दा वन्दे करीम भी तुझ से खुश हो गया है। उस ने कहा कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! मैं कुसम खा कर कहता हूँ कि मेरा बाप मुझ से खज हो गया था। अमीरूल मोमिनीन हजरत अली %£#8#ने उस शख्स ४ हालत पर रहम खा कर उस का तसलल्‍ली दी और चन्द्‌ रकअत नमाज पढ़ कर उस की तलन्दुरूस्ती के लिए दुआ मांगी। फिर फरमाया ऐ शख्स उठ खड़ा हो जा। यह सुनते ही वह बिला तकल्लुफ उठ कर त्रड़ा हो गया और चलने लगा। आप ने फ्रमाया कि ऐ शख्स! अगर है कसम जा का जद न के होती मी गा गा का न कं हक 5 56व7606 ५शशंगरा एद्वा75टवया6/ [[05://.876/5 7 _।॥0 08५ कम [[[05:/9/079५8.0/0/089|5/(008/088706_30७॥9_॥0/9/%५ मकतवा इमामे आज़म ज्ण्ण्ययकि करामाते सहावा ६ गया था तो में हरगिज़ तेरे लिए दुआ न करता। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि 2, स 8635) गिरती हुई दीवार थम गई: हज़रत इमाम जाफर सादिक &&ब्यान करते हैं कि एक मर्तबा अमीरूल मोमिनीन हजरत अली&#&णक़ दीवार क साए म॑ एक मुकद्दमा का फसला फ्रमाने के लिए बठ गए। मुकच्मा के बीच में लोगों ने शोर मचाया कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! यहाँ से उठ जाइए यह दीवार गिर रही है। आप ने निहायत सुकून व इत्मीनान के साथ फरमाया कि मुकद्यमा की कारवाई जारी रखो। अल्लाह तआला बेहतरीन हाफिज व मददगार व देखने वाला है। चुनान्चे इत्मीनान के साथ आप इस मुकद्मा का फैसला फ्रमा कर जब वहाँ से चल दिए तो फौरन ही वह दीवार गिर गई। (इजालतुल खिफा मकसद 2, स 275) तबसेरा: यह रिवायत इस बात को दलील हे कि ख़ुदा बन्द कुद्दूस अपने ओऔलिया-ए-किराम को ऐसी ऐसी रूहानी ताक॒तें अता फरमाता है कि उन के इशारों से गिरती हुई दीवारें तो क्‍या चीज हैं बहते हुए दरियाओं की रवानी भी ठहर जाती है। सच है। कोई अन्दाजा कर सकता है उस्‌ के जोर बाजू का निगाहे मर्दे मोमिव से बदल जाती हैं तकुदीरे आपको झूठा कहने वाला अंधा हो गया: अली बिन जाजान का बयान है कि अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली :४४ने एक मर्तबा कोई बात इरशाद फरमाई तो एक बद नसीब ने निहायत ही बे बाकी के साथ यह कह दिया कि एऐ अमीरूल मोमिनीन आप झूठे हैं। आप ने फरमाया कि ऐ शख्स! अगर में सच्चा हैँ तो जरूर त्‌ अजाबे इलाही में गिरफ्तार हो जाए गा। इस गुस्ताख़ ने कह दिया कि आप मेरे लिए बद्‌ दुआ कर दीजिए। मुझे उस को परवा नहीं है उस के मुँह से उन अलफाज का निकलना था कि बिलकुल ही अचानक वह शख्स दोनों आँखों का अंधा हो गया और इधर उधर हाथ पावं मारने लगा। (इजालतुल खिफा मक्सद 2, स 275) न कं हद 56व7606 ५शशंगरा एद्वा75टवया6/ [[05:/॥.776/50॥॥_॥|॥॥0॥09//9५ कम करामाते कर; ५७७७४७छ७&ंआ #+ [2809/776_30॥9 _॥० भैरवितवा आजम रामाते सहावा 6 2 57 7 अकक्‍तवा इमामे आज ७००७«ःबबबबबबबबबबब>बब०--०----ननगन-ऊ-«कमव नमन» +++ मम» +++म «मनन कप न भ भा च झा ाचचचचसससससस्मग्ू््ट्::-+--क्‍.क्‍-पपफमर्स-/ईाा््फऊफःउउअ क्‍ल्-्- चड-_चक्‍_च 4 कऋ कौन कहाँ मरेगा और कहाँ दफन होगा ?: हज़रत असबअ&#£कहते हैं कि हम लोग एक मर्तबा अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली £9 के साथ सफर में मैदाने करबला के अन्दर ठीक उस जगह पहुँचे जहाँ आज हजरत इमाम हुसैन #£की कुत्रे अनवर बनी हुई है तो आप ने फ्रमाया कि उस जगह आगे जमाने में एक आले रसूल (४##) का काफिला ठहरे गा और इस जगह उन के ऊंट बंधे हुए होगे। और इसी मैदान में जवानाने अहले बैत की शहादत होगी और इसी जगह उन शहीदों का मदफन बने गा और उन लोगों पर आसमान व जमीन रोएगे। (इजालतुल खिफा मकुसद 2,स2735 बहवाला अल-रियाजुन्नसरह) तबसेरा: रिवायत बाला से पता चलता है कि औलिया अल्लाह को कश्फ के जरिए बरसों बाद होने वाले वाकिआत और लोगों के हालात यहाँ तक कि लोगों की मौत और मदफन की कैफियात का इल्म हासिल हो जाता है और यह हकीकृत में इल्मे गैब है जो अल्लाह तआला क अता फरमाने से औलिया-ए-किराम को हासिल हुआ करता है और यह औलिया-ए-किराम की करामत हुआ करती है। फ्रिश्तों ने चक्की चलाई: हज़रत अबूज़र गिफारी #£का बयान है कि हुजूरे अक्दस/#/ने मुझे हज़रत अली#£को बुलाने के लिए उन के मकान पर भेजा तो मैं ने वहाँ यह देखा कि उन के घर में चक्की बेगैर किसी चलाने वाले के ख़ुद ब ख़ुद चल रही है। | जब में ने बारगाहे रिसालत में इस अजीब करामत का तज्किरा किया तो हुजूर अक्दसा#&/४ने इरशाद फरमाया कि ऐ अबू जर! अल्लाह तआला के कुछ फरिश्ते ऐसे भी हैं जो जमीन में सैर करते रहते हैं। अल्लाह तआला ने उन फरिश्तों की यह भी डियुटी फ्रमा दी है कि वह मेरे आल की इमदाद्‌ व इआनत करते रहें। | (इजालतुल खिफा मकसद 2, स 275) तबसेरा: इस रिवायत से यह सबक मिलता है कि हुजूरे अकरम £#0को आले पाक को बारगाहे ख़ुदावन्दी में इस कृदर कुर्ब और मक्‌बूलियत हासिल है कि अल्लाह तआला ने कुछ फरिश्तों को उन न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869|9/62/098099776_30७॥9_॥0/3/%५ मकतवा इमामे आज़म की इमदाद्‌ व नुसरत और जरूरत पूरी करने के लिए खास तौर पर मुक्रर फरमा दिया है। यह शर्फ हज़राते अहले बैत को हुजूरे अकृदस &##की निस्बत की वजह से हासिल हुआ हेै। सुब्हानललाह! सुलताने मदीना/£#को इज़्ज़्त व अज़मत और उन के वकार व इकतेदार का क्या कहना? कि आप के घर वालों की चक्की फरिश्ते चलाया करते थे। में कब वफात पाऊंगा?: हज़रत फुज़ाला बिन फुज़ाला &£ इरशाद फ्रमाते हैं कि एक मर्तबा अमीरूल मोमिनीन हजरत अली 5४ मकामे “०४.” में बहुत सख्त बीमार हो गए तो में अपने वालिद के साथ उन को अयादत (मरीज को के लिए जाना) के लिए गया। बात चीत के दोरान मेरे बालिद ने अर्ज़ किया ऐ अमीरूल मोमिनीन! आप इस वक्त ऐसी जगह बीमारी की हालत में ठहरे हैं। अगर इस जगह आप की वफात हो गई तो कूबीलए (५.६०) ''जहीनिया'' के गंवारों के सिवा और कौन आप की तजहीज व तकफीन करेगा? इस लिए मेरी गुजारिश है कि आप मदीना मुनव्वरा तशरीफ्‌ ले चलें क्‍यों कि वहाँ अगर यह हादसा हुआ तो वहाँ आप के जाँ निसार मुहाजिरीन व अन्सार और दूसरे मुकृद्सस सहाबा आप की नमाजे जनाज़ा पढ़ेंगे और यह मुकदस हस्तियाँ आप के कुफून व दफन का इन्तज़ाम करेंगी। यह सुन कर आप ने फरमाया ऐ फुज़ाला! तुम इत्मीनान रखो कि में अपनी इस बीमारी में हरगिज़ हरगिज़ वफात नहीं पाऊंगा। सुन लो उस वक्त तक हरगिज हरगिज़ मेरी मौत नहीं आ सकती जब तक कि मुझे तलवार मार कर मेरी इस पेशानी और दाढ़ी को ख़ून से रंगीन न कर दिया जाए। (इजालतुल खिफा मक्सद 2, स 275) तबसेरा: चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि बद बख्ठत अब्दुर्र्रमान बिन मुल्जिम मुरादी ख़ारजी ने आप की मुकृदस पेशानी पर तलवार चला दी जो आप की पेशानी को काटती हुई जबड़े तक मिल गई। उस वक्‍त आप की जबाने मुबारक से यह जुम्ला अदा हुआ &-... ०3५ 4५»९ ॥(यअनी कअबा के रब की कुसम! कि मैं कामयाब होगया) उस जख्म में आप शहादत के शर्फ से सरफ्राज़ हो गए और आप ने विश शक्ल ।न4॥4॥4+++य__335<22< 42322 22 2:>> नचनष्णन्ननन्न्]हम्]ूञूू;ममनननननन््ग्स्न्न््सि करामाते सहावा &? न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | कराराते सहाया आर ://8/0०॥9५९७. ०9/094/३([2 [2809/76_80॥9 _॥ अक्तिया इमामे आजम न्‍ किन जनन-मननननमन--ना-जनननमम-म- |... ममन--ममममासमान-.. 2. क्कनसकनरनतकक- व मख़ ि़ थअचि?्??ि??़€ ञ़़ ्ञसल्््अख््थ्यआओओओ22ण2््््िफिडििॉित पास कम नमक ह-+++>«>>+_»>नन-----__**।६३ल्‍' ००० मा नर्स आआआेएएएए॒॑नन्‍--छछछछछछछसाशआआााेनणननणछणछणछणछछ-॑ाछछछाानलनलालाशशाशशशशशशशशशशओशओस्‍ओस्‍ओछश"""ऋ("(|"(|----छ नाना हजरत फज़ाला # से मकामे «;४,में जो फरमाया था वह हर्फ बहफं सहीह हो कर रहा। क्‍ दुर्रे ख़ैबर का वजन: जंगे खबर में जब घमसान की जंग होने लगी तो हज़रत अली &४ की ढाल कट कर गिर पड़ी तो आप ने जोशे जिहाद में आगे बढ कर किला का फाटक उखाड़ डाला और उस के एक किवाड़ का ढाल बना कर उस पर दुश्मनों की तलवारों को रोकते थे। यह किवाड़ इतना भारी और वजनी था कि जंग के में के बाद चालीस आदमी मिल कर भी उस को न उठा सके। (जरकानी जि 2, स 2350) तबसेरा: क्या फातेहे ख़ैबर के उस कारनामे को इन्सानी ताकत की कार गुज़ारी कहा जा सकता है? हरगिज़ हरगिज़ नहीं। यह इन्सानी ताकत का कारनामा नहीं है। बल्कि यह रूहानी ताकत का एक कारनामा हे जो सिर्फ अल्लाह वालों ही का हिस्सा है जिस को आम तौर पर करामत कहा जाता है। कटा हुआ हाथ जोड़ दिया: रिवायत है कि एक हबशी गुलाम जो अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली #£का इन्तहाई मुख्लिस आशिक था। बद किस्मती से उए' ने एक मर्तबा चोरी कर ली। लोगों ने उस को पकड़ कर दरबारे ख़िलाफत में पेश कर दिया और गुलाम ने अपने जुर्म का इक्रार भी कर लिया। अमीरूल मोमिनीन हजरते अली :/9ने उस का हाथ काट दिया। जब वह अपने घर को रवाना हुआ तो रास्ता में हजरत सलमान फारसी #&£?और इब्नुल करा से उस की मुलाकात हो गई इब्नुल करा ने पूछा कि तुम्हारा हाथ किस ने काटा? तो गुलाम ने कहा अमीरूल मोमिनीन व यअसूबुल मुस्लमीन दामादे रसूल व जोजए बतूल ने। इब्नुल करा ने कहा कि हज़रत अली &9ने तुम्हारा हाथ काट डाला फिर भी तुम इस कृदर एजाज व इकराम और तअरीफ व सना के साथ उन का नाम लेते हो? गुलाम ने कहा कि क्या हुआ? उन्हों ने हक्‌ पर मेरा हाथ काटा और मुझे अज़ाबे जहन्नम से बचा लिया। हज़रत सलमान फारसी ने दोनों की बात सुनी और न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥0 08५ कम करामाते सहावा अडी8 ://8/079५७ जी नल जो व ॥8_]|| अकतवा डमामे आजम अमीरूल मोमिनीन हजरत अली&9से उस का तज़्किरा किया तो अमीरूल मोमिनीन ने उस गुलाम को बुलवा कर उस का कटा हुआ हाथ उस को कलाई पर रख कर रूमाल से छुपा दिया। फिर कछ पढ़ना शुरू कर दिया। इतने में एक गैबी आवाज़ आई कि रूमाल हटाओ जब लोगों ने रूमाल हटाया तो गुलाम का कटा हुआ हाथ इस तरह कलाई से जुट गया था कि कहीं कटने का निशान भी नहीं था। (तफ्सीरे कबीर जि 5, स 479) शोहर औरत का बेटा निकला: अमीरूल मोमिनीन हजरत अली&9 के घर से कुछ दूर एक मस्जिद के पहलू में दो मियाँ बीवी रात भर झगड़ा करते रहे। सुबह को अमीरूल मोमिनीन ने दोनों को बुला कर झगड़े का सबब पूछा। शौहर ने अर्ज़ किया ऐ अमीरूल मोमिनीन! में क्‍या करू? निकाह के बाद मुझे इस औरत से बे इन्तेहा नफरत हो गई। यह देखे कर बीवी मुझे से झगड़ा करने लगी। फिर बात बढ़ गई और रात भर लडाई होती रही। आप ने तमाम दरबारियों को बाहर निकाल दिया और ओरत से फरमाया कि देख में तुझ से जो सवाल करू उस का सच सच जवाब देना। फिर आप ने फरमाया कि ऐ औरत! तेरा नाम यह हैं तेरे बाप का नाम यह है। औरत ने कहा कि बिल्कुल ठीक ठीक आप ने बताया। फिर आप ने फरमाया कि ऐ औरत! तू याद कर कि तो ज़िना कारी से हामला हो गई थी। और एक मुद्दत तक तू और तेरी माँ इस हमल को छुपाती रही। जब पेट का दर्द शुरू हुआ तो तेरी माँ तुझे उस घर स॑ बाहर ले गई और जब बच्चा पैदा हुआ तो उस को एक कपड़े से लपेट कर तू ने मैदान में डाल दिया। इत्तेफाक से एक कुत्ता उस बच्चे के पास आया तेरी मां ने उस कुत्ते को पत्थर मारा लेकिन वह पत्थर बच्चे को लगा और उसका सिर फट गया तो तेरी माँ को बच्चे पर रहम आ गया और उसने बच्चे के जख्म पर पटटी बाँधी फिर तुम दोनों वहाँ से भाग खड़ी हुई। उसके बाद उस बच्चे की तुम दोनों को कुछ भी ख़बर नही मिली कया यह वाकिआ सच है? औरत ने कहा कि हाँ ऐ अमीरूल न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]56वया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [05:॥/8/07५७.0०00/0७9/5/6)8/99/708_80७॥8_॥09/8/9 करामाते सहावा ४? 76 मकतवा इमामे आज़म मोमिनीन! यह पूरा वाकिआ हफ बहर्फ सही है। फिर आप ने फरमाया कि ऐ मर्द! तू अपना सर खोल कर उस को दिखा दे। मर्द ने सर खोला तो उस जख्म का निशान मौजूद था। उस के बाद अमीरूल मोमिनीन ने फ्रमाया कि एऐ औरत!यह मर्द तेरा शौहर नहीं हे बल्कि तेरा बेटा है तुम दोनों अल्लाह तआला का शुक अदा करो कि उस ने तुम दोनों को हराम कारी से बचा लिया। अब तू अपने इस बेटे को ले कर अपने घर चली जा। (शवाहिदुन्नबूवा स64) तबसेरा: ऊपर की दानों मुस्तनद करामतों का बगौर पढ़िए और ईमान रखिए कि ख़ुदावन्दे कुददूस के औलिया एर-5राम आम इन्सानों की तरह नहीं हुआ करते बल्कि अल्लाह तआल' अपने उन महबूब बन्दों को ऐसे ऐसे रूहानी ताकुतों का बादशाह बल्कि शहंशाह बना देता है कि उन बुजुर्गों के कब्जे और उन की रूहानी ताकृतों और कदरतों क बुलन्द मर्तबं तक किसी बड़े से बड़े फलसफी की अकुल व फूहम की भी रसाई नहीं हो सकती । ख़ुदा की कसम! में हैरान हूँ कि कितने बड़े जाहिल या मुतजाहिल है वह लाग जा ओलिया-ए-किराम का बिल्कुल अपने ही जैसा मुल्ला समझ कर उन क साथ बराबरी का दअवा करते हैं और ओऔलिया -ए-किराम की ताकृत का चिल्ला चिल्ला कर इन्कार करते फिरते हैं। तअज्जुब है कि ऐसे ऐसे वाकिआत जो नरे हिदायत के च'॑ँद तारे हैं। उन मुन्किरों की निगाह से अभी तक औझल ही हैं। मगर उस में कोई तअज्जुब की बात नहीं जो दोनों हाथों से अपनी आँखों को बन्द करले उस को चाँद सितारे तो क्या सूरज की रोशनी भी नजर नहीं आ सकती। हकीकत में औलिया-ए-किराम क न मानने वालों का यही हाल हे। जरा सी देर में कुरआन मजीद खत्म कर लेते: यह करामत सही रिवायात से साबित हे कि आप घोड़े पर सवार होते वक्‍त एक पैर रकाब में रखते और करआन मजीद शुरू करते और दूसरा पैर रकाब में रख कर घोड़े की जीन पर बैठने तक इतनी देर में एक करआन मजीद ख़त्म कर लिया करत थ। (शवाहिदुन्नबुवा स 60) 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0/0/9॥५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6208099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 8२ हा मकक्‍तवा इमामे आज़म इशारे से दरिया की तुगयानी खत्म: एक मर्तबा नहरे फरात में ऐसी खौफनाक तुग़यानी (उबाल) आ गई कि सैलाब में तमाम खेतियाँ डुब गई लोगों ने आप के दरबार में फ्रियाद की। आप फौरन ही उठ खड़े हुए और रसूलुल्लाह#४४# का जुब्बा मुबारका व अमामा पहन कर घोड़े पर सवार हुए और आदमियों की एक जमाअत जिस में हज़रत इमाम हसन व इमाम हुसेन## भी थे आप के साथ चल पड़े। आप ने पुल पर पहुँच कर अपने छड़ी से नहरे फुरात की तरफ इशारा किया तो नहर का पानी एक गज कम हो गया। फिर दूसरी मर्तबा इशारा फरमाया तो और एक गज़ कम हो गया। जब तीसरी बार इशारा किया तो तीन गज पानी उतर गया। और सैलाब ख़त्म हो गया। लोगों ने शोर मचाया कि अमीरूल मोमिनीन! बस कीजिए यही काफो है। द (शवाहिदुन्नबुवा स 62) जासूस अंधा हो गया:एक शख्स आप ##के पास रहकर जासूसी किया करता था और आप ५४४ की खुफिया खूबरें आप क मुखालिफीन को पहुंचाया करता था। आप &£ ने जब उस से दरियाफ्त फरमाया _तो वह शख्स कसमें खाने लगा और अपनी बरात जाहिर करने लगा। आपने जलाल में आकर फरमाया कि अगर तू झूठा है तो अल्लाह तआला तेरी आंखों की रौशनी छीन ले। एक हफ्ता भी नहीं गुज़रा था कि यह शख्स अंधा हो गया,और लोग उसको लाठी पकड़ कर चलाने लगे। (शवाहिदुन्नुबूचह स67) तुम्हारी मौत किस तरह होगी ?: एक शख्स आप की खिदम अकदस में हाजिर हुआ तो आप ने उस को उस क हालात बता कर यह बताया कि तुम को फलाँ खुजूर के पेड़ पर फांसी दी जाएगी। चुनान्वे उस शख़्स के बारे में जो कुछ आप ने फ्रमाया था वह हर्फ बहर्फ दुरूसत निकला और आप कौ पेश गोई पूरी होकर रही। (शवाहिदुन्नबुवा स62 पत्थर उठाया तो पानी का चश्मा उबल पड़ा: मकामे सफोन को जाते हुए आप का लश्कर एक ऐसे मैदान से गुजरा जहां जाते हुए आप का लश्कर एक ऐसे मैदान से गुजरा जहाँ पानी नह वा। नहीं था। 2 33 आस व पर अपन पकने न नल न कं हद 56व7606 ५शशंगा एद्वा75टवयगशा6/ [[05://.क्‍06/5 07॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/089/|5/62009099/76_830७॥|॥9_॥0/9/% करामाते सहावा ४४ 78 मकक्‍तवा इमामे आजम पूरा लश्कर प्यास की सख्ती से बे ताब हो गया। वहाँ के गिरजा घर में एक राहिब रहता था। उस ने बताया कि यहाँ से दो कोस की दूरी पर पानी मिल सकंगा। कुछ लोगों ने इजाज़त तलब की ताकि वहाँ से जाकर पानी पिएँ। यह सुन कर आप अपने खु॒च्चर पर सवार होगए और एक जगह की तरफ इशारा फ्रमाया कि उस जगह तुम लोग जमीन को खोदो। चुनान्चे लोगों ने ज़मीन की खुदाई शुरू कर दी। तो एक पत्थर ज़ाहिर हुआ। लोगों ने उस पत्थर को निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन तमाम औज़ार बेकार हो गए। और वह पत्थर न निकल सका। यह देख कर आप को गुस्सा आ गया और आप ने अपनी सवारी से उतर कर आसतीन चढ़ाई और दोनों हाथों की उंगलियों को उस पत्थ्र की दराड़ में डाल कर जोर लगाया। तो वह पत्थर निकल पड़ा और उस के नीचे से एक निहायत ही साफ्‌ सुथरा ओर मीठा पानी का चश्मा जाहिर हो गया और तमाम लश्कर उस पानी से सैराब होगया। लोगों ने अपने जानवरों को भी पिलाया और लश्कर को तमाम मश्कों को भी भर लिया। फिर आप चे उस पत्थर को उस को जगह पर रख दिया। गिरजा घर का ईसाई पादरी आप की यह करामत देख कर सामने आया और आप से पुछा कि क्‍या आप फरिश्ता हैं? आप ने कहा! नहीं। उस ने पूछा! क्या आप नबी हैं? आप ने फ्रमाया! नहीं। उस ने कहा! फिर आप क्‍या हैं? आप ने फरमाया में पेगम्बरे मुरसिल हजरत मुहम्मद बिन अब्दल्लाह खातिमुन्नबीईन /## का सहाबी हूँ और मुझ को हुजूरे अकृदस/&?ने चन्द बातों की वसियत भी फ्रमाई है। यह सुन कर वह ईसाई राहिब कलमा शरीफ पढ़ कर मुशर्रफ ब इस्लाम हो गया। आप ने फरमाया! तुम ने इतनी मुद्दत तक इस्लाम क्‍यों कबूल नहीं किया था? राहिब ने कहा कि हमारी किताबों में यह लिखा हुआ है कि इस गिरजा घर के क्रीब जो एक चश्मा छुपा है उस चश्मे को वह शख्स जाहिर करेगा जो या तो चबी होगा या नबी का सहाबी होगा। चुनान्चे मैं और मुझ से पहले बहुत से पादरी इस गिरजा घर न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | करामाते सहावा शक /वाणा५०.० ०० 406 7१५०7० १५१ १ तबा इमामे आजम इसी इन्तजार में मुकीम रहे। अब आज आप ने यह चश्मा जाहिर कर दिया। तो मेरी मुराद पुरी हो गई। इस लिए मैं ने आप क॑ दीन को कबूल कर लिया। राहिब की तक्रीर सुन कर आप रो पड़े और इस कदर रोए कि आप की दाढ़ी मुबारक आंसूओं से भीग गई और फिर आप ने इरशाद फ्रमाया। अलहम्दु लिल्‍लाह कि उन लागों को कैताबों में भी मेरा जिक है। यह राहिब मुसलमान होकर आप क खादिमों में शामिल हो गया और आप के लश्कर में दाखिल होकर शामियों से जंग करते हुए शहीद हो गया और आप ने उस को अपने दस्ते मुबारक से दफन किया और उस के लिए बख्शिश को दुआ फ्रमाई। (शवाहिदुन्नबुवा स 64) हजरत तलहा बिन उबैदुल्लाह ## आप का नाम नामी भी अशरह मुबश्शेरह की फेहरिस्ते गिरामी में है। मक्का मुकर्रमा के अन्दर खानदाने कुरैश में आप को पैदाइश हुई। माँ बाप ने '“'तलहा'' नाम रखा मगर दरबारे नुबुवत से उन को '“फय्याज'' व ''जव्वाद'' व खेर के मुअज़्ज्ज अलकाब अता हुउ। यह जमाअते सहाबा में से पहले ईमान लाने वाले की लाइन में हैं। उन के इस्लाम लाने का वाकिआ यह है कि यह तिजारत क लिए बसरा गए तो वहाँ के एक ईसाई पादरी ने उन से दरयाफ़्त किया कि क्या मक्का में '' अहमद नबी'' पैदा हो चुक हैं? उन्होंने हैगान होकर पूछा! कौन “अहमद नबी ? पादरी ने कहा। :* अहमद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब वह नबी आखिरूज्जमा हैं और उन की नुबुब॒त के जहूर का यही जमाना है। - और उन की पहचान का निशान यह है कि वह मक्का मुकर्मा हे पैदा होंगे और खुजरों वाले शहर (मदीना मुनव्वरा) कौ तरफ हिजरत करग। चूँकि उस वक्‍त तक हुजूरे अकरम£ ने अपनी नुबुवत का ऐलान नहीं फरमाया था। इस लिए हजरत तलहा ##ने पादरी को नबी जमाँ खातिमननबीईन/#“के बारे में कोई जवाब न दे सके। थ कं हद 5 56व7606 ५शशाग एद्वा50वयगशा6ह [[05://.86/5 07 ।॥॥009/8५ आ [[05:/9/07५७.0/0/089/5/(9[08/088706_30७॥9_॥0/9/%५ ( करामाते सहाबा 80 मक्तवा इमामे आजम लेकिन बसरा से मक्का मुअज़्ज़्मा आने के बाद जब उन को पता चला कि हुजूरे अकरम##ने अपनी नुबुवत का ऐलान फरमा दिया है तो यह हज़रत अबू बकर सिद्दोक्‌#2 के साथ बारगाहे नुब॒ुवत में हाजिर होकर मुशर्रफ ब इस्लाम हुए। कुफ़्फार मक्का ने उन को बे हद सताया और रस्सी में बांध कर उन का मारते रह मगर यह पहाड़ की तरह दीने इस्लाम पर जमे रहे। फिर हिजरत करके मदीना मुनव्वरा चले गए ओर जंगे बद्र के सिवा तमाम इस्लामा जगा म॑ कुफ़्फार से लड़ते रहे। जंगे बद्र में उन की गैर हाज़िरे का यह सबब हुआ कि हुजूरे अकृदस/&#ने उन को और हज़रत सईद बिन जैद#9को अबू सुफ्यान के काफिला की तलाश में भंज दिया था। अबू सुफयान का काफिला समंद्र के किनारे के रास्ते से मक्का मुकरमा चला गया और यह दोनों हज़रात जब लौट कर मैदाने बद्र म॑ पहुंच तो जंग खूत्म हो चुकी थी। जगे उहुद म॑ उन्होंने बड़ी ही जाँ बाजी और सर फरोशी का मुजाहिरा किया। हुजूरे अक्दस/&को कफ़्फार के हमलों से बचाने में चूंकि यह तलवार ओर नेज़ों की बौछाड़ को अपने हाथ पर रोकते रहे। इस लिए आप की उंगली कट गई और हाथ बिल्कल बेकार हो गया ता आर उन क बदन पर तीर व तलवार और नेज़ों के पच्त्तर (75) जख्म लगे। उन क फजाइल व मनाकिब में चन्द हदीसें भी वारिद हुई है। जगे उहुद के दिन जब जंग रूक जाने के बाद हुजूरे अकरम “४ पट्टान पर चढ़ने लगे तो लोहे की जिरा के बोझ की वजह से चट्टान पर चढ़ना दुश्वार हो गया। उस वक़्त हज़रत तलहा :४9बैठ गए और उन के बदन के ऊपर से गुज़र कर हुज्रे अकरम #9 चट्टान पर चढ़े और खुश होकर फ्रमाया! 4« ॥+ _. - ॥(यअनी तलहा ने अपने लिए जन्नत वाजिब कर ली।) (मिश्कात स 566) इसी तरह हुजूरे अकरम/##ने यह भी फ्रमाया! ज़मीन पर चलता फिरता शहीद '“तलहा'' है। (कजुल उम्माल ज़ि 42, स 275, मतबूआ हैदराबाद) न कर हक 5 56व7606 ५शशंगा एद्वा75टवयगा6/ [05://.क्‍06/5 7॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62029809776_830७॥9_॥2/9/%५ करामाते सहावा 2: 8] मकक्‍तवा इडमामे आजम 20 जमादिल आखिर 26 हिजरी में जंगे जमल के दौरान आप को एक तीर लगा और आप चौंसठ (64) बरस की उम्र में शहादत से सरफराज़ हुए। (अकमाल स॒ 604, अशरणए मुबश्शेरह स॒ 245) क्रामत्‌ एक कब्र से दूसरी कृब्र में: शहादत के बाद आप को बसरा के करीब दफन कर दिया गया मगर जिस मकाम पर आप की कब्र शरीफ बनी वह गढ़े में था। इस लिए कृुबत्र मुबारक कभी कभी पानी में डूब जाती थी। आप ने एक शख्स को बार बार ख़्वाब में आकर अपनी कब्र बदलने का हुक्म दिया। चुनान्चे उस शख्स ने हंज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास #9$ से अपना ख़्वाब बयान किया तो आप ने दस हज़ार दिरिहम में एक सहाबी का मकान ख़ूरीद कर उस में कब्र खोदी और हज़रत तलहा&9 की मुकृदस लाश को पुरानी कब्र में से निकाल कर उस कब्र में दफन कर दिया। काफी मुद्दत गुज़र जाने के बावजूद आप का मुकृदस जिस्म सलामत और बिल्कुल ही तरो ताज़ा था। .._ (किताब अशरणए मुबश्शेरा स 245) तबसेरा: गोर फ्रमाइए कि कच्ची कृब्र जो पानी में डूबी रहती थी एक मुद्दत गुज़र जाने के बावजूद एक वली और शहीद की लाश ख़राब नहीं हुई। जो हज़॒रात अंबिया/#£खास कर हुजूर सैय्यदुल अंबिया/#&#के मुकृदस जिस्म को कृब्र की मिट्टी भला किस तरह खराब् कर सकती है? यही वजह है कि हुजूरे अकरम/&/ने इरशाद फरमाया १५१३४... (0 5८ (०.४ | (५.० ५-- (.॥ ८|(मिश्कात स 424) (यअनी अल्लाह तआला ने अंबिया#£के जिस्मों को ज़मीन पर हराम फरमा दिया है कि ज़मीन उन को कभी खा नहीं सकती।) इसी तरह इस रिवायत से इस मसला पर भी रोशनी पड़ती हे कि शोहदा-ए-किराम अपने जिन्दगी की जरूरतों के साथ अपनी अपनी बब्रों में जिन्दा हैं क्यों कि अगर वह जिन्दा न होते तो कब्र में पानी भर जाने से उन को क्‍या तकलीफ होती? उसी तरह इस 43८७७ 33333 कक कक कक क कर र ो पर र कप ७3७ कक तरस ेाऑाऑाऑाा ा झ ि्च अत ूएए़ ह नाननााणणणणणााममनानानानानानानानानानन५ “रा ाााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााककत० "राणा पा"... न कं हद 56व7606 ५शशंग्रा एद्वा)5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/089/|5/6209809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते राहावा (९ 82 मकक्‍तवा इमामे आज़म रिवायत से यह भी मालूम हुआ कि शुहदा-ए-किराम ख़्वाब में आकर जिन्दों को अपने हालात व केफियात से बा खबर करते रहते हैं। क्योंकि ख़ुद, तआला ने उन को यह कुदरत अता फरमाई है कि वह ख़्वाब या बेदारी में अपनी कुब्रों से निकल कर ज़िन्दों से मुलाकात और बात कर सकते हैं। अब गोर फरमाहए कि जब शहीदों का यह हाल है ओर उन को जिस्मानी जिन्दगी की यह शान है तो फिर हज़रात अंबिया-ए-किराम/£खास कर उुजुर सैय्यदुल अंबिया /£#की जिस्मानी जिन्दगी और उन का कब्जा और उन के इख्तियार व इकृतदार का क्‍या आलम होगा? गोर फरमाइए कि वहाबियों के पेशवा मोलवी इस्माईल देहलवी ने अपनी किताब तक्‌वियतुल ईमान में यह मज़मून लिख कर कि “'हुजूरे अकरम#&#मर कर मिट्टी में मिल गए।'' (नठजुबिल्लाह) कितना बड़ा जुर्म और बहुत बड़ा जुल्म किया है। अल्लाहु अकबर! उन बे अदबों और गुस्ताखों ने अपने नोके कुलम से रसूल के आशिकों के दिलों को किस तरह मजरूह व जख्मी किया है उस को बयान करने के लिए , हमारे पास अलफाज नहीं हैं। 05:।)3 2 ++ 9७) ७८.०) ०0॥ ७ हज़रत जुबूर बिन अव्याम #£ यह हुजूरे अकृदस##को फूफी सफिया#४ के बेटे हैं। इस लिए यह रिश्ता में शहंशाहे मदीना&&7के फूफी जाद भाई और हजरत सैय्यदा ख़दीजा£&? के भतीजे और हज़रत अबू बकर सिद्दीक £9 के दामाद हैं। यह भी अशरे मुबश्शोेरा यअनी उन दस खझ़ाश नसीब सहाबा-ए-किराम में से हैं जिन को हुजूरे अकरमा&/“ने दुनिया ही में जनन्‍्नती होने की खुशख़बरी सुनाई। बहुत ही बलन्द कामत, गोरे और छरेरे बदन के आदमी थे ओर अपनी वालिदा माजिदा की बेहतरीन तरबियत की बदौलत बचपन ही से निडर, मेहनती, बलन्द हौसला और निहायत ही पक्के इरादे और न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥॥_।॥0 0/9/५ | ॥[05:॥/8/079५8.0/5/0698/5/6)0808/76_9५॥8 _॥0/8/9 त्च्चचतयतछझ£ ल्‍ $3 ॒ गक्‍तवा इमामे आज़म किक 83 मक्‍तवा इमामे आज़म बहादुर थे। सोलह बरस की उम्र में उस वक्त इस्लाम कबूल किया जब कि अभी छ (6) या सात (7) आदमी ही इस्लाम लाए हुए थे। तमाम इस्लामी लड़ाइयों में अरब के बहादुरों के मकाबले में आप ने जिस मुजाहिदाना बहादुरी का मुजाहिरा किया तवारीख़े जंग में उस की मिसाल मिलनी मुश्किल है। आप जिस तरफ तलवार लेकर बढ़ते कुफ़्फार क परे के परे काट कर रख देते। आप को हजूरे अकदस/&ने जंगे खुंदक के दिन ''हवारी'' (मुख़िलिस व जा निसार दोस्त) का खिताब अता फरमाया। आप जंगे जुमल से बेज़ार होकर वापस तशरीफ ले जा रहे थे कि अम्र बिन जरमोज़ ने आप को धोका दे कर शहीद कर दिया। शहादत के समय आप को उम्र शरीफ्‌ चौंसठ (64) बरस की थी। सन्‌ 36 हिजरी में सफवान में आप की शहादत हुई। पहले यह “वादी अलसबाअ"'' में दफन किए गए मगर फिर लोगों ने उन की मुकूदस लाश को कब्र से निकाला और पूरे इज्जत व एहतेराम के साथ लाकर आप को शहर बसरा में सुपुर्दे खाक किया जहाँ आप की कब्र शरीफ मरहूर ज़ियारत गाह है। (अकमाल स॒ 595 वगैरा) क्रामात्‌ बा करामत बरछी: जंगे बद्र में सईद बिन आस का बेटा “उबैद'' सर से पावों तक लोहे का लिबास पहने हुए क॒फ़्फार की जमाअत में से निकला और निहायत ही घमन्ड ओर गुरूर से यह बोला कि ऐ मुसलमानो! सुन लो कि मैं “अबू करश'' हूँ। उस की यह घमन्डी ललकार सुन कर हज़रत जुबेर बिन अव्वाम ##£जोशे जिहाद में भरे हुए काबले के लिए अपनी सफ से निकले मगर यह देखा कि उस की दोनों आँखों के सिवा उस के बदन का कोई हिस्सा ऐसा नहीं है जो लोहे में छपा हुआ न हो। आप ने ताक कर उस की आँख में इस जोर से बरछी मारी कि बरछी उस की आँख को छेदती हुई खोपड़ी की न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 07 ।॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा 62 84 मक्‍तबा इमामे आज़म हड्डी में चुभ गई और वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिरा और फोरन हो मर गया। हज़रत जुबैर&/ने जब उस की लाश पर पावों रख कर पुरी ताकत से बरछी को खींचा तो बड़ी मुश्किल से बरछी निकली। लेकिन बरछी का सिरा मुड़ गया था। यह बरछी एक बाकरामत यादगार बन कर बरसों तक तबर्रूक बनी रही। हुजूरे अकृदस#&#/ने हज़रत जुबेर&2से यह बरछी तलब फरमाई और उस को अपने पास रखा। फिर आप के बाद ख़ुलफा-ए- राशदीन के पास यके बाद दीगरे जाती रही और यह हज़रात इज़्ज़त व इहतेराम के साथ उस बरछी की खास हिफाज़त फरमाते रहे। फिर हज़रत जुबैर ##के बेटे हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर #?के पास आगई यहाँ तक कि सन 73 हिजरी में जब बनू उमैया के जालिम गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफ सकफी ने उन को शहीद कर दिया तो यह बरछी बनू उमैया के कबज़ा में चली गई। फिर उस के बाद ला पता हो गई। बुखारी शरीफ जि 2, स 570 ग़ज़॒ब-ए-बद्र) तबसेरा: बुखारी शरीफ की यह हदीसे पाक हर मुसलमान दीनदार को झंझोड़ कर खबर दार कर रही है कि बुजुर्गने दीन व उलमा-ए-सालहीन की छड़ी, कलम, तलवार, तसबीह, लिबास, बरतन आदि सामानों को याद गार के तौर पर बतौर तबर््ूक अपने पास रखना हुजूरे अकदस/#7और ख़ुलफा-ए-राशदीन की मकद्र सुन्नत है। गौर फ्रमाइए कि हजरत जुबैर४#की बरछी को तबर्रूक बना कर रखने में हुजूरे अकरम/#7और आप के ख़ुलफा-ए-राशदीन ने किस कदर एहतेमाम किया और किस किस तरह इस बरछी का एजाज व इकराम किया। बद अकौदा लोग जो बुजुर्गने दीन के तबर्रूकात और उन की ज़्यारतों का मज़ाक्‌ उड़ाया करते हैं और अहले सुन्नत को तअना दिया करते हैं कि यह लोग बुजुर्गों की लाठियों, तलवारों, कुलमों का इकराम व एहतराम करते हैं। यह हदीस उन की आँखें खोल देने के लिए हिदायत की छड़ी से कम नहीं बशर्ते यह कि उन की प््न्नन223”>->>-3332>20202023 3 लल्‍€ल्‍€ल्‍€ल्‍€ल्‍ल2ल न न न«+39 ५५344 न८+-+++-+ सअअसअअस2ं2 न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 07 _।॥0 08५ कम ॥05:॥/8/079५8.0/5/06७68/5/6)/808/76_9५॥8 _॥0/8/५ करामाते सहाबा ८६: ४5 अखिंफ्टनगईहों। तिल फतहे फुसतात: मिस्र की जंग में हज़रत अम्र बिन आस अपने लश्कर क साथ फुसतात के किला का कई महीना से घेराव किए हुए थे लेकिन उस मज़बूत किला को फतह करने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। आप ने दरबारे फत में कुछ और फज़ों से इमदाद क लिए दरख़्वास्त भेजी। अमीरूल मोमिनीन हज़रत फारूके अअज़म&£ न दस हज़ार मुजाहिदीन और चार अफसरों को भेज कर यह तहरार फ्रमाया कि उन चार अफसरों में हर अफ्सर दस हज़ार सिपाही के बराबर हैं। उन चार अफसरों में हजरत जुबेर ££ भी थे। हज़रत अमर बिन आस&£& ने हज़रत जुंबैर #£ को हमला आवर घेराव करने वालों की फौज का कमान्डर बना दिया। हज़रत जुबेर:ने किला का चक्कर लगा कर अनन्‍्दाज़ा फ्रमा लिया कि इस किला को फतह करना बहुत ही दुश्वार हैं। लेकिन आप ने अपने फौजी दस्ते को मुखातब करके फरमाया कि ऐ बहादुराने इस्लाम! देखो में आज अपनी हस्ती को इस्लाम पर फिदा और कुरबान करता हूँ। यह कह कर आप ने बिल्कुल अकले किला को दीवार पर सीढ़ी लगाई और तनहा किला क॑ ऊपर चढ़ कर “अल्लाह अकबर" 'का नअरा मारा और एक दम फ्सील के नीचे किला के अन्दर कद कर अकेले ही किला की अन्दरूनी फोज से लड़ते हुए किला का फाटक खोल दिया और इस्लामी फौज नअरणए तकबीर बलन्द करते हुए किला क॑ अन्दर दाखिल हो गई और एक ही लम्हे में किला फतह हो गया। इस मज़बूत व पक्‍का किला को जिस बे मिसाल हिम्मत और बहादुरी से मिनटों में फतह कर लिया। उस को तारीख जंग में करामत के सिवा कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अमीरे लशकर हज़रते अम्र बिन आस::£? अन्ह भी उस करामत को देखकर दंग रह गए। क्योंकि वह कई माह से उस किला का घेराव किये हुए थे। मगर बावजूद अपनी जंगी महारत और आला दर्ज की कोशिशों के वह उस किला को फतह नहीं कर सकते थे।(किताब अश्रए मुबश्शरह सफा 224) मकक्‍तबा इमामे आजम 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/0/9५ 05://0५8.00/069/6)08/98/706_8७॥8 _॥0/ध५ करामाते सहावा #९ 86 मकतबवा इमामे आज़म हजरत जुबैर की शकल में हजरत जिब्राईल/#: हुजरे अकरम/&/४ने फरमाया कि जंगे बद्र के दिन हज़रत जिब्रईल /&पीले रंग का अमामा बांधे हुए हज़रत जुबैर&? की शकल व सूरत में फरिश्तों की फौज लेकर उतरे थे। (कन्जुल उम्माल ज़ि 42 स 427 मतबूआ हैदराबाद) हज़रत अब्दुरहईमाव बित औफ्‌ #/ यह भी अशरए मुबश्शेरा यअनी दस जन्नती सहाबा की फेहरिस्त में हैं। हुजूरे अक्दस/#>#की विलादते मुबारका से दस साल बाद खानदान क्रेश में पैदा हुए। शुरूआती तअलीम व तरबियत इसी तरह हुई जिस तरह सरदाराने कुरैश के बच्चों की हुआ करती थी। उन के इस्लाम लाने का सबब यह हुआ कि यमन के एक बुढ़े ईसाई पादरी ने उन को नबी मा#&#क जहूर की ख़बर दी और यह बताया कि वह मक्का में पैदा होंगे और मदीना मुनव्वरा को हिजरत करेंगे। जब यह यमन से लौट कर मक्का मुकर्रमा आए तो अबू बकर सिद्दीक &2ने उन को इस्लाम लाचे को कहा। चुनान्‍्चे एक दिन उन्हों ने बारगाहे रिसालत में हाजिर होकर इस्लाम कुबूल कर लिया। जब कि आप से . पहले थोड़े ही आदमी इस्लाम लाए थे। चूँकि मुसलमान होते ही आप क घर वालों ने आप पर जुल्म व सितम का पहाड़ तोड़ना शुरू कर दिया। इस लिए हिजरत करके हबशा चले गए। फिर हबशा से मक्का मुकर्रमा वापस आए और अपना सारा माल व सामान छोड़ कर बिल्कुल खाली हाथ हिजरत करके मदीना मुनव्वरा चले गए। मदीना मुनव्वरा पहुँच कर आप ने बाज़ार का रूख किया। चन्द ही दिनों में आप को तिजारत में इस कदर खैरो बरकत हुई कि आप का शुमार दौलत मन्दों में होने लगा और आप ने कबीलए अन्सार की एक खातून से शादी भी कर ली। तमाम इस्लामी लड़ाइयों में आप ने जान व माल के साथ शिरकत को। जंगे उहुद में यह ऐसी जाँ बाज़ी और सर फ्रोशी के साथ लड़े कि उन के बदन पर इक्कईस (24) जख्म लगे थे और उन के पैरों में न कं हद 56व7606 ५शशंगा एद्वा75टवयगा6/ [[05://.क्‍06/5 07॥#/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा#/ ल्‍_. 87 भक्‍तवा इमामे आज़म: करामाते सहावा ४2 87 अविमशनननननमनम-मनमनममनननमन-न-म 9330 मक्‍तवा इमामे आजम भी एक गहरा जख़म लग गया था। जिस की वजह से लंगड़ा कर चलते थे। आप की सख़्वावत का यह आलम था कि एक मर्तबा आप का तिजारती काफिला जो सात सो (700) ऊँटों पर मश्तमिल था। आप ने अपना यह पूरा काफिला ऊँटों और उन पर लदे हुए सामानों के साथ ख़ुदा की राह में खैरात कर दिया। एक मर्तबा हुजूरे अकरम/&#ने अपने सहाबा को सदका देने की तरग़ीब दी। तो आप ने चार हज़ार दिरिहम पेश कर दिए। दूसरी मर्तबा चालीस हज़ार दिरहम और तीसरी मर्तबा पाँच सौ घोड़े आर पाँच सौ ऊंट पश कर दिए। बवकूते वफात एक हज़ार घोड़े और पच्चास हज़ार दानारां का सदका किया और जंगे बद्र में शरीक होने वाले सहाबा-ए-किराम के लिए चार चार सौ दीनार की वसियत फ्रमाई और उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा सिद्दीका ££ और दूसरी अज॒वाजे मुतहहरात के लिए एक बाग़ की वसियत की जो चालीस हज़ार दिरहम को मालियत का था। (मिश्कात जि 2, स 567) 32 हिजरी में कुछ दिनों बीमार रह कर बहत्तर (72) साल की उम्र में विसाल फ्रमाया और मदीना मुनव्वरा के कृब्रस्तान जन्नतुल बकौअ में दफन ह॒ए और हमेशा के लिए सखावत व बहादुरी का यह सूरज डुब गया। (अश्रए मुबश्शेरा स 229 ता 255 व अकमाल सर 603 व कनन्‍्जुल उम्माल जि 5 स 204) करामात यूँ तो आप की मुकृद्दस ज़िन्दगी पुरी करामत ही करामत थी मगर हजरत उस्मान गनी £#की खिलाफत का मसला आप ने जिस तरह तैय फरमाया वह आप की बातिनी फरासत (समझ)ओर ख़ुदा दाद करामत का एक बड़ा ही अनमोल नमूना है। हजरत उस्मान £४ की खिलाफतः- अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर #2ने वफात के वक्‍त छः: जननती सहाबा हजरत उस्मान, हजरत अली, हजरत सअद बिन अबी वकास, हज़रत जुबेर बिन अव्वाम, किन न+++++--ा--ऋािाा3333७3७33<.....>-+मकताभ५+3क ७ » +५+५+मम न कक कक कक न कक रच धन ््--च ु्ु्ौ्रे्ू _-__पपपप्प््क््क््ॉाजझआलिलजचत5 ब्न्नकून ब्ण्जी है ।॥॥ [) 57 4 .]] 8/5 (॥१॥[॥| ण'! ॥] 0 ] | | |) 8 [५ 5८466 ५शा। एव्वा52८वाा6/ करामाते सहाबा क्षा।25:/00५8.०७/४०७०४३६२९२/००४५७०॥७ 4५॥4_/ग्रफक्तवा इमामे आजम हज़रत अब्दुरहमान बिन औफ और हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लाह &#का नाम लेकर यह वसियत फरमाई कि मेरे बाद इन छ: शख्सों में से जिस पर इत्तेफाक्‌ हो जाए उस को खूलीफा मुक्रर किया जाए और तीन दिन के अन्दर खिलाफत का मसला जरूर तैय कर दिया जाए ओर इन तीन दिनों तक हज़रत सुहैब #£मस्जिदे नबवी में इमामत करते रहेंगे। इस वसियत के मुताबिक यह छ: हज़रात एक मकान में जमा हो कर दो दिन तक राय करते रहे। मगर यह मजलिसे शोर किसी नतीजा पर न पहुंची। तीसरे दिन हज़रत अब्दुरहमान बिन औफ #&ने फरमाया कि तुम लोग जानते हो कि आज खलीफा मुकर्रर करने का तीसरा दिन है। इस लिए तुम लोग आज अपने में से किसी को खलीफा चुन लो। हाज़िरीन ने कहा कि ऐ अब्दुररहमान! हम लोग तो इस मसला को हल नहीं कर सकते। अगर आप के जहन में कोई राय हो तो पेश कीजीए। आप ने फ्रमाया कि छः: आदमियों की यह जमाअत कुरबानी से काम ले और तीन आदमियों क॑ हक में अपने अपने 33४ को छोड़ दे। यह सुन कर हज़रत जुबैर ##ने ऐलान फरमाया कि में हज़रत अली#&के हक्‌ में अपने हक्‌ से हट जाता हूँ। फिर हज़रत तलहा&&हज़रत उस्मानके हक में अपने हक को छोड़ दिया। आख़िर में हज़रत सअद#£ने फ्रमाया कि मैं ने हज़रत अब्दुर्रहमान ४#को अपना हक्‌ दे दिया। अब हज़रत अब्दुर्रहमान #ने फरमाया कि ऐ उस्मान व अली! में तुम दोनों को यकीन दिलाता हूँ कि मैं हरगिज ह९गिज़ ख़लीफा नहीं बनूँगा। अब तुम दो ही उम्मीदवार रह गए हो। इस लिए तुम दानों ख़लीफा के चुनाव का हक मुझे दे दो। हजरत उस्मान व हज़रत अली ४७#ने खलीफा का चुनावी मसला ्ग हज़रत अन्दुर्रहमान#£के सुपुर्द कर दिया। इस बात चीत के मुकम्मल हो ४ जाने के की बाद हज़रत अब्दुर्रहमान%#£ मकान से बाहर निकल आए और पुरे शहरे मदीना में छुपके छुपके चक्कर लगा करके उन दोनों उमीदवारों के बारे में आम लोगों की राय मालूम करते रहे। फिर दोनों उम्मीदवारों से अलग अलग तन्‍्हाई में यह वादा ले लिया कि अगर मैं हकालयममान हक न न+ नर - मन के नम जो मकर ++ 22325 न कर हक 5 56766 ५शशंग्रा एद्वया)5टवया6/ [[05:/.86/5 07 _।॥00/8५ कम भर [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/62029809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा € 89 मकक्‍तबवा इमामे आजम तुम को खलीफा बना दूँ तो तुम इन्साफ करोगे। और अगर दसरे को खलीफा मुकर्रर कर दूँ तो तुम उस की फरमां बरदारी करोगे। जब दोनों उम्मीदवारों से यह वादा ले लिया तो फिर आप ने मस्जिदे नबवी में आकर यह ऐलान फरमाया कि ऐ लोगो! मैं ने र्ड़रलाफत के मआमले में ख़ुद भी काफो गौर व खौज किया और इस मामले में अन्सार व मुहाजिरीन की आम राय भी मालूम कर ली है चूँकि राए आम्मा हज़रत उस्मान #४ के हक्‌ में ज़्यादा है इस लिए में हज़रत उस्मान&४ को खलीफा चुनता हूँ। यह कह कर सब से पहले ख़ूद आप ने हज़रत उस्मान%#४ की बैअत की और आप के बाद हजरत अली और दूसरे सब सहाबा-ए -किराम & ने बैअत कर ली। इस तरह खिलाफृत का मसला बेगैर किसी इख्तिलाफ व बिखराव क॑ तेय होगया। जो बिला शुब्हा हज़रत अब्दुरहमान बिन औफ ## की बहुत बड़ी करामत है। (अश्रए मब॒श्शेरा स 23, ता 2354 व बुख़ारी जिल्द नं०-।, सफा नं०- 524 मुनाकिबे उस्मान) जन्नत में जाने वाला पहला मालदार: हुजूरे अकरमा£#ने फरमाय् (3५८ (3 («544८ (55 २८ (० १८ ॥ |-35 |॥) मेरी उम्मत के मालदारों में सब से पहले अब्द्रहमान बिन औफ जन्नत में दाखिल होंगे। (कन्जुल अमाल जिल्द 2, सफा 2935) माँ के पेट ही से नेक: हज़रत इब्राहीम बिन अब्दुरहमान ##का बयान है कि हज़रत अब्दुरहमान बिन औफ#४एक मर्तबा बेहोश होगए और कुछ देर बाद जब वह होश में आए तो फ्रमाया कि अभी अभी मेरे पास दो बहुत ही खौफनाक फरिश्ते आए और मुझ से कहा कि उस जुदा के दरबार में चलो जो प्यारा व अमीन है। इतने में एक दूसरा फूरिश्ता आगया और उस ने कहा कि उन को छोड़ दो। यह तो जब अपनी माँ के पेट में थे उसी वक्त से नेक बख्ती आगे बढ़ कर उन से मिल चुको है। (कन्जुल अमाल जि 5, स 203, मतबूआ हैदराबाद) ब्न्नकून ब्ण्जी है ।॥॥ [) 57 4 .]] 8/5 (॥।१॥[॥| ण'! ॥] 0 ] |_ | |) [8 [५ 5८766 ५शा। एववा5८वागा6/ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 2? 0 मकतबवा इमामे आजम हजरत सअद बिन अबी वकास ४५ उन का कुन्नियत अबू इसहाक ह आर खानदान करेश क एक बहुत ही नामवर शख्स हैं जो मक्का मुकर्रमा के रहने वाले हैं। यह उन खुश नसीबों में से एक हैं जिन को नबी अकरम#ने जन्नत की खुशखबरी दी। यह शुरू इस्लाम ही में जब कि अभी उन की उप्र 7 बरस को थी। दामन॑ इस्लाम में आ गए और हुजुर नवी अकरम/##क साथ साथ तमाम लड़ाईयों में हाजिर रहे। यह ख़ुद फ्रमाया करते थ कि में वह पहला शख्स हँ जिस ने अल्लाह तआला को राह में कफ़्फ़ार पर तीर चलाया। और हम लागों ने हज॒र £#४£-क साथ रह कर इस हाल में जिहाद किया कि हम लोगों क पास सिवाए बबूल क पत्तों और बबूल की फल्लियों के कोई खाने की चीज न थी। हरे मिश्कात जि 2, स 567) हुजूरे अकदस /#7ने खास तौर पर उन के लिए यह दुआ फ्रमा३। 45 »८०५ ०२ ३ ६०६५ ५५.० »६//| तजमा: (० अल्लाह उन क तोर क निशान का दरूस्त फरमा दे और उन की दुआ को कबूल फरमा) स्विलाफत राशिदा के जमाने में भी यह फारस और रूम के जिहादां म॑ं कमान्डर रहे। अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर ;>? ने अपने दोरे खिलाफत में उन को कूफा का गवर्नर मुक्रर फरमाया। फिर उस उहदा से हटा दिया। और यह बराबर जिहादों में क॒फ़्फार से कभी सिपाही बन कर और कभी इस्लामी लश्कर के कमान्डर बन कर लड़ते रहे। जब उस्मान गनी :# अमीरूल मोमिनीन हण तो उन्हों ने दोबारा उन को कफा का गवनर बना दिया। यह मदीना मनव्वरा क॑ करीब मकामे '' अतीक'' में अपना एक घर बना कर उस में रहते थे। और 55 हिजरी में जब कि उन की उम्र शरीफ पचहत्तर (75) बरस की थी उसी मकान के अन्दर विसाल फरमाया। आप ने वफात से पहले यह वसियत फरमाई थी कि मेरा ऊन का वह पुराना जुब्बा 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0[/0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/620809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ६० 0] मक्‍तवा इमामे आज़म ज़रूर पहनाया जाए जिस को पहन कर मैं ने जंगे बद्र में कफ्फार से जिहाद किया था। चुनान्चे वह जुब्बा आप के कफन में शामिल किया गया। लोग पुरी अकौदत से आप के जनाजे को कंधों पर उठा कर मकामे “' अतीक्‌'' से मदीना मुनव्वरा लाए और हाकिमे मदीना मरवान बिन हकम ने आप की नमाज़े जनाजा पढ़ाई और जन्नतुल बकीअ में आप को कब्र मुनव्वर बनाई। _ अशरए मुबश्शेरा' यअनी जन्नत की ख़ुशख़बरी पाने वाले दस सहाबियों में से यही सब से आख़िर में दुनिया से तशरीफ्‌ ले गए और उन के बाद दुनिया अशरए मुबश्शेरा के ज़ाहिरी वजूद से खाली हो गईं। मगर जमाना उन की बरकात से हमेशा हमेशा फंज़ पाता रहेगा। . (अकमाल फो असमाईर्रिजाल व तज़किरतुल हुफ़्फाज़॒जिल्द नं०।, सफा नं०-22 वगैरा) करामात आप की करामतों में से चन्द्र करामात निम्नलिखित हैं। बदनसीब बूढ़ा: हज़रत जाबिर ##से रिवायत है कि कूफा के कुछ लोग हजरत सअद्‌ बिन अबी वकास :४की शिकायात लेकर अमीरूल मोमिनीन हज़रत फारूके अअज़म&£ के दरबारे स्थिलाफृत में मदीना मुनव्वरा में पहँचे हज़रत अमीरूल मोमिनीन ने उन शिकायात की तहकीकात के लिए चन्द्‌ भरोसेमन्द सहाबियों को हज़रत सअद बिन अबी वकास£४ के पास कूफा भेजा और यह हुक्म फरमाया कि कफा शहर की हर मस्जिद के नमाज़ियों से नमाज़ के बाद यह पूछा जाए कि हजरत सअद बिन अबी वकास&४ कंसे आदमी हैं? चुनान्चे तहकीकात करने वालों की इस जमाअत ने जिन जिन मस्जिदों में नमाजियों की कुसम दे कर हज़रत सअद बिन अबी वकास&४ क बारे में दरयाफ़्त किया तो तमाम मस्जिदों के नमाज़ियों ने उन के बारे में अच्छा कहा और तअरीफ की। मगर एक मस्जिद में सिर्फ एक आदमी जिस का नाम “अबू सअदा'' था। उस ने हज़रत सअद बिन अबी 5८664 ५शशंगर ए752८वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/0/9५ ॥05:॥/8/079५8.0/6/069/5/6)/808/76__9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहावा &7? 09 मकक्‍तवा इमामे आज़म वकाप्त#! की तीन शिकायात पेश कीं और कहा ४, ५५.०... ५.६, है | 3 (५५: ४५ २... | ,.... (यअनी यह माले गनीमत बराबरी ल्‍3 साथ तक्सीम नहीं करते और ख़ुद लश्करों के साथ जिहाद में नहीं जाते और मुकुदमात के फेसलों में इन्साफ नहीं करते) यह सुन कर हज़रत सअद बिन अबी वकास%9४ ने फौरन ही यह दुआ मांगी! ऐ अल्लाह! अगर यह शख्स झूठा है तो उस की उम्र लम्बी कर दे और उस की गरीबी को बढ़ा दे। उस को फिलनों में मुब्तला करदे। अब्दुल मलिक बिन उमैर ताबई का बयान है कि इस दुआ का मैंने यह असर देखा कि “अबू सआअदा'' इस कदर बूढ़ा हो चुका था कि बूढ़ापे की वजह से उस की दोनों भवें उस की दोनों आँखों पर लटक पड़ी थीं और वह दर बदर भीक मांग मांग कर बहुत फूकोरी और मुहताजी की ज़िन्दगी बसर करता था। और इस बुढ़ापे में भी वह राह चलती हुई जवान लड़कियों को छेड़ता था। और उन के बदन में चुटकियाँ भरता रहता था और जब कोई उस से उस का हाल पुछता था तो वह कहा करता था कि मैं क्‍या बताऊँ? मैं एक बूढ़ा हूँ जो फितनों में मुब्तेला हूँ क्योंकि मुझ को हंजरत सअद बिन अबी वकास &£ को बद्‌ दुआ लग गई है। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जिल्द-2, सफा-86० बहवाला बुखारी व मुस्लिम व बैहकी) दुश्मने सहाबा का अनजाम: एक शख्स हजरत सअद बिन अबी वकास ४४ के सामने सहाबा-ए-किराम की शान में गस्ताखी व बे अदबी के अलफाज़ बकने लगा। आप ने फ्रमाया कि तुम अपनी इस त्र्बीस हंरकत से बाज रहो वरना मैं तुम्हारे लिए बद दुआ कर दूँगा। इस गुस्ताख़ व बे बाक ने कह दिया कि मुझे आप की बद दुआ की कोई परवा नहीं। आप की बद दुआ से मेरा कुछ भी नहीं बिगड़ सकता। यह सुन कर आप को जलाल आगया और आप ने उसी वक़्त यह दुआ मांगी कि या अल्लाह! अगर इस शख्स ने तेरे प्यारे नबी के प्यारे सहाबियों की तौहीन की है तो आज ही उस को अपने कहरो ग़ज़ब की निशानी देखा दे ताकि दूसरों को उस से सबक हासिल हो। न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6208099776_30॥9_॥0/9/% करामाते राहावा ४2 9३ मकक्‍तवा इमामे आज़म इस दुआ क॑े बाद जैसे ही वह शख्स मस्जिद से बाहर निकला तो बिल्कुल ही अचानक एक पागल ऊंट कहीं से दोड़ता हुआ आया और - उस को दांतों से पछाड़ दिया और उस के ऊपर बैठ कर उस को इस कदर जोर से दबाया कि उस की पिसलियों की हड्डियाँ चूर चूर हो गई और वह फौरन ही मर गया। यह मंज़र देख कर लोग दौड़ दौड़ कर हजरत सअद &४ को मुबारक बाद देने लगे कि आप की दुआ मक्‌बूल हो गई और सहाबा का दुश्मन हलाक हो गया। (दलाइलुन्नबुवा जि उ, स 207, व हज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि 2, स 866) गुस्ताखू की जबान कट गईं: जंगे कादसिया में हज़रत सअद बिन अबी वकास #£ इस्लामी लड्करों के कमान्डर थे लेकिन आप जद्मों से निढाल थे। इस लिए मैदाने जंग में निकल कर जंग नहीं कर सके। बल्कि सीने के नीचे एक तकिया रख कर और पेट के बल लेट कर फौजों की कमान करते रहे। बड़ी खूँरेज़ और घमसान की जंग के बाद जब मुसलमानों को जीत मिल गई तो एक मुसलमान सिपाही ने यह स्ताख़ी और बे अदबी की कि हज़रत सअद बिन अबी वकास ४ पर कमेन्ट करते हुए उन की शान में बुराई और बे अदबी के अशआर लख डाले जो यह हैं। 6०5५ ११०५ 0 4०७०३. ००० (| ५४५ ४» 55 तर्जमा:- हम लोग जंग करते हैं यहाँ तक कि अल्लाह तआला अपनी मदद नाजिल फ्रमा देता है और हज़रत सअद्‌&#का यह हाल है कि वह कादसिया के फाटक पर महफूज होकर बैठे ही रहते हैं।) ९२ 268: (० “०००० +--२ 3 0 5 #..> ८... ४ ॥ 0... तर्जमा:- हम जब जंग से वापस आए तो बहुत सी औरतें बेवा हो चुकी थीं लेकिन सअद की कोई बीवी भी बेवा नहीं हुई) इस दिल ख़राश बुराई से हज़रत सअद बिन अबी वकास&£ के दिले नाजुक पर बड़ी जबरदस्त चोट लगी और आप ने इस तरह दुआ मांगी कि या अल्लाह! उस शख्स की ज़बान और हाथ को मेरी बुराई करने से रोक दे। आप की जबान से उन कलमात का निकलना बढ ] न कं हद 56760 ५शशंगा एद्वा75टववगा6ह/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62009809776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा (2 094 मक्‍तबा इमामे आज़म था कि यकायक किसी ने उस गुस्ताख़ सिपाही को इस तरह तीर मारा कि उस की ज़बान कट कर गिर पड़ी और उस का हाथ भी कट गया और वह शख्स एक लफ्‌ज भी न बोल सका और उस का दम निकल गया।(दलाइलुननबबुवा जिल्द 3, स 207, अल बदाया बन्‍नेहाया, जिल्द?, स 45) चेहरा पीठ की तरफ हो गया: एक ओरत की यह बुरी आदत थी कि वह हमेशा हज़रत सअद बिन अबी वकास&४ के मकान में झांक झांक कर आप के घरेलू हालात की ताक झांक किया करती थी। आप ने बार बार उस को समझाया और मना किया। मगर वह किसी तरह रूकी नहीं। यहाँ तक कि एक दिन निहायत जलाल में आप की जबाने मुबारक से यह अलफाज़ निकल पड़े कि “तेरा चेहरा बिगड़ जाए'' इन अलफाज़ों का यह असर हुआ कि उस औरत की गर्दन घुम गई और उस का चेहरा पीठ की तरफ हो गया। (हज्जतुल्लाह अलल आलमीन जिल्द 2, सफा 866, बहवाला इब्ने असाकिर) एक खा[रजी की हलाकत: एक गुस्ताख़ ने हजरत अली%$को गाली दी। हज़रत सअद बिन अबी वकास#9यह सुन कर रन्‍्ज व गम में ड्ब गए ओर जोश में आ कर यह बद दुआ कर दी कि “या अल्लाह। अगर यह तेरे ओऔलिया में से एक वली को गालियाँ दे रहा है तो उस मजलिस के खत्म होने से पहले ही उस शख्स को अपना कहर व गजब दिखा दे।'' द आप की ज़बाने अकृदस से इस दुआ का निकलना था कि उस मदद का घोड़ा बिदक गया और वह पत्थरों के ढेर में मुंह के बल गिर पड़ा और उस का सर टुकड़े टुकड़े हो गया। जिस से वह हलाक हो गया। (हुज्जतुल्लाह अललआलमीन जि 2,स 866 बहावाला हाकिम) तबसेरा: हज़रत सअद बिन अबी वकास#की ऊपर ब्यान की गई इन पांच करामतों से हम को दो सबक मिलते हैं। पहला: खुदा के प्यारे अंबिया व सिद्दीकीन और शुहदा-ए-किराम व सालेहीन की शान में अदना दर्जे की बद दुआएं बहुत ही ख़तरनाक और हलाकत वाली हैं। उन बुजुर्गों की बद दुआ और फटकार और न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 82 १५ मकतवा डमामे आजम उन की शान में गुस्ताखी और बे अदबी कहरे इलाही का सिगनल है। उन ख़ुदा के मुकृदस और महबूब बन्दों की जरा सी भी बे अदबी को ्ुदावन्दे कुद्डूस की शाने कृहहारी व जब्बारी मआफ नहीं फरमाती। बल्कि ज़रूर उन गुस्ताख्रों को दोनों जहाँ के अज़ाब में गिरफ्तार कर देती है। दुसरा: यह कि अल्लाह तआला के प्यारे बन्दों, उलमा औलिया और तमाम सालेहीन की बद दुआएं बहुत ही खतरनाक और हलाकत आफर्री बलाएं हैं। उन बुजुर्गों की बद्‌ दुआ और फटकार वह तलवार है जिस को कोई ढाल नहीं और यह तबाही व बरबादी का वह जहरीला तीर है जिस का निशाना कभी गलती नहीं करता। इसलिए हर मुसलमान पर जरूरी हैँ कि जिन्दगी भर हर कृदम पर यह ध्यान रखे कि कभी भी अल्लाह तआला के नेक बनन्‍्दों की शान में जर्य भर भी बे अदबी न होने पाए और बुजुर्गाने दीन में से किसी की भी बद दुआ न ले बल्कि हमेशा इस कोशिश में लगा रहे कि ख़ुदा क॑ नेक बन्दों को दुआएं मिलती रहें। क्योंकि नेक बन्दों की बद दुआएं बरबादी का खौफनाक सिगनल और उन की दुआएं आबादी का मीठा फल हें। साठ हजार का लश्कर दरिया में: जंगे फारस में हज़रत सअद बिन अबी वकास:£४इस्लामी लश्कर के कमान्डर थे। रास्ते में दरियाए दजला को पार करने की ज़रूरत पेश आ गई और कशितयाँ मौजूद नहीं थीं। आप चे लश्कर को दरिया में उतर जाने का हुक्म दिया और जद सब से आगे आगे आप यह दुआ पढ़ते हुए दरिया पर चलने लगे ५॥० ७५४ । ४७ ४; पा | ५४० 9 4/)॥ (......- 3 4.+ ड़ $-४ ३4-.-५५ >> ५-४० ५५.) «//५/लोग आपस में बिला झिझक एक दूसरे से बातें करते हुए घोड़ों पर सवार, ऊँटों वाले ऊंटों पर सवार, पैदल चलने वाले पैदल, अपने अपने सामानों के साथ दरिया पर इस तरह चलने लगे जिस तरह मैदानों में काफिले गुजरते रहते हैं। उस्मान नहदी ताबई का बयान है कि उस मौक्‌अ पर एक सहाबी का पयाला दरिया में गिर पड़ा, तो दरिया की मौजों ने उस प्याला को किनारे पर पहुंचा दिया और उन को उन का प्याला मिल गया। इस लश्कर को तअदाद साठ ब्न्नकून ब्ण्जी 606 ५शशां॥ ए752८वा6 [05://.क्‍6/50॥7_|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6200809776_30७॥9_॥0/9/%५ 06 मकतबा इमामे आज़म क््क्व्कककचक्क कफ कक कर रस खखखख भर चभभभाररञ्ा आ चललच्ल च खच्चूचञाा-- चआ आलोक पक कम करामाते सहाबा & हजार पैदल और सवार की थी। (दलाइलुन्नबुवा जिउ, स 209 तबरी जि 4, स74) तबसेरा: यह रिवायत इस बात की दलील है कि दरिया भी ओऔलिया अल्लाह के हुक्‍्मों का फ्रमाँ बरदार है और उन अल्लाह वालों की हुकूमत ख़ुदावन्दे कुदूस की अता से जिस तरह सूखी ज़मीन पर है इसी तरह दरियाओं पर भी उन की हुकूमत का सिक्‍का चलता है। काश वह बद अकीदा लोग जो औलिया-ए-किराम के अदब व एहतेराम से महरूम और उन बुजुर्गों की ख़ुदा दाद ताकतों ओर उन के पावर के न मानने वाले हैं। उन रिवायात को बगौर पढ़ते और उन रोशनी के मीनारों से हिदायत का नूर हासिल करते । डॉक्टर मुहम्मद इकबाल अलैहिरहमा ने हजरत सअद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु की इसी करामत की तरफ्‌ इशारा करते हुए अपनी नज़म में यह शेअर लिखा है:- दश्त तो दश्त हैं दरिया भी न छोड़े हम ने बहरे जुलमात में दौड़ा दिए घेडे हम ने नआ्र-ए-तकबीर से जलजुला: जंगे कादसिया में जीत हासिल हो जाने के बाद हज़रत सअद बिन अबी वकास ££ ने “'हम्स'' पर चढ़ाई को। यह रूमियों का बहुत ही मज़बूत किला था। कैसरे रूम ने उस शहर की हिफाजत के लिए एक बहुत ही जबरदस्त फौज भेजी थी मगर जब हज़रत सअद बिन अबी वकास#9उस शहर के करीब पहुँचे तो आप ने लश्कर को हुक्म फ्रमाया ( ,.४।५0॥॥ ,५0॥ ५। ५) लाइलाहा इल्लल्लाहु वललाहु अकबर का बलन्द आवाज़ से नअआरा मारें,चुनान्चे जब पूरी फौज ने एक साथ नअआरा मारा तो उस शहर में एक जोर का ज़लज़ला आ गया कि तमाम ईमारतें हिलने लगीं। फिर दूसरी मर्तबा नअरा मारा तो किला और शहर की दीवारें गिरने लगीं और रूमी फौज पर ऐसी दहशत तारी हो गई कि वह हथियार भी न उठा सकी। बल्कि एक भारी भरकम रकम बतौरे टेक्स के दे कर रूमियों ने मुसलमानों से चुलल क ली। (इजालतुल ख़्िफा मकसद 2, सफा 59) _ कर ली। (इजालतुल ख्विफा मक्सद 2, सफा 59) न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30॥9_॥0/8/%५ करामाते सहावा 5४ 097 मकक्‍तवा इमामे आजम तबसेरा: कलमए तैयबा और तकबीर का नअरा हर शख्स लगा सकता है मगर तजरबा यह है कि अगर इस जमाने के लाखों मुसलमान भी एक साथ मिल कर यह नअरा मारें तो घास का एक पत्ता और भूस का एक तिनका भी नहीं हिल सकता। मगर सहाबा-ए -किराम के उस नअगरा से पत्थारों की चटानों से बने हुए महल्लात और किला चकना चूर हो कर जमीन पर बिखर गए। इस से मालूम हुआ कि अगरचे कलमए तकबीर के अलफाज़ व मआनी मे तो ज़र्सा बराबर भी फर्क नहीं है लेकिन अल्लाह वालों की ज॒बानों, आवाज़ों और लेहजों में और हमारी जबानों, आवाजों और लेहजों में ज़मीन व आसमान का फर्क है। कहाँ वह अल्लाह के नेक और पाक बाज बन्दे? और कहाँ हम दिलों के मैले और ज॒बानों के गंदे? इस से पता चलता है कि एक ही आयत, एक ही दुआ, एक अल्लाह वाला पढ़ दे तो उस का असर कुछ और होता है और गुनाहों वाला पढ़ दे तो उस की तासीर कुछ और होती है। डॉक्टर मुहम्मद इकबाल अलैहिर्रहमा ने उसी मज़मून की तरफ इशारा करते हुए क्‍या ख़ूब कहा है:- प्रवाज है दोनों की उसी एक फुजा में क्रगस का जहाँ और है शाहीन का जहाँ और अलफुाज व्‌ मआनी में तफाउत नहीं लेकिन मुलला की अज़ाँ और मुजाहिद की अर्जों और (बाले जिनब्नील) बहर हाल इस नुकृता से हरगिज़ हरगिज़ गाफिल नहीं रहना चाहिए कि ओऔलिया-ए-किराम और आम इन्सानों में बहुत बड़ा फर्क है, जो लोग सिर्फ पांच वक्‍त नमाज़ पढ़ कर औलिया-ए-किराम क॑ साथ बराबरी का दअवा करते फिरते हैं ख़ुदा की कृसम यह लोग गुमरही के इतने गहरे और इस कदर अंधेरे गड़ढ़े में गिर पड़े हैं कि उन्हें न तो तौफोक इलाही की सीढ़ी मिल सकती है न वहाँ तक आफताबे हिदायत को रोशनी पहुँच सकती है। ख़ुदावन्दे करीम उन गुमराहों के कुर्ब और उन के मकरा फरव के काले जादू से हर मुसलमान को महफूज रखे। आमीन 6[05:/.776/5फ॥॥# | फावा५ 2 ://ध/०॥५४९७.०00/00व 0६ [909776_830॥9_॥0/9/%५ ४7 0 करामाते सहाबा मकक्‍तवा इमामे आजम उप्र दराज (लम्बी उप्र) हो गई: एक शख्स निहायत ही खतरनाक और जान लेवा बीमारी में मुबतला होकर अपनी ज़िन्दगी से ना उम्मीद हो चुका था। वह हज़रत सअद बिन अबी वकास &$की खिदमते अकदस में हाजिर होगया और रो रो कर फरियाद करने लगा ए सहाबीए रसूल मेरे बच्चे अभी बहुत ही छोटे छोटे हैं। मेरे मरने के बाद उन को परवरिश करने वाला मुझे कोई नज़र नही आता, इसलिए आप यह दुआ कर दीजिए कि उन बच्चों के बालिग होने तक जिन्दा रहूँ। आप को उस मरीज़ के हाले जार पर रहम आगया और आप ने उस को तन्दुरूस्ती और सलामती के लिए दुआ कर दी, तो वह शख्स शिफायाब होगया और बीस बरस तक ज़िन्दा रहा, हालाँकि किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि वह इस बीमारी से बच कर जिन्दा रह सके गा। (हुज्जतुल्लाह अललआलमीन जि2,स866 बहवाला बैहकी) तबसरा: हज़रत सअद्‌ बिन अबी वकास &9£की इन करामतों में आप ने उन की बद दुआओं का नतीजा भी देख लिया और उन की दुआओं का जलवा भी देख लिया, इस लिए उस से सबक हासिल काजिए और हमेशा अल्लाह वालों की बद दुआओं से बचते रहिए। ओर उन बुजुर्गों से हमेशा नेक दुआओं की भीक मांगते रहिडए। अगर आप का यह अमल रहा, तो इन्शाअल्लाह तआला जिन्दगी भर आप सआदत और बख़्ती के बादशाह बने रहेंगे। बललाहु तआला अअलम! (6५५४५) हज़रत सईद बिन जैद £/ यह भी अशरण मुबश्शेरा यअनी उन दस सहाबियों में से हैं जिन को रसूले अकरम//ने जननती होने की खुशखबरी सुनाई है। यह खानदाने कुरेश में से हैं। ओर ज़माने जाहिलियत के मशहूर मोवहहीद (एक खुदा को मानने वाला) जैद बिन अम्र बिन नफील के बेटे और अमीरूल मोमिनीन हज़रत फारूक अअज़म # के बहनोई हैं। यह जब मुसलमान हुए उन को हज़रत उमर #£ ने रस्सी से बांध कर मारा न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍76/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | [[05:/8/079५86.00/0 790) 02 [8093/76_ _80॥ _॥ भव करामाते ह श् हिं2। करामाते सहावा ४2 मकतवा इमामे आजम और उन के घर में जाकर उन को और अपनी बहन फातिमा बिन्ते ख़त्ताव 25 को भी मारा मगर यह दोनों इस्तकामत का पहाड़ बन कर इस्लाम पर जमे रहे। जंगे बद्र में उन को और हज़रत तलहा##को हुजुरे अकरमः£&४#ने अबू सुफयान के काफिला का पता लगाने के लिए भेज दिया था। इस लिए जंगे बद्र के लड़ाई में हिस्सा न ले सके। मगर उस के बाद को तमाम लड़ाइयों में यह डट कर कुफ़्फार से हमेशा जंग करते रहे। गन्दुमी रंग बहुत ही लम्बा कद, ख़ूबसूरत और बहादुर जवान थे। तक्रीबन 50 हिजरी में सत्तर बरस की उम्र पाकर मकामे “अतीक्‌ में विसाल फ्रमाया और लोगों ने आप के जनाज़ा मुबारका को मदीना मुनव्वरा लाकर आप को जन्नतुल बकीअ में दफन किया। (अकमाल फौ अस्माइरगिजाल स 596 व बुखारी जि, स 545 मा हाशिया) करामत्‌ कुवों कब्र बन गया: एक औरत जिस का नाम अरबी बिन्ते अवेस था। उन के ऊपर हाकिमे मदीना मरवान बिन हकम की कचरहरी में यह दावा दायर कर दिया कि उन्हों ने मेरी एक जमीन ले ली हे। मरवान ने जब उन से जवाब तलब किया तो आप ने फरमाया कि में ने जब रसूलुल्लाह/४#को यह फरमाते हुए सुना है कि जो शख्स किसी की बालिशइत बराबर भी जमीन ले लेगा तो कयामत के दिन उस को सातों ज़मीनों का तौक्‌ पहनाया जाए गा तो इस हदीस को सुन लेने के बाद भला यह क्‍यों कर मुमकिन है कि मैं किसी की जमीन ले लूँगा। आप का यह जवाब सुन कर मरवान ने कहा! ऐ औरत! अब मैं तुझ से कोई गवाह तलब नहीं करूँगा। जा तू उस ज़मीन को ले ले। हज़रत सईद बिन जद &9ने यह फंसला सुन कर यह दुआ मांगी। ऐ अल्लाह! अगर यह औरत झूठी है तो अंधी हो जाए और उसी जमीन पर मरे। चुनान्चे उस के बाद यह औरत अंधी हो गई। मुहम्मद बिन अम्र ££का बयान है कि मैं ने उस औरत को देखा है कि वह अंधी हो गई थी और दीवारें पकड़ कर इधर उधर चलती फिरती थी। यहाँ तक 606 ५शशंग्र एद्या)]5टदाा6 [05:/.क्‍6/50॥7_|॥ता|फावा५ [[05:/8/079५8.0।0/589|5/60[28899776_80॥9_॥09 करामाते सहावा &६ ( मंक्तवा इमामे आजम कि वह एक दिन उसी ज़मीन के एक काुवें में गिर कर मर गई और किसी ने उस को निकाला भी नहीं। इस लिए वही कुर्वां उस की कब्र बन गई और एक अल्लाह वाले की द्ञआ को मक्‌बूलियत का जलवा नज़र आ गक,। (मिश्कात जिल्द नं०2, सफा नं०546 व हुज्जतुल्लाह जिल्द नं०2, सफा नं०866 बहवाला बुखारी व मुस्लिम) तबसेरा: अल्लाह वालों की यह कशमत है कि उन की दुआएं बहुत ज़्यादा और बहुत जल्द मक्‌बूल हुआ करती हैं। और उन को ज़बान से निकले अलफाज़ का नतीजा ख़ुदा वन्दे करीम ज़रूर आलमे वजूद में लाता है। सच है। जो जजुब के आलम में निकले लबे मोमिन से वह बात हकीकत में तकदीरे इलाही है हजरत अबू उबैदा बिन ज्रह# यह खानदाने कुरैश के बहुत ही नामवर और मुअज़्जज़ शख्स हैं फहर बिन मालिक पर उन का खानदानी शजरा रसूलुल्लाह, खानदान से मिल जाता है। यह भी अशरए मुबररशेरा में से हैं। उन का असली नाम “आमिर है। अबू उबैदा उन की कन्नियत है और उन को बारगाहे रिसालत में अमीनुल उम्मत का लकब मिला हे शुरू इस्लाम ही में हज़रत अबू बकर सिद्दीक #2ने उन के सामने इस्लाम . पेश किया तो आप फौरन ही इस्लाम कूबूल करके जाँ निसारी के लिए बारगाहे रिसालत में हाजिर हो गए। पहले आप ने हबशा हिजरत की। फिर हबशा से हिजरत करके मदीना मुनव्वरा चले गए। जंगे बद्र आदि तमाम इस्लामी जंगों में इन्तहाई जॉबाज़ी के साथ कुफ़्फार से मअरका आराई करते रहे। जंगे उहुद में दो कड़ियाँ हुजुरे अनवर##के रूख्सार (गाल) में चुभ गई थी। आप ने अपने दाँतों से पकड़ कर लोहे की उन कड़यों को खींच कर निकाला। उसी में आप के अगले दो दाँत शहीद हो गए थे। बहुत ही शेरे दिल बहादुर, बलन्द कामत और बारोब चेहरे वाले पहलवान थे। 8 हिजरी में बमुकामे उरदुन ताऊन अमवास मे न कं हक 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍76/5 07॥/_।॥0 0/9/५ | की लक तन नल [28009776_830॥9_॥72/५ करामाते सहावा (४2 ] 0] मक्तवा इमामे आजम वफात पा गए। हज़रत मआज बिन जबल %४ने नमाजे जनाजा पढ़ाई और मकामे बीसान में दफन हुए। बवक्ते वफात उप्र शरीफ उटटावन बरस थी। (अकमाल फि असमाइरगिजाल स 608) क्रामत्‌ आप को करामतों में से एक बहुत ही मशहूर और अजीब करामत निम्नलिखित है। वे मिसाल मछली: आप तीन सो मुजाहिदीने इस्लाम के लश्कर के कमान्डर बन कर ''सैफूल बहर"' में जिहाद के लिए तशरीफ ले गए! वहाँ फौज का राशन खूुत्म हो गया। यहाँ तक कि यह चौबीस चौबीस घंटे में एक एक खजूर बतौरे राशन के मुजाहिदीन को देने लगे। फिर वह खजूरें भी ख़तम हो गई। अब भूके रहने के सिवा कोई चारा नहीं था। उस मौक्‌ पर आप की यह करामत जाहिर हुई कि अचानक समन्द्र की तूफानी मौजों ने किनारे पर एक बहुत बड़ी मच्छली को फेक दिया उस मच्छली को यह तीन सौ मुजाहिदीन की फौज अट्ठारा दिनों तक पेट भर कर खाते रहे और उस की चरबी को अपने जिसमों पर मलती रही। यहाँ तक कि सब लोग तन्दुरूस्त और ख़्ब मोटे ताजे हो गए फिर चलते वक्‍त उस मच्छली का कुछ हिस्सा काट कर अपने साथ ले कर मदीना मुनव्वरा वापस आए और हुजूरे अकदस/&/#की खि्िदमते अकृदस में भी इस मच्छली का एक टुकड़ा पेश किया जिस को आप ने खाया और इरशाद फ्रमाया कि उस मच्छली को अल्लाह तआला ने तुम्हारा रिज़्कु बना कर भेज दिया। यह मच्छली कितनी बड़ी थी लोगों को उस का अन्दाज़ा बताने के लिए अमीरे लश्कर हज़रत अबू उबेदा बिन जर्रह#४ने हुक्म दिया कि उस मच्छली की दो पिस्लियों को जमीन में गाड़दें। चुनान्चे दोनों पिस्लियाँ जमीन में गाड़ दी गई तो इतनी बड़ी मेहराब बन गई कि उस के नीचे कजावा बंधा हुआ ऊंट गुज़र गया। (बुखारी शरीफ जि 2, स 626, बाब ग़ज़वए सैफुल बहर) मर कककफकिििकककककककककन रन रल अलककमक3>>>-+-न००००-्च्भ्च्च्च ा ् ञ् ज,चाच्ध्ध लेक कमान" “नमक फ? न न सएफरग " स्.3 कश्कन ककककककर्ममापूडू& न्‍ल्‍फपण:एरउ)ए:दयास 2 कक ल्लन-+न--77___नन----330%ऋ «रु -+“नराााााा#न ८८3८८ ++क+॑«न+++म--ा----भ+«८८33८८5 भय कक कक क कक ककतररस कक कक कक कक कक तन «मम मन, न्म्ग्म््् िननत. टन... 3अअनननननन+ ॑नननननमकननमनमाा--न---प। -.. बकत. तहलका. न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/॥/.776/50॥॥_॥|॥॥009/4/9५ कम [[[05:/9/079५8.0/0/0895/6)8/098/76_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 6४2 ]02 मकतवा इमामे आजम .. तबसेरा: ऐसे वक़्त में जब कि लश्कर में ख़राक का सारा सामान ख़त्म हो चुका था और लश्कर के सिपाहियों के लिए भूके रहने के सिवा कोई चारा ही नहीं था। बिल्कुल अचानक बेगैर किसी मेहनत व मुशक्कृत के उस मच्छली को तीन सौ भूक सिपाहियों ने उस मच्छली को काट काट कर अट्ठारा दिनों तक ख़ूब ख़ब शिकम सेर होकर ्राया। यह एक दूसरी करामत है। क्योंकि इतनी बड़ी बच्छली बहुत ही कम है कि इतना बड़ा लश्कर उस को इतने दिनों तक खाता रहे ओर फिर उस के टुकड़ों को काट काट कर ऊँटों पर लाद कर मदीना मुनव्वरा तक ले जाए मगर फिर भी मच्छली खत्म नहीं हुई बल्कि उस का कुछ हिस्सा लोग छोड़ कर चले गए। इतनी बड़ी मच्छली का वजूद दुनिया में बहुत ही कम है। फिर मच्छली एक ऐसी जनीज है कि मरने के बाद दो चार दिनों में सड़ गल कर और पानी बन ऊर बह जाती है मगर आदत के खिलाफ महीनों तक यह मरी हुई मच्छली जमीन पर धूप में पड़ी रही। फिर भी बिल्कल ताज़ा रही। न उस में बदबू पैदा हुई न उस का मज़ा बदला। यह तीसरी करामत है। गरज इस अजीब व गरीब मच्छली का मिल जाना उस एक करामत क बीच में चन्द करामतें जाहिर हुई जो बिला शुब्हा अमीरे लश्कर हज़रत अबू उबंदा बिन जर्राह ##जननती सहाबी की बहुत ही अज्ीम और नादिरूल वजूद करामतें हैं। वललाहु तआला अअलम हजरत हमजा && हजरत हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब##यह हुजूरे अकुदस/&के चचा हैं ओर चूँकि उन्हों ने भी हज़रत सुवैबा &£ का दूध पिया था इस लिए दुध के रिश्ते से यह हुजूर /#%&के रजाई भाई भी हैं।सिर्फ चार साल हुजूर##से उम्र में बड़े थे और बाज़ का कौल है कि सिर्फ दो साल का फूक्‌ था। यह हुजूर /##से बहुत ही मुहब्बत रखते थे। यही वजह है कि जब अबू जहल ने हर्म कअबा में हुजूरे अकृदस/#&को बहुत ज़्याद बुरा भला कहा तो बावजूद यह कि अभी मुसलमान नहीं 66 ५शशां॥ ए752८वाा6 [05:/.06/50॥7_|॥ताफावा५ ।05:॥/8/07५8.0/5/0668/5/6)/8098/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहाबा €&२ 03 मकतबवा इमामे आजम हुए थे लेकिन गुस्से में आपे से बाहर हो गए और हर्मे कअबा में जाकर अबू जहल के सर पर इस जोर के साथ अपनी कमान से मारा कि उस का सर फट गया और एक हंगामा मच गया। आप ने अबू जहल का सर फाड़ कर बलन्द आवाज से कलमा पढ़ा और करैश के सामने जोर जोर से ऐलान करने लगे कि मैं भी मुसलमान हो चुका हूँ अब किसी की हिम्मत नहीं है कि मेरे भत्तीजेको आज से कोई बुरा भला कह सक। उस में इख़्तिलाफ है कि ऐलाने नुबुव॒त के दूसरे साल आप मुसलमान हुए या छट्टे साल। बहर हाल आप के मुसलमान हो जाने से बहुत ज़्यादा इस्लाम और मुसलमानों के फायदे का सामान हो गया। क्‍योंकि आप की बहादुरी और जंगी कारनामों का सिक्‍का तमाम बहादुराने कुरैश के ऊपर बैठा हुआ था दरबारे नुब॒ुबत से उन को ''असदुल्लाह'' व “असदुर्रसूल'' (अल्लाह का शेर और अल्लाह के रसूल का शोर) का प्यारा खिताब मिला। सन ३ हिजरी में जंगे उहुद की लड़ाई लड़ते हुए शहादत से सरफ्राज़ हो गए। और सैय्यदु३- शोहदा के काबिले एहतेराम लकृब के साथ मशहूर हुए। (अकमाल स 560 व जरकानी जि 3, स 270 ता 285 व मदारिजुन्नबुवा वगैरा) फरिश्तों ने गुस्ल दिया: हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास कहना है कि हजरत हमजा##को उन की शहादत के बाद फरिश्तों ने गुस्ल दिया। हुजूरे अकरम#/#ने भी उस कौ तसदीक्‌ फरमाई कि बे शक मेरे चचा को शहादत के बाद फ्रिश्तों ने गुसल दिया। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन स 863 जि 2, बहवाला इब्ने सअद) तबसेरा: मसला यह है कि शहीद को गुस्ल नहीं दिया जाएगा। चुनान्चे हुजूरे अकरम्&/#ने हज़रत हमजा ##को न तो खुद गुस्ल दिया न सहाबा-ए-किराम को उस का हुक्म फ्रमाया। इस लिए जाहिर यही है कि चूँकि तमाम शुहदा-ए-उहुद में आप सैय्यदुश्शोहदा के मुअज़्जज़ खिताब से सरफ्राज़ हुए इस लिए फरिर्तों ने ण्ज़ाज़ी तौर पर आप के एजाज व इकराम का इजहार करने क॑ लिए आप को गुस्ल न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 07 _।॥00/8५ कम 05:/8/0४8.05/08693/608989006_30॥8_॥0/89 करामाते सहावा ४72 04 मकतबा इमामे आजम उन को भी गुस्ल को ज़रूरत हो और फरिश्तों ने इस बिना पर गुस्ल दिया हो। बहर हाल उस में शक नहीं कि एक सहाबी को गुस्ल देने के लिए आसमान से फरिश्तों का नाज़िल होना और अपने नूरानी हाथों से गुस्ल देना यह सैय्यदुश्शोहदा हज़रत हमज़ा #£ की एक बहुत ही बड़ी करामत है। (वल्लाहु तआला अअलम) कब्र के अन्दर से सलाम: हज़रत फातिमा ख़जाइया ££ का बयान कि म॑ एक दिन हज़रत सैय्यदुश्शोहदा जनाब हमज़ा##के मज़ारे पाक को जियारत के लिए गई और मैंने क॒ब्र के सामने खड़े होकर अस्सलामु अलैक या उम्मे रसूलुल्लाह कहा। तो आप ने बआवाजे बलन्द कब्र के अन्दर से मेरे सलाम का जवाब दिया। जिस को मैं ने अपने कानों से सुना। (हुज्जतुल्लाह जि 2, स 865 बहवाला बैहकी) उसी तरह शैख् महमूद कुरदी शैखाबी ने आप के कृब्र पर हाजिर होकर सलाम अर्ज किया तो आप ने कब्रे मुनव्वर के अन्दर से बआवाजे बलन्द्‌ उन के सलाम का जवाब दिया और इरशाद फरमाया कि ऐ शैख महमूद! तुम अपने लड़के का नाम मेरे नाम पर ““हमजा' खना। चुनानचे जब ख़ुदावन्दे करीम ने उन को बेटा अता फरमाया तो उन्होंने उस का नाम “हमज़ा'' रखा। (हज्जतुल्लाह अललअलमीन जि 2, स 8635 बहवाला किताबुल बाकियातुस्सालिहात) तबसेरा:इस रवायत से हज़रत हमजा £(£की चन्द करामतें मालूम पहला: यह कि आप ने कब्र के अन्दर से शैख़ु महमूद के सलाम को सुन लिया और देख भी लिया कि सलाम करने वाला शैख महमूद हैं। फिर आप ने सलाम का जवाब शैख़ महमूद को सुना भी दिया। हालाँकि दूसरे कुत्र वाले सलाम करने वालों के सलाम को सुन ता लेते हैं और पहचान भी लेते हैं मगर सलाम का जवाब सलाम करन वालों को सुना नहीं सकते। दुसरा: सैय्यदुश्शोहदा हज़रत हमजा##को अपनी कृत्र शरीफ क अन्दर रहते हुए यह मालूम था कि अभी शैख महमूद क कोई बंटा न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥|॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४7 05 मकतवा इमामे आजम नहीं मगर आगे उन को ख़ुदा वन्दे करीम बेटा अता फरमाण्गा। जभी तो आप ने हुक्म दिया कि ऐ रौखू महमूद! तुम अपने लड़क का नाम मेरे नाम पर हमज़ा रखना। क्‍ तीसरा: आप ने जवाबे सलाम और बेटे का नाम रखने के बारे में जो कुछ इरशाद फरमाया वह इस कुदर बलन्द आवाज से फरमाया कि शंख महमूद और दूसरे मौजूद लोगों ने सब कुछ अपने कानों से सुन लिया। उपर को करामतों से इस मसला पर रोशनी पड़ती है कि शोहदा-ए -किराम अपनी अपनी कूब्रों में पुरे जरूरियाते जिन्दगी क॑ साथ जिन्दा हैं और उन के इल्म की ज्यादती का यह हाल है कि वह यहाँ तक जान ओर पहचान लेते हैं कि आदमी की पीठ में जो नुतफा है उस ड्स से पैदा होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की! यही तो वजह ह कि हमज़ा ##ने फरमाया कि ऐ शैख्ध महमूद! तुम अपने लड़क का नाम मेरे नाम पर रखना। अगर उन को यकीन से यह मालूम न हांता कि लड़का ही पैदा होगा तो आप किस तरह लड़के का नाम अपने नाम पर रखने देते? वलल्‍लाहु तआला अअलम! कब्र में से खून निकला: जब हज़रत अमीर मआविया ##न अपनी हुकूमत के दौरान मदीना मुनव्वरा क अन्दर नहर खोदने का हुक्म दिया तो एक नहर हजरत हमजा&9 के मज़ारे अकुदस के पहलू में निकल रही थी। ला इल्मी में अचानक नहर खोदने वालों का फाबड़ा आप के कुदम मुबारक पर पड़ गया और आप का पावों कट गया। तो उस से ताजा झ्ून बह निकला। हालाँकि आप को दफन हुए छियालीस साल गुजर चुक थे। (हुज्जतुल्लाह जि?, स 864 बहवाला इब्ने सअद) तबसेरा: वफात के बाद ताज़ा ख़ून का बह निकलना यह दलील है कि शोहदा-ए-किराम अपनी कूब्रों में पूरे जरूरीयाते जिंदगी के साथ जिन्दा हैं जैसा कि उस से पहले हम इस मसला पर उसी किताब मं कदरे रोशनी डाल चुके हैं। 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0/0/9५ [[05://8/0|४8.0।0/0869॥|5/(2[080993/776_30॥9_॥02/3॥५ करामाते श्हाबा 67 | मकतवा इमामे आजम : हजरत अब्बास ४६४ यह हुजूरे नबी करीम#7के दूसरे चचा हैं उन की उम्र आप से दो साल ज्यादा थी। यह शुरू इस्लाम में क॒फ़्फारे के साथ थे। यहाँ त्क कि आप जंगे बद्र में कुफ़्फार की तरफ से जंग में शरीक हुए और मुसलमानों क हाथों में गिरफ़्तार हुए मगर मुहक़्केकीन का कहना यह है कि यह जंगे बद्र से पहले मुसलमान हो गए थे। और अपने इस्लाम को छुपाए हुए थे और कुफ़्फारे मक्का उन को कौम में होने का दबाव डाल कर जबरदस्ती जंगे बद्र में लाए थे। चुवान्चे जंगे बद्र में लड़ाई से पहले हुजूरे अकरम/###ने फ्रमाया दिया था कि तुम लोग हज़रत अब्बास को कृतल मत करना क्योंकि वह मुसलमान हो गए हैं। लेकिन कुफ़्फारे मक्का उन पर दबाव डाल कर उन्हें जंग में लाए हैं। यह बहुत ही बड़े और माल दार थे और जमाना-ए-जाहिलियत में भी हाजियों को जमजुम शरीफ पिलाने और खान-ए-कअबा की तअमीरात का एजाज आप को हासिल था। फुतहे मक्का के दिन उन्हीं के उभारने पर हज़रत अबू सुफयान&&ने भी इस्लाम कूबूल कर लिया आर दूसर सरदारान करंश भी उन्हीं के मशवरों से मुतअस्सिर होकर इस्लाम क दामन म॑ आए। उन की खूबियों में कुछ हदीसें भी आई हें और हुजूर/###ने उन को बहुत सी खुशखबरीयाँ और बहुत ज़्यादा दुआएं “कक दी हैं जिन का तज़्किरा सहाहे सित्ता और हदीस की दूसरी फताबों में तफुसील के साथ मौजूद है। 32 हिजरी में अट्ठासी बरस कौ उम्र पाकर मदीना मुनव्वरा में वफाता पाई। और जन्नतुल बकीअ में सुपुर्दे खाक किए गए। (अकमाल स०606 व तारीखुल ख़ुलफा वगैरा) क्रामत्‌ __ उनके तुफल बारिश हुई: अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर»#के दौरे >कफत मे जब सख्त सखा पड़ गया और रद साली की मुसीबत [. अब» का»... मम सिलिलननननननममममझ3-ऊ+-+- --जछ ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ वि ारंम कलम मलिक ्नननननन 7०००० ०3३27 वकितवा इमामे आज़म: एक्षिःकंपा० 9५8_॥0 सता देवान आजम से दुनियाए अरब बदहाली में मुबतेला हो गई तो अमीरूल मोमिनीन नमाजे इस्तिसका के लिए मदीना मुनव्वरा से बाहर मैदान में तशरीप्प ल॑ गए और उस मौका पर हज़ारों सहाबा-ए-किराम का इज्तिमाअ हुआ। उस भरे मजमअ में दुआ के वक्त हजरत अमीरूल मोमिनीन ने हज़ज्त अब्बास##का हाथ थाम कर उन्हें उठाया और उन को अपने आगे खड़ा करके इस तरह दुआ मांगी। कि या अल्लाह! पहले जब हम लोग कहत में मुबतेला होते थे तो र॑ नबी ##- को वसीला बना कर बारिश की दुआए मांगते थे और तू हम का बारिश अता फरमाता था मगर आज हम तेरे नबी##!के चचा को वसीला बना कर दुआ मांगते हैं इसलिए तू हमें बारिश अता फरमा दे।'' फिर हजरत अब्बास #%ने भी बारिश के लिए दुआ मांगी तो अचानक उसी वक्त इस कदर बारिश हुई कि लोग घुटनों घुटनों तक पानी में चलते हुए अपने घरों में वापस आए और लोग खुशी और जज़्ज़बए अकोदत से आप की चादरे मुबारक को चूमने लगे और कुछ लोग आप के जिस्मे मुबारक पर अपना हाथ फेरने लगे। चुनान्चे हज़रत हस्सान बिन साबित #४ने जो दरबारे नुब॒वत के शाइर थे इस वाकिआ को अपने अशआर में जिक्र करते हुए फरमाया:- ०-२० 8.) 6०५६ || (0३... ४7 0,५3७ (२-४ 45 /..0 ४ (|... ००-३4 ५०३ ५-३४ ४... ५ « ४ ८०५०४ ७५ ॥ 4 ५4 ४। | (यअनी अमीरूल मोमिनीन ने इस हालत में दुआ मांगी कि लगातार कई साल से कृहत पड़ा हुआ था तो बदली ने हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु की रोशन पैशानी के तुफैल में सब को सैराब कर दिया। मअबूदे बरहक्‌ ने इस बारिश से तमाम शहरों को ज़िन्दगी अता फ्रमाई और ना उम्मीदी के बाद तमाम शहरों के इर्द गिर्द हरे भरे होगए।) (बुड़्ारी जिल्द-4, सफा-526 व हुज्जतुल्लाह जिल्द-2, सफा-865 व दलाइलुन्नबुवा जिउ, स 206) न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा #/7? ]08 मकक्‍तबवा इमामे आजम न्‍ किककककननयन»नननननननन--नननननननननननननननन-+++ममनासल-मनिनिणख।:3:3ख।।:3प्::ख3तत+++++++अन्‍न्‍न - वयका फाककाा-नयकसा-ल्‍ाहन+.. तट. कप न च ्ू चत चतचतन-5 न अतः अमन 5 जनक" छाए. कक. ते. विन -पम«आ: .. ५म- उमा अमन. धड,.. 2ममक«क»न्‍-कम««»-ममआआ.९८»--ममआ-. हिममाााशाााााााा मम मण_णण्ग््ग्ग्ग््.्ण्््् हे नमन +-+++++++-35-+-+_ मानक न नम कक +++--+++ मनमानी हज़्रत्‌ जअफुर ४४ हज़रत जअफर बिन अबी तालिब £/£/हजरत अली £9४के भाई हैं यह पहले इस्लाम लाने वालों में हैं। यकतीस आदमियों के मुसलमान होने के बाद यह दामने इस्लाम में आए और कुफ़्फारे मक्का की तक्लीफों से तंग आकर रहमते आलम/#&7 की इजाजत से पहले हबशा को तरफ हिजरत की। फिर हबशा से कशतियों पर सवार हो कर मदोौना तैयबा की तरफ हिजरत की और खौबर में हुज्‌रे अकृदस #/को ख्दमते आलिया में उस वक्त पहुँचे जब कि खैबर फतह हो चुका था। और हुजूरे अकृदस/&“माले ग़नीमत को मुजाहिदीन के दरमियान बॉट रहे थे। हुजूरे अकरमर्ट्“/ने जोशे मुहब्बत में उन से मुआनका (गले मिलना) फ्रमाया और इरशाद फरमाया कि मैं इस बात का झसला नहीं कर सकता कि जंगे खैबर की फतह से मुझे ज़्यादा ख़ुशी हासिल हुई या ऐे जअफूर बिन अबी तालिब! तुम मुहाजिरीन के आने से ज़्यादा खुशी हासिल हुई। यह बहुत ही जॉबाज़ और बहादुर थे और निहायत ही ख़ुबसरत ओर बा रोअब थे। सन्‌ 8 हिजरी की जंगे मौता में अमीरे लश्कर होने को हालत में इकतालीस बरस की उम्र में शहादत से सरफ्राज़ हुए। उस जंग में कमान्डर होने की वजह से लश्करे इस्लाम का झंडा उन क हाथ में था। क॒फ़्फार ने तलवार के वार से उन के दाएँ हाथ को शहीद कर दिया तो उन्होंने ने झपट कर झंडे को बाएँ हाथ में पकड़ _ लिया। जब बायाँ हाथ भी कट कर गिर पड़ा तो उन्होंने झंडे को दोनों कटे हुए बाजूओं से थाम लिया। हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर ##ने फ्रमाया जब हम ने उन की लाशे मुबारक को उठाया तो उन के जिस्मे अतहर पे नव्वे जख्म थे मगर कोई जख्म भी उन के बदन के पीछे हिस्से पर नहीं लगा था बल्कि तमाम जुड़म उन के बदन के अगले ही हिस्से पर थे। (अकमाल स॒ 589 व हवाशी बुखारी वगैरा) क.त++33333++++333333++++3+++++++++++++++++++नननम-ननम कम ,०---+>-+++न++मनमनम 5". समर हइ३००००+०७ ७ +>+र 5८664 ५शशंगर ए750वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0//0/9५ करामाते सहावा, ग्न-ननन्‍न्‍मनन-ननकककक्क्कॉा 7 य यए 77 ट22000४७७७७७४७४७७७७७७७७७७७७७४: ्तन न नि भव्य न नमन न क-नान----32.2०393333५3५५+3+++++++++----ल-++-+ नया» ॥[[25:/9/079५6.070/06[4॥/' वांध्र्ा6 बांध शिवा // 97०१ ॥॥8?79०78 30॥॥4 सतिवा इमामे आज़म 8 शक: . ८... ८८.0... -साकााा.....3.ल्‍व०------..क्‍क्‍८त.... सका --. >किस क्रामत्‌ जूल जनाहीन (दो बाज ओं वाला या उड़ने वाल): उन का एक लक॒ब _ जुल जनाहीन (दो बाजुओं वाला) है दूसरा लकब तेयार (उड़ने वाला) है। हुजूरे अकृदस/&#ने उन की यह करामत बयान फ्रमाई है कि उन के कटे हुए बाजुओं के बदले में अल्लाह तआला ने उन को दो पर अता फ्रमाए हैं। और यह जन्नत के बागों में जहाँ चाहते हैं उड़ कर चले जाते हैं। हि: ० तबसेरा: आप को उसी करामत को बयान करते हुए अमीरूल मनीन हजरत सैय्यदना अली मुर्तज़ा#9ने फसखारिया अनदाज में यह शेअर इरशाद फ्रमाया है:- (दा । दिल ॥ 25५ | ॥ 6-० +--+४-२ है मे डॉ स ८++-२ (5 | झ-+-- ॥ (यअनी जअफ्र बिन अबी तालिब:#7जो सुबह व शाम फरिश्तों के झुरमुट में नूरानी बाजूओं से परवाज़ (उड़ान)फ्रमाते रहते हैं वह मेरे हकीकी भाई हैं।) आप को यह करामत बहुत ही बड़ी हैं क्योंकि और किसी दूसरे सहाबी के बारे में यह करामत हमारी नज़र से नहीं गुज़री। हज़रत खालिद बिन वलीद #£ यह खानदाने क्रैश के बहुत ही नामवर लोगों में से हैं उन की वालिदा हज़रत बीबी लुबाबा सुग़रा&४ उम्मुल मोमिनीन हजरत बीबी मैमूना #/#की बहन थीं। यह बहादुरी और फौजी सलाहियत तदाबीरे जंग के ऐतेबार से तमाम सहाबा-ए-किराम में एक खुससी इम्तियाज रखते हैं। इस्लाम कूबूल करने से पहले उन की और उन के बाप वलीद की इस्लाम दुश्मनी मशहूर थी। जंगे बद्र और जंगे उहुद की लड़ाइयों में यह कुफ़्फार के साथ रहे और उन से मुसलमानों को बहुत ज़्यादा जानी नुकसान पहुँचा मगर अचानक उन के दिल में इस्लाम की सच्चाई का ऐसा सूरज निकल गया कि सन्‌ 7 हिजरी में यह ख़ुद न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम ॥0[05:॥/8/079५8.0/5/06७98/5/6)/808/76__9५॥8 _॥0/8/% करामाते सहावा ९! |() मक्तवा इमामे आजम बख़ुद मक्का से मदीना जाकर दरबार रिसालत में हाजिर हो गए और दामने इस्लाम में आगए और यह वादा कर लिया कि अब जिन्दगी भर मेरी तलवार कुफ़्फार से लड़ने के लिए बेनियाम रहे गी। चुनान्चे उस के बाद हर जंग में इन्तेहाई मुजाहिदाना जाह व जलाल के साथ कुफ़्फार क मुकाबला में लड़ते रहे। यहाँ तक कि सन्‌ 8 हिजरी में जंगे मौता में जब हजरत जैद बिन हारिसा, हज़रत जअफर बिन अबी तालिब व हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा८४तीनों कमान्डर ने यके बाद दीगरे जामे शहादत नोश कर लिया तो इस्लामी फौज ने उन को अपना कमान्डर चुना और उन्होंने ऐसी जाँबाजी के साथ जंग की कि मुसलमानों को फतहे मुबीन (जीत) होगई। है और उसी मौक्‌अ पर जब यह जंग में व्यस्त थे हुजूरे अकरम है ने मदीना मुनव्वरा में सहाबा के एक जमाअत के सामने उन को सैफुल्लाह'' (अल्लाह की तलवार) के खोेताब से सरफराज फ्रमाया। अमीरूल मोमिनीन अबू बकर सिद्योक ४£के दौरे ख्थिलाफत म॑ जब फितना इरतदाद (इस्लाम से फिरना) ने सर उठाया। तो उन्होंने उन जंगों में । भी कर जंगे यमामा में मुसलमान फौजियों की कमान्डरी को ज़िम्मेदारी कूबूल की और हर मोड़ पर फततहे मुबीन हासिल को। फिर अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर की फ्त के दोरान रूमियों की जंगों में भी उन्होंने इस्लामी फौजों की कमान संभाली और बहुत ज़्यादा फ्तूहात हासिल हुएं। सन्‌ 2 हिजरी में चन्द्‌ दिन बीमार रह कर वफात पाई। (अकमाल स593 / वे कन्जुल उम्माल जि45, व तारीख़ुल ख़ुलफा) फरामात्‌ जहर ने असर नहीं किया: रिवायत है कि जब हज़रत खालिद बिन वलीद##ने मकाम “हैरा'' में अपने लश्कर के साथ पड़ाओ किया तो लोगों ने अर्ज़ किया कि ऐ अमीरे लश्कर! आप अजमियों (अरब के अलावा के रहने वाले) न + रहने वाले) क जहर से बचते रहें। हम लोगों को अंदेशा है के जहर से बचते रहें। हम लोगों को अंदेशा है ब्न्नकून ब्ण्जी ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05://.06/5 077 _|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6208099776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा #४२ 8]] मकतवा इमामे आजम श्खिच्लल््च्ज्लआ्>ल>_्ा्लल ल“ल््नलनह6हफह869पस ल ल घहडह आग नननकन-ननीन-नन- मनन । वतन “-स्‍रननननननमननम-मन-न-नननमननन----नम मन जम कि कहीं यह लोग आप को जहर न दे दें। आप ने फ्रमाया कि लाओ में देख लूं कि अजमियों का ज़हर कैसा होता है? लोगों ने आप को दिया तो आप ““बिस्मिल्लाह'' पढ़ कर खा गए और आप को बाल बराबर भी नुक्सान नहीं पहुँचा और '“कलबी'' की रिवायत में यह है कि एक ईसाई पादरी जिस का नाम अब्दुल मसीह था एक ऐसा जहर ले कर आया कि उस के खा लेने से एक घंटा के बाद मौत यकीनी होती है। आप ने उस से वह जहर मांग कर उस के सामने ही «0... शैली 6-४ 2३००-४४) ०३४ ४ ५४१०० ७ २४ ७-- पढ़ा और यह जहर खा गए। यह मंजर देख कर अब्दुल मसीह ने अपनी कौम से कहा कि ऐ मेरी कौम! यह इतना खतरनाक जहर खा कर भी जिन्दा है। यह बहुत ही हैरत की बात है। अब बेहतर यही है कि उन से सुलह करलो वरना उन की फतह यकीनी है। चुनानचे उन ईसाईयों ने एक भारी भरकम टेक्स दे कर सुलह कर ली। यह वाकिआ अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दीकु&£ के दौरे ख्थिलाफत में हुआ। (हज्जतुल्लाह जि?, स 867 बहवाला बैहकी वगैरा) तबसेरा: हम इसी किताब के शुरू में ''तहकौके करामात'' के उनवान के तहत में यह तहरीर कर चुके हैं कि करामत की पचीस किसमों से जानलेवा चीजों का असर न करना यह भी करामत की एक बहुत ही शानदार किस्म है। चुनान्चे उपर को रिवायत इस की बेहतरीन मिसाल हें। | शराब का शहद में तबदील हो जाना: हज़रत खीमा&£कहते हैं कि एक शख्स हजरत खालिद बिन वलीद#४ के पास शराब से भरी हुई मश्क ले कर आया तो आप ने यह दुआ मांगी कि या अल्लाह! उस को शहद बना दे। थोड़ी देर बाद जब लोगों ने देखा तो वह मश्क शहद से भरी हुई थी। (हुज्जतुल्लाह जि2, स 867 व तबरी जि4, स4) शराब सिर्का बन गई: एक मर्तबा लोगों ने आप से शिकायत को कि ऐ अमीरे लश्कर ! आप की फौज में कुछ लोग शराब पीते हैं। जा अंक »+क न न नि न नमन भर ननकक नमन रमन भभभसफफफन5 ही ब्न्नकून बज 606 ५शशा॥ ए752८वाा6श [05:/.6/5 077 _|॥ता|फिवा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/620809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा ४४ ।]2 मकक्‍तवा इमामे आजम ने एक सिपाही के पास से शराब की एक मश्क पा ली। लेकिन जब यह मश्क आप के सामने पेश को गई तो आप ने बारगाहे इलाही में यह दुआ मंगी कि ''ऐ अल्लाह! उस को सिर्का बना दे'' चुनानचे जब लोगों ने मएक का मुंह खोल कर देखा तो .वाकई उस में से सिर्का निकला। यह देख कर मश्क वाला सिपाही कहने लगा खुदा की कसम! यह हजरत खालिद बिन वलीद%#की करामत है। वरना हकौकत यही है कि मैंने उस मश्क में शराब भर रखी थी। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि2, स 867) तबसेरा: करामत को पचीस किसमों में से ““कलबे माहियत'"' यअनी किसी चीज़ की हकीकत को बदल देना मज़कूरा बाला दोनों रिवायात करामत की उसी किसम की मिसाल है कि ओऔलिया-ए-किराम जब भी चाहते हैं अपनी रूहानी ताकत या अपनी मकबूल दुआओं को बदौलत एक चीज़ की हकीकृत को बदल कर उस का दूसरी चीज़ बना देते हैं। औलिया अल्लाह की करामतों के तज्किरों में उस की हज़ारों मिसालें मिलेंगी। हजरत अब्दुल्लाह बिन्‌ उम्र £४ यह अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर बिन ख़त्ताब :$के बेटे हैं। उन की माँ का नाम जैनब बिन्ते मज़कऊन है। यह बचपन ही में अपने वालिद माजिद के साथ मुशर्रफ ब इस्लाम हुए। यह इल्म व फजल के साथ बहुत ही इबादत गुज़ार परहेज़गार थे। मैमून बिन महरान ताबई का फरमान है कि में ने अब्दुल्लाह बिन उमर %#£से बढ़ कर किसी को मुत्तकी व परहेज़गार नहीं देखा। हज़रत इमाम मालिक फरमाया करते थे कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर मुसलमानों के इमाम हैं। यह हुजूर/#$ को वफाते अकृदस के बाद साठ बरस तक हज के मजमों और दूसरे मौकों पर मुसलमानों को इस्लामी हुक्मों के बारे में फतवा देते रहे। मिजाज में बहुत ज़्यादा सख्बावत का ग़लबा था और बहुत ज़्यादा सदका व खैुरात की आदत थी। अपनी जो चीज पसन्द न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍76/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | [[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_30७॥9_॥0/9/%५ _करामाते सहावा 82 ]43 मकतवा इमामे आज़म आजाती थी फौरन ही उस को राहे ख़ुदा में खैरात कर देते थे। आप ने अपनी ज़िन्दगी में एक हज़ार गुलामों को खरी द्वराद्‌ कर आजाद फ्रमाया। जंगे ख़ुन्दक्‌ और उस के बाद इस्लामी लड़ाइयों में बराबर कुफ़्फार से जंग करते रहे। हाँ अलबत्ता हज़रत अली और हजरत मआविया &2के बीच जो लड़ाइयाँ हुईं। आप उन लड़ाइयों में गैर जानिबदार रहे। | अब्दुल मलिक बिन मरवान की हुकूमत के दौरान हज्जाज बिन युसुफ सकफो अमीरूल हज बन कर आया। आप ने खुतबा के दरमियान उस को टोक दिया। हज्जाज जालिम ने जल भुन कर अपने एक सिपाही को हुक्म दे दिया कि वह ज़हर में बुझाया हुआ नेजा (भाला) / हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर के पावों में मार दे। चुनान्चे उस मरदूद ने आप के पावं में नेज़ा मार दिया। ज़हर के असर से आप का पावों बहुत ज़्यादा फूल गया और आप बीमार हो कर बिस्तर पर पड़ गए। मक्‍्कार हज्जाज बिन युसुफ्‌ आप की अयादत के लिए आया और कहने लगा कि हज़रत! काश मुझे मअलूम हो जाता कि किस ने आप को नेज़ा मारा है? आप ने फ्रमाया। उस को जान कर फिर तुम क्‍या करो गे? हज्जाज ने कहा कि अगर मैं उस को कत्ल न करू तो द्रुदा मुझे मार डाले। हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर #$ने फ्रमाया कि तुम कभी हरगिज़ हरगिज़ उस को कृत्ल नहीं करोगे। उस ने तो तुम्हारे हुक्म ही से ऐसा किया है। यह सुन कर हज्जाज बिन युसुफ कहने लगा कि नहीं नहीं ऐ अबू अब्दुरहमान! आप हरगिज़ यह ख्याल न करें ओर जल्दी. से उठ कर चल दिया। उसी मरज़ में सन ७४ हिजरी में हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर ##की शहादत के तीन महीने बाद हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर ४४चौरासी या छियासी बरस की उमर पाकर वफात पा गए। और मक्का मुअज़्ज़मा में मकामे ““मुहसब'' या मकामे “'ज़ी तवी'' में दफन हुए। (असदुल ग़ाबा जिल्द 3, सफा 229 अकमाल सफा 605 व तज़्किरतुल हुफ़्फाज़ जिल्द , सफा 355) क्‍ न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्या756वयगशा6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209809776_30७॥9_॥20/9/% करामाते सहाबा ४४ [[4 मकतवा इमामे आजम क्रामात शेर दुम हिलाता हुआ भागा: अल्लामा ताजुद्दीन सुबकी ने अपने ''तबकात'' » तहरीर फरमाया है कि एक शेर रास्ता में बैठा हआ था और काफिला वालों का रास्ता रोके हुए था। हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर £४ने उस के क्रीब जाकर फरमाया कि रास्ता से अलग हट कर खड़ा हो जा। आप की यह डाँट सुन कर शेर दुम हिला कर रास्ता से दूर भाग निकला। (तफ्सीरे कबीर जि5, स 79 व हुज्जतुल्लाह जि९, स 866) एक फरिशता से मुलाकात: हज़रत अता बिन अबी रबाह का बयान है कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर #£ने दोपहर के वक्‍त देखा कि एक बहुत ही खूबसूरत साँप ने सात चक्कर बैतुल्लाह शरीफ का तवाफ्‌ किया। फिर मकामे इब्राहीम पर दो रकअत नमाज पढ़ी। आप से उस सॉप से फ्रमाया अब आप जब कि तवाफ से फारिग हो चुके है यहाँ पर आप का ठहरना मुनासिब नहीं है। क्‍योंकि मुझे खतरा हे कि मेरे शहर के बेवकूफ लोग आप को कुछ तकलीफ पहुँचा देंगे। सॉप ने बगोर आप के कलाम को सुना फिर अपनी दुम के बल खड़ा हो गया। और फौरन ही उड़ कर आसमान पर चला गया। इस तरह लोगों को मअलूम हो गया कि कोई फरिश्ता था जो साँप की शक्ल में तवाफे कअबा के लिए आया था। (दलाइलुन्नबुवा जिउ, स 207) ज़्याद कैसे हलाक्‌ हुआ?: ज़्याद सलतनते बनू उमैया का बहुत ही जालिम व जाबिर गवर्नर था। हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर ##को यह ख़बर मिली कि वह हज्जाज़ का गवर्नर बन कर आ रहा है आप को यह हरगिज़ गवारा न था कि मक्का मुकर्रमा और मदीना मुनव्वरा पर ऐसा जालिम हुकूमत करे। चुनान्वे आप ने यह दुआ मांगी कि या अल्लाह! इब्ने समिया (ज़्याद) की इस तरह मौत हो जाए कि उस के बदले में कोई मुसलमान कृत्ल न किया जाए। आप की यह दुआ मकबूल हो गई कि अचानक ज़्याद के अंगूठे में ताऊन गिलटी निकल ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05://.006/5 077 _|॥ताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते राहावा ४८४ [|5 मसक्‍्तावा डसामे आजम पड़ी और बह एक हफ्ता के अन्दर ही एंडिं याँ ग्गड़ रगड़ कर मर गया। (इब्ने असाकिर व मुनतखूब जिलल्‍्द 5, सफा 23) तबसेरा: हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर&##को पहली करामत से यह मालूम हुआ कि अल्लाह बालों की हुकुमत का सिक्का न सिफ इन्सानों के दिलों पर हाता है बल्कि उन के हाकिसाना पावर का परचम दरिन्दों, चरिन्दों, परिन्दों के दिलों पर भी लहराता रहता है और सब के सब अल्लाह बालों के फ्स्मांबग्दार हो जात हैं। यही बह मजमृन है जिस की तरफ इशारा करते हुए हजरत शौखा सअदी औहिर््हमा ने फरमाया हे: हल अतीत 34-३२ 0१ 4४ ४ हल 222 ७-7 3) ७२/ं ७ 47 (यअनी तुम ख़ुदा बन्दे करीम के हुक्म से गर्दन न मादा ताकि कोई मख्लृक्‌ तुम्हार हुक्म से गर्दन न माड़े) मतलब यह है कि अगर तुम ख़ुदा क॑ फ्रमॉबिरदार बने रहोगे तो ख़ुदा की तमाम मख्ल्लुकात तुम्हारी फरमॉबरदार बनी रहेगी। दूसरी करामत से यह सबक्‌ मिलता है कि जब कअबा मुअज़्जमा के तबाफ के लिए फरिश्ते साँप की शकल में आते हैं तो फिर जाहिर है कि फरिश्ते इंसानों की शक्ल म॑ं भी जरूर ही आत हांगे। इस लिए हर हाजी को यह ध्यान रखना चाहिए कि हरम कअबा में हरगिज़ हरगिज किसी से उलझना नहीं चाहिए ख़ुदा न ख़्वास्ता तुम किसी इंसान से झगड़ा तकरार करों और हकौकृत में कोई फरिश्ता हो जो इंसान के रूप में तकरार कर रहा हो तो फिर यह समझ लो कि किसी फरिश्ते से लड़ने झगड़ने का अनजाम अपनी हलाकत के सिवा और क्या हो सकता हे? तीसरी करामत से ज़ाहिर है कि अल्लाह बालों की दुआएँ उस तीर की तरह होती हँ जो कमान से निकल कर निश्ञाना से बाल बराबर ख़ता नहीं करती इस लिए हमेशा इस का ख्याल रखना चाहिए कि कभी भी किसी बद दुआ को पकड़ और फटकार में न पड़ें और मग्रिब ज़दा मुलहिदों (बे दीनों) की तरह हरगिज़ यह न कहा करें कि -+-माः तमाम» ०० मूह काना समर नसक«+ल नमक ना 7 यत3५७9े- ाां 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0//0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा &2 ]]6 मकतवा इमामे आज़म मियाँ किसी की दुआ या बद दुआ से कुछ नहीं होता। यह मुल्ला लोग बिला वजह लोगों को बद दुआ की थधौंस दिया करते हें बल्कि यह ईमान रखें कि बुजुर्गों की दुआओं ओर बददुआओं में बहुत ज़्यादा असर है। हज़रत्‌ सअद बिन मआज #9 हजरत सअद बिन मआजु बिन नौंअमान अन्सारी यह मदीना मुनव्वरा के रहने वाले बहुत ही बड़े मर्तबे वाले सहाबी हैं। हुजूरे अकृदस/&#ने मदीना मुनव्वरा तशरीफ ले जाने से पहले ही हज़रत मुसअब बिन उमैर ##को मदीना मुनव्वरा भेज दिया कि वह मुसलमानों को इस्लाम की तअलीम दें। और गैर मुस्लिमों को इस्लाम को तबलीग करते रहें। चुनान्चे हजरत मुसअब बिन उमैर#9की तबलीग से हज़रत सअद बिन मआज £५४दामने इस्लाम में आ गए और ठ्ुद्‌ इस्लाम कूबूल करते ही यह ऐलान फ्रमा दिया कि मेरे कुबीला बनू अब्दुल अशहल का जो मर्द या औरत इस्लाम से मुंह मोड़े गा मेरे लिए हराम है कि मैं उस से कलाम करूँ।आप का यह ऐलान सुनते ही कूबीला बनू अब्दुल अशहल का एक एक बच्चा दौलते इस्लाम से माला माल हो गया। इस तरह आप का मुसलमान हो जाना मदीना मुनव्वरा में इस्लाम फैलने के लिए बहुत ही बा बरकत साबित हुआ। आप बहुत ही बहादुर ओर इन्तेहाई निशाना बाज़ तीर अनदाज भी थे। जंगे बद्र और उहुद में खूब ख्ूब बहादुरी दिखाई। मगर जंगे ख़नदक में जख़मी हो गए और उसी जख्म में शहादत से सरफराज हो गए। उन की शहादत का वाकिआ यह है कि आप एक छोटी सी जिरह (लोहे का वह कपड़ा जो जंग में पहनते हैं) पहने हुए नेज़ा ले कर जोशे जिहाद में लड़ने के लिए मैदाने जंग में जा रहे थे कि इब्ने उरका नामी काफिर ने ऐसा निशाना बांध कर तीर मारा कि जिस से आप की एक रग जिस का नाम “अकहल'"' है कट गई। हुजूरे अकरमा/“ने उन _ के लिए मस्जिदे नबवी में एक खेमा गाड़ा और उन का इलाज शुरू न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍06/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा 2 []7 मकक्‍तवा इमामे आज़म किया। ख़ुद अपने दस्ते मुबारक से दो मर्तबा उन के जख्म को दागा और उन का जख्म भरने लग गया था लेकिन उन्होंने शहादत के शौक में ख़ुदावन्दे तआला से यह दुआ मांगी “या अल्लाह! तू जानता है कि किसी कौम से मुझे जंग करने की इतनी तमन्ना नहीं है जितनी कुफ़्फारे कुरैश से लड़ने की तमन्ना है। जिन्होंने ने तेरे रसूल को झुठलाया और उन को उन के वतन से निकाला। ऐ अल्लाह! मेरा तो यही ख्याल है कि अब तू ने हमारे और कफ़्फारे करैश के बीच जंग का ख़ातमा कर दिया है लेकिन अगर अभी कुफ़्फारे कुरैश से कोई जंग बाकी रह गई हो जब तो मुझे जिन्दा रखना ताकि में तेरी राह में उन काफिरों से जंग करू अगर अब उन लोगों से कोई जंग बाकी न रह गई हो तो तू मेरे इस जख्म को फाड़ दे और इस जख्म में तू मुझे शहादत अता फ्रमा दे।' ठ्ुदा की शान कि आप की यह दुआ ख़त्म होते ही बिल्कुल अचानक आप का जख्म फट गया और ख़न बह कर मस्जिदे नबवी में बनी गफ़्फार के खेमे के अन्दर पहुँच गया। उन लोगों ने चौंक कर कहा कि ऐ ख्ेमा वालो! यह कैसा ख़ून है जो तुम्हारी तरफ से बह कर हमारी तरफ आ रहा है? जब लोगों ने देखा तो हज़रत सअद बिन मआज #£9के जख्म से ख़ून जारी था। उसी ज़र्म में उन को शहादत हो गई। (बुखारी जि 2, स 59 बाब मरजउन्‍नबी मिनल इहज़ाब) औन वफात के वक्त उन के सरहाने हुजूरे अनवर#&“तश्रीफ फरमा हैं। जाँ कनी (जान निकलने का वक़्त)के आलम में उन्होंने ने आखिरी बार जमाले नुबूवत का दीदार किया और कहा। अस्सलामु अलैका या रसूलललाह! फिर बलन्द आवाज से कहा कि या रसूलल्लाह! मैं गवाही देता हूँ कि आप अल्लाह क रसूल हैं। और आप ने तबलीगे रिसालत का हक्‌ अदा कर दिया। (मदारिजुन्नबुवा जि०2, स०48 [8/) आप का साले विसाल ५ हिजरी है। बवक्ते विसाल आप कौ उम्र ऑ | न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍76/5 07॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09099776_830७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा /४२ ]]8 मकतवा इमामे आजम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्‍लम उन को दफना कर वापस आ रहे थे तो शिद्दते ग़म से आप के आँसू के कृतरात आप की दाढ़ी मुबारक पर गिर रहे थे। (अकमाल स 596 व असदुल गाबा जि2, स 298) करामात्‌ जनाजा में सत्तर हजार फरिश्ते: हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर £9 ब्यान करते हैं कि रसूलुल्लाह/##ने फ्रमाया कि सअद बिन मआज़ की मौत से अर्शे इलाही हिल गया और सत्तर हज़ार फुरिश्ते उन के जनाज़ा में शरीक हुए। (जरकानी जि?, स 43 व हुज्जतुल्लाह जि2, स 868) मिट्टी मुश्क बन गई: मुहम्मद बिन शरजील बिन हसना#£का बयान है कि एक शख्स ने हज़रत सअद बिन मआज #£की कब्र की मिट्टी हाथ में ली तो उस में से मुशक की खुश्बू आने लगी और एक रिवायत में यह भी है कि जब उन की कब्र खोदी गई तो उस में से खुश्बू आने लगी। जब हुजूरे अकृदस/##से उस का जिक किया गया तो आप ने सुब्हानललाह! सुब्हानल्लाह! फ्रमाया और खुशी के आसार आप क रूख़्सारे अनवर पर जाहिर हो गए। (जरकानी जि?, स 43, व हुज्जतुल्लाह जि 2, स 868 बहवाला इब्ने असअद) फरिश्तों से खेमा भर गया: हज़रत सलमा बिन असलम बिन हरीश ##कहते हैं कि जब हुजूरे अक॒दस/&7हज़रत सअद बिन मआज 9 के ब्ेमा में तशरीफ फरमा हुए तो वहाँ कोई भी आदमी मौजूद न था मगर फिर भी हुजूरे अकरम/&7लम्बे लम्बे कदम रख॑ं कर फलांगते हुए खेमा में तशरीफ ले गए और उन की लाश के पास थोड़ी देर ठहर कर बाहर तशरीफ लाए। मैं ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! मैं ने आप को देखा कि आप खेमा में लम्बे लम्बे कदम के साथ फलांगते हुए दाखिल हुए हालाँकि ख़ेमा में कोई शख़्स भी मौजूद न था। आप ने फरमाया कि ख़ेमा में इस कदर फरिश्तों का हुजूमह था कि वहाँ कदम रखने की जगह न थी। इस लिए मैं ने फ्रिश्तों के बाजुओं को ]60 ५शं। (ए75टवगगशाहशः [05:/.6/50॥7_|॥ताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/%५ करागाते शहावा ९९ ।]0 गकतवा इमागे आजम पता बचा कर कुदग रखा। (हज्जतुल्लाह जअलल आलमीन जि? स0७ बएवाला ए*। असणाद) तबसेरा; (]4 के नेक और गहब॒ब बन्दों की निसबत से जब्य उन को कूत्र को गिट्टी में गुश्क को साश्न पैदा हो जाती है तो लोगों की एसत ले बदबस्ती दूर होकर उनहों अस्कत व नेकबख्ती हासिल हो जाए तो उस में कोन सा तअज्जुब है? जिन की तासीर से मिट्री मुश्क पेन सकती है क्या उन की असर से बीमारी तन्दुरूस्ती और बद नसीज्नी , ख़श नसीत्री नहीं नन प्रकती। काश! नह लोग जो औलिया अल्लाह की कन्रों को मिट्री का ढेर कह कर कबठ्रों की ज़ियारत करने वालों का मज़ाक उड़ाया करते हैं भौर उन मुकुदस कृब्रों की तासीर का इन्कार करते रहते हैं इस रिंवायत से हिदायत की रोशनी हासिल करते और औलिया अल्लाह की कन्रों का अदब ब एहतेराम करते। हज़्र्त्‌ अब्दुल्लाह ब्व उम्र व्‌ बित हजाम%४ यह मदीना मुनव्वरा क रहने वाले अन्सारी हैं और मशहुर सहाबी हजरत जाबिरः£४क बाप हैं। कुबीला-ए-अन्सार में यह अपने खानद बनी सलमा के सरदार और रहमते आलम#४“के बहुत ही जाँ निसार सहाबी हैं। जंगे बद्र में बड़ी बहादुरी और जाँ बाजी के साथ कफ्फार से लड़े। और सन्‌ उ हिजरी में जंगे उहुद के दिन सब से पहले जामे शहादत से सैराब हुए। बुखारी शरीफ वगैरा की रिवायत है कि उन्होंने रात में अपने बेटे हज़रत जाबिर ::४को बुला कर यह फरमाया। मेरे प्यारे बेटे! कल सुबह जंगे उहद में में ही सब से पहले शहादत से सरफराज़ हूगा। और बेटा! सुन लो! रसूलुल्लाह४४/के बाद तुम से ज़्यादा मेरा कोई प्यारा नहीं है। इस लिए तुम मेरा कर्ज अदा कर देना और बहनों के साथ अच्छा सुलूक करना। यह मेरी आखरी वसियत है। __ हज़रत जाबिर £# का बयान है कि वाकई सुबह को मेंदाने जग में जाबिर :£४ का बयान है कि वाकुई सुबह को मैदाने जंग मे 5८664 ५शशंगर ए752८वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0/0/9॥५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 6४०2 ]20 मक्‍तवा इमामे आजम च्च्च्च्च्च्न्त्च्च्च्च्च _त्त्तातातत्चचचसककक्कककलोििििि393७3७७७७ विशनननन नमन मनन नमन न न «5 कस +++८----ट«नान न न ८८-4८“ प+ न सब से पहले मेरे वालिद हज़रत अब्दुल्लाह बिन हज़ाम ४» शहोद हुए। | जि।, स।80 व असदुल गाबा ज़ि३, स 2352) क्रामात्‌ न ने साया किया: हज़रत जाबिर #£कहते हैं कि जंगे उहुद के दिन जब मेरे वालिद हज़रत अब्दुल्लाह अन्सारी:४£की मुकच्स लाश को उठा कर बारगाहे रिसालत में लाए। तो उन का यह हाल था कि काफिरों ने उन के कान और नाक को काट कर उन की सूरत बिगाड़ दी थी। में ने चाहा कि उन का चेहरा खोल कर देख तो मेरी बिरादरी और | कबीला वालों ने मुझे इस ख्याल से मना कर दिया कि लड़का अपने बाप का यह हाल देख कर तकलीफ व गम से निढाल हो जाएगा। इतने में मेरी फूफी रोती हुई उन की लाश के पा” आईं तो सैय्यदे आलम हुजूर अकरम##“ने फ्रमाया कि तुम उन पर शओ या ना राओ। फरिश्तों को फौज बराबर लगातार उन की लाश पर अपने बाजुओं स॑ साया करते रहते हैं। (बुआरी जि।, स 3595) हक कफ्न सलामत बदन तरोताजा: हज़रत जाबिर%#£का बयान है कि जगे उहुद क दिन में अपने वालिद हज़रत अब्दुल्लाह #को एक दूसरे शहीद (हज़रत अमर बिन जुमूह) के साथ एक ही कब्र में दफन कर दिया था | फिर मुझ यह अच्छा नहीं लगा कि मेरे बाप एक दूसरे शहीद्‌ का कब्र म॑ं दफन हं। इस ख्याल से कि उन को एक अलग >त्र म॑ दफन करू। छ: महीने के बाद मैं ने उन की कब्र को कर लाश मुबारक को निकाला तो वह बिल्कुल उसी हालत मेंथे जिस हालत म॑ उन को मैं ने दफन किया था। सिवाए उस के कि उन के कान पर कुछ बदलाव हुआ था। (बुख़ारी जि ।, स।80 हाशिया बुख़ारी) और इब्ने सअद की रिवायत में है कि हज़रत अब्दुल्लाह &##के पहरे पर ज़ख़्म लगा था और उन का हाथ उन के जख्म पर था। जब उन का हाथ उन के जख्म से हटाया गया तो जख्म से खन बहने न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | ॥05:॥/8/079५8.0/5/06७8/5/6)/808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करा+ते सहावा €० ]2] मकक्‍तवा इमामे आजम बन्द हो गया और उन का कफन जो एक चादर थी जिस से चेहरा छिपा दिया गया था और उन के पैरों पर घास डाल दी गई थी चादर और घास दोनों को हम ने उसी तरह पड़ा हुआ पाया। (इब्ने असअद जिल्द उ, सफा 562) _ उस के बाद मदीना मुनव्वरा में नहरों की खुदाई के वक्त जब हज़रत अमीरे मआविया #£ने यह ऐलान कराया कि सब लोग मंदाने उहुद से अपने अपने मुर्दों को उन की कब्रों से निकाल कर ले जाएँ। तो हज़रत जाबिर&#फ्रमाते हैं कि मैं ने दोबारा छियालिस (46) बरस के बाद अपने वालिद माजिद हज़रत अब्दुल्लाह%#£की कृब्र खोद कर उन को मुकद्स लाश को निकाला तो मैं ने उन को उस हाल में पाया कि अपने ज़रूम पर हाथ रखे हुए थे। जब उन का हाथ उठाया गया तो जख्म से ख़ून बहने लगा। फिर जब हाथ जख्म पर रख दिया गया तो खून बन्द हो गया और उन का कफन जो एक चादर का था उसी तरह सही सालिम था। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जिल्द 2, सफा 864 ब हवाला बैहकौ) कब्र में तिलावतः हज़रत अबू तलहा बिन उबेैदुल्लाह ४££फरमाते हैं कि म॑ अपनी जमीन की देख भाल के लिए “'गाबा'' जा रहा था तो रास्ते में रात हो गई। इस लिए मैं हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमर बिन हज़ाम ४#को कुत्र के पास ठहर गया। जब कुछ रात गुज़र गई तो में ने उन की कब्र में से तिलावत की इतनी बेहतरीन आवाज़ सुनी कि उस से पहले इतनी अच्छी तिलावत में ने कभी भी नहीं सुनी थी। जब मैं मदीना मुनव्वरा को लौट कर आया और मैं ने ह॒जूरे अकदस/&#से उस का तज्किरा किया तो आप ने इरशाद फरमाया कि क्या ऐ अबू तलहा! तुम को यह मालूम नहीं कि ख़ुदा ने उन शहादों को रूहों को कुब्ज़ करक॑ ज़बरजद और याकूत की लालटेन में रखा है। और उन किन्दीलों (लालटेनों) के जन्नत के बागों में लटका दिया है। जब रात होती है तो यह रूहें किन्दीलों से निकाल कर उन के जिस्मों में डाल दी जाती हैं फिर सुबह को वह अपनी जगहों पर ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05:/.क्‍6/5 077 _|॥ताफावा५ [[[05:/9/079५8.0/0/0895/(09[08/08876_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा ६२ 22 मकक्‍तवा इमामे आजम वापस लाई जाती हैं। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि 2, स 87 बहवाला इब्ने मनदा) तबसेरा: यह मुस्तनद रिवायत इस बात का सुबृत हैं कि हजरात शोहदा-ए-किराम अपनी अपनी क्रों में पूरे लेवाज़माते जिंदगी के साथ जिन्दा हैँ ओर वह अपने जिस्मों के साथ जहाँ चाहें जां सकते हैं तिलावत कर सकते हैं और दूसरे किस्म किस्म के काम भी कर सकते और करते हैं। हज़रत मअज़ बिन जबल £/ उन को कृन्नियत अबू अब्दुल्लाह है। यह कृबीला खज़रज के अन्सारी और मदीना मुनव्वरा के रहने वाले हैं। यह उन सत्तर ख नसीब अस्सार में से एक हैं जिन लोगों ने हिजरत से बहुत पहले मैदाने अरफात को घाटी में हुजूरे अकरम&/से बैअते इस्लाम की थी। यह जंगे बद्र और उस के बाद के तमाम जिहादों में मुजाहिदाना शान से शरीके जंग रहे। हुजूरे अकृदसा#&/ने उन को यमन का काज़ी और मुअल्लिस बना कर भेजा था और हज़रत अमीरूल मोमिनीन उमर फारूक &&ने अपने दौरे स्व्िलाफृत में उन को मुल्के शाम का गवर्नर भी मुकर्रर कर दिया था जहाँ उन्हों ने 48 हिजरी में ताऊन अमवास म॑ बामार हां कर अड़तीस (58) साल की उम्र में वफात पाई। आप बहुत ही बलन्द्‌ पाए आलिम, हाफिज, कारी, मुअल्लिम औ< निहायत ही मुत्तको व परहेज़गार और आला दर्जे के इबादत गुज़ार थे। बनी सलमा के तमाम बुतों को उन्हों ने ही तोड़ फोड़ कर फैंक दिया था। हुजूरे अकरम/#£“ने फूरमाया कि कुयामत में उन का लक्‌ब ““इमामुल उल्मा हैं। (अकमाल स 464 व असदुल गाबा जि4, स 578) क्रामत्‌ मुंह से नूर निकलता था: हज़रत अबू बहरिया #9फरमाते हैं कि मैं ने हज़रत मआज़ बिन जबल#&#को '“हमस'' की मस्जिद में देखा वह न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/029809776_30॥9_॥0/8/% करामाते सहावा /८2 ]23 मकक्‍तवा इमामे आजम घने और घोंगरियाले वाले बहुत ख़ुबसरत थे। जब वह बात चीत करते तो उन के साथ साथ उन के मुंह से एक नूर निकलता।जिस की रोशनी . और चमक साफ नज़र आती। (तज़्किरतुल हुफ़्फाज़ जि।, स20) हज़रत उसैद बिन हजीर#४ हजरत उसेद बिन हजीर ££अन्सार के कुबीला औस की शाख़ बनी अब्दुल अशहल से खानदानी तअल्लुक रखते हैं। मदीना मुनव्वरा म॑ हज़रत मसअब बिन उमर £#की तबलीग से यह इस्लाम में: हुए। अपने कुबीला बनी अब्दुल अशहल के सरदार और मदीना मुनव्वरा में अपनी ख़ुबियों की वजह से बहुत ही बावकार थे। यह कुरआन मजीद बड़ी ही अच्छी आवाज के साथ पढ़ते थे। अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दीक्‌ #?भी उन का बहुत ज़्यादा एजाज व इकराम करते थे और बारगाहे नुब॒ुवत में मकबूल और हाज़िर रहते थे। जंगे बद्र, जंगे उहुद, जंगे ख़न्दक वगैरह तमाम ग़ज़वात में पूरी हिम्मत व बहादुरी से कुफ़्फार से जंग करते रहे। जमाना खिलाफत के जिहादों में भी शिरकत फ्रमाते रहे यहाँ तक कि फतह बैतुल मुकृद्दस में अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर&४के साथ रहे। सन २० हिजरी में हजरत अमीरूल मोमिनीन उमर फारूके आजम :£9#की खिलाफत के दौरान मदीना मुनव्वरा के अन्दर विसाल फरमाया और जन्‍्नतुल बकीअ में दफन हुए। (अकमाल स०585 व असदुल ग़ाबा जि०4, स०92) फक्रामत्‌ फरिशते घर के ऊपर उतर पड़े: रिवायत में है कि आप ने नमाजे तहज्जुद में सूरह बकरा को तिलावत शुरू की। उसी घर में आप का घोड़ा भी बंधा हुआ था और घोड़े के क्रीब ही में उन का बच्चा यहया भी सो रहा था। यह अच्छी आवाज के साथ केरत कर रहे थे। अचानक उन का घोड़ा बिदकने लगा यहाँ तक कि उन को खतरा 5८664 शशंगर ए7520वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/]0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/% करामाते 'सहावा 52 ]24 मकक्‍तबा इमामे आजम महसूस होने लगा कि घोड़ा उन के बच्चे को कुचल देगा। चुनान्चे नमाज़ ख़त्म करक जब उन्होंने सहन में आकर ऊपर देख ता यह नज़र आया कि बादल क टुकड़े की तरह जिस में बहुत से चिराग राशन हँ और कोई चीज़ उन के मकान के ऊपर उतर रही है। आप न उस मज़र स घबरा कर करत बन्द कर दी और सुबह को जब बारगाह रिसालत म॑ हाजिर हो कर यह वाकिआ बयान किया तो रहमते आलम&#“न इरशाद फरमाया कि यह फरिश्तों की मुकुदस जमाअत था जा तरा करत का वजह से आसमान से तेर॑ मकान की तरफ उतर पड़ा था। अगर तू सुबह तक तिलावत करता रहता तो यह फरिश्ते जमान स इस कदर करीब हा जाते कि तमाम इंसानों को उनका दीदार हा जाता। (दलाइलुल नबुवा जि?, स205, मिश्कात शरीफ स!84 फ्‌ज़ाइले कुरआन तबसेरा: इस रिवायत से साबित होता है कि ख़ुदा के नेक बन्‍्दों का तिलावत सुनन क लिए आसमान से फरिश्तों की जमाअत जमीन का तरफ उतरता ह। यह ओर बात है कि आम लोग फरिश्तों को देख नहा सकत मगर अल्लाह वालों म॑ सं कछ खास खास लागों को फरिश्तों का दीदार भी नसीब हो जाता है। बल्कि वह फरिश्तों से बात भा कर लत हैं। हजरत अब्दुल्लाह बिन्‌ हिशाम्‌ :१ हजरत अब्दुल्लाह बिन हिशाम बिन उस्मान बिन अमर करैशी यह कबीला करैश में खानदाने बनी यतीम से त अल्लुक रखते हैं। सन 4 हिजरी म॑ पैदा हए। यह मशहर महदिस हजरत जुहरा बिन मअबद के दादा हैं। अहल हिजाज़ क मावहहीदीन में उन का शुमार होता है। और उन क शागिदाों में उन के पोते जुहरा बिन मअबद बहत मशहर डर हैं। हजरत अब्दल्लाह बिन हिशाम को बचपन ही में उन की वालिदा हजरत ज॑नब बिन्त हमोांद हज्‌र अकृदस “##की रखिरदमत में ले गई और अर्ज किया या रसूलुल्लाह! आप मेरे इस बच्चे से बैअत ले तन था 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ [[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा # 25 मकक्‍तवा इमामे आज़म लीजिए। हुजूरे अकरम/#”ने फ्रमाया कि यह तो बहत हो छोटा ह। बहुत ही छोटा है। फिर अपना मुकूहस हाथ उन क सर पर फेरा और उन के लिए खैरो बरकत की दुआ फरमा दी। (असदुल ग़ाबा जिउ, स 270 व अकमाल स 595) तिजारत में बरकत: उसी दुआए नबवी की बदौलत उन को यह करामत हासिल हुईं कि उन को तिजारत में नफअ के सिवा किसी सौदे में कभी भी नुक्सान हुआ ही नहीं। रिवायत है कि यह अपने पोते जुहरा बिन मुअबद को साथ लेकर बाज़ार में जाते और गल्ला व्रीदते तो हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर और हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर ££उन से मुलाकात करते और कहते कि हम को भी आप अपनी इस तिजारत में शरीक कर लीजिए। इस लिए कि हुज्रे अकरम #&#&ने आप के लिए खौैरों बरकत की दुआ फ्रमाई है। फिर यह सब लोग उस तिजारत में शरीक हो जाते तो कभी कभार ऊँट के बोझ बराबर नफ्‌अ कमा लेते और उस को अपने घर भेज देते। गैजि।, स 340 बाबुश्शरकिया फित्तआम) तबसेरा: नेक और सालेह लोगों को अपने करोबार और धंधे रोज़गार में इस नियत से शरीक कर लेना कि उन की बरकत से हम फेज़याब होंगे यह सहाबा-ए-किराम का मुकदस तरीका है। चुनान्चे पुराने ज़माने के खुश अकौदा और नेक ताजिरों का यही तरीका था कि वह जब कोई तिजारत करते थे तो किसी आलिमे दीन या पीरे तरीकत का कुछ हिस्सा उस तिजारत में मुकूर्रर कर के उन बुजुर्गो को अपना शरीक तिजारत बना लेते थे। ताकि उन अल्लाह वालों की वजह से तिजारत में खैरो बरकत हो। इसी लिए आज कल भी कई खुश अकोदा और नेक बख्त मोमिन खास कर मैमन अपनी तिजारत में हजरत गौसे अअज़म /## को हिस्सा दार बना लेते हैं और नफृअ में जितची रकम हज़रत गौसे अअज़म अलैहिर्रहमा के नाम की निकलती है उस को यह लोग नियाज़ खाता कहते हैं और उसी रकुम से यह अीकन--+-----++---नम ७७७७७ कम रन सनम 2 कक कक न कक कक कक क क कक न कक कक कक कक क कक कक कक क कक कक क कक कक 5८664 ५शशंगर ए752८वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/]/0/9५ न निकली ३ :/ध/०॥५४९७.०700/089॥5/060098099/76_830७॥9 _॥0/9५ ते सहाबा 5२ ]26 मकतवा इमामे आज़म सैय्यदों को उस रकम से नज़राना भी दिया करते हैं यकीनन यह बहुत ही अच्छा तरीका है। वल्‍लाहु तआला अअलम। हजरत खुबब बिनत्‌ अदी ££# यह मदीना मुनव्वरा के अन्सारी हैं और कुबीला-ए-अन्सार में खानदाने औस के बहुत ही मशहूर फरजन्द हैं। बहुत ही पुर जोश ओर जॉबाज सहाबी हैं। और हुजूरे अकरम/###से उन को बे पनाह इश्क था। जंगे बद्र में दिल खोल कर इन्तेहाई बहादुरी के साथ कुफ़्फार से लड़े। जंगे उहुद में भी आप के मुजाहिदाना कारनामे बहादुरी के कारनामे कौ हैसियत रखते हैं। लेकिन सन 5 हिजरी में असफान व मक्का मुकर्रमा के दरमियान मकामे ''रजीअ'' में यह कुफ़्फार के हाथों गिरफ़्तार हो गए। चूँकि उन्हों ने जंगे बद्र में क॒फ़्फारे मक्का क एक मशहूर सरदार 'हारिस बिन आमिर'' को कत्ल कर : दिया था। इस लिए उस के बेटों ने उन को खरीद लिया और लोहे की जंजीरों में जकड़ कर उन को अपने घर की एक कोठरी में कैद कर दिया। फिर मक्का मुकर्रमा से बाहर मकामे ''तईम'' में ले जाकर एक बहुत बड़ी भीड़ के सामने उन को सूली पर चढ़ा कर शहीद कर दिया। इस्लाम में यह पहले खुश नसीब सहाबी हैं जिन को कफ़्फार ने सूली पर चढ़ा कर शहीद किया। सूली पर चढ़ने से पहले उन्होंने दो र्कअत नमाज़ पढ़ी और फ्रमाया कि ऐ गरोहे कफ्फार! सुन लो मेरा दिल तो यही चाहता था कि देर तक नमाज़ पढ़ता रहूँ क्योंकि यह मेरी ज़िन्दगी की आखिरी नमाज़ है। मगर मुझ को यह ख्याल आ गया कि कहीं तुम लोग यह न समझ लो कि मैं शहादत से डरता हूँ इस लिए में ने बहुत ही मुख़्तसर नमाज़ पढ़ी। कुफ़्फार ने आप को जब सूली पर चढ़ा दिया तो आप ने ईमान अफ्रोज़ अशआर पढ़े। फिर हारिस बिन आमिर के बेटे “अबू सरूआ'' ने आप के मुकृददस सीना में नेज़ा मार कर आप को शहीद कर दिया। आप की शहादत का पूरा न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥॥/_।॥0 0/9/५ | करामाते सहावा ८ >[[25://8/0५७ मम ») [2809/76_ _0/॥8 मवतेवा ड्मागे आजम फू >> समन नम नमन न नमन ०-33 ..33333333333888838888888७७७७७७४४७७४४४३७४४४४७७७४७४४७७४४३३७४४७४४४७३७४४४४७४३३७७५४४७५३४३४३४५४४५४४४४३४४४४४४३ पक नम म॒रकने+म न न क भ-म-म कक कम कम न नम कक « कम > 3» «न» ऊन कस कर कर ्% सह कप ++++++++++++++«+++++३४++3+3८3 333८3 3999८ कक कक न कक मम न हाल आप हमारी किताब ''ईमानी तकरीरें'' और “'सीरते मस्तफा में पढ़िए। उन को कुछ करामात काबिले जिक्र हैं। . क्रामत बे मोसम का फल: जिन दिनों में यह हारिस बिन आमिर के बेटों की कद में थे जालिमों ने दाना पानी बन्द कर दिया था और उन को जंजीरों म॑ इस तरह जकड़ दिया था कि उन के हाथ पावं दोनों बंधे हुए थे। उस जमाना में हारिस बिन आमिर की बेटी का बयान है कि खुद को कसम! म॑ने खुबेब(४£)से अच्छा कोई कंदी नहीं देखा।मैं ने बार बार यह देखा कि वह कुृंद की कोठरी के अन्दर जुंजीरों में बंधे हुए बेहतरीन अंगूरों का खोशा हाथ मे लिए खा रहे हैं। हालांकि ख़ुदा की कसम! उन दिनों मकका मुअज़्ज़्मा के अन्दर कोई फल भी नहीं मिलता था और अंगूर का तो मोसम भी नहीं था।(हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि2, स869 व बुखारी शरीफ) मक्का को आवाज मदीना पहुँची: जब हज़रत ख़ुबेब #£ सूली पर चढ़ाए गए तो उन्होंने बड़ी अफसोस के साथ कहा कि या अल्लाह! मैं यहाँ किसी को नहीं पाता जिस के जरिइए मैं आखरी सलाम तेरे प्यारे रसूल/&/#तक पहुँचा सकु। इस लिए तू मेरा सलाम हबीब /#&तक पहुचा दे। सहाबा किराम का बयान है कि हुजूरे सरवरे आलम मदीना मुनव्वरा के अन्दर अपने असहाब के मजलिस में बैठे थे कि बिल्कुल ही अचानक आप ने बलन्द आवाज़ से वअलैक॒मुस्सलाम फरमाया। सहाबा-ए-किराम ने अर्ज़ किया या रसूलललाह! इस वक़्त आप ने किस को सलाम का जवाब दिया है। आप ने इरशाद फरमाया कि तुम्हारा दीनी भाई ख़ुबेब अभी अभी मक्का मुअज़्जमा में सूली पर चढ़ा दिया गया और उस ने सूली पर चढ़ कर मेरे पास अपना सलाम भेजा है। और में ने उस के सलाम का जवाब दिया है। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि 2, स 869) 608 ५शशं॥र ए752८वाा6 [05://.06/5 077 _|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४४४? ]28 मकक्‍्तवा इमामे आजम ः एक साल में तमाम कातिल हलाक: रिवायत है कि सूली पर चढ़ाए जाने के वक्‍त हज़रत खुबेब £#ने कातिलों के मजमअ की तरफ देख कर यह दुआ मांगी।.७। ५७० 5० ४) ७-५ ७३४४ | ७-७ ७६-०० ७६/. (यअनी ऐ अल्लाह! मेरे उन तमाम कातिलों को गिन कर शुमार कर ले और उन सब को हलाक फरमा दे और उन में से किसी एक को भी बाकी न रख) एक काफिर का बयान है कि मैं ने जब ख़ुबैब रज़ियल्लाहु अन्हु को बद दुआ करते हुए सुना तो में ज़मीन पर लेट गया ताकि ख़बैब् को नज़र मुझ पर न पड़े। चुनान्चे उस का असर यह हुआ कि एक साल पूरा होते तमाम वह लोग जो आप के कृतल में शरीक व राजी थे सब के सब हलाक व बरबाद हो गए। फूकृत तनहा मैं बच गया हूँ। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि2, स 869 व बुखारी) हि लाश को जमीन निगल गई: हुजूरे अकृदस##ने सहाबा-ए-किराम से इरशाद फ्रमाया कि मकामे तईम में हज़रत ख़ुबैब की लाश सूली पर लटको हुईं है जो मुसलमान उन की लाश को सूली से उतार कर लाए गा में उस के लिए जन्नत का वादा करता हूँ। यह ख़ुशख़बरी सुन कर हज़रत जुबेर बिन अव्वाम और हज़रत मिक॒दाद बिन असवद “#तेज रफतार घोड़ों पर सवार हो कर रातों को सफर करते थे। उन दोनों हज़रात ने लाश को सूली से उतारा चालीस दिन गुज़र जाने के बावजूद लाश बिल्कुल तरो ताज़ा थी और जद््मों से ताज़ा ख़ून टपक रहा था घोड़े पर लाश को रख कर मदीना मुनव्वरा का रूख किया मगर सत्तर काफिरों ने उन लोगों का पीछा किया। जब उन दोनों हजुरात ने देखा कि अब हम गिरफ्तार हो जाएंगे तो उन दोनों ने मुकुदस लाश को ज़मीन पर रख दिया। ख़ुदा की शान देखिए कि एक दम ज़मीन फट गई और मुकदहस लाश को जमीन निगल गई और फिर इस तिरह बराबर हो गई कि फटने का नाम व निशान भी बाकी न रहा। यही वजह है कि हज़रत ख़ुबैब #१ का लक्‌ब ““बलीउल अर्ज' (जिन को जमीन निगल गई) है! फिर उन दोनों हजरात ने फरमाया कि ऐ कुफ़्फारे मकका हम तो दो शेर हैं जो अपने जंगल में जा रहे थे। 5---.२...र्र्चर्रारार)डड - कद उ- क55उ5उ5उ:उ5क्‍क्‍््:््स्‍्््््-.--्र्ः---ज्न्‍चच-च-चघछघपच-)).-_््ऊऑ-ी...-तनतनलबलज नल है ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05://.क्‍6/50॥7_|॥ता|फावा५ करामाते सहाबा 5(? [[05://8/00५७ ०9049] 0 87999॥० १० | 8 कक इमामे आजम अगर तुम लोगों से हो सके तो हमारा रास्ता रोक कर देख लो। वरना अपना रास्ता लो। जब व. फ्फारे मकका ने देख लिया कि इन दोनों हजरात के. पास लाश नहीं है तो वह लोग मक्का वापस चले गए। (मदारिजुन्नबुवा जि?, स 44) तबसेरा: शहीदे इस्लाम हज़रत खुबैब अन्सारी सहाबी £४की उन चारों करामतों को पढ़ कर नसीहत हासिल कीजिए कि ख़ुदा बन्दे करीम शोहदा-ए-किराम खास कर अपने हबीब अलैहिस्सलातु वस्सलाम के असहाबे किराम को कैसी कैसी अजीमुश्शान करामतों से सरफ्राज फरमाता है और यह नसीहत हासिल कीजिए कि सहाबा-ए-किराम ने दीने इस्लाम की खातिर कंसी कुरबानी पेश की हैं। और फिर सोचिए कि हम आज के मुसलमान इस्लाम के लिए क्‍या कर रहे हैं? और हमें क्‍या करना चाहिए और फिर ख़ुदा का नाम ले कर उठिए और इस्लाम के लिए कुछ कर डालिए। द हज़रत अबू अय्यूब अन्सारी #४ यह मदीना मुनव्व्रा के वही खुश नसीब अन्सारी हैं जिन के मकान को शहंशाहे कौनेन/## ने मेहमान बन कर शर्फे नुजूल बखशा और यह शहंशाहे दो आलम/&“#की मेजबानी से सात महीने तक सरफ्राज होते रहे और दिन रात सुबह व शाम हर वक़्त व हर पल अपने हर कौल व फेल से ऐसी वालिहाना अकीौदत और आशिकाना जाँ निसारी का मुजाहिरा करते रहे कि मुश्किल ही से उस की मिसाल मिल सकेगी। हुजूरे अकृदस/&#ने मुलाकातियों की आसानी के लिए नीचे की मंजिल में कयाम पसन्द फरमाया। मजबूरन हजरत अबू अय्यूब अनसारी ऊपर की मंजिल में रहे। एक मर्तबा अंजाने में पानी का घड़ा टूट गया तो उस अन्देशा से कि कहीं पानी बह कर नीचे वाली मंजिल में न जाए और हुजूर रहमते आलम/&#को कुछ तकलीफ न पहुँच जाए हज़रत अबू अय्यूब अन्सारी ##घबरा गए और सारा पानी अपने लिहाफ में सुखा लिया। घर में बस यही एक रजाई थी जो गीली हो न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6208099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४7 30 मक्‍तवा इमामे आजम गई। रात भर मिया बीवी ने सरदी खाद मा इजर गया | रात भर मिया बीवी ने सरदी खाई। मगर हुजूरे अकरम/&/को जरी भर भी तकलीफ पहुँच जाए यह गवारा नहीं किया। गरज़ बे पनाह अदब व एहते राम और मुहब्बत व अकीदत के साथ सुलताने दारन/#“की मेहमान नवाज़ी व मेज़बानी के फराइज अदा करते रहे। व्यप्त अबू अय्यूब अन्सारी ##सखावत के साथ साथ बहादुरी में भी बेमिसाल थे। तमाम इस्लामी लड़ाइयों में मुजाहिदाना ज्ञान के साथ लड़ाई लड़ते रहे। यहाँ तक कि हज़रत अमीरे मआविया :#£के जमाने में जब मुजाहिदीने इस्लाम के लश्कर जिहादे क॒स्तुनतुनिया के लिए रवाना हुआ तो अपने बुढ़ापे के बावजूद भी आप मुजाहिदीन के उस लश्कर के साथ जिहाद के लिए तशरीफ ले गए और बराबर मुजाहिदीन की सफों में खड़े हो कर जिहाद करते रहे। जब सख्त बीमार हो गए और खड़े होने की ताकत नहीं रही तो आप ने मुजाहिदीने इस्लाम से फरमाया कि उ तुम लोग जंग बन्दी करो तो मुझे भी सफ्‌ में अपने कृदमों के पास लिटाए रखो और जब मेरा इन्तकाल हो जाए तो तुम लोग मेरी लाश को कुस्तुनतुनिया के किला की दीवार के पास दफन करना। चुनान्चे सन ५१ हिजरी में उसी जिहाद के दौरान आप की वफात हुई और इस्लामी लश्कर ने उन का वसियत के मुताबिक्‌ उन को कुस्तुनतुनिया के किला की दीवार क पास दफन कर दिया। यह अन्दशा था कि शायद ईसाई आप की कब्र खोद डालें। मगर ईसाईयों पर ऐसी हेबत सवार हो गई कि वह आप की मुकहस कब्र को हाथ न लगा सके और आज तक आप की कब्र शरीफ उसी जगह मौजूद है और लोगों के लिए ज़ियारत गाह है जहाँ हर कौम व मिल्लत के लोग हर वक़्त हाजिरी देते हैं। क्रामत्‌ कब्र मुबारक शिफाखाना बन गई: यह आप की करामत का एक रूहानी और नूरानी जलवा है कि बहुत ही दूर दूर से किस्म किस्म के ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः 0[05://.76/5 077 |॥ताफावा५ [[05:/9/079५8.0/0/0895/(0[08/08/706_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा /४7 ]3] मक्‍तवा डइमामे आज़म भरीज जो जिन्दगी से मायस हो जाते हैं आप की कत्र शरीफ के लिए जन्दगी से मायूस हो जाते हैं आप की कुत्र शरीफ क लिए हाजिरी देते हैं और ख़ुदा के फूज़ल व करम से शिफा पाते हैं। (अकमाल फी अस्माइररिजाल स 586 व हाशिया अल उम्माल जि6, स 225 मतबूआ हैदरबाद) हजरत अब्दुल्लाह बिन बसर £ यह अब्दुल्लाह बिन बसर माजनी हैं। उन को कुन्नियत अबू बसर या अबू सफवान है। उन के वालिद ने हुजूरे अकरम/&#को दुअवत की और शहंशाहे दो आलम ने जो कुछ था खाया। फिर खुजूरें लाई गई। आप ने खुजूरें भी खाई। और हज़रत अब्दुल्लाह £&#क सर पर अपना दस्ते मुबारक रख कर दुआ फ्रमाई। यह आखिरी उम्र में मुल्क शाम चले गए। अल्लामा इब्ने असीर का बयान है कि यह सहाबी हैं जिन का मुल्के शाम में विसाल शरीफ हुआ। यही अब्दुल्लाह बिन बसर £#४हैं। इन की उम्र में इस््तिलाफ्‌ है। इसाबा में हैं कि १४ बरस की उम्र में वफात पाई और अल्लामा अबू नईम का कोल हं। कि एक सौ बरस की उम्र में उन का विसाल हुआ। बगैर किसी बीमारी के शहर हमस में व॒ज्‌ करते हुए बिल्कुल ही अचानक वफात पा गए। (अकमाल स 6035 व असदुल ग़ाबा जि 3, स 425 व कजुल उम्माल जि।6 सव 404) क्रामत्‌ रिज्क में कभी तंगी पैदा नहीं हुई: दुआए नबवी की बरकत से उम्र भर उन की रोजी में तंगी नहीं हुई। हुजूरे अकरम सलल्‍्लल्लाहु अलैहि वसलल्‍लम ने उन के घर में खाने से फारिग हो कर घर वालों के लिए तीन दुआएं मांगी थीं:- (4() या अल्लाह! इन लोगों की मग्फिरित फ्रमा। (2) या अल्लाह! इन लोगों पर रहमत नाज़िल फ्रमा। न कर हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/098099776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा /४72 ]37 मक्‍तबवा डइमामे आजम अधमनन-न-प् सनम मम + न ननननममनन__न___न_“____>>___उन__>न_नभ_>भ>___नन पान न नमन +न-+-नीन-न-॑-ी-यन- नमन ना - ना» भन-न-न+-प-- न नाअन--भ- न -+मआ+मम++++म मम न समन +++ +++++++ममम रन कक तक कक + कस न कक कक ++++++++++++++++ा-त+-जामानाक.. (3) या अल्लाह! इन लोगों की रोज़ी मे बर्कत फ्रमा। (कंजुल उम्माल जि6, स 04 मतबूआ हैदराबाद) उजरत्‌ अम्र बिन हमक्‌£४ सुलह हुदैबिया के बाद यह अपने कृबीला बनी सर्ुजाआ से हिजरत करके मदीना मुनव्वरा आए और दरबारे नुबुब॒त में हाजिर रह कर हदीसें याद करते रहे। फिर कूफा चले गए और वहाँ से मित्र जाकर बस गए। कुछ दिनों शाम में भी रहे। उन के शागिर्दों में जुबैर बिन नफोर और रफाआ बिन शहच्य॒द वगैरह बहुत मश्हूर मुहद्दसीन हें। यह हज़रत अली ##क तरफदार थे। और जंगे जमल व सिफ्फीन व नहरवान में हज़रत अली के साथ रहे। जब हजरत इमाम हसन £9ने खिलाफत हजरत अमीरे मआविया £9%को सौंप दी। तो उस वक्‍त हज़रत अमीरे मआविया&£के गवर्नर “'ज़्याद'' के खौफ से यह इराक से भाग कर “मोसल'' के एक गार में गए और उसी गार में उन को सॉप ने काट लिया जिस से उन की वहीं वफात हो गई। अल्लामा इब्ने असीर साहिब असदुल ग्ाबा का बयान है कि उन की कब्र शरीफ मोसल में बहुत ही मशहूर ज़ियारत गाह है। कब्र पर बहुत बड़ा गुंबद और लम्बी चौड़ी दरगाह है। सन्‌ 50 हिजरी में आप की शहादत हुई। (असदुल गाबा जि4, स 00) क्रामत्‌ अस्सी (80) बरस की उप्र में सब बाल काले: उन्होंने हुजूरे अकृदस##की खिदमत में दूध का तोहफा पेश किया। हुजूरे अकरम/&#ने दूध पी कर उन.की जवानी की बका के लिए दुआ फरमा दी। इस दुआए नबवी की बदौलत उन को यह करामत मिल गई कि अस्सी बरस की उम्र हो जाने के बावजूद उन का एक बाल भी सफूुद नहीं हुआ था। (कंजुल उम्माल स० 465 स 442 व असदल ग़ाबा जि4, स।00) न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[05:/9/07५8.0/0/0895/(0[08/08876_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा /£४- ]3३३ मकक्‍तवा इमामे आज़म ०... आम “नमन ५ निधन न “न न त न तनननननक 5 533 3«+-3999५++++++क++++++ 33 कक न नमन नननन--ममन-म-ममननम-म-म-ममममममभ मनन नमन न कम कक नाच नमन तन चचलटननिपटगार सिम आ 22008 " '२९.ई..ग..०४४४४४४४७७३७०:+ पल हजरत आसिम बिन साबित £ हजरत आसिम बिन साबित बिन अफलह अन्सारी। यह अन्सार में क्‌ूबीला औस के काबिले फझुर सपूत हैं बहुत ही जाॉँबाज और बहादुर सहाबी हें। उन्होंने जंगे बद्र में बे मिसाल जुराअत व बहादुरी का मुज़ाहिरा किया और कुफ़्फारे क्रैश के बड़े बड़े नामवर सरदारों को कत्ल कर दिया। यह हज़रत उमर%#४क बेटे हज़रत आसिम बिन उमर 2४४ के नाना हैं। सन्‌ 4 हिजरी म गज़वतुरजीआ को जंग म॑ यह कुफ़्फार से आमने सामने लड़ते हुए अपने छः: साथियों के साथ शहीद हो गए। (असदुल गाबा जि 35, स 75) क्रामात्‌ शहद की मक्खियों का पहरा: चूँकि आप ने जंगे बद्र के दिन कफ़्फारे मक्का के बड़े बड़े नामी गिरामी सूरमाओं और नामवर सरदारों को मौत के घाट उतार दिया था। इस लिए जब कुफ़्फारे मक्का को उन की शहादत की खाबर मिली तो उन काफिरों ने चन्द आदमियों को इस लिए मकामे रजीअ में भेज दिया ताकि उन के बदन का कोई ऐसा हिस्स! (सर वगैरा) काट कर लाएं जिस से यह पहचान हो जाए कि वाकई हजरत आसिम कत्ल हो गए। चुनानन्‍्चे चन्द्‌ कफ़्फार उन की लाश की तलाश में मकाम रजीअ तक पहुँच गए मगर वहाँ जाकर उन काफिरों ने उस शहीद मर्द की यह करामत देखी कि लाखों की तअदाद में हहद्‌ की मक्खियों के झुंड ने उन की लाश के इर्द गिर्द इस तरह घेरा डाल रखा है जिस से वहाँ तक किसी का पहुँचना ही ना मुमकिन हो गया है। इस लिए कुफ़्फारे मक्का नाकाम व नामुराद होकर मक्का वापस चले गए। (बुखारी जि 2, स 569 व जरकानी जि?, स 75) समन्दर में कब्र : एक रिवायत में यह भी हे कि मक्का की एक औरत सलाफा बिन्ते सअद्‌ के दो बेटों को हज़रत आसिम बिन साबित . अन्‍बबनन»»म 3 जमा». नि ड़ हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥009/8५ कम ॥05:॥/8/079५8.0/5/06७98/5/6)808/6_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहाबा ४४ 34 मकक्‍तवा इमामे आजम ने जंगे बद्र में कत्ल कर डाला था। इस लिए औरत ने बदले के जोश में यह कसम खा रखी थी कि अगर मुझ को आसिम बिन साबित का सर मिल गया तो उन की खोपड़ी में शराब पियोंगी। चुनानचे उस ने कुछ लोगों को भेजा था कि तुम उन का सर काट कर ले आओ। मैं उस को बहुत बड़ी कौमत दे कर खूरीद लूंगी। इस लालच में चन्द कुफ़्फार मकामे रजीअ तक पहुँचे मगर जब उन्हों ने शहद की मक्खियों का घेरा देखा तो हवास बाख्ता हो गए मगर कुछ लालची लोग इस इन्तज़ार में वहाँ ठहर गए कि जब कभी भी यह शहद की मक्खियाँ उड़ जाएंगी तो हम उन का सर काट कर ले जाएं गे। खुदा की शान कि निहायत ही ज़ोर दार बारिश हुई और पहाड़ों से बरसाती नाला बहता हुआ उस मैदान में पहँचा और इस जोर का रेला आया कि कुफ़्फार जान बचाने के लिए भाग खड़े हुए और आप की मुक्‌चद्स लाश पानी के बहाओ के साथ बहते हुए समन्दर में पहुँच गई। रिवायत है कि जिस दिन आसिम बिन साबित&£ने इस्लाम कबूल किया था उस दिन खुदा से यह वादा किया था कि मैं न तो किसी काफिर के बदन को हाथ लगाऊंगा न किसी काफिर को मौका द्‌गा कि वह मेरे बदन को छू सके। अल्लाहु अकबर! ख़ुदा की शान कि जिन्दगी भर तो उन का यह वादा पूरा होता ही रहा। मगर शहादत के बाद भी खुदा वन्दे कुद्दूस ने उन के इस वादे को पूरा फरमा दिया कि “'ुफ़्फार उन के मुकृदहस बदन को हाथ न लगा सके। पहले शहद की मक्खियों का पहरा लगा दिया। फिर बरसाती नालों ने उन के बदन मुबारक को उन के मदफून तक पहुंचा दिया। (हुज्जतुल्लाह जि2, स 869 बहवाला बैहकी व कंजुल उम्माल जि6, स 87) तबसेरा: हज़रत आसिम बिन साबित #£की उन दोनों करामतों को पढ़ कर गोर फ्रमाइए कि अल्लाह तआला का शोहदा-ए-किराम पर कितना बड़ा फज्ल होता है और राहे ख़ुदा में जान फिदा करने वालों : को रब्बुल इज़्जत जलल जलालह्‌ के दरबारे आलिया से कैसी अज़ीमुश्शान करामतों के निशान अता किए जाते हैं। वफात के बाद न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा €(२ ३3 मकतवा इमामे आज़म भी उन के तसर्रूफात बसूरत करामात जारी रहते हैं। इस लिए शहीदों से अकीौदत व मुहब्बत और उन का अदब व एहतेराम वाजिब और ईमान का एक जरूरी हिस्सा होता है। हज़रत उबैदा बिन हारिस ## उन का वतन मक्का मुकर्रमा है और यह खानदाने कुरैश के बहुत ही मुमताज़ और नामवर शख्स हैं। यह शुरू इस्लाम ही में मुशर्रफ ब इस्लाम हो गए थे। फिर हिजरत भी को। निहायत ही खूबसूरत बहुत ही बहादुर और जाँबाज़ सहाबी हैं। सन्‌ 2 हिजरी में साठ या अस्सी मुहाजिरीन के साथ हुजूरे अकरम/#&##ने उन को “'राबिग/ को तरफ जिहाद के लिए रवाना फरमाया। चुनान्चे तारीख़े इस्लाम में मुजाहिदीन का यह लश्कर सरिया उबैदा बिन हारिस के नाम से मश्हूर है। सन २ हिजरी में जंगे बद्र में उन्होंने शौबा बिन रबीआ से जंग की जो लश्करे कफ़्फार के कमान्डर उतबा बिन रबीआ का भाई था। यह बड़ी जाँबाजी के साथ लड़ते रहे मगर इस कृदर जख़मी हो गए कि उन को पिन्डली टूट कर चूर चूर हो गई और नली का गूदा बहने लगा। यह देख कर हजरत अली £9ने आगे बढ़ कर शैबा को कृत्ल कर दिया और हजरत उबैदा##को अपने कांधे पर उठा कर बारगाहे रिसालत में लाए। इस हालत में हज़रत उबैदा ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह! क्या मैं शहादत से महरूम रहा? इरशाद फरमाया। हरगिज़ नहीं बल्कि तुम शहादत से सरफ्राज़ हो गए। यह सुन कर उन्होंने कहा कि या रसूलललाह! अगर आज अबू तालिब ज़िन्दा होते तो वह मान लेते कि उन के इस शेअर का मतलब में ही हूँ। /9५०४ ॥ ४ ४. दि -- १ * मै) ५४० £ (वा है...4-....०«_ १ नम हम हजूरे अकरम/#7को उस वक़्त दुश्मानों क हब हवाले करेंगे जब हम उन के गददी गर्द लड़ते ख़ून में लत पत हो जाएंगे और हम अपने बेटों और बीवियों को भूल जाएंगे। ) । न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_830७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा /॥४ ।306 मकक्‍तवा इमामे आजम स्च्चत्च्स्स्स्स्स्स्स्यस् यस व चटचचचचचचचचआलस्स्स्ट्स्स्स््सस्ल्ललचलट्च च ाााीी3..33७4++---3७-७७७४४४४४४+.--+.-.त#%४७७७७७४४७४४--- ७-७७ ३७०५ क्रामत्‌ कब्र की खुशबू दूर तक: इश्के रसूल में बे पनाह जाँ निसारियों और फिदा कारियों की बदौलत उन को यह शानदार करामत नसीब हुईं कि उन की कृत्रे अतहर से इस कदर मुश्क की तेज़ ख़ुश्बू आती कि पूरा मैदान हर वक़्त महकता रहता। : चुनान्चे ब्यान किया गया है कि एक मुद्दत के बाद हुजूरे अकृदस “का सहाबा- ए-किराम के साथ मंजिले सफूरा में कुयाम हुआ तो सहाबा-ए-किराम ने हैरान होकर बारगाहे रिसालत में अर्ज़ की कि या रसूलल्लाह! इस सहरा में मुशक की इस कदर तेज ख़श्ब कहाँ से ओर क्‍यों आ रही है? आप ने इरशाद फ्रमाया कि इस मैदान में अबू मआविया (हज़रत उबेदा&#) की कब्र मौजूद होते हुए तुम्हें तअज्जुब क्यों हा रहा है कि यहाँ मुशक की खुश्बू महक रही है ? (किताब सद सहाबा स 344 मर्तबा शाह मुराद मारहरवी) अल्लाहु अकबर! यह सच है: क्‍ कमालाते वली मिट्टी में भी यूँ जगमगाते हैं कि जैसे नूर जुलमत्‌ में कभी पिन्हाँ नहीं होता हज़रत सअद बिन रबीअ #/ हजरत सआअद बिन रबीअ बिन अगप्र अन्सारी खजरजी%9बैअते उक्‌बा पहला ओर बैअते उकबा दुसरा दोनों बैअतों में शरीक रहे और यह अन्सार में से खानदान बनी हारिस के सरदार थे। जमानए जाहलियत में जब कि अरब में लिखने पढ़ने का बहुत ही कम रवाज था उस वक्‍ृत यह लिखना जानते थे। यह हुजूरे अकृदस##&?के इन्तहाई आशिक्‌ और बे हद जॉनिसार सहाबी हैं। हजरत सअद्‌ बिन रबीअ की बेटी का बयान है कि में अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दोकु&#के दरबार में हाजिर हुई तो उन्होंने अपने बदन की चादर न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/620909776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहाबा ४? ।37 मक्‍तबवा इमामे आजम उमर ४४ आ गए और पुछा यह लड़की कौन है? अमीरूल मोमिनीन हजरत अबू बकर सिद्येकु£४ने फरमाया कि यह उस शख्स की बेटी है जिस ने हुजूरे अकरम&४#के ज़माने ही में जन्नत के अन्दर अपना ठिकाना बना लिया और में और तुम यूँ ही रह गए। यह सुन कर हज़रत उमर5#ने हैरत के साथ पुछा! कि ऐ ख़लीफए रसूल! वह कोन शख्स हें? तो आप ने फरमाया कि “सअद बिन रबीअ'' हज़रत उमर %४ने उस की तसदीक्‌ की। जंगे बद्र में निहायत बहादुरी के साथ कुफ़्फार से जंग की। जंगे उहुद में बारह काफिरों को एक एक नेज़ा मारा और जिस को एक नेजा मारा वह मर कर ठंडा हो गया फिर घमासान की जंग में ज़ख्मी होकर उसी जंगे उहुद में सन्‌ उ हिजरी को शहीद हो गए। और हजरत खारजा बिन जैद£##के साथ एक कब्र में दफून हुए। (अकमाल स॒ 596 हाशिया कंजुल उम्माल जि6, स 36 असदुल गाबा स2, स 277) क्रामत्‌ दुनिया में जन्नत की ख़ुश्बू: हज़रत जैद बिन साबित#£का बयान है कि जंगे उहुद के दिन हुजूरे अकृदस/##ने मुझ को हज़रत सअद बिन रबीअ:£#की लाश की तलाश में भेजा और फ्रमाया कि अगर वह जिन्दा मिलें तो तुम उन से मेरा सलाम कह देना। चुनान्चे जब तलाश करते करते मैं उन के पास पहुँचा तो उन को इस हाल में पाया कि अभी कुछ कुछ जान बाकी थी। में ने हुजूरे अकरम /#'का सलाम पहुँचाया तो उन्होंने जवाब दिया और कहा कि रसूलुल्लाह/#/से मेरा सलाम कह देना और सलाम के बाद यह भी अर्ज कर देना कि या रसूलल्लाह! मैं जन्नत की खुश्बू मैदाने जंग मे सूंघ चुका और मेरी कौम अन्सार से मेरा यह आखिरी पैग़ाम कह देना कि अगर तुम में एक आदमी भी जिन्दा रहा और कुफ़्फार का हमला रसूलुल्लाह/&# तक पहुँच गया तो अल्लाह तआला के दरबार में तुम्हारा कोई उद्ध & 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0//0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा ४ 38 कबूल नहीं हो सकता और तुम्हारा वह वादा टूट जाएगा जो तुम लोगों ने बैअते उकबा में किया था। इतना कहते कहते उन की रूह परवाज कर गई। (हुज्जतुल्लाह जि?,स870 बहवाला हाकिम व बैहकी) बाज़ रिवायात से पता चलता है कि जिस शख्स को हुजूरे अकरम &7ने हजरत सअद बिन रबीअ%5४की लाश का पता लगाने के लिए भेजा था। वह हज़रत उबै बिन कअब ££ थे। चुनान्वे हज़रत अबू सईद खुदरी £#का यही कहना है। (वल्लाहु तआला अअलम, असदुल गाबा जि०, स 277) तबसेरा: अल्लाहु अकबर! गौर फ्रमाइए कि हज़रत सहाबा- ए-किराम को हुजूरे अकरम##से कितनी वालिहाना मुहब्बत और किस कदर आशिकाना लगाओ था कि आखूरी वक़्त है। ज़ख़्मों से निढाल हैं। मगर उस वक्त भी हुजूर रहमते आलम&&£का ख्याल दिल व दिमाग़ के कोना कोना में छाया हुआ है। अपने घर वालों के लिए अपनी बच्चियों क लिए कोई वसीयत नहीं फरमाते। मगर रसूलुल्लाह/##के लिए अपनी सारी कौम को कितना अहम आखिरी पैगाम देते हैं। सहाबा-ए- किराम को यही वह नेकियाँ हैं जो कुयामत तक किसी को नसीब नहीं हो सकतीं। और इस लिए सहाबा-ए-किराम&##का सारी उम्मत में वह दर्जा है जो आसमान पर सितारों की बारात में चाँद का दर्जा है। द हज़रत सअद बिन रबीअ&#के कोई बेटा नहीं था। सिर्फ दो बेटियाँ थीं। जिन को हुजूरे अक्दस##४ने उन की मीरास में से दो सुलस (तिहा३ हिस्सा) अता फ्रमाया। वल्‍लाहु तआला अअलम।.... हजरत अनस बिन मालिक 6 हज़रत अनस बिन मालिक का नसब नामा यह है। अनस बिन मालिक बिन नसर बिन ज़मज़म बिन जैद बिन हराम अन्सारी। आप क्‌बीलए अन्सार में खज़रज की एक शास्त्र बनी नख़ार में से हैं। उन को माँ का नाम उम्मे सुलैम बिन्ते मलहान है। उन की कुन्नियत हुजूरे अकरम/##“ने अबू हमजा रखी और उन का मरहूर लकब मकतवा इमामे आजम 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0//0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209099776_30॥9_॥0/3/% करामाते सहाबा 6८ 839 मकक्‍तवा इमामे आज़म ''ख़ादिमुन्नबी'* है। और उस लक॒ब पर हजरत अनस:##को बे हद फ्‌ख्य था। दस बरस की उम्र में यह ख्िदमते अकदस में हाजिर हए और दस बरस तक सफर व वतन, जंग व सुलह हर जगह हर हाल हुजूरे अकरम/#”की ख्रदमत करते रहे और हर दम खिदमते अकृदस में हाजिर रहते। हुजूरे अक्दस/#“के तबर्रकात में से उन के पास छोटी सी लाठी थी। आप ने वसियत की थी कि उस को बवकक्‍ते दफून मेरे कफन में रख दें। चुनान्चे यह लाठी आप के कफन मे रख दी गई। हुजूरे अकदस/#&ने उन के लिए खास तौर पर माल और ओलाद में तरक्की और बरकत की दुआएं फरमाई थीं। चुनान्चे उन क माल आर आओलाद म॑ बंहद बरकत व तरक्की हुई। मुख्तलिफ बीवियों और बांदियों से आप के अस्सी लड़के और दो लड़कियाँ पैदा हुई। और जिस दिन आप का विसाल हुआ उस दिन आप के बेटों और पाता वगरा को तअदाद एक सो बीस थी। बहुत ज़्यादा हदीसें आप से मरवी हैं। आप के शागिदों की तअदाद भी बहुत ज़्यादा है। मेंहदी का खजाब सर आर दाढ़ी में लगाते थे और खुश्बू भी खूब इस्तेमाल करते। आप ने वसियत फरमाई कि मेरे कफन में वही ख़श्ब लगाई जाए जिस में हुजूर रहमते आलम££>का पसीना मिला हुआ है। उन को वालिदा हुजूरे अकरम/£#के पसीना को जमा करके खुशबू मे मिलाया करती थीं। हजरत उमर£9#के दौरे खिलाफत में लोगों को तअलीम देने के लिए आप मदीना मुनव्वरा से बसरा चले गए। आप के साले विसाल और आप की उम्र शरीफ के बारे में इख़््तिलाफ्‌ है। मशहूर यह है कि सन्‌ 94 हिजरी में आप का विसाल हुआ। कुछ ने सन्‌ 92 हिजरी कुछ ने सन्‌ 95 हिजरी, कुछ ने सन्‌ 90 हिजरी को आप का विसाल का साल तहरीर किया हं। बवक्ते विसाल आप की उम्र शरीफ एक सौ तीन बरस की थी। बाज़ एक सौ दस बाज़ एक सौ सात और बाज ने निन्‍नावे बरस लिखा हुआ। आप के बाद शहर बसरा मे कोई सहाबी बाकी नहीं रहा। बसरा से दो कोस के फासला पर आप की 2 ससससरराइसनन २ +++++++++++++++--ममममम न +++++++८भभ ८८ नन++ननन+---- नमन 55७ +++--------+----- समय कम +-+--मन+न---नमम मल मरा .... अन्न... आम... अक«क» कक... कक... . अपार. (2००००. &] 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहाबा &६ [40 मकतवा इमामे आजम कब्र शरीफ बनी जो लोगों की ज़ियारत गाह है। आप बहत हो हवा बहुत ही हक्‌ बोलने वाले, हक्‌ पसन्द, इबादत गुज़ार सहाबी हैं और आप की चन्द करामतें भी मन्कूल हैं। (अकमाल स 575 स असदुल गाबा जि, स 27 ) क्रामात्‌ साल में दो मर्तबा फल देने वाला बाग: उन की करामतों में से एक करामत यह है कि दुनिया भर में का बाग साल में एक ही मर्तबा फलता है मगर आप का बाग साल में दो मर्तबा फलता था। (मिश्कात शरीफ्‌ जि?, स 545) . खुजूरों में मुश्क की खुश्बू:-इसी तरह यह भी आप की बहुत ही ब॑ मिसाल करामत है कि आप के बाग के खुजूरों में मुशक की खुश्बू आती थी जिस की मिसाल दुनिया में कहीं भी नहीं मिल सकती हे। ह | (मिश्कात शरीफ्‌ जि2, स 545) दुआ से बारिश:-आप का माली आया और सख्त और खुश्क साली को शिकायत करने लगा। आप ने बुजू फरमाया और नमाज़ एढी। फिर फरमाया कि ऐ माली! आसमान की तरफ देख! क्या तुझे कुछ नज़र आरहा है? बाग़बान ने अर्ज किया कि हुजूर! मैं तो आसमान म॑ कुछ भी नहीं देख रहा हूँ फिर आप ने नमाज़ पढ़ कर बाग़बान से पुछा कि क्‍या आसमान में कुछ नज़र आ रहा है। अब की मर्तबा बाग़बान ने जवाब दिया कि जी हाँ। एक परिन्द के पर क्रे बराबर बदली का टुकड़ा नज़र आ रहा है फिर आप बराबर नमाज़ और दुआ में मशगूल रहे यहाँ तक कि आसमान में हर तरफ बादल छा गया और बहुत ही ज़ोर दार बारिश हुई। फिर हजरत अनस ने बागबान को हुक्म दिया कि तुम घोड़े पर सवार होकर देखो कि यह बारिश कहाँ तक पहुंची है? उस ने चारों तरफ घोड़ा दौड़ा कर देखा और आकर कहा कि बारिश “'मसीरीन'' और ““कुजबान'' के महल्लों के आगे नहीं बढ़ी। (तबकात इब्ने सअद जि 7, स24) तबसेरा: बारिश कहाँ तक हुई है? उस को देखने और मालूम ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05:/.क्‍6/50॥7_|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6208099776_30॥9_॥0/9/% करामाते राहावा ४२ [4] मकतवा इमामे आज़म करने को वजह यह थी कि इस शहर में जहाँ आप थे सखा पड़ गया था। और पानी को सख्त ज़रूरत थी। बाकी दूसरे इलाकों में काफी बारिश हो चुकी थी। उन इलाकों में बिल्कुल और बारिश की ज़रूरत नहीं थी। बल्कि वहाँ ज़्यादा बारिश से नुकुसान होने का खतरा था। इसी लिए आप न॑ पता लगाया कि बारिश कहाँ तक हुई है? जब आप को मालूम हो गया कि बारिश उसी शहर में हुई है जहाँ बारिश की ज़रूरत थी तो फिर आप को इत्मिनान हो गया कि अलहम्दु लिल्लाह! इस बारिश से कहीं भी कोई नुक्सान नहीं पहुँचा। अल्लाहु अकबर! बारगाहे इलाही के मक्‌बूल बन्दों की शान और दरबारे ख़ुदावन्दी में उन की मकुबूलियत का क्‍या कहना? जब खू से अर्ज किया बारिश हो गई और जहाँ तक बारिश बरसाना चाही वहीं तक बरसी। लिल्लाह! गोर फ्रमाइए कि क्या औलिया अल्लाह का हाल और उन की शान आम इंसानों जैसी है? तौबा, तौबा, नऊजुबिल्लाह! कहाँ यह अल्लाह तआला के पाक बन्दे ओर कहाँ मनहूस ओर दिलों के गंदे लोग। ४॥५ .॥०।;| , ४॥५ ०...५ ५२ हज़रत मौलाना रूम रहमतुल्लाह अलैहि फरमाते हैं 3 ८ बिक 9, ड्ड ४ री 2 (/७9॥ (६ | 68 (यअनी पाक लोगों के मामलात को अपने ऊपर मत कु॒यास कर। अगरचे लिखने मे शेर और शीर बिल्कूल हम शक्ल और एक जैसे हैं। लेकिन एक शोर वह है कि इंसान को फाड़ कर खा जाता है। और एक शीर (दूध) है कि उसे इंसान खाता और पीता है) 3८०४। 23५१ +२+४ हजरत अनस बिन नजर £ यह हजरत अनस बिन मालिक#४क चचा हैं। यह बहुत ही बहादुर और जॉबाज़ सहाबी हैं। हज़रत अनस बिन मालिक##का बयान है कि मेरे चचा हज़रत अनस बिन नज़र #9जंगे उहुद के दिन अकेले ही | 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05:/.क्‍6/50॥7_|॥ताफिवा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6200809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा (४7 [42 मकतवा इमामे आज़म क॒फ़्फार से लड़ते हुए आगे बढ़ते चले गए। जब आप ने देखा कि कछ मुसलमान सुस्त पड़ गए हैं और आगे नहीं बढ़ रहे तो आप ने बलन्द आवाज से ललकार कर फ्रमाया:-३७४॥ ८०५ )-० ४ (७०-५५ ,.४ 5५), १०० 6-2, “६9 ->। ७3० (यअनी में उस जात की कसम खा कर कहता हूँ कि जिस के कबज़-ए-कुदरत में मेरी जान है कि में उहुद पहाड़ के पास जन्नत की खुडश्बू पा रहा हूँ और यकीनन बिला शुबहा यह जन्नत ही की खुश्बू है) आप ने यह फरमाया और अकंले ही कुफ़्फार के बीच में लड़ते हुए ज़द्रमों से चूर होकर गिर पड़े और शहादत के शर्फ से सरफराज हुए। उन के बदन पर तीरों, तलवारों और नेजों के अस्सी से ज़्यादा जख्म गिने गए थे और कुफ़्फार ने उन की आँखों को फोड़ कर और नाक, कान, होंट को काट कर उन की सूरत इस कदर बिगाड़ दी थी कि कोई शख्स उन की लाश को पहचान न सका। मगर जब उन की बहन हज़रत रबीअ&&आई तो उन्हों ने उन की उंगलियों के पुरों को देख कर पहचाना कि यह मेरे भाई अनस बिन नजर ##की लाश है। हज़रत अनस बिन नज़र #४जंगे -बद्र में शरीक नहीं हो सके थे। उस का उन्हें बहुत रंज व ग़म था कि अफसोस मैं इस्लाम के पहले ग़ज़वा में गैर हाजिर रहा। फिर वह अक्सर कहा करते थे कि अगर आगे कभी अल्लाह तआला ने यह दिन दिखाया कि कृफ़्फार से जंग का मौकुअ मिला तो अल्लाह तआला देख लेगा कि मैं जंग क्‍या करता हूं और क्‍या कर दिखाता हूँ। चुनान्चे सन्‌ उ हिजरी में जब जंगे उहुद हुई तो उन्होंने खदा तआला से जो वअदा किया था वह पूरा करके दिखाया कि अपने बदन पर अस्सी ज़ख़मों से ज्यादा ज़ख़म खा कर शहीद हो गए। चुनान्चे हुजूरे अकरम&#ने इरशाद फ्रमाया कि उन की शान में कुरआन करीम को यह आयत नाज़िल हुई :- «७५॥॥।५.७४७ ० +#.» ७, ...० ,०)| ... तर्जमा: मोमिनीन में से कुछ मर्द ऐसे हैं जिन्हों ने ख़ुदा से किए हुए अपने वादा को पूरा कर दिया। (अकमाल स 585 असदुल गाबा ब्न्नकून ब्ण्जी ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05:/.76/50॥7_|॥ता|एफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा &(४ [43 किक जल पललत जि, स 22 हुज्जतुल्लाह जि2, स87 बुखारी शरीफ)... क्रामत्‌ इन की करामतों में से यह एक करामत बहुत ज़्यादा मश्हूर और मुस्तनद हेै। खुदा ने कसम पूरी फरमा दी: हज़रत अनस बिन नज़र #$की बहन हजरत रबीअ #४ने झगड़ा व तकरार करते हुए एक अन्सारी की लड़की के दो अगले दाँत तोड़ डाले। लड़की वालों ने बदले का मुतालबा किया ओर शहंशाहे कौनेन/&#ने कुरआन मजीद के हुक्म के मुताबिक्‌ु यह फैसला फरमा दिया कि रबीअ बिन्ते नज़र के दाँत बदले मे तोड़ दिए जाएं। जब हज़रत अनस बिन नज़र ££को पता चला तो वह बारगाहे रिसलात में हाजिर हुए और कहा कि या रसूलल्लाह! त्ुदा तआला की कसम! मेरी बहन का दाँत नहीं तोड़ा जाए। हुजूरे अकसद###ने फ्‌रमाया कि ऐे अनस बिन नज़र! तुम क्‍या कह रहे हो? केसास (बदला) तो अल्लाह तआला कि किताब का फेसला है। यह बात अभी हो रही थी कि लड़की वाले दरबारे नुबुवत में हाजिर हुए और कहने लगे कि या रसूलल्लाह! केसास में रबीअ का दाँत तोड़ने के बदले में हम लोगों को दियत (माली बदला) दिया जाए। इस तरह हजरत अनस बिच्र नजर:#की कुसम पूरी हो गई और उन की बहन हजरत रबीअ ##का दाँत तोड़े जाने से बच गया। हुजूरे अक्सदर्//ने उस मौक॒ुअ पर यह इरशाद फरमाया कि अल्लाह तआला के बन्दों में से कुछ ऐसे भी हैं कि अगर वह किसी मामिला में अल्लाह तआला की कसम खा लें तो अल्लाह तआला उन की कसम को पूरी फरमा देता है। (बुखारी शरीफ्‌ जि०, स 264, बाब कौला वल जरूह क्सास) तबसेरा: हुजरे अकृदस/##“के इरशादे गिरामी का यह मतलब है कि अल्लाह तआला के बन्‍्दों में से कुछ ऐसे बारगाहे इलाही के हि ब्न्नकून ब्ण्जी 606 ५शशां॥ ए752८वाा6श [05://.06/5 077 |॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥|॥9_॥0/8/%५ वाली न हो अल्लाह तआला के यह बन्दे अगर कुसम खा लें कि हो जाएगी तो अल्लाह तआला उन मुक्‌द्स बन्दों को कुसमों को टूटने नहीं देता। बल्कि उस न होने वाली चीज़ को मौजूद फरमा देता है ताकि उन मुक्‌द्दस बन्दों की कसम पूरी हो जाए। देख लीजिए कि हज़रत रबीअ #£के लिए दरबारे नुब॒ुवत से बदले का फ्सला हो चुका था और मुद्दई ने केसास ही का मुतालबा किया था। लेकिन जब हज़रत अनस बिन नज़र ##क्‌सम खा गए कि खुदा को कसम! मेरी बहन का दाँत नहीं तोड़ा जाएगा तो ख़ुदा तआला ने ऐसा ही सबब पैदा कर दिया। तो जाहिर है कि अगर फैसला के मुताबिक दाँत तोड़ दिया जाता तो उन की कुसम टूट जाती। मगर ख़ुद तआला का फूजल व करम हो गया कि मुद्दई। का दिल बदल गया और उस ने बजाए केसास (जानी बदले) के दियत (माली बदले) का मुतालबा कर दिया। इस तरह दाँत टूटने से बच गया और उन की कसम पूरी हो गई। इस की बहुत सी और सुबूत हासिल हूँगे कि अल्लाह वाले जिस बात की कसम खा गए अल्लाह तआला ने उस चीज को मौजूद फूरमा दिया। अगरचे वह चीज़ ऐसी थी कि बज़ाहिर उस के होने की कोई भी सूरत नहीं थी। हज़्रत्‌ हंजला बिन अबी आमिर &४ यह मदीना मुनव्वरा के रहने वाले हैं और अन्सार के कबीला ओऔस से उन का खानदानी तअल्लुक्‌ है। उन का बाप अबू आमिर अपने कूबीला का सरदार था और ज़मान-ए-जाहलियत में उस की इबादत को कसरत को देख कर आम तौर पर लोग उस को अबू आमिर राहिब (पादरी) कहा करते थे। जब हुजूरे अकरम/##हिजरत फ्रमा कर मदीना मुनव्वरा तशरीफ लाए और पूरा मदीना और इर्द गिर्द का इलाका हुजूर के कृदमों पर कुरबान होने लगा तो मदीना के दो शख़्सों पर हसद का भूत सवार हो गया। एक अब्दुल्लाह बिन उबै, न कं हद 56व7606 ५शशंगरा एद्वा75टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/089/|5/620809776_30७॥9_॥0/9/% करामाते तक हि ँ सहावचा रॉ | करामाते सहावा छ(९ 45 मकतवा इमामे आजम दूसरे अबू आमिर राहिब, लेकिन अब्दुल्लाह बिन उबे ने तो अपनी दुश्मनी को छुपाए रखा और मुनाफिक्‌ बन कर मदीना ही में रहा। लेकिन अबू आमिर राहिब हसद्‌ की आग में जल भुन कर मदीना से मक्का चला गया। और क्‌ुफ़्फारे मक्का को भड़का कर मदीना मुनव्वरा पर हमला के लिए तैयार किया। चुनान्चे सन ३ हिजरी में जब जंगे उहुद हुई तो अबू आमिर क॒फ़्फार के लश्कर में शामिल था और कुफ़्फार की तरफ से लड़ रहा था। मगर उस के बेटे हजरत हंजला #2परचमे इस्लाम के नीचे निहायत ही जवाँ मर्दी और जोश व ख़रोश के साथ कुफ़्फार से लड़ते रहे थे। अब्‌ आमिर राहिब जब तलवार घुमाता हुआ मैदान में निकला। तो हजरत हंजला £#ने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह!6#मुझे इजाजत दीजिए कि में अपनी तलवार से अपने बाप अबू आमिर का सर काट कर लाऊँ मगर हुजूर रहमतुल लिलआलमीनः##&#की रहमत ने यह गवारा नहीं किया कि बेटे की तलवार बाप का सर काटे। इस लिए आप ने इजाजत नहीं दी मगर हज़रत हंजला £#जोशे जिहाद में इस कुदर आपे से बाहर हो गए थे कि सर हथेली पर रख कर इन्तहाई जाँ बाज़ी के साथ लड़ते हुए लश्कर के बीच तक पहुँच गए और कुफ़्फार के कमान्डर अबू सुफयान पर हमला कर दिया और करीब था कि हज़रत हंजला #£ की तलवार अबू सुफयान का फेसला कर दे। मगर अचानक पीछे से शद्दाद बिन असवद ने झपट कर वार को रोका और हजरत हंजला $& को शहीद कर दिया। (असदुल ग़ाबा जि2, स 67 व मदारिजुन्नबुवा स 23) गुसीलुल मलाइका (फरिश्तों का नहलाया हुआ): हज़रत हजला #£के बारे में हुजूरे अकरम/#ने फरमाया कि फरिश्तों ने उन्हें गुस्ल दिया है। जब उन की बीवी से उन का हाल पुछा गया। तो उनन्‍्हों ने यह बताया कि वह जंगे उहुद की रात में अपनी बीवी के साथ सोए थे। और गुस्ल की जरूरत हो गई थी। मगर वह रात के आखिरी हिस्से में दअवते जंग की पुकार सुन कर इस ख़्याल से बिला गुस्ल मेदाने जंग की तरफ दौड़ पड़े कि शायद गुस्ल करने में अल्लाह के रसूल न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥#_।॥0 0/9/५ | ॥05:॥/8/079५8.0/5/06७98/5/6)808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहाबा,# [40 मक्तवा इमामे आजम की पुकार पर दौड़ने में देर लग जाए। हुजूरे अकृदस /£#ने फरमाया कि यही वजह है कि फ्रिश्तों ने शहादत के बाद उन को गुस्ल दिया। वरना शहीद को गुस्ल देने की जरूरत ही नहीं है। इसी वाकिआ की बिना पर हज़रत हंज़ला४£#को गसीलुल मलाइका (फ्रिश्तों के नहलाए हुए) कहा जाता है। (मदारिजुन्नबुवा ज़िर, व मिश्कात शरीफ वगैरा) तबसेरा: फरिश्तों ने हज़रत हंज़ला :(#को शहादत के बाद गुस्ल दिया। यह आप को बहुत बड़ी करामत और निहायत ही जबरदस्त फ्‌जीलत है। चुनान्चे आप के कूबीला वालों को इस पर बहुत बड़ा फ्‌छखर और नाज था कि हज़रत हंजला :१हमारे कूबीला के एक बे मिसाल आदमी हैं कि जिन को फ्रिश्तों ने नहलाया। इस तफाख़ुर के सिलसिले में मन्‍्कूल है कि कृबीला-ए-औस के लोगों ने कृबीला-ए- ठ्ाजर॒ज वालों से कहा कि देखा लो हजरत हंजला £#गसील॒ल मलाइका हमारे कृबीला-ए-औस के हैं। हजरत आसिम£४£ शहद की मक्खियों ने जिन की लाश पर पहरा दिया था। वह भी हमारे कबीला-ए-ओऔस के हें और हजरत सअद बिन मआज £9४£ जिन की वफात पर अर्श इलाही हिल गया वह भी हमारे कबीला-ए-औस के हैं और हज़रत खुजेमा बिन साबित £#जिन की अकेले की गवाही दो गवाहों के बराबर है वह भी हमारे कुबीला औस ही के हैं। यह सुन कर कुबीला-ए-ख्ज़॒रज के लोगों ने कहा कि हमारे ?बोला-ए-खजरज वालों को भी यह फडझख़र हासिल है कि हजरे अकदस/#/की मौजूदगी में हमारे कृबीला के चार आदमी हाफिजे कुरआन व कारी हुए और तुम्हारे 5बीला में इस वक़्त तक कोई भी पूरा हाफिज़े कुरआन नहीं हुआ। टेख लो हज़रत जैद बिन साबित, हज़रत अबू जद हज़रत उबे गि+ कअब और हज़रत मआज बिन जबल ££#अजमईन यह चारों हुफफाज हमारे कुबीला खज़रज के सपुत हें। (असदुल गाबा जल्द च॑०-2, सफा नं०-28) नि ड़ हि 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/6.86/5 07 _।॥009/8५ कम करामाते सहाबा त््लचन,्च अ्््अअ्लचलञअखआ्ाआ ं्स्सस जिस 333 0 आए -//ध०॥५४०.00/06ा व [4 ॥09706_80॥9_॥0/94% ध्ड ]. मकतवा इमामे आज़म हज़रत अपमिर बिन फूहेरा ££ यह हज़रत अबू बकर सिद्यौक £४के आज़ाद किये हए गलाम हैं। यह शुरू इस्लाम ही में मुसलमान हो गए थे। फिर कुफ़्फारे मक्का ने उन का बहुत ज़्यादा सताया तो हज़रत अबू बकर सिद्दीक्‌£४ने उन को कर आज़ाद कर दिया। हिजरत के वकुत जब कि हुजरे अनवर £#अपने यारे गार सिद्दीक्‌ जॉनिसार ##के साथ गारे सोर में तशरीफ फरमा हुए तो यही हज़रत आमिर बिन फहेरा##दिन भर बकरियों को ४-आं गार के पास रात को लाते और उन बकरियों का दुध दुह कर नों आलम के ताजदार और उन के यारे गार को पिलाते। जब गारे सोर से हुजूरं अकरम#&#मदीना मुनव्वरा के लिए रवाना हुए तो एक ऊटनी पर शहंशाहे दो आलम और एक ऊँटनी पर हजरत अबू बकर सिद्देक और हज़रत आमिर बिन फहेरा ££बैठे। सफर सन्‌ 4 हिजरी वाकिआ “बीरे मऊचा'' में आप को डहादत की सआदत हासिल हुई। (अस॒दुल ग़ाबा जि 3, स 94) (पूरी तफ्सील के लिए पढ़िए हमारी किताब सीरते मुस्तफा) "रामत्‌ लाश आसमान तक बलन्द हुई: जंग बीरे मऊना में सत्तर सहाबा-ए-किराम में से सिर्फ अमर बिन उमैया जमरी :४जिन्दा बचे। बाकी सब जामे शहादत से सैराब हो गए। उन ही शोहदा-ए-किराम में से हज़रत आमिर बिन फूहेरा &#भी हैं। कुफ़्फार के सरदार आमिर बिन तुफूल का बयान है कि हज़रत आमिर बिन फहेरा जब शहीद हो गए तो एक दम उन की लाश ज़मीन से बलन्द होकर आसमान तक पहुँची। फिर थोड़ी देर के बाद आहिस्ता आहिस्ता वह जमीन पर उतर आई ओर उस के बाद उन की लाश तलाश करने पर नहीं मिली। फरिश्तों ने उन्हें दफन कर दिया। (बुखारी जि?, स 587) तबसेरा: जिस तरह हज़रत हंजला#£को फ्रिश्तों ने गुस्ल दिया तो कटा इन -+०-नआ रथ >-पकर न 2पत कम पा पक + 5 3 मी न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा /४7 ]48 मकतवा इमामे आजम उन का लकब “'ग़सीलुल मलाइका" हुआ उसी तरह चूँकि उन को फ्रिश्तों ने कब्र में दफन किया था इस लिए यह ''दफीनल मलाइका'' (फ्रिश्तों के दफन किये हुए) हैं। वल्लाहु तआला अअलम। हज़रत गालिब बिन अब्दुल्लाह लैसी #/ हज़रत गालिब बिन बिन मसअर बिन जअफुर बिन कलब लेसी #2उन का वतन मक्का मुअज़्जमा है और यह फतहे मक्का से पहले ही मुसलमान हो गए। फृतहे मक्का में यह हुजूरे अकदस शहंशाहे कौनेन/&#के साथ थे और आप ने उन को मक्का मुकर्रमा के रास्तों की दुरूस्ती और कुफ़्फार के हालात की जासूसी के काम पर लगाया। फिर फृतहे मक्का के बाद साठ सवारों का अफुसर बना कर आप ने उन को मकामे कुदेद में बनी मलूह से जंग के लिए भेज दिया। हि इब्ने कलबी का बयान है कि जनाबे रसूलुल्लाह/£#ने उन को बनी मुरी से लड़ने के लिए “'फेदक'' भेजा। वहीं यह शहादत से सरफराज हो गए। वल्‍लाहु तआला अअलम! (असदुल गाबा जि4, स 68) एक रिवायत से यह भी मालूम होता है कि हजरत फारूके अअजम&#क दोरे खिलाफत में भी यह जिहादों में शरीक होते रहे हैं। खास तौर पर जंगे कादसिया में खूब खूब कुफ़्फार से लड़े। मशहूर है कि हुरमुजान उन्हीं के हाथ से मारा गया। हज़रत अमीरे मआविया ४?को हुकूमत के दौरान इब्ने जयाद ने उन को ख़ुरासान का हाकिम बना दिया था। (इसाबा जि०5, स० 87) उन की यह एक करामत बहुत मशहूर और निहायत ही मुस्तनद है। क्रामत्‌ खुश्क नाला में अचानक सैलाब: हज़रत जुनदुब बिन मकौस जहनी #४का बयान है कि रसूले खुदा/##ने हज़रत ग़ालिब बिन अब्दुल्लाह >म्यूझहार- न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍76/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | ऊ्यामादे सहावा 2१० ॥8/0०॥9५४6७ अं. 8094/76_ 0 आर कलॉजो इमामे आजम शिक#२०+८+ मम ०+ उ+ राशिद. दल जम: -न वनिनिनििलिि कि ले 00//6000/#८< | लेसी £#को एक छोटे से लश्कर का अमीर बना कर जेहाद के लिए भेजा। में भी उस लश्कर में शामिल था। हम लोगों ने मकामे ''कुदेंद में कबीला बनी अलमलूह पर हमला किया और उन के ऊर्टा का माल ग़नीमत बना कर वापस आने लगे। अभी हम लोग कछ दूर हां चले थ कि बनू मलूह के तमाम कूबाइल का एक बहुत बड़ा लश्कर जमा हां कर हमारे पीछे आ गया। हम लोग एक नाले के पार आगए जो बिल्कुल ही खुश्क था। और हम लोगों को बिल्कल ही यकान हां गया कि अब हम लोग उन काफिों के हाथों में गिरफ्तार हो जाझा। मगर कुफ़्फार जब नाला क पास आए तो बावजूद यह कि न बारिश हुई न बदली किसी तरफ से नज़र आई। अचानक नाला पानी से भर गया और इस जोरो शोर से पानी का बहाव था कि उस को पार करना इन्तहाई दुश्वार था। चुनान्चे कुफ़्फ़ार का लश्कर नाला के पास ठहर गया और एक काफिर भी नाला को पार न कर सका और हम लाग निहायत ही इत्मीनान और सलामती के साथ मदीना मुनव्वरा पहुंच गए। (हुज्जतुल्लाह जि?, स 872 बहवाला इब्ने असअद) तबसेरा: हम करामत की किसमों के बयान में यह लिख चुके हैं कि बिल्कुल अचानक गैब से किसी चीज़ का बतौर इमदाद के जाहिर हो जाना यह भी करामत की एक किसम है। सूखे नाला में अचानक पानी भर जाना यह हज़रत गालिब बिन अब्दुल्लाह लेसी 52 की उसी किस्म को करामत है। उन को उसी करामत की बदौलत तमाम सहाबियों की जान बच गई। हज़रत अबू मूसा अशअरी £४ हजरत अबू मूसा अशअरी &#&यमन के रहने वाले थे। मक्का मुकर्रमा में आकर इस्लाम कुबूल किया। पहले हिजरत करके हबशा चले गए। फिर हबशा से कशतियों पर सवार होकर तमाम मुहाजिरीने हबशा के साथ आप भी तशरीफ्‌ लाए और खौबर में हुजूर£/की खिदमत में हाजिर हुए। हज़रत उमर #£ने सन्‌ 20 हिजरी में उन को न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.86/5 ए7॥ ।॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४; 450 मकक्‍तवा इमामे आजम बसरा का गवर्नर मुकूरर फ्रमाया और हज़रत उस्मान:#?की शहादत तक यह बसरा के गवर्नर रहे। जब हज़रत अली और हजरत अमीरे मआविया&#४#की जंग शुरू हुई तो पहले आप हजरत अली%के तरफदार थे मगर उस झगड़े से दूर होकर मक्का मुकर्रमा चले गए। यहाँ तक कि सन्‌ 52 हिजरी में आप की वफात हो गई। (अकमाल स० 648] करामत्‌ गेबी आवाज सुनते थेः आप की यह एक ख़ास करामत थी कि गैबी आवाजें आप के कानों में आया करती थीं। चुनान्चे हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास &# का बयान है कि एक मर्तबा हज़रत अबू 'मूसा अशअरी # समन्दरी जिहाद में अमीरे लश्कर बन कर गए। रात में सब मुजाहिदीन कश्तियों पर सवार होकर सफर कर रहे थे कि बिल्कुल अचानक ऊपर से एक पुकारने वाले की आवाज़ आई। “क्या में तुम लोगों को ख़ुदा तआला के इस फैसले की ख़बर दे दूँ जिस का वह अपनी जात पर फैसला फरमा चुका है? वह यह है कि जो अल्लाह तआला के लिए गर्मी के दिनों में प्यासा रहे गा, अल्लाह तआला पर हक्‌ है कि प्यास के दिन (कयामत में) ज़रूर जरूर उस को सैराब फरमा देगा।'' (हज्जतुल्लाह जि 2, स॒ 872 बहवाला हाकिम) लहने दाऊदी: आप की आवाज़ और लहजा में इतनी जबरदस्त कशिश खिचाव थी कि उस को करामत के सिवा और कुछ भी नहीं कहा जा सकता। हज़रत अमीरूल मोमिनीन उमर #8 जब हज़रत अबू मूसा अशअरी ## को देखते तो फ्रमाते। ५.०» ५ ७ ५५, ७-५3 (ऐ अबू मूसा! हम को अपने रब की याद दिलाओ) यह सुन कर हज़रत अबू मूसा अशअरी #४ कुरआन शरीफ पढ़ने लगते। उन की केरत सुन कर हज़रत उमर #9 के दिल में ऐसी नूरी तजल्ली पैदा हो जाती कि उन्हें दुनिया से दूरी और अपने रब को 'हुजूरी नसीब हो जाती थी। न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/098099776_30॥9_॥0/9/%५ करागाते राहावा ४ |5| मकक्‍्तवा इमागे आजम जहा >्यक-्ारा-+.मुरनमगूरममयदल्‍ | अबू. >नभम»कक... "मा -पवाबशाण-क-न--. | अव्णणमवणकुकमू-ल रत बुरैदा ४४ का बयान है कि हुजूरे अकुद्स/४/ने हजरत अबू रा जाराजारी को करत सुनी तो इरशाद फ्रमाया कि दाऊद ४/की पी अच्छी आवाज़ उस शख्स को ख़ुदा तआला की तरफ से अता की गई ऐ। (कंजुल उम्माल जि 6 स 28 मतबूआ हेदराबाद) हजरत तमीम दारी #/४ हज़रत तमीम बिन अवस £$ पहले नसरानी थे। फिर सन ९ हिजरी में मुशर्रफ ब इस्लाम हुए। बहुत ही इबादत गुजार थे। एक ही गत मे कुरआन गजीद पूरा पढ़ लिया करते थे। और कभी कभी एक ही आयत को रात भर सुबह तक नमाज में बार बार पढ़ते रहते। हजरत मुहम्मद बिन मुन्कदिर का बयान है कि एक रात सोते रह गए और नमाजे तहज्जुद के लिए नहीं उठ सके तो उन्हों ने अपनी इस कोताही का कफ़्फारा इस तरह अदा किया कि पुरे एक साल तक रात भर नहीं सोए। पहले मदीना मुनव्वरा में रहते थे फिर अमीरूल मोमिनीन हज़रत उस्मान ग़नी ४£# की शहादत के बाद मुल्के शाम में चले गए और आखिरी उम्र तक मुल्के शाम ही में रहे। मस्जिदे नबबी मे सब से पहले उन्हों ने क्रिन्दील (लालटेन) जलाई और हुजूरे अकुदस #&&४ ने दज्जाल के जसामा का बाकिआ उन से सुन का सहाबा-ए-किराम को सुनाया। (अकमाल स॒ 588 व असदुल ग़ाबा जि। , स 25) क्रामत्‌ चादर दिखा कर आग बुझा दी: आप की करामतों में से एक मशहूर ओर मुस्तनद करामत यह है कि अमीरूल मोमिनीन हज़रत फारूके अअजम£#४ के दौरे खिलाफत में जब पहाड़ के एक ग़ार से एक कुदरती आग जाहिर हुई तो अमीरूल मोमिनीन ने उन को अपनी चादर अता फरमाई। यह चादर ले कर जब आग के करीब पहुँचे तो आग बुझती हुई पीछे को हटती चली गई। यहाँ तक कि आग ग़ार के अन्दर दाखिल हो गई और यह ख़ुद भी आग को चादर से हटाते हुए 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0[/0/9५ ॥05:॥/8/07४98.00/0695/6)/808/706_9५॥8 _॥0/8/9५ करामाते सहाबा &2 52 मकक्‍तवा इमामे आज़म गार में घुसते चले गए। जब यह आग को बुझा कर हज़रत अमीरूल मोमिनीन की ख्क्िदिमत में हाजिर हुए तो आप ने फ्रमाया ऐ तमीम दारी। इसी दिन के लिए हम ने तुम को छुपा रखा था। (हुज्जतुल्लाह जि2, स 875 बहवाला अबू नईम) (इस आग का पुरा हाल हम ने अपनी किताब “'रूहानी हिकायात'' और सीरते मुस्तफा'' में तहरीर किया है।) हज़रत इमरान बित हसीव #£ उन को कुन्नियत अबू नजीद है और यह कूबीला बनू ख़ज़ाआ की एक शाख्र बनू कअब के खानदान से हैं। इस लिए ख़ुजाई और कअबी कहलाते हैं। सन्‌ ७हिजरी में जंगे खैबर के साल मुसलमान हुए। हजरत उमर#? ने अपनी खिलाफत के दौरान उन को अहले बशरा की तअलीम क लिए मुक्रर फ्रमाया था। मुहम्मद बिन सीरीन मुहद्दिस् फ्रमाया करते थे कि बसरा में इमरान बिन हुसैन &£ से ज़्यादा पुराना और अफजल कोई सहाबी नहीं। उनकी पूरी ज़िन्दगी मज़हबी रंग में रंगी हुई थी। तरह तरह की इबादतों में बहुत ज़्यादा मेहनत फरमाते थे। हुजूरे अकृदस/##7के साथ इतनी वालिहाना अकीदत थी और आप का इतना एहतेराम करते थे कि जिस हाथ से उन्हों ने आप/&४“के दस्ते मुबारक पर बेअत को थी। उस हाथ से उम्र भर उन्होंने पेशाब का मक्राम नहीं छुआ। तीस बरस तक मुसलसल इस्तिस्का की बीमारी में ' साहिबे फ्राश रहे ओर पेट का आप्रेशन भी हुआ मगर सबरो शुक्र का यह हाल था कि खेर खैरियत लेने वाले से यही फरमाया करते थे कि मेरे ख़ुदा को जो पसन्द है वही मुझे भी महबूब है। (हुज्जतुल्लाह जिल्द 2, सफा 875 व अकमाल व असदुल गाबा जिल्द4, सफा 37) सन्‌ 52 हिजरी में बमकामे बसरा आप का विसाल हुआ ब्न्नकून ब्ण्जी ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः 0[05:/.क्‍6/50॥77_|॥ताएफिवा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/620/09809776_830७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४2 ]53 मकक्‍तवा इमामे आज़म क्रामत्‌ फरिश्तों से सलाम व मुसाफा: आप की मरहूर करामत यह है कि आप फरिश्तों की तसबीह की आवाज़ सुना करते और फरिश्ते आप से मुसाफ्हा किया करते थे साथ ही आप बहुत मुस्तजाबुद्दअवात भी थे। यअनी आप की दुआएँ बहुत ज़्यादा मकूबूल हुआ करती थीं। (हुज्जतुल्लाह जिल्द २, सफा 875 व असदुल गाबा जि4, स 57 व इब्ने सअद जि4, स 288) हज़रत सफीना ## यह हुजूरे अकदस##४#के आज़ाद किये हुए गुलाम हैं और कछ का कोल है कि यह हज़रत उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा&& के गुलाम थे। उन्होंने इस शर्त पर उन को आज़ाद किया था कि उम्र भर रसूलुल्लाह (#/को स्व्िदमत करते रहेंगे। ''"सफीना'' उन का लक॒ब हे। उन के नाम में इस््तिलाफ है। किसी ने ““रबाह'' किसी ने ““महरान'' किसी ने ''रूमान'' नाम बताया है। “'सफीना'' अरबी में कश्ती को कहते हैं। उन का लकब ''सफीना'' होने का सबब यह है कि दौराने सफर एक शख्स थक गया तो उस ने अपना सामान उन के कंधों पर डाल दिया और यह पहले ही बहुत ज़्यादा सामान उठाए हुए थे। यह देख कर हजूरं अकदस/#&#ने खुश तबई और मजाह के तौर पर यह फ्रमाया कि <.«... -। (तुम तो कश्ती हो) उस दिन से आप का यह लकब मरहूर हो गया कि लोग आप का असली नाम ही भूल गए। लोग उन का असली नाम पुछते तो यह फरमाते थे कि में नहीं बताऊंगा। मेरा नाम रसूलुल्लाह&४ने '“सफीना'' रख दिया है अब में उस नाम को कभी हरगिज हरगिज़ नहीं बदलंगा। (अकमाल सफा 597 व असदुल गाबा जिल्द 2, स 524) नि ड़ हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05:/.क्‍06/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | 5:;/ध0०॥9५४8.0/0/06/99/ ॥09706_30॥9_॥0 डमामे करामाते सहावा “# 35/व ह887५ मैकक्‍तवा इमामे आज़म करामत्‌ शेर ने रास्ता बताया: उन की मशहूर और निहायत ही मुस्तनद करामत यह है कि यह रूम की सर जमीन में जिहाद के दौरान इस्लामी लश्कर से बिछड़ गए और लश्कर की तलाश में दौड़ते भागते चले जा रहे थे। कि बिल्कूल ही अचानक जंगल से एक शेर निकल कर उन के सामने आ गया। उन्हों ने डॉट कर बलन्द आवाज़ से फरमाया कि ऐ शेर! मैं रसूलुल्लाह/&“का गुलाम हूँ और मेरा मामला यह हैं कि में लश्करे इस्लाम से अलग हो गया हूं ओर लश्कर की तलाश में हू। यह सुन कर शेर दुम हिलाता हूआ उन के पहलू मे आकर खड़ा हो गया। और बराबर उन को अपने साथ लिए हुए चलता रहा। यहाँ तक कि यह लश्करे इस्लाम में पहुंच गए तो शेर वापस चला गया। (मिश्कात॑ जि?, स 554 बाबुल करामात) हजरत अबू अमामा बाहली #/ उन का नाम सदी बिन अज्लान है मगर यह अपनी कुन्नियत ही के साथ मशहूर हैं। बनू बाहला के खानदान से हैं। इस लिए बाहली कहलाते हैं। मुसलमान होने के बाद सब से पहले सुलह हुदैबिया में शरीक होकर बैअते रिज़्वान के शर्फ से सरफराज़ हुए। दो सौ पच्चास हदीसें उन से मरवी हैं और हदीसों के दर्स व फैलाने में उन को बेहद लगाव था। पहले मित्र में रहते थे फिर हमस चले गए और वहीं सन्‌ 86 हिजरी में इकानवे (9) बरस की उम्र में वफात पाई। बाज मोअर्रत्रीन ने उन का साले वफात सन 84 हिजरी तहरीर किया हे। यह अपनी दाढ़ी में पीले रंग का खिजाब (मेंहदी) करते थे। (अकमाल सफा 586 व असदुल गाबा जिल्द 3, सफा 6) नि ड़ हब 56व77606 ५शशंग्रा एद्वा)5टवया6/ [05://.क्‍76/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/620809776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा ४7 ]55 मक्‍तवा इमामे आज़म ब्ल्न््णलक् न क्िक्रलआखआ 5 : $झझ |ःखःल्‍चँ्चँँतँ, चोर नकपमफअपन न क कक कक कक कं“ ३मंकभक्‍रभन«भ नम नशा बज बक8. ब छः ह खा का अससस3++-_....गगागनामक+--ननमनननन+---न सह. >>+--क---+ 7-६... पका -अक-..->न--नननननननननननननननननननननननननननननननन++ “--पननननननननननन---ंंनमा 3 जिनननननननमभंभनमम-ना 3 जन 5 अप .32 िभिननभतअफअनअाननगभननन अनझन्‍ननम.3 विनननननननननमनं-ंननमा-ााननननमन-न-मन. अनननगनन तन 3 आम» फरिश्ता ने दूध पिलाया: उन की एक करामत यह है कि जिस को वह ख़ूद बयान फरमाया करते थे कि रसलुल्लाह/&#ने उन को भेजा कि तुम अपनी कोौम मे जाकर इस्लाम की तबलीग करो चुनान्चे हुजुर के हुक्म के मुताबिक यह अपने कबीला में पहुँचे और इस्लाम का पैग़ाम पहुँचाया। मगर उन की कौम ने उन के साथ बहुत बुरा सुलूक किया। खाना खिलाना तो बड़ी बात है पानी का एक क॒तरा भी नहीं दिया। बल्कि उन का मज़ाक उड़ाते हुए और बुरा भला कहते हुए उन को बस्ती से बाहर निकाल दिया। यह भूक प्यास से इन्तेहाई बे ताब और निढाल हो चुके थे। लाचार होकर खुले मैदान ही में एक जगह सो गए तो ख़्वाब में देखा कि एक आने वाला (फ्रिश्ता) आया और उन को दुध से भरा हुआ एक बरतन दिया। यह उस दुध को पी कर तब जी भर कर सेराब हो गए। ख़ुदा की शान देखिइए कि जब नींद से बेदार हुए तो न भूक थी न प्यास । उस के बाद गावं के कुछ अच्छे और सुलझे हुए लोगों ने गावों वालों को बुरा भला कहा कि अपने ही कृबीला का एक मुअज़्जज़ आदमी गावों में आया और तुम लोगों ने उस के साथ शरमनाक किस्म की बदसुलूकी कर डाली। जो हमारे कूबीला वालों की पेशानी पर हमेशा के लिए कलंक का टीका बन जाएगी। यह सुन कर गावों वालों को शर्मिंदगी हुई और वह लोग खाना पानी वगैरा लेकर मैदान में उन के पास पहुँचे। तो उन्होंने फ्रमाया कि मुझे तुम्हारे खाने पीने की अब कोई जरूरत नहीं है। मुझ को तो मेरे रब ने खिला पिला कर सेराब कर दिया है और फिर अपने ख़्वाब का किस्सा बयान किया। गावों वालों ने जब देख लिया कि वाकुई यह खा पी कर सैराब हो चुके हैं और उन के चेहरे पर भूक प्यास का कोई व निशान नहीं हालांकि इस सुनसान जंगल और बयाबान में खाना पानी कहीं से मिलने को कोई सवाल ही पैदा नहीं होता तो गावं वाले आप को इस न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥॥_।॥0 0/9/५ | ॥005:॥/8/079५8.0/5/06७68/5/6)0808/76_90५॥8 _॥0/8/9 करागाते त्तहाबा (४४ 56 मकतवा इमामे आज़म करामत से बेहद मुतअस्सिर हुए यहाँ तक कि पूरी बस्ती के लोगों ने इस्लाम कूबूल कर लिया। (हुज्जतुल्लाह ज़िर, स॒ ८७३ बहवाला बैहकी व कंजुल उम्माल जि 46 व 622 व मुस्तद्रक हाकिम जि 3, स 642) इमदादे गैबी की अश्रफियाँ: हज़रत अबू अमामा बाहली & लौंडी का बयान है कि वह बहुत ही सखी और फैयाज़ आदमी थे। किसी मंगते को भा अपने दरवाज़े से वापस नहीं लौटाते थे। एक दिन उन के पास सिर्फ तीन ही अशरफियाँ थी। और यह उस दिन रोज़ा से थे। इत्तेफाक्‌ से उस दिन तीन मांगने वाले दरवाज़ा पर आए और आप: ने तीनों को एक एक अशरफौ दे दी। फिर सो रहे। बांदी कहती है कि मैंने नमाज़ के लिए इन्हें जगाया और वह वजू करके मस्जिद में चले गए। मुझे उन के हाल पर बड़ा तरस आया कि घर मे न एक पैसा है न अनाज का एक दाना। भला यह रोज़ा किस चीज से इफतार करेंगे? मैंने एक शख्स से कर्ज ले कर रात का खाना तैयार किया और चिराग जलाया। फिर में जब उन के बिस्तर को दुरूस्त करने के लिए गई तो क्या देखती हूँ कि तीन सो अशरफियाँ बिस्तर पर पड़ी हुई हैं मैंने उन को गिन कर रख दिया। वह नमाज़े इशा के बाद जब घर में आए और चिराग़ जलता हुआ भौर बिछा हुआ दस्तर ख़्वान देखा तो मुस्क्राए और फ्रमाया कि आज तो माशाअल्लाह मेरे घर में अल्लाह की तरफ से खेर ही खौर है। फिर मैं ने उन्हें खाना ओर अर्ज किया कि अल्लाह तआला आप पर रहम फ्रमाए आप उन अश्रफियों को यूंही ला परवाई के साथ बिस्तर पर छोड़ कर चले गए और मुझ से कह कर भी नहीं गए कि मैं उन को उठा लेती। आप ने हैरान होकर पुछा कि कंसी अशरफियाँ! मैं तो घर में एक पैसा भी छोड़ कर नहीं गया था। यह सुन कर में ने उन का बिस्तर उठा कर जब उन्हें त्राया कि यह देख लीजिए अररफियाँ पड़ी हुई हैं तो वह बहुत _हुए। लेकिन उन्हें भी उस पर बड़ा तअज्जुब हुआ। फिर सोच कर कहने लगे कि यह अल्लाह तआला की तरफ से मेरी इमदादे गैबी है। में उस के बारे में उसके सिवा और क्‍या कह सकता हूँ। न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍06/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा १२ ]57 मक्तबा इमामे आजम (हुलियतुल ओलिया जि 0, स29 व शवाहिदुन्नबुवा स28) हज़्रते दहिया बिन खलीफा यह बहुत ही बलन्द मर्तबा सहाबी हैं जंगे उहुद और उस के बाद के तमाम इस्लामी जंगों में कफ़्फार से लड़ते रहे। सन ६ हिजरी में हुजूरे अक्दस##ने उन को रूम के बादशाह कैसर के दरबार में अपना मुबारक ख़त देकर भेजा और कैसरे रूम हुजूर /#४- का नामा मुबारक पढ़ कर ईमान ले आया। मगर उस की सलतनत के लोगों ने इस्लाम कबूल करने से इनकार कर दिया। उन्होंने हुजूरे अकरम#£#की खिदमत में चमड़े का मोज़ा बतोर नज़राना पेश किया और हुजूरे अकृदस##ने उस को कबूल फ्रमाया। यह मदीना मुनव्वरा से शाम में आकर बस गए थे। और हज़रत अमीरे मआविया 5४ के ज़माने तक जिन्दा रहे। (अकमाल स 594) क्रामत्‌ हजरत जिब्नईल उन की सूरत में:उन की मश्हूर करामत यह हे कि हजरत जिब्रईल*:-उन की सूरत में जमीन पर नाजिल हुआ करते थे। (अकमाल स 594 व असदुल गाबा जि?, स 50) हजरत सायब बिन यजीद &£ उन की कुन्नियत अबू यजीद है। बनू कुन्दा में से थे। हिजरत के दूसरे साल पैदा हुए ओर हज्जतुल विदाअ में अपने वालिद के साथ हज किया। इमाम जहरी उन के शागिर्द में बहुत ही मशहूर हैं। सन 80 हिजरी में उन की वफात हुई। (अकमाल स 598) करामत्‌ चौरानवे साल का जवान: हुजूरे अकदस/##/ने उन के सर पर अपना दस्ते मुबारक फेरा था। जुनैद बिन अब्दुर्रहमान का बयान है कि '३- ४४ रस कक कक कक कक कक कक + 33335 कक कक कक काम कक. कक कक कप ५५७७5 5 क कर 99999 क र ॉक्‍स्परप 9 सन 6[05:/.076/5फ॥॥#_|ाताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/05869/|5/6209809776_830७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा [50 मक्तवा इमामे आजम हजरत सायब बिन यज़ीद :£ःचौरानवे साल तक निहायत ही तन्दुरूस्त और मज़बूत रहे और कान, आँख, दाँत किसी चीज़ में भी कमजोरी के आसार नहीं पैदा हुए थे। (कंजुल उम्माल जि व6 स 54) हजरत सायब बिन यज़ीद £#के गुलाम अता कहते हैं कि हज़रत सायब :४# के सर के अगले हिस्से के बाल बिल्कल काले थे और सर के पिछले हिस्से के सब बाल और दाढ़ी सफुद थी। में ने हैरान होकर पुछा ऐ मेरे आका! यह क्‍या मआमला है? मुझे उस पर तअज्जुब हो रहा है। तो उन्होंने फ्रमाया कि मैं बचपन में बच्चों के साथ खेल रहा था तो हुजूर नबी करीम/&४मेरे पास से गुज़रे और मुझ से मेरा नाम पुछा। मैं ने अपना नाम सायब बिन यज़ीद बताया तो हुजूरे अकरम (#“ने मेरे सर पर अपना हाथ मुबारक फेरा। जहाँ तक हुजूरे अकृदस (##का दस्ते मुबारक पहुँचा है। वह बाल सफेद नहीं हुआ और आगे भी कभी सफेद नहीं होंगे। हजरत सलमान फूारसी ४ उन की कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह है और यह हुजूरे अकृदस#/ के आज़ाद किए हुए गुलाम हैं। यह फारस के शहर '“रामहुरमुज'' के रहने वाले थे। मजूसी मज़हब के पाबन्द थे और उन के बाप मजूसियों की इबादत गाह आतिश खाना के देख भाल करने वाले थे। यह बहुत से राहिबों और ईसाई साधूओं की सोहबत उठा कर मजूसी मज़हब से बेज़ार होगए। और अपने वतन से मजूसी दीन छोड़ कर दीने हक्‌ की तलाश में घर से निकल पड़े और ईसाईयों की सोहबत में रह कर ईसाई हो गए। फिर डाकूओं ने गिरफ़्तार कर लिया और अपना गुलाम बना कर बेच डाला। और यके बाद दीगरे यह दस आदमियों से ज़्यादा लोगों के गुलाम रहे। जब रसूलुल्लाह/&/मदीना मुनव्वरा तशरीफ लाए तो उस वक़्त एक यहूदी के गुलाम थे। जब उन्हों ने इस्लाम कूबूल किया तो जनाब रसूलुल्लाह/#&#ने उन को खरीद कर आज़ाद फरमा दिया। न कं हक 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 07 _।॥0 08५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा # ]50 मकक्‍तवा इमामे आजम जंगे खून्दक्‌ में मदीना मुनव्वरा शहर के गिर्द खून्दक खोदने का मशवरा उन्होंने ही दिया था। यह बहुत हीत कतवर थ और अन्सार व मुहाजिरीन दोनों ही उन से मुहब्बत करत थे। चुनान्चे अन्सारियों ने कहना शुरू किया कि, , .॥(....सलमान हम में से है और महाजिरीन ने भी यहो कहा कि. |... .यअनी सलमान हम में से हैं। हजरे अकरम5:४का उन पर बहुत बड़ा करम था। जब अन्सार व मुहाजिरीन का नअरा सुना तो इरशाद फ्रमाया.., ,॥ |७।|५ ८... (यअनी सलमान हम अहले बेत में से हैँ)यह फ्रमा कर उन को अपने अहले बैत में शामिल फ्रमा लिया। अकदे मुवाख[त (भाई चारगी) में ह॒जरे अकरम&##ने उनको अबू दरदा सहाबी रज़ियल्लहु अन्हु का भाई बना दिया था। बड़े सहाबा में उन का शुमार है। बहुत आबिद व ज़ाहिद और मुत्तकी व परहेजगार थे। हज़रत आइशा सिद्योका ## का बयान है कि यह रात में बिल्कुल ही अकले सोहबते नबवी से सरफ्राज़ हुआ करते थे। हज़रत अली “&फरमाया करते थे कि सलमान फारसी&#£ने इल्मे अव्वल भी सीखा और इल्मे आखिर भी सीखा। और वह हम अहले बैत में से हें। अहादीस में उन के फज़ाइल व खूबियाँ बहुत लिखी हैं। अबू नईम ने फरमाया कि उन की उम्र बहुत ज़्यादा हुई। बाज़ का कौल है तीन सो पच्चास बरस की उम्र हुई और दो सो पच्चास बरस की उम्र पर तमाम मोअर्रखीन का इत्तेफाक ह। सन्‌ 35 हिजरी में आप की वफात हुई। यह मौत वाली बीमारी में थे तो हजरत सअद और हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद #98 उन की बीमार पुरसी (पुछने) के लिए गए तो हज़रत सलमान फारसी £9 रोने लगे। उन हज़रात ने रोने का सबब पुछा तो फ्रमाया कि हुजरे अकरम&#“ने हम लोगों को वसियत की थी कि लोगों दुनिया में इतना ही सामान रखना जितना कि एक सवार मुसाफिर अपने साथ रखता है लेकिन अफ्सोस कि में इस मुकदस वसियत पर अमल नहीं कर सका। क्‍योंकि मेरे पास इस से कुछ 6 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥70//0/99५ ॥05:/8/07५8.06/0695/6)/809706_9५॥8 _॥0/8/9५ करामाते सहावा 5? ]60 मकतबा इमामे आजम रजब सन्‌ उउ हिजरी या सन्‌ 34 हिजरी तहरीर किया है। मज़ारे मुबारक मदाइन में है जो ज़ियारत गाह है। (तिर्मिज़ी मनाकिब सलमान फारसी अकमाल सफा 597 व हाशिया कंजुल उम्माल जि6, सफा 356 व असदुल ग़ाबा जिल्द 2, सफा 328) क्रामात्‌ मलक्‌ल मौत ने सलाम किया: जब आप के विसाल का वक़्त करीब आया तो आप ने अपनी बीवी साहिबा से फ्रमाया कि तुम ने जो थोड़ा सा मुश्क रखा है उस को पानी में घोल कर मेरे सर में लगा दो। क्योंकि इस वक़्त मेरे पास कुछ ऐसी हस्तियाँ तशरीफ लाने वाली हैं जो च इंसात्र हैं और न जिन्ब्र। उन की बीवी साहिबा का बयान है कि मैं ने मुश्क को पानी में घोल कर उन के सर में लगा दिया। और में जैसे ही मकान से बाहर निकली। घर के अन्दर से आवाज़ आई। 4॥ (५.० ५००० ५ ४.० ४ ५४५०॥ 4॥ (५५ ४५० »४...॥में यह आवाज सुन कर मकान के अन्दर गई तो हज़रत सलमान फारसी #9£ की रूहे मुतहहरा परवाज़ कर चुकी थी और वह इस तरह लेटे हुए थे कि गोया गहरी नींद सो रहे हैं। (शवाहिदुन्नबुवा सफा 22) ख़्वाब में अपने अनजाम की खबर देना: हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम £9 का बयान है कि मुझ से हज़रत सलमान फारसी 5४ ने फरमाया कि आइए हम और आप यह वादा करें कि हम दोनों में से जो भी पहले विसाल करे वह ख़्वाब में आकर अपना हाल दूसरे को बता दे। में ने कहा कि क्‍या ऐसा हो सकता है? तो उन्होंने फरमाया कि हाँ मोमिन की रूह आज़ाद रहती है। रूए ज़ीमन में जहाँ चाहे जा सकती है। उस के बाद हज़रत सलमान फारसी&##का विसाल हो गया। फिर मैं एक दिन केलूला (दोपहर में खाने के बाद आराम) कर रहा था तो बिल्कुल ही अचानक हजरत सलमान फारसी&४ मेरे सामने आ गए और बलन्द आवाज़ से उन्हों ने कहा, 4॥ ३५. ,॥ «<.« «१.० न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४९ [6] मकतवा इमामे आज़म ५६, /3में ने जवाब में (७७ ,, ,«0॥३५० , , ०५... «६. »))कहा और उन से पुछा कि कहिए गिसाल के बाद आप पर क्या गुजरी? और आप किस मर्तबा पर हैं? तो उन्हों ने फरमाया कि मैं बहुत ही अच्छे हाल में हूँ और में आप को नसीहत करता हूँ कि आप हमेशा ख़ुदा पर भरोसा करते रहें। क्योंकि तवक्कल बेहतरीन चीज है। तवक्कल बेहतरीन चीज़ है। तवक्कल बेहतरीन चीज़ है। इस जुमला को उन्होंने तीन मर्तबा इरशाद फरमाया। (शवाहिदुन्नबुवा सफा 224) तबसेरा: इस रिवायत से यह मालूम हुआ कि खुदा के नेक बन्दों की रूहें अपने घर वालों या दोस्तों के मकानों पर जाया करती हैं और अपने मुतअल्लकीन को ज़रूरी हिदायात भी देती रहती हैं और यह रूह कभी ख़्वाब में और कभी आलमे मिसाल में अपने मिसाली जिस्मों के साथ बेदारी में भी अपने मुतअल्लकीन से मुलाकात करके उन को हिदायात देती और नसीहत फ्रमाती रहती हैं। चुनान्चे बहुत से बुजुर्गो से यह मन्कूल है कि उन्होंने वफात के बाद अपने जिस्मों के साथ अपनी कूब्रों से निकल कर अपने मुतअल्लकीन से मुलाकात की और नीज़ अपने और दूसरों के हालात के बारे में-बात की। चुनान्चे महहूर रिवायत है कि हजरत झखबाजा अबुल हसन _कानी 5&रोज़ाना हज़रत ख़्वाजा बा यज़ीद बुस्तामी 5४ के मज़ार पुर अनवार पर हाज़िरी दिया करते थे। एक दिन हज़रत ख़्वाजा बा यजीद बुस्तामी 5४ कुब्रे मुनव्वर से बाहर तशरीफ लाए और हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रकानी $£ को अपनी निसबते तरीकृत से सरफराज फरमा कर फ्त अता फ्रमाई। चुनानचे शजरए नक्शबन्दिया पढ़ने वाले यह अच्छी तरह जानते हैं कि हज़रत ख़्वाजा अबुल हसन ख़रकानी अलैहिरहमा हजरत ख़्वाजा बायजीद बुस्तामी 5£के खलीफा हैं। हालाँकि तारीखों से साबित हैं कि हज़रत ख़्वाजा बायजीद बुस्तामी$#की वफात के तक्रीबन (39) साल बाद हज़रत अबुल हसन | अलैहिर्रहमा ख़रकान में पैदा हुए। न कं हक 56766 ५शशंगा ए्वा75टवयगाा6ह [[05://.क्‍76/5 07॥#/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6208099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा /४४ 62 मकक्‍तवा डमामे आजम चरिन्द व परिन्द ताबेअ फरमान: उन की मश्हर करामत यह है कि जंगल मे दौड़ते हुए हिरन को बुलाया तो वह आप के पास फौरन ही हाजिर हो गया। उसी तरह एक मर्तबा उड़ती हुई चिड़िया को आप ने आवाज दी तो वह आप को आवाज़ सुन कर जमीन पर उतर पड़ी। (ततज़्किरा महमूद) फरिश्ता से बात: सलमा बिन अतिया असदी का बयान है कि हजरत सलमान फारसी£&2एक मुसलमान के पास उस की अयादत के लिए तशरीफ्‌ ले गए और वह जॉकनी (मरने) के आलम में था। तो आप ने फ्रमाया कि ऐ फरिश्ता! तू उस के साथ नर्मी कर! रावी कहते हैं कि उस मुसलमान ने कहा कि ऐ सलमान फारसी #£ यह फ्रिश्ता आप के जवाब में कहता है कि मैं तो हर मोमिन क॑ साथ नर्मी ही इख्रतियार करता हूँ। . (हुलियतुल औलिया जि।, स 204) हजरत अब्दुल्लाह बिन जाफुर #£ यह हज़रत अली&9 के भाई हज़रत जाफर बिन अबी तालिब#४ के बेटे हैं। उन की वालिदा का नाम '““असमा बिन्ते उमेस'' #४ है। उन के वालिदेन जब हिजरत करके हबशा चले गए तो यह हबशा ही में पैदा .हुए। फिर अपने वालिदैन के साथ हिजरत करके मदीना मुनव्वरा आए। यह बहुत ही दानिश्मन्द्‌ व बुरदबार, निहायत ही इल्म व फजल वाले और बहुत ही पाक बाज़ व परहेज़गार थे। सखावत में तो इस कदर बलन्द मर्तबा थे कि उन को ५,»-॥,.. ५; (सखावत का दरिया) और ८.०... ॥ (,<... (मुसलमानों में संब से ज़्यादा सखी) कहते थे। नव्वे बरस की उम्र पाकर सन्‌ 80 हिजरी में मदीना मुनव्वरा के अन्दर वफात पाई। (अकमाल फि असमाईर्िजाल स 604) उन के विसाल के वक्‍त अब्दुल मलिक बिन मरवान अमवी ्लीफा की तरफ से मदीना मुनव्वरा के हाकिम हज़रत अबान बिन उस्मान #४ थे। उन को हज़रत अब्दुल्लाह बिन जाफ्र #8 की वफात की ख़बर पहुँची तो वह आए और ख़ुद अपने हाथों से उन को गुस्ल न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [क्‍[05:/9/07५8.0॥0/0895/6)8/088/76_30॥9_॥0/8/% करामाते सहावा &7 ]63 मक्तवा इमामे आज़म ् करा #़०----ाापयााा-०ा- अचल, देकर कफन पहनाया और उन का जनाज़ा उठा कर जनन्‍्नतुल बकौअ के कब्रस्तान तक ले गए। हज़रत अबान बिन उस्मान&9 के आँसू उन के रूख़सार (गाल)पर बह रहे थे। और वह जोर जोर से यह कह रहे थे कि ऐ अब्दुल्लाह बिन जाफर! आप बहुत हो बहतरीन आदमी थे। आप में कभी कोई बुराई थी ही नहीं। आप शरीफ थे। लोगों के साथ नेक बरताव करने "वाले नेको कार थे। फिर हज़रत अबान बिन उस्मान %४ ने आप के जनाजा को नामज़ पढ़ाई। आप की उम्र शरीफ के बारे में इख्तिलाफ्‌ है। बाज़ ने कहा कि आप की उम्र नव्वे बरस की थी। और बाज का कहना है कि बानवे बरस की उम्र में आप ने विसाल फरमाया। इसी तरह आप के विसाल के साल में भी इख्तिलाफ है। सन्‌ 80 हिजरी, सन्‌ 84 हिजरी, सन्‌ 85 हिजरी 'तीन अकृवाल हैं। (असदुल गाबा जिल्द उ, क्ष"फा 455 से 455) क्रामात्‌ सजदा गाह से चएमा उबल पड़ा: हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर #४ का बयान है कि में ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन जाफ्र%#४ से कहा कि मेरे बाप के जिम्मे तुम्हारा कुछ कर्ज बाकी है। आप ने फरमाया कि मैं ने उस को मआफ कर दिया। मैंने उन से कहा कि मैं उस कर्ज को मआफ कराना हरगिज़ हरगिज़ पसन्द नहीं करूँगा हाँ यह और बात है कि मेरे पास नकृद रकम नहीं है लेकिन मेरे पास ज़मीनें हैं। आप मेरी फ्लो ज़मीन अपने इस कर्ज़ में ले लीजिए मगर उस जमीन में कुंवा नहीं है। और सींचाई के लिए दूसरा कोई जरिआ भी नहीं है। आप ने फ्रमाया कि बहुत अच्छा है। बहर हाल मैंने आप की वह ज़मीन ले ली। फिर आप उस जमीन में तशरीफ ले गए और वहाँ पहुँच कर अपने गुलाम को मुसल्ला बिछाने का हुक्म दिया और आप ने उस जगह दो रकअत नमाज़ पढ़ी और बड़ी देर तक सजदा में पड़े रहे। फिर मुसलला उटा कर आप ने गुलाम से फ्रमाया कि उस जगह कक. न कं हढ। 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 ७7॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6208099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा /४/ )4 मकतवा इमामगे आजम जमीन खोदो। गुलाम ने ज़मीन खोदी तो अचानक वहाँ से पानी का एक ऐसा चश्मा (सोता) उबलने लगा जिस से न सिफ उस जमीन बल्कि आर पास की तमाम जमीनों की सींचाई व सैराबी का इन्तज़ाम हो %वा। (असदुल गाबा जि 3, स 55) कब्न पर अशआर: आप को कब्र मुन्व्वर पर निम्नलिखित दो अशआर लिखे हुए देखे गए मगर यह नड़ीं मालूम हो सका कि यह किस के अशआर हैं और किस ने लिर। है? इस लिए हम उस को आप की एक करामत शुमार करते हैं। अशशा>? यह हैं ०२०७ ३ 2४ ०५ ॥४)॥ ४ ५४७ ७४ ०... 3! (| ७--६-- (आप उस वक़्त तक यहाँ ठहरे रहेंगे जब कि अल्लाह तआला अपनी मखझ्लूक्‌ को कूब्रों से उठाए गा आप की मुलाकात की कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती हालाँकि आप बहुत ही करीब हें।) ध्ज्ला थत। 3 बजरर्स (3) हे 4036४, (> (५५ ५-२- (आप हर दिन और हर रात पुराने होते जाएँगे और जैसे जैसे आप पुराने होते जाएँगे लोग आप को भूलते जाएँगे। हालाँकि आप हर शख्स के महबूब हें।) (असदुल ग़ाबा जि 3, स 55) तबसेरा: हज़रत अबान %&# हज़रत अमीरूल मोमिनीन उस्मान #! के बेटे और खानदान बनू उमैया के एक मुमताज शख्स हैं। और हजरत अब्दुल्लाह बिन जाफ्र ££ खानदाने बनू हाशिम के चश्मो चिराग हैं और बावजूद यह कि दोचों खानदानों में खानदानी झगड़े की बिना पर ख़ुसूसन हज़रत उस्मान ग़नी #४ की शहादत के बाद तनाव रहा करता था। मगर हज़रत अबान £ बावजूद यह कि उस्मानी थे खानदाने बनू उमैया के एक नामवर बेटे थे। फिर अमवी खलीफ्‌ अब्दुल मलिक बिन मरवान की तरफ से हाकिम थे। लेकिन उन सब वजूहात के बावजूद उन्हों ने हाकिमे मदीना मुनव्वरा होते हुए हज़रत अब्दुल्लाह बिन जाफर ##को गुस्ल दिया।, कफन पहनाया और जन्‍नतुल बकौअ के कृब्रस्तान तक रोते हुए जनाज़ा उठाया। उस से पता चलता है कि हजरत अबान बिन उस्मान#४ बहुत ही नेक नफ़्स 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0//0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा &(2 ]6 मकतवा इमामे आज़म अब्दुल्लाह बिन जाफ्र&४ इस कदर मकुबूल खलाइक थे कि खानदाने बनू हाशिम व खानदाने बनू उमैया दोनों की निगाहों में इन्तहाई मुहतरम व मुअज़्जम थे। बल्‍लाहु तआला अअलम। हज़रत जुबैब ब्न्‌ कुलीब £/ हज़रत जुबवेब बिन कलीब बिन रबीआ खोलानी £#४#ने झगन की सर जद में सब मे पहले इस्लाम कूबूल किया तो रसूलल्लाह/#ने उन का नाम अब्दुल्लाह रखा। क्रामत्‌ आग नहीं जला सकी: उन की इन्तहाई हैरतनाक करामत यह है कि असवद अन्सी ने जब यमन के शहर सनआ में नब॒ुवत का दअवा किया ओर लोगों को अपना कलमा पढ़ने पर मजबूर करने लगा तो हज़रत जुबवेब बिन कलीब#४ ने बड़ी सख्ती के साथ उस की झूठी नुबुवत का इन्कार करते हुए लोगों को उस की पैरवी से रोकना शुरू कर दिया। उस स लल भुन कर उसवद अन्सी जालिम ने आप को गिरफ़्तार करके जलती हुई आग के शोलों में डाल दिया। मगर आग से बदन तो किया उन क जिस्म के कपड़े भी नहीं जले। यहाँ तक कि पूरी आग जल कर बुझ गई और यह जिन्दा सलामत रहे। जब यह व्बर मदीना मुनव्वरा पहुँची तो हुजरे अकरमर#ने इस अजीब व गरीब करामत का तज्किरा फरमाते हुए इरशाद फरमाया कि यह शख्स मेरी उम्मत में हज़रत ख़लील /#$# की तरह आग के शोलों में जलने से महफूज़ रहा। और एक रिवायत में है कि हुजूरे अकरम&&#की जबाने मुबारक से यह ख़बर सुन कर हज़रत उमर ने ब आवाजे बलन्द यह कहा कि अलहम्दु लिललाह! कि हमारे रसूलुल्लाह##की उम्मत में अल्लाह तआला ने एक ऐसे शख्स को भी पैदा फ्रमाया जो हज़रत इब्राहीम ख़लीलुल्लाह###की तरह आग के शोलों में जलने से 225) इ ]) 7 कक न ननननन ५ प८पय5 नमन «रन ++क+ कक कक कक कक कक क का --------+++ मे. ० ब्न्नकून ब्ण्जी ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05://.06/5 077 _|॥ता|एफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/05869/|5/620/09099776_830७॥9_॥0/9/% करामाते राहावा ४६ ।00 मकतवा इमामे आजम महफज रहा। (हुज्जतुल्लाह जि 2, स 874 व असदुल गाबा जि? , स 48) तबसेरा: हुजरे अकरमर्४४/को मौजूदगी म॑ दो झूटां न नुबुबत का दअवा किया। एक मुसलेमतुल कज़्जाब दूसरा असवद अन्सा । हुजरे अकरम&४/“की मौजूदगी ही में हज़रत फीराज़ दैलमी और हज़रत कैस बिन अब्द/ने असवद अन्सी को इस तरह कृत्ल किया कि हजरत फीरोज दैलमी उस को पछाड़ कर उस के सीने पर चढ़ गए और हजरत केस %##ने उस का सर काट लिया। मगर मुसेलमतुल कज़्जाब को हज़रत अबू बकर सिद्दधीक्‌ £2की फाजों ने कृत्ल किया और यह दोनों झुठे नबुवत के दअवेदार दुनिया स॑ फूना हां गए। (अकमाल स 585 वगैरा) हजरत हमजा बिनत्‌ अम्र असलमी #£ उन के वालिद का नाम अम्र था जो इब्ने अवेमर बिन हारिस अअ्रज के नाम से मश्हूर है। अहले हिजाज़ ने उन की हदीसों को बयान किया है। सन 64 हिजरी में 74 या 80 बरस की उप्र में वफात पाई। (अकमाल स 560 व असदुल गाबा जि 2, स 50) करामत्‌ उंगलियाँ रौशन हो गई: उन की एक बहुत अजीब करामत यह है कि लोग हुजूरे अकृदस/#“के साथ जिहाद में गए थे। इत्तेफाक से जूरे अकरम&#का साथ छुट गया और यह चन्द आदमी सख्त अंधेरी रात में इधर उधर बिखर गए। न किसी को रास्ता मिलता था। न एक दूसरे की ख़बर थी। इस परेशानी व हैरानी के आलम में एक दम अचानक उन की पांचों उंगलियाँ इस कृदर रौशन हो गई कि उस 7 रोशनी में सब को रास्ता नज़र आगया और सब बिखरे हुए लोग ४कठा हो गए और हलाकत व बरबादी से बच गए। द (दलाइलुन्नबुवा जिउ, स 206) 66 ५शशां॥ ए752८वाा6 [05:/.6/5 077 _|॥ताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/089/|5/6209099776_830॥9_॥0/9/% करामाते सहावा 5४ [67 मकतवा इमामे आजम हज़रत यअला बिन मुरी &£ यह कबीला बनू सकौफ में से हैं। बहुत ही बहादुर और जाँबाज सहाबी थे। बहुत सी इस्लामी लड़ाइयों में शरीके जिहाद रहे। और मुहद्दंसीन की बहुत बड़ी जमाअत ने उन से हदीसों का दर्स लिया ओर कूफा के मुहद्सीन में उन का शुमार है। (अकमाल सफा 623) क्रामत्‌ अजाबे क॒त्र की आवाज सुन ली: उन का बयान है कि हम लोग रसूले ख़ुदा#£/के साथ साथ क॒ब्रस्तान में से गज़रे तो मैं ने एक कब्र में थमाका सुना, घबरा कर म॑ ने अर्ज किया कि या रसूलुल्लाह! में ने एक कब्र में धमाका की आवाज़ सुनी है। आप ने इरशाद फरमाया कि तू ने इस धमाका की आवाज़ सुन ली? मैं ने अर्ज किया कि जी हाँ! इरशाद फ्रमाया कि ठीक है। एक कुबत्र वाले को उस की कब्र में अज़ाब दिया जा रहा है यह उसी अजाब की आवाज का ध्माका था जो कि तू ने सुना। मैं ने अर्ज़ किया कि या रसूलुल्लाह! इस कब्र वाले का किस गुनाह क सबब अज़ाब दिया जा रहा है? आप ने फरमाया कि यह शख्स चुगल खोरी किया करता था। और अपने बदन और कपड़ों को पेशाब से नहीं बचाता था। (हुज्जतुल्लाह जि 2, स 874 बहवाला बैहकी) हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास # यह हुजूरें अकरम/£४/#क चचा हज़रत अब्बास5£ के बेटे हैं। हुजूर #ें/ने उन के लिए हिकमत ओर फिक्‌ह व तफ्सीर के उलूम के हासिल होने के लिए दुआ मांगी। उन का इल्म बह॒त ज्यादा था। इसी लिए कुछ लोग उन को बहर (दरिया) कहते थे। और जरालामा (उम्मत का बहुत बड़ा आलिम) यह तो आप का बहुत ही मश्हर लकब है। यह बहुत ही ओर गोरे रंग के निहायत ही इसीन व खुबसुरत न पससस क _ इस कक को. न कक सन सका कक कक करन कक कक न 53२८3 न्यू 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209809776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबवा #४ ]008 मकक्‍तवा डइमामे आजम शख्स थे। हजरत उमर #|४ उन को कम उम्री के बावजूद उमरे खलाफत के अहम तरीन मशवरों में शरीक करते रहे। लेस बिन अबी सलीम का बयान है कि मैंने ताउस मुहद्चिस से कहा कि तुम उस नव उम्र शख्स (अब्दुल्लाह बिन अब्बास) की दर्स गाह से चिमटे हुए हो और बड़े सहाबा की दर्स गाहों में नहीं जा रहे हो। ताउस मुहद्दिस ने फ्रमाया कि मैं ने यह देखा है कि सत्तर सहाबा-ए-किराम जब उन के बीच किसी मसला में इख्तिलाफ होता था तो वह सब हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास&#क कोल पर अमल करते थे। इस लिए मुझे उन के इल्म-पर भरोसा है। इस लिए में उन की दर्स गाह छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता । आप पर खोफे ख़ुद का बहुत ज़्यादा गलबा रहता। आप इस कदर ज़्यादा रोते कि आप के दोनों गालों पर आँसूओं की धार बहने का निशान पड़ गया था। सन्‌ 68 हिजरी में ताइफ में 7 बरस की उम्र में विसाल हुआ। (अकमाल स॒ 604 व असदुल ग़ाबा जिउ, स 92) क्रामात ः उन की करामतों में से तीन करामतें बहुत ज़्यादा मश्हर हैं जो निम्नलिखित हैं। कफन में परिन्दे: मैमून बिन महरान ताबई मुहद्दिस का बयान है कि मैं ताइफ में हज़रत अब्दुल्ला बिन अब्बास&४ के जनाज़ा में हाजिर था। जब लोग नमाजे जनाजा के लिए खड़े हुए तो बिल्कुल ही अचानक निहायत तेजी के साथ एक सफेद परिन्दा आया और उन के कफून के अन्दर दाखिल हो गया। नमाज़ के बाद हम लोगों ने टटूल टटूल कर बहुत तलाश किया मगर उस परिन्दा का कुछ भी पता नहीं चला कि वह कहाँ गया और क्‍या हुआ? (मुस्ततरफ जि2, स 284) गैबी आवाज: जब लोग हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास &४ को दफन कर चुके और कब्र पर मिट्टी बराबर की जा चुकी तो तमाम लोगों ने एक गैबी आवाज सुनी कि कोई शख्स बलन्द आवाज़ से यह करन नम सनक नस रस सर॒सस_सस्___ सक कक केक कक कक क कक क ओननममन+न++ कक सन क +फ भ सम मरना न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/0909776_30॥9_॥0/8/%५ करामाते सहावा /४० 69 मकतवा इमामे आज़म तिलावत कर रहा है। ५.» »०२.>।, _&,, ॥ ० )| 2०४००) | ...६.)| (८०. (ऐ सुकून पाने वाली जान! तू अपने रब के दरबार में इस तरह हाजिर हो जा कि तू ख़ुदा से खुश है और ख़ुदा तुझ से ख़ुश है।)(मुस्ततरफ्‌ जि 2, स कजुल उम्माल जि6 ,व हाशिया कंजुल उम्माल स73उ) हज़्रत्‌ साबित बिन कुस £9 मदीना मुनव्वरा के अन्सारी हैं और ख़ानदाने बनी ख़ुज़रज से उन का नसबी तअल्लुक्‌ है। बड़े सहाबा की फंहरिस्त में उन का नाम नामी बहुत ही मरहूर है। यह रसूलुल्लाह/&के ख़तीब थे। और उन को हुजूरे अकदस/#“ने बेहतरीन जिन्दगी, फिर शहादत, फिर जन्नत को बशारत दी थी। सन्‌ 42 हिजरी में जंग यमामा के दिन मुसेलमतुल कज़्जाब को फाजों से जंग करते हुए शहादत से सर बलन्द हो गए। (अकमाल स 588 वगैरा) करामत्‌ मौत के बाद वसियत: उन की यह एक करामत ऐसी बे मिस्ल करामत है कि उस की दूसरी कोई मिसाल नहीं मिल सकती। शहीद हो जाने के बाद आप ने एक सहाबी से ख़्वाब में यह फरमाया कि ऐ शख्स! तुम अमीरे लश्कर हजरत खालिद बिन वलीद से मेरा यह पैगाम कह दो कि मैं जिस वक़्त शहीद हुआ मेरे पर लोहे की एक जिरह थी जिस को एक मुसलमान सिपाही ने मेरे बदन से उतार लिया और अपने घोड़ा बांधने की जगह पर उस को रख कर उस पर एक हांडी ऑंघी करके उस को छिपा रखा है। इस लिए मेरा लश्कर मेरी इस जिरह को तलाश करके अपने कबजे में ले लें। और तुम मदीना मनव्वरा पहुँच कर अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दीक्‌#8 से मेरा यह पैगाम कह देना कि मुझ पर जो कर्ज है वह उस को अदा कर दें और मेरा फूलाँ गुलाम आज़ाद है। ख़्वाब देखने वाले सहाबी ने अपना ख़्वाब हज़रत खालिद बिन वलीद#४ से अ्न्‍न्‍नाूाणााणूूूूाूूममथ ब्न्नकून ब्ण्जी है [ [) 57 4 .]] 8/5 (॥।१॥[॥| ण'! ॥] 0 ] | | |) 8 [५ 5८466 ५शा। एव्वा52८वाा6/ [[[05:/9/079५8.0/0/089|5/6008/08876_30७॥9_॥0/89/% करामाते »हावा 6४४ [7 0 मक्तवा इमामे आजम बयान फिया तो उन्हों ने फौरन ही तलाशी ली और बाकई टीक उमी जगह से जिरह निकली जिस जगह का ख़्वाब में आप ने निशान बताया था। और जब अमीरूल मोमिनीन हजरत अब बकर सिद्दीक ४9 को यह ख़्वाब सुनाया गया तो आप ने हजरत साबित बिन कंस ४१ की वसियत को नाफिज़ करते हुए उन का कर्ज अदा फ्रमा दिया और उन के गुलाम को आज़ाद करार दे दिया। मरहूर सहाबी हज़रत अनस बिन॑ मालिक%४ फ्रमाया करते थे कि यह हज़रत साबित बिन केस £98 की वह ख़ुसूसियत है जो किसी को भी नसीब नहीं हुई। क्‍योंकि ऐसा कोई शख्स भी मेर॑ इल्म में नहीं है कि उस के मर जाने के बाद ख़्वाब में की हुई उस की वसियत को नाफिज किया गया हो। (तफ्सीर सावी जि2, स 08) हज़रत अला बिन हजर्मी £# उन का असली नाम अब्दुल्लाह और उन का असली वतन 'हज़र मौत" है। यह शुरू इस्लाम ही में मुसलमान हो गए थे। हुजूरे अकरम सललल्लाह अलेहि वसल्‍लम ने उन को बहरेन का हाकिम बना दिया। सन्‌ 44 हिजरी में बहालते जिहाद आप की वफूात हुई। (अकमाल स 607) करामात्‌ हज़रत अबू हुरैरा&8 फ्रमाते हैं कि जब अमीरूल मोमिनीन हजरत अबू बकर सिद्दीक ## ने बहरेन के मुर्तदीन से जिहाद करने के लिए हजरत अला बिन हजरमी %४ को भेजा तो हम लोगों ने उन की तीन करामतें ऐसी देखी हैं कि में यह नहीं कह सकता कि उन तीन में से कौन सी ज़्यादा तअज्जुब ख़ेज़ और हैरत अंगेज है। पैदल और सवार दरिया के पार: ''दार बिन'' पर हमला करने के लिए कश्तियों और जहाज़ों की ज़रूरत थी। मगर कश्तियों के इन्तज़ाम में बहुत लम्बी मुद्दत चाहिए थी। इस लिए हजरत अला बिन हजरमी न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_30७॥9_॥0/9/% कराशते सहावा 6४ [7] मकतवा इमामे आज़म ४? ने अपने लश्कर को ललकार कर पुकारा कि ऐ मुजाहिदीने इस्लाम! तुम लोग खुश्क मैदानों में तो ख़ुदा वन्दे क॒द्दस की इमदाद व नुसरत का नज़ारा बार बार देख चुके अब अगर समन्दर में भी उस की मदद का जलवा देखना हो तो तुम सब लोग समन्दर में दाखिल हो जाओ। आप ने यह कहा और अपने लश्कर के साथ यह दुआ पढ़ते हुए समन्दर में दाखिल हो गए। ४५ ५.० ७७०)४ ५८०५-०५. ७-23! ५: 5. १। ० ९ १3४ ५ < ४ (5 %%)। (८०४७ ७ (८-० २ ०-० २ “>किोईं ऊंट पर सवार था, कोई घोड़े पर, कोई गधे पर सवार था, कोई खुच्चर पर और बहुत से पैदल चल रहे थे मगर समन्दर में कदम रखते ही समन्दर का पानी खुश्क होकर इस कृदर रह गया कि जानवरों के सिर्फ पावं तर हुए थे। पूरा इस्लामी लश्कर इस तरह आराम व राहत के साथ समन्दर में चल रहा था गोया भीगे हुए रेत पर चल रहा है जिस पर चलना निहायत ही सहल और आसान होता है। चुनान्चे इस करामत को देख कर एक मुप्तलमान मुजाहिद ने जिन का नाम अफोफ बिन मन्जर था फौरन अपने इन दो शेअरों में इस का ऐसा मन्ज़र त्रींचा है जो बिला शुबहा वज्द पैदा करने वाला है:- 9०० 5००) )५४४५ )-! ॥ & ०२६ (3 ९-०. ७ >-७--! क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह तआला ने उन मुजाहिदों के लिऐ अपने समुन्दर को फरमांबरदार बना दिया और कुफ्फार पर एक बहुत बड़ी मुसीबत नाज़िल फरमा दी। ५8४ ॥०.॥ 5७ ७७ ५०३०२. पैसे )>मी 5-४ (३-०० (हम लोगों ने समन्दर के फट जाने की दुआ मांगी तो ख़ुदा ने उस से कहीं ज़्यादा अजीब वाकिआ हमारे लिए पेश फरमा दिया जो दरिया फाड़ने के सिलसिले में पहले लोगों के लिए हुआ था) (अल बदाया वन्नहाया जि 7, स 529 व दलाइलुन्नबुवा जि 35, स 208) चमकती रेत से पानी जाहिर हो गया: दूसरी करामत यह है कि हम लोग चटयल मैदान में जहाँ पानी बिल्कुल ही नहीं था। प्यास को सख्ती से बे ताब हो गए और बहुत से मुजाहिदीन को तो अपनी ब्न्नकून ब्ण्जी है |॥॥ [) 57 4 .]] 8/5 (॥।१[॥| ण'! ॥] 0 ] |_ | |) 8 [५ 5८466 ५शा। एव्वा52८वाा6/ [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209099776_30॥9_॥0/9/% . _करामाते सहावा 8४7 [72 मकतबा इमामे आजम अननननक कक+ लय ्चझ७बऑ च७झ सो ऑं यननि ४ ? ? ० ञओआंरलर।ीट ६ >33अ3अआआ ल|३8 ६» ७ऊ५७ ५ खाझओझऊाऊऋऊऋौछ/ताि्ि्च््््््अज््अ__ः सम मनन ८... ८-3० ना अत नमन मनन हलाकत का यकीन भी हो गया। अपने लश्कर का यह हाल देख कर हज़रत अला बिन हजरमी #£ ने नमाज़ पढ़ कर दुआ मांगी तो एक दम अचानक लोगों को बिल्कुल ही क्रीब सूखी रेत पर पानी चमकता हुआ नज़र आ गया। ओर एक रिवायत में यह है कि अचानक एक बदली जाहिर हुई और इतना पानी बरसा कि जल थल हो गया और सारा लश्कर जानवरों समेत पानी से सैराब हो गया और लश्कर वालों ने अपने तमाम बरतनों को भी पानी से भर लिया। (तबरी जिल्दठउ, सफा 257 व दलाइलुन्नबुटा जिउ, स 208) लाश कब्र से गायब: तीसरी करामत यह है कि हजरत अला बिन हजरमी रजियल्लाहु अन्हु का विसाल हुआ तो हम लोगों ने उन को रेतीली जमीन में दफन कर दिया। फिर हम लोगों को ख्याल आया कि कोई जंगली जानवर आसानी के साथ उन की लाश को निकाल कर डा डालेगा। लिहाज़ा उन को किसी आबादी के क्रीब सख्त जमीन में दफन करना चाहिए। चुनान्चे हम लोगों ने फौरन ही पलट कर उन की कृत्र को खोदा तो उन की मुकृदस लाश कब्र से गायब हो चुकी थी और तलाश क बावजूद हम लोगों को नहीं मिली। (दलाइलुन्नबुवा जिउ, स208) हजरत बिलाल £४ आप बहुत ही मशहूर सहाबी हैं आप के वालिद का नाम रेबाह है। यह हबशा के रहने वाले थे। और मक्का मुकर्रमा में एक काफिर उमैया बिन खुलफ के गुलाम थे। उसी हाल में मुसलमान हो गए। उमया बिन खलफ ने उन को बहुत सताया और उच्च पर बड़े बड़े जुल्म व सितम के पहाड़ तोड़े मगर यह पहाड़ की तरह इस्लाम पर डटे रहे। हज़रत अबू बकर सिद्दीक्‌ ££ने एक बड़ी रकम और एक गुलाम दे कर उन को उमैया बिन खलफ से खरीद लिया। और अल्लाह व रसूल को खुशी के लिए उन को आज़ाद कर दिया। इसी 5८664 ५शशंगर ए752८वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/0/9५ कः राहावा » ][25://80५8.0/0/08/9/8/ ड़ [2809/7706_30॥9 _॥0/9/% लिए हज़रत उमर» फ्रमाया करते लिए हज़रत उमर&8 फरमाया करते थे कि अब बकर हमार पायार है प्बू बकर हमारे सरदार हैं और उन्होने हमारे सरदार (बिलाल ) को आजाद किया। ख़ुदा को शान कि जंगे बद्र में उमैया बिन खलफ को हजरत बिलाल हो ने चन्द्‌ अन्सारियों की मदद से क॒त्ल किया। तमाम इस्लामी जिहादों में मुजाहिदाना शान के साथ जिहाद फ्रमाते रहे। और मस्जिदे नबवी के मोअज़्जिन भी रहे। विसाले नबवी के बाद मदीना तैयबा में रहना और हुजरे अकृदस/&7की जगह को खाल देखना उन के लिए ना काबिले बरदाइत हो गया। रसूल की जुदाई में हर वक्‍त रोते रहते। इस लिए मदीना मुनव्वरा को खैर बाद कह दिया और मुल्क शाम मे सुकूनत इख््तियार कर ली। फिर सन्‌ 20 हिजरी में 563 बरस को उम्र पा कर शहरे दमश्क्‌ में विसाल फ्रमाया। और बाबुस्सगीर में दफन हुए। और बाज मोअर्रेखीन का कौल है कि आप का विसाल शहरे हलब में हुआ और बाबुल अरबईन में आप की कब्र मुबारक बनाई गई। वल्‍लाहु अअलम। (अकमाल फ्री असमाइरिजाल सफा 507) क्रामत ख़्वाब में हुजूर/&7का दीदार: एक मर्तबा झुवाब में सरवरे आलम/४४#की ज़ियारत से सरफराज़ हुए तो हुजूरे अकरम##ने प्यार भरे लहजे में इरशाद फ्रमाया यह क्या अन्दाज है कि तुम हमारे पास कभी नहीं आते। ख्वाब से बेदार हुए तो इस कदर बे करार हो गए कि फौरन ही ऊँट पर सवार हो कर सफर में निकल पड़े। जब मदीना मुनव्वरा में रौज़ण अनवर के पास पहुँचे तो शिद्दते गम से गश खा कर गिर पड़े और जमीन पर लोटने लगे। जब कुछ सुकून हुआ तो हज़रत इमाम हसन व इमाम हसैन 5४ ने अज़ान की फरमाइश को। प्यारे रसूल के लाडलों की फ्रमाइश पर इन्कार की गुन्जाइश ही नहीं थी। आप ने मस्जिदे नबवी में अज़ान दी और जमानए नुबुवत की बिलाली अजान जब अहले मदीना के कान में पड़ी तो एक कोहराम मच गया। न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62009099776_30७॥9_॥0/3/% करामाते सहाबा ४7 |74 मकतवा इमामे आज़म यहाँ तक कि परदा नशीन औरतें जोशे बे करारी में घरों से बाहर निकलीं और हर छोटा बड़ा दौरे नुबुवत की याद से बे करार हो कर जार जार रोने लगा। चन्द दिनों मदीना मुनव्वरा में रह कर फिर आप मुल्के शाम चले गए। (असदुल ग़ाबा जि , स 206 ता 209) हज़रत हंजला बिन हजीम #/ यह हुजूरे अकरमः£/क सहाबी हैं। एक मर्तबा अपने बाप के साथ दरबारे नुबुवत में हाज़िर हुए और उनके बाप ने उन के लिए दुआ की दरख्वास्त को। हुजूर रहमते आलमा£&४ने शफकुत से अपना दस्ते अकदस उन के सर पर फेरा जिस की बदौलत उन को निम्नलिखित करामत मिली। (असदुल गाबा जि2, स65) क्रामत्‌ सर लगते ही बीमारी खत्म: जिस किस्म का भी कोई मरीज इंसान या जानवर जब उन क पास लाया जाता तो यह अपना सर उस बीमार के बदन पर लगा देते थे। तो फौरन शिफा हासिल हो जाती थी। और एक रिवायत में यह है कि यह अपने हाथ में अपना लुआबे दहन (थूक) लगा कर अपने सर पर रखते और यह दुआ पढ़ते। ५)... ५... (५-०) ५. ,/| (»#फिर अपना हाथ मरीज के दर्द पर फेर देते तो फोरन मरीज शिफायाब हो जाता। (कंजुल उम्माल जि5, स 327 मतबूआ हैदराबाद) हजरत अबूजर गिफारी #£ उन का इस्मे गिरामी जुनदुब बिन जनादा है। मगर अपनी कुन्नियत के साथ ज़्यादा महहूर हैं। बहुत ही बुलन्द बड़े सहाबी हैं और यह अपने जुहदो सब्र और तक॒वा व इबादत के एतेबार से तमाम सहाबा-ए-किराम में एक खुसूसी इम्तियाज़ रखते हैं। शुरू इस्लाम ही में मुसलमान हो गए थे यहाँ तक कि बाज़ मोअर्रख़ीन का कौल है न कं हब 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/.क्‍06/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62008099776_30७॥9_॥0/8/%५ करामाते सहावा 6: ]75 मकतवा डमामे आजम कि इस्लाम लाने में उन का पांचवाँ नम्बर हे। उन्हों ने मक्का मुकर्रमा में इस्लाम कूबूल किया। फिर अपने वतन कृबीला बनी गिफार में चले गए। फिर जंगे खुंदक्‌ के बाद हिजरत करके मदीना मुनव्बरा पहुंचे और हुजूर/#४ के विसाल क॑ बाद कुछ दिनों के लिए मुल्क शाम चले गए। फिर वहाँ से लौट कर मदीना मुनव्वरा आए और मदीना मुनव्बरा से कुछ मील दूर मकामे “'र॒ुबज़ा'' में बस गए। (अकमाल स 594) बहुत से सहाबा और ताबईन इल्मे हदीस में आप के शागिर्द हैं। हजरत उस्मान गनी£#की खिलाफत में बमकामे रबज़ा सन 352 हिजरी में आप ने वफात पाई। (अकमाल स 594) उन के बारे में हुजूरे अकृदस/#का इरशादे गिरामी है कि जिस शख्स को हज़रत ईसा&की जियारत का शौक्‌ हो वह अबू जर का दीदार कर ले। (कंजुल उम्माल जि 2, स 255) क्रामात्‌ जंगल में कफन: रिवायत में है कि हज़रत अबू जर ग्िफारी #£ के विसाल का वक़्त करीब आया तो उन की बीबी साहिबा रोने लगीं। आप ने पूछा बीबी तुम रोती क्‍यों हो? बीवी ने जवाब दिया कि क्‍यों न रोऊँ। जंगल में आप विसाल फरमा रहे हैं। और हमारे पास न कफन है न कोई आदमी। मुझे यह फिक्र है कि इस जंगल में आप की तजहीज व तकफुीन का मैं कहाँ से और केसे इन्तज़ाम करूगी? आप ने फरमाया तुम मत रोओ और फिक्र न करो। रसूले अकरम/##ने फरमाया कि मेरे सहाबा में से एक शख्स जंगल में विसाल फरमाए गा और उस के जनाजा में मुसलमानों की एक जमाअत हाज़िर हो जाए गी। मुझे यकीन है कि जंगल में विसाल करने वाला वह सहाबी में ही हूँ इस लिए तुम फिक्र न करो और इन्तज़ार। करो मुमकिन है कोई जमाअत आ रही हो। यह कह कर हजरत अबू ज़र गिफारी #2विसाल फ्रमा गए। उन की बीवी का बयान है कि विसाल के थोड़ी देर क बाद बिल्कुल अचानक चन्द सवार आ गए और एक नौजवान ने 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05://.06/5 077 |॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा 7 ]76 मकक्‍्तबवा डइमामे आजम अपनी गठड़ी में से एक कफन निकाला और आप उस कफन में मदफन हुए और सवारों को उस जमाअत ने निहायत ही एहतेमाम के साथ तजहीज व तकफौन और नमाजे जनाज़ा व दफुन का इन्तज़ाम किया। (अलकलामुल मुबीन व कंजुल उम्माल जि5, स 284 मतबूआ हैदराबाद) सिर्फ जमजम पर जिन्दगी: बुख़ारी शरीफ की रिवायत है कि जब हज़रत अबू ज़र गिफारी #४ मुसलमान हुए तो रोज़ाना मस्जिदे हराम में जाकर अपने इस्लाम का ऐलान करते रहते और कुफ़्फारे मक्का उन को इस कदर मारते थे कि यह मरने के कुरीब हो जाते थे और हजरत अब्बास 5४ उन को लोगों से यह कह कर बचाया करते थे कि यह कृबीला गिफार का आदमी हैं। जो तुम क्रैशियों की शामी तिजारत की मेन रास्ते पर वाकिअ है। लिहाजा उन को तकलीफ मत दो। वरना तुम्हारी शामी तिजारत का रास्ता बन्द हो जाएगा। हज़रत अबू ज़र गिफारी £$ पन्द्रह रात उसी हरमे कअबा में रोजाना अपने इस्लाम का ऐलान करते और कुफ्फार से मार खाते रहे और उन पन्द्रह दिनों ओर रातों में ज़मज़म शरीफ के पानी के सेवा उन को गेहूँ या चावल का एक दाना या जर्रा बराबर कोई दूसरी ग्िज़ा मयस्सर नहीं हुई मगर यह सिर्फ जमजम शरीफ पी कर जिन्दा रहे और पहले से ज़्यादा तन्दुरूस्त - और सेहत मंद हो गए। (बुखारी जिल्‍्द 4, सफा 499 बाब किस्सा ज़मज़म व हाशिया बुखारी सफा 499 व फ्तहुल बारी) हजरत इमाम हसन्‌ && यह अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली बिन अबी तालिब&४ के बड़े बेटे हैं। उन की कन्नियत अबू मुहम्मद और लकृब '“सिब्ते पयम्बर'' व रैहानतुल रसूल है। 5 रमज़ान सन्‌ उ हिजरी में आप की पैदाइश हुई। आप जवानाने अहले जन्नत के सरदार हैं। और आप के फज़ाइल व खूबियों में बहुत ज़्यादा हदीसें आई हैं। आप ने तीच मर्तबा अपना आधा माल खुदा तआला की राह में खैरात कर दिया। अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली#&# की शहादत के बाद काफा में 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05:/.6/5 077 |॥ता|फावा५ ॥0[05:॥/8/079५8.0/5/0698/5/6)/808/76__9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहावा 5२ 77 मकतवा इमामे आज़म चालीस हज़ार मुसलमानों ने आप के दस्ते मुबारक पर मौत की बैअत करक आप को अमीरूल मोमिनीन चुना। लेकिन आप ने तकरीबन छः माह क बाद जमादिल ऊला सन ४१ हिजरी में हज़रत अमीरे मआविया## के हाथ पर बैअत फ्रमा कर ख्किलाफत उन के हवाले फ्रमा दी। और खुद इबादत व रियाजत में मशगूल हो गए। इस तरह हुजूरे अकरम/&/ने जो ग़ैब की ख़बर दी थी वह जाहिर हो गई कि मेरा यह बेटा “'सैय्यद'' है।और इसकी वजह से अल्लाह तआला मुसलमाना को दो बड़ी जमाअतों में सुलह करा दे गा। चुनान्य हज़रत इमाम हसन&£ अगर खिलाफत हज़रत मआविया&$४ के हवाले न फरमा देते तो ज़ाहिर है कि हज़रत हसन और हजरत अमीरे मआविया #£ को दोनों फौजों के बीच बड़ी ही ख़ून रेज़ जंग होती जिस से हज़ारों औरतें बेवा और लाखों बच्चे यतीम हो जाते और सलतनत इस्लाम का समूह बिखर जाता मगर हजरत इमाम हसन %&४ को अमन पसन्द तबीअत और नेक मिज़ाजी की बदोलत मुसलमानों में खून रेज़ी की बारी नहीं आई। _ 5 रबीउल अव्वल सन्‌ 49 हिजरी में आप बामे मदीना मुनव्वरा म॑ ज़हर ख़ुरानी की वजह से शहादत से सरफ्राज़ हुए। (अकमाल स॒ 560 व असदुल ग़ाबा जि 2, स 90 ता 92) फक्रामात सुखे पेड़ पर ताजा खुजूरें: आप की बहुत सी करामतों में से यह एक करामत बहुत ज़्यादा मश्हूर है कि एक सफर में आप का गुज़र खुजूरों के एक बाग़ में हुआ जिस के तमाम पेड़ सूख गए थे। हजरत जुबेर बिन अव्वाम 5४ के एक बेटे भी उस सफर में आप के साथ थे। आप ने उसी बाग में पड़ाओ किया और नौकरों ने आप का बिस्तर एक सूखे पेड़ के जड़ में बिछा दिया और हज़रत जुबैर #£ के बेटे ने अर्ज किया कि ऐ इब्ने रसूलुल्लाह! काश इस सूखे दरख़्त पर ताज़ा खुजूरें होतीं तो हम लोग पेट भर कर खा लेते। यह सुन कर हज़रत इमाम 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0[/0/9॥५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/029809776_30७॥9_॥0/9/% करामाते राहावा ४४ [78 मकतवा डइमामे आजम हसन: ने चुपके से कोई दुआ पढ़ी और बिल्कुल ही अचानक मिनटों में वह सूखा पेड़ बिल्कुल हरा भरा हो गया और उस म॑ ताजा पकी हुई खुजरें लग गईं। यह मंजर देख कर एक शुतर बान कहने लगा कि ख़ुदा की कु. म! यह तो जादू का करिश्मा है। यह सुन कर हज़रत जुबैर ४? के फ्रजन्द ने उस को बहुत जोर से डांटा और फरमाया कि तौबा कंर यह जादू नहीं है बल्कि थरह शहजादए रसूल की दुआ-ए-मकूबूल की करामत है। फिर तोणगें ने खुजूरों को दरख़्त से तोड़ा और सब साथियों ने ख़ूब पेट भर कर खाया। (रोज़तुश्श हदा बाब 6, स 09) फर्जन्द (बेटा) पैदा होने की खुशखबरी: आप पैदल हज क लिए जा रहे थे बीच राह में एक मंजिल पर ठहरे। वहाँ आप का एव अकीदत मंद हाज़िरे खिदमत हुआ और अर्ज किया कि हुजूर मे आप का गुलाम हूँ। मेरी बीवी दर्देज़ेह (बच्चा पैदा होने से कुछ पहले जो औरत को दर्द होता है।)में मुबतला है। आप दुआ फरमाएं कि तन्दुरूस्त लड़का पैदा हो। आप ने फरमाया कि तुम अपने घर जाओ। तुम्हें जैसे फरजन्द की तमन्ना है वैसा ही फरजन्द तुम को अल्लाह तआला ने अता फ्रमा दिया है और तुम्हारा लड़का हमारा अकौदत मन्द और जानिसार होगा। वह शख्स जब अपने मकान पर पहुँचा तो यह देख कर खुशी से बाग़ बाग हो गया कि वाकुई हज़रत इमाम हसन 9 ने जैसे फरजन्द की बशारत दी थी वैसा ही लड़का उस के हाँ पैदा हुआ। (शवाहिदुन्नबुवा स 72) तबसेरा: खुश्क दरखुत पर ताजा खुजूरों का लग जाना और अकीदत मन्द के घर में लड़की पैदा हुई या लड़का? और फिर इस बात को जान लेना कि यह लड़का बड़ा हो कर हमारा अकौदत मन्द व जाँ निसार होगा। गौर फरमाइए कि यह कितनी बड़ी और किस कदर शानदार करामतें हैं। सुब्हानअल्लाह]) क्‍यों न हो कि आप इब्ने रसूल और नूरे दीदा हैदर व बतूल हैं और ख़ुदावन्द को बारगाह में बहुत मकूबूल हें। (#£) 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0[/]0/9५ (05:/9/079५86.070/08[9॥|5/(8[9099/7॥6 _४3५७॥४ _॥0/9/% थ ]79 करामाते सहाबा थे! । है४ मकतवा इमामे आज़म हज़रत इमाम हुसैन ४ _य्यइ३राहदा हज़रत इमाम हुसैन&# की पैदाइश 5 शअबान सन 4 हिजरी को मदीना मुनव्वरा में हुई। आप की कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह आर नाम नामी ''हुसैन' और लकब ''सिब्ते रसूल'' व “रेहानतुर॑सूल'' है। 0 मुहर्रम सन्‌ 6 हिजरी जुमा के दिन करबाला क म॑ंदान म॑ यज़ीदी सितम गारों ने इन्तहाई बेदर्दी के साथ आप को शहीद कर दिया। ल्‍ (अकमाल स 560) क्रामात्‌ कुएं से पानी निकल पड़ा: अबू औन कहते हैं कि हज़रत इमाम हुसन रज़ियल्लाहु अन्हु का मक्का मुकर्रमा और मदीना मुनव्वरा के रास्त में इब्ने मतीअ के पास से गुज़र हुआ। उन्हों ने अर्ज किया कि ऐ इब्ने रसूल! मेरे इस कुँऐं में पानी बहुत कम है। इस में डोल भरता नहों है। मेरी सारी तदबीरें बेकार हो चुकी हैं। काश! आप हमारे लिए बरकत को दुआ फ्रमाएं। हज़रत इमाम ने इस कुएं का पानी मंगाया और आप ने डोल से मंगा कर पानी नोश (पीया) फरमाया। फिर इस डोल में कुल्ली फरमा दी और हुक्म दिया कि सारा पानी कं में उंडेल दें। जब डोल का पानी कूँएं में डाला तो नीचे से पानी उबल पड़ा। कुएं का पानी बहुत ज़्यादा बढ़ गया और पानी पहले से ज्यादा मीठा और लज़ीज़ भी हो गया। . (इब्ने सअद्‌ जि 5, स 44) बे अदबी करने वाला आग में: मैदाने करबला में एक बे बाक और बे अदब मालिक बिन उर्वा ने जब आप के ख़ेमा के गिर्द गढ़े में आग जलती हुई देखी तो उस बद नसीब ने यह कहा कि ऐ हुसैन! तुम ने भाख़िरत की आग से पहले ही यहाँ दुनिया में आग लगाली? हजरत इमाम ने फ्रमाया कि ऐ जालिम! क्‍या तेरा गुमान है कि में दोजख़ में जाऊंगा? फिर हज़रत इमाम/%ने अपने जख्मी दिल से यह दुआ मांगी कि “ख़ुदा बन्द! तू इस बद नसीब को नारे जहन्नम से पहले दुनिया ]60 ५शं। ए5ट5गशाहशः [05:/.क्‍6/50॥7_|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४ 80 मकक्‍तवा इमामे आजम में भी आग के अज़ाब में डाल दे'' इमाम आली मकाम को दआ दुआ अभी ख़त्म भी नहीं हुई थी कि फौरन ही मालिक बिन उर्वा का घोड़ा फिसल गया और यह शख्स इस तरह घोड़े से गिर पड़ा कि घोड़े की रकाब में इस का पावों उलझ गया और घोड़ा इस को घसीटते हुए खंदक (गढ़े) की तरफ ले भागा और यह शख्स खुेमा क गिर्द खुंदक की आग में गिर कर राख का ढेर हो गया। (रौज़तुश्शोहदा स 69) नेजा पर सरे अकदस की तिलावत: हजरत जैद बिन अरकुम&४ का बयात्र है कि जब यज़ीदियों ने हज़रत इमाम हुसैन&# के सर मुबारक को नेज़ा पर चढ़ा कर कूफा की गलियों में चक्कर लगाया तो में अपने मकान के बाला खाना पर था जब सर मुबारक मेरे सामने से गुज़रा तो में ने सुना कि सरे मुबारक ने यह आयत तिलावत फरमाई। 3 ८....> #' धदप्म 5७ (०४४५५ /।|। ८८४) ०-०! (सूरेह कहफ्‌ पारह 5) इस तरह एक <दूसरे बुजुर्ग ने फरमाया कि जब यज़ीदियों ने सरे मुबारक को नेज़ा से उतार कर इब्ने जयाद के महल में दास्विल किया तो आप के मुकद्स होंट हिल रहे थे और जबाने अकृदस पर इस आयत को तिलावत जारी थी।० ,«)॥ |» |-+ ०३८ 4॥॥ .-.....८ ५ ५ (रौज़तुश्शोहदा सफा 230) तबसेरा: इन ईमान अफ्रोज करामतों से यह ईमानी रोशनी मिलती है कि शोहदाए किराम अपनी अपनी कब्रों में तमाम जरूरीयाते जिन्दगी के साथ जिन्दा हैं। ख़ुदा की इबादत भी करते हैं और किस्म किस्म के तसरूफात भी फ्रमाते रहते हैं। और उन की दुआएँ भी बहुत जल्द मकबूल होती हैं। हजरत अमीर मआविया #£ आप के बालिद का नाम अबू सुफयान और वालिदा का नाम हिन्दा बिन्ते उतबा है। सन ८ हिजरी में फृतहे मक्का के दिन यह ख़ुद और आप के वालिदैन सब मुसलमान हो गए और हज़रत अमीरे मआविया &9 चूँकि बहुत ही अच्छे कातिब थे इस लिए दरबारे नुबुवत में वही लिखने न कं हद 56व77606 ५शशंग्रा एद्वा)5टवया6/ [[05:/.776/5 07॥॥#/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0589/|5/62/0298099/776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा €2 8 मकतवा इमामे आजम वालों की जमाअत में शामिल कर लिए गए। अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर %४ के दोरे स्थिलाफत में यह शाम के गवर्नर मुक्‌रर हए और हज़रत अमीरूल मोमिनीन उस्मान गनीः#£ के दौरे खिलाफत ख़त्म होने तक उस ओहदा पर रहे मगर जब अमीरूल मोमिनीन हजरत अली 9 तख़्ते स्थिलाफृत पर रौनक अफ्रोज़ हुए तो आप ने उन को गवर्नर से हटा दिया। लेकिन उन्होंने हटाये जाने का परवाना कुबूल नहीं किया और शाम की हुकूमत न छोड़े। बल्कि अमीरूल मोमिनीन हजरत उस्मान ग़नी&£3 के ख़ून के केसास (बदला) का मुतालबा करते हुए उन्होंने अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली £9 की बेअत से न सिर्फ इनकार किया बल्कि उन से मकामे सिफ्फीन में जंग भी हुई। फिर जब सन्‌ 4 हिजरी में हज़रत इमाम हसन मुजतबा ££ ने ख्िलाफत ४! उन के हवाले कर दी तो यह पूरे आलमे इस्लाम के बादशाह हो गए। बीस बरस तक खिलाफते राशिदा के गवर्नर रहे और बीस बरस तक ख़ुद मुख्तार बादशाह रहे। इस तरह चालीस बरस तक शाम के तझ़ते सलतनत पर बैठ कर हुकूमत करते रहे और खुश्को व समन्दर में जेहादों का इन्तज़ाम फरमाते रहे। इस्लाम में समुद्री लड़ाइयों की शुरूआत करने वाले आप हैं। जंगी बेडों की तअमीर का कारखाना भी आप ने बनवाया। खुश्की और समन्दरी फौजों की बेहतरीन तनजीम फुरमाई और जेहादों की बदौलत इस्लामी हुकूमत की सरहदों को खूब खूब बढ़ाते रहे और इशाअते इस्लाम का दाइरा बराबर बढ़ता रहा, जगह जगह मसाजिद की तअमीर और दर्स गाहों का कयाम फरमाते रहे। रजब सन्‌ 60 हिजरी में आप लकृवा की बीमारी में मुबतला हो कर अपने राजधानी दमशक्‌ में विसाल फ्रमाया। बवक्ते विसाल आप ने वसियत फरमाई थी कि मेरे पास हुजूरे अकुदस#£#का एक पैराहन, एक चादर, एक लुंगी और कुछ बाल मुबारक और नाख़ुने अकृदस के चन्द तराशे हैं। इन तीनों मुकृदस कपड़ों को मेरे कफन में शामिल किया जाए और मुए (बाल) मुबारक और नाखुन अकृदस को मेरी आँखों ई॒ न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा ४४2 [82 मकक्‍तवा इमामे आज़म हि में रख कर मुझे अर्रहम रीहिमीन के सुपुर्द किया जाए। चुनान्चे लोगों ने आप को इस वसियत पर अमल किया। (अकमाल स 6]7 वगैरा) बवकक्‍्ते विसाल अठहत्तर या छियासी बरस की उम्र थी। विसाल के वक्‍त उन का बेटा यज़ीद दमश्क्‌ में मोजूद नहीं था। इस लिए जहाक बिन कस ने आप के कफन दफन का इन्तज़ाम किया और उसी ने आप की नमाजे जनाजा पढ़ाई। हज़रत अमीरे मआविया£&४ बहुत ही ख़ूबसूरत, गोरे रंग वाले और निहायत ही वजीह ओर रोब वाले थे। चुनान्चे अमीरूल मोमिनीन हजुरत उमर £४ फ्रमाया करते थे कि ““मआविया'' अरब के '“किसरा"' हैं। (असदुल ग़ाबा जिल्द4, स 585 ता 387) क्रामात्‌ आप को चन्द करामतें बहुत ही मशहूर हैं और आप के फज़ाइल में चन्द अहादीस भी मरवी हैं। जंग में कभी मगृलूब (हारे) नहीं हुए : उन की एक मशहूर करामत यह है कि कुश्ती या जंग में कभी भी और कहीं भी और किसी शख्स से भी मग़लूब नहीं हुए बल्कि हमेशा ही अपने मच्दे मुकाबिल पर गालिब रहे क्‍योंकि हुजूरे अकुदसा/#/“ने उन के बारे में इरशाद फ्रमाया था।« ॥०७७ ५७ »>४॥००€ |. ४ «)०-० 0।((यअनी मआविया जिस शख्स से लड़े गा मआविया ही उस को पिछाड़ेगा) (कंजुल उम्माल जि 2, स 347 बहवाला दैलमी अन इब्ने अब्बास) दुआ मांगते ही बारिश: सलीम बिन आमिर हबाइरी का बयान है कि एक मर्तबा मुल्क शाम में बिल्कुल ही बारिश नहीं हुई और सख्त सूखा का दौर दौरा हो गया। हजरत अमीरे मआविया £४नमाजे इस्तिसका के लिए मैदान में निकले और मिंबर पर बैठ कर आप ने हजरत इब्ने असवद जरशी को बुलाया और उन को मिंबर के नीचे अपने कृदमों के पास बैठा कर अपने दोनों हाथों को उठाया और इस तरह दुआ मांगी कि या अल्लाह! हम तेरे हुजूर में हज़रत इब्ने असवद न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍06/5 07॥॥#/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा ४२ 83 मकतवा इमामे आजम जरशी को सिफारशी बना कर लाए हैं जिन को हम अपने से नेक और अफजल समझत ह। फिर हज़रत इब्ने असवद जरशी और तमाम हाजिरीन भी अपने अपने हाथों को उठा कर बारिश की दुआ मांगने लगे। अचानक पच्छिम से एक जोर दार बादल उठा। फिर मौसला धार बारिश होने लगी। यहाँ तक कि मुल्के शाम की जमीन सैराब हो कर खेती से हरी भरी हो गई। (तबकात इब्ने सअद जिल्द 7, सप; 444) शेन ने नमाज के लिए जगाया: छज॒रत अल्लामा जलालुद्योन मोलाना-ए- रूम ने अपनी मस्नवी शरीफ में आप की इस करामत को बड़ी धूम से बयान फरमाया है कि एक दिन आप के महल में दास्क्षिल होकर किसी ने आप को नमाजे फज़ के लिए जगाया तो आप ने पुछा कि तू कोन है? और किस लिए तू ने मुझे जगाया है? तो उस ने जवाब दिया कि ऐ अमीरे मआविया। मैं शैतान हूँ। आप ने हैरान होकर पुछा कि ऐ शैतान! तेरा काम तो इंसान से गुनाह कराना है और तू ने नमाज़ के लिए जगा कर मुझे नेक अमल करने का मौका दिया। इस को वजह क्या है? तो शैतान ने जवाब दिया कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! में जानता हूँ कि आगर सोते रहने में आप की नमाज़े फज्र कज़ा हो जाती तो आप खौफ इलाह। से इस कदर रोते और इस कसरत से तौबा व इस्तिगफार करते कि ख़ुदा कौ रहमत को आप को बे करारी व रोने थोने पर प्यार आ जाता कि वह आप की कज़ा नमाज़ कूबूल फ्रमा कर अदा नमाज से हज़ारों गुना ज़्यादा अज़ ब सवाब अता फ्रमा देता। चूँकि मुझे ख़ुदा के नेक बन्दों से दुश्मनी व हसद्‌ है इस लिए मेंने आप को जगा दिया ताकि आप को क॒छ ज़्यादा सवाब न मिल सके। (मस्नवी मौलाना रूम अलैहिर्रहमा) तबसेरा: मस्नवी शरीफ की इस हिकायत से मालूम हुआ कि शैतान कभी लोगों को सुला कर और नमाज़ें क॒ुज़ा करा कर नेकियों और सवाबों से महरूम कराता है। कभी कुछ लोगों को नमाज़ों के 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0//0/9॥५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा 8९ ]84 मकतवा इमामे आजम अल तललॉनननन-न----क--+-++----- “न कक कप पतन न पक कक +प कक ++++ननन+न++- न +++++न न कक कक न मम ००-33 5-33333 बच +++++ल- न फन++++++ नारा तननाध न न _++,+_ 3 नासतरन2टॉ2ेअेऑ 3 मनन रण +जन++_+ 25 302: 7 अ &!:ीिी3७ऊझओंओख33७9 8यथओ७थत भा न ननन++न+न+नम "33-०० 2 कल न से महरूम कराता है। और इस की सूरत यह है कि जो लोग सनह को बेदार होकर नमाज़ फज़ जमाअत से पढ़ते हैं तो शैतान कभी कभी ऋऊुछ लोगों के दिलों में यह वसवसा डाल देता है कि में ख़ुदा का बहुत ही नेक बन्दा हँ। क्‍योंकि मैं ने फूज़ की नमाज़ जमाअत से पढ़ी है और फलाँ फुलाँ लोगों की नमाजें कुज़ा हो गईं। यकीनन मैं उन लोगों से बहुत नेक और बहुत अच्छा हूँ। जाहिर है कि अपनी अच्छाई और बुराई का ख़्याल आते ही नमाज़ का अज् व सवाब तो +कार हो ही गया। उलटे तकब्बुर और घमन्ड का गुनाह सर पर सवार हो गया। बहर हाल शैतान की मक्‍्कारी से ख़ुदा तआला की पनाह। हजरत हारिसा बिन तौमान ££ हज़रत हारिसा बिन नौमान5£9बड़े सहाबा में से हैं। ज॑ 'द और जंगे उहुद वगैरा तमाम इस्लामी जंगों में मुजाहिदाना शान क॑ साथ जंग करते रहे। कूबीला बनू नज्जार से हैं। हुजूरे अकुदस/£#ने उन के बारे में इरशाद फ्रमाया कि मैं जन्नत में दाखिल हुआ तो मैं ने वहाँ करत की आवाज़ सुनी। जब मैं ने पता लगाया कि यह कौन शख्स हैं? तो फरिश्तों ने कहा कि यह हारिसा बिन नौमान हैं। यह अपनी वालिदा के साथ बेहतरीन सुलूक करने वाले सहाबी हैं। (मिश्कात जि 2, स 49 बाबुल बर वस्साफा) करामत्‌ हजरत जिब्नईल अलैहिस्सलाम को देखा: उन का बयान हे कि में एक मर्तबा हुजूरे अकरम/&“क पास से गुजरा तो में ने यह देखा कि एक राख़्स आप के पास बेठे हुए हैं। में ने सलाम किया और वहाँ से पंज दिया। जब में वापस आया तो हुजूरे अकरमा&#न फ्रमाया कि ए हारिसा! तुन मे उस शख्स को देखा जो मेरे पास बैठे हुए थे में ने अर्ज किया कि जी हाँ। तो आप ने इरशाद फ्रमाया कि वह हज़रत जिब्रईल 02 थे और उन्होंने तुम्हारे सलाम का जवाब भी दिया था। ब्न्नकून ब्ण्जी ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05:/.06/50॥7_|॥ताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_830७॥9_॥0/8/%५ करामाले 056८4 885 मकक्‍तवा इमामे आज़म | ससंथायत (अकमाल फौी अस्माइररिजाल स 56) ओर एक रिवायत में यह भी है कि हज़रत जिब्रईल/&ने हुजूरे पक से फ्रमाया कि हारिसा बिन नौमान&9 अस्सी (80) [मियों में से एक हैं। तो हुजूरे अकरम/#/ने पुछा कि ऐ जिब्रईल! उस का क्‍या मतलब है कि यह अस्सी आदमियों में से एक हैं ? तो आप न॑ जवाब दिया कि जंगे हुनैन के दिन कुछ देर के लिए तमाम सहाबा शिकस्त खा कर पीछे हट जाएँगे मगर अस्सी आदमी पहाड़ को तरह आप के साथ ऐसी हालत में डटे रहेंगे जब कि कुफ़्फार की तरफ से तीरों की बारिश हो रही होगी। उन अस्सी बहादुरों में से एक ''हारिसा बिन नौमान'' हैं। (असदुल गाबा जि।, स 358) यह आखरी उम्र में नाबीना हो गए थे, इस लिए हर वक्त अपने मुसल्ला पर बेठे रहते थे और अपने मुसल्ला के पास एक टोकरी में खुजूर भर कर रखते थे औः अपने मुसल्ले से हुजरा के दरवाज़े तक एक धागा बांधे हुए थे। जब गरीब दरवाज़ा पर आकर सलाम करता तो उसी धागा म॑ खुजूरें बांध कर धागा खींच लेते और खुजूरें मिस्कीन के पास पहुँच जाती थीं। उन के घर वालों ने कहा कि इस तकल्लुफ व तकलीफ की क्‍या जरूरत है? आप हुक्म दें तो घर वाले खुजूरें मिस्कीन को दे दिया करेंगो। आप ने फ्रमाया कि मैं ने हुजूरे अकुदस (&|>को यह इरशाद फरमाते हुए सुना। + ...९.« ,# ...६...... | ,०(यअनी मिस्कीन को अपने हाथ से देना बुरी मौत से बचाता है।) हजरत हकीम बिव हजाम # उन की कन्नियत अबू खालिद है और खानदाने कुरेश को शाखु़ बन्‌ असद से उन का खानदानी तअल्लुक्‌ है। यह उम्मुल मोमिनीन हजरत ख़दीजा:9 के भतीजे हैं। उन की एक खुसूसियत यह है कि जमाना जाहिलियत में उन की वालिदा जब कि यह उन के पेट में थे, कअबा के अन्दर बुतों पर चढ़ावा चढ़ाने को गई तो वहीं बीच कअबा में हकीम बिन हजाम पैदा हो गए। जमाने जाहिलियत और इस्लाम न कं हद टव॥60 ५शंगरी ए75८ववगा6ह/ [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ कम [[05://8/0।५४6 अंक 8099/776_80४॥89_॥094% करामाते सहाबा /॥72 है, मक्तवा इमामे आजम दोनों ज़मानों में यह करेश के बड़े लोगों में से शुमार किए जाते थे फतहे मक्का के साल सन्‌ 8 हिजरी में मुशर्रफ ब इस्लाम हए। बहत ही अकल मन्द, मआमला समझने वाले और साहिबे इल्म व तक॒वा शिआर थे। एक सो गुलामों को ख़रीद कर आज़ाद किया और एक सो ऊंट उन मुसाफिरों को दिए जिन के पास सवारी के जानवर नहीं थे। एक सौ बीस बरस की उम्र पाई। साठ बरस कुफ्र की हालत में और साठ बरस इस्लमी जिन्दगी गुज़ारी। सन 54 हिजरी में मदीना मुनव्वरा उन का विसाल हुआ। (अकमाल स 564) क्रामत्‌ तिजारत में कभी घाटा नहीं हुआ: उन की मशहूर करामत यह है कि यह ताजिर थे। ज़िन्दगी भर तिजारत करते रहे, मगर कभी भी और कहीं भी और किसी सौदे में भी कोई नुकुसान और घाटा नहीं हुआ, बल्कि अगर यह मिट्टी भी ख़रीदते तो उस में नफुअ ही नफ्‌अ होता क्योंकि हुजूरे अकरम/#&ने उन के लिए दुआ फ्रमाई थी।_ ४, ..७.) “-> »3(ऐ अल्लाह! उन के कारोबार में बरकत अता फ्रमा) (कजुल उम्माल जि।2, स 262) तिर्मिज़ी व अबू दाऊद की रिवायतों में है कि हुजूरे अकरम ##&४ ने उन को दो दीनार दे कर एक मेंढा खरीदने के लिए भेजा, गे उन्हों ने एक दीनार में दो मेंढे ख़रीदे और फिर उन में से एक मेंढे को एक दीनार में बेच डाला और आप की खिदमते अकदस में आकर एक मेंढा और दो दीनार पेश कर टिए। हुजूर ॥##ने उस में से एक दीनार को तो ख़ुदा की राह में खैरात कर दिया और फिर खुश होकर उनकी तिजारत में बरकत के लिए दुआ फ्रमा दी। (मिश्कात स 254 बाबुश शरकतु वल वकालतु) तबसेरा: तिजारत में नफुअ व नुकसान दोनों का होना जरूरी है, हर ताजिर को उस का तजरबा है कि कारोबार में कभी नफ्‌अ होता है कभी नुकूसान, मगर जिन्दगी भर तिजारत में हमेशा नफुअ होता रहे न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209४099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते राहावा १५ 887 'मकक्‍तवा इमामे आजम और कभी भी और कहीं भी और किसी सोदे में भी घाटा न उठाना पड़े। बिला शुबहा उस को करामत के सिवा कछ भी नहीं कहा जा सकता, इस लिए हजरत हकीम बिन हजाम %$ यकीनन साहिबे करामत सहाबी और बलन्द मर्तबा वाले थे। हज़रत अम्मार बिन यासिर #£ यह पुराने सहाबा और पहले मुहाजिरीन में से हैं और यह उन मुसीबत ज़दा सहाबियों में से हैं, जिन को कफ़्फारे मक्का ने इस कदर तकलीफ दीं कि जिन्हें सोच कर ही बदन के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ज़ालिमों ने उन को जलती हुई आग पर लिटाया, चुनान्चे यह दहकती हुई आग के कोइलों पर पीठ के बल लेटे रहते थे। और जब हुजूरे अकदस/##उन के पास से गुजरते और यह आप को या रसूलुल्लाह कह कर पुकारते तो आप उन के लिए इस तरह आग से फ्रमाया करते थे। (//# ८-४ ५४ ७» ५.६ ०५... ॥ +/ ८० »5 ५४, #४-+* /-- (यअनी ऐ आग तू अम्मार पर उसी तरह ठंडी और सलामती वाली बन जा, जिस तरह तू हज़रत इब्राहीम&४ के लिए ठंडी और सलामती वाली बन गई थी। उन को वालिदा माजिदा हज़रत बीबी सुमैया#£ को इस्लाम कबूल करने की वजह से अबू जहल ने बहुत सताया, यहाँ तक कि उन को नाफ्‌ के नीचे नेज़ा मार दिया जिस से उन की रूह परवाज कर गई और अहदे इस्लाम में सब से पहले यह शहादत से सरफ्राज हो गई। हुजूरे अकरम/&7हज़रत अम्मार४##को तैयब व मुतैयब के लकृब से पुकारा करते थे। यह सन ३७ हिजरी में तिरानवे बरस की उम्र पाकर जंगे सिफ्फीन में हज़रत अली रजियल्लाह अन्हु की हिमायत में हज़रत अमीरे मआविया&9४ को फौजों से जंग करते रत हुए शहीद हो गए। (अकमाल स॒ 607) ब्न्नकून ब्ण्जी 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ [[[05:/9/079५8.0/0/0895/(008/088706_30॥9_॥20/9/%५ कराणाते ।छामा ४२ [१ क्तवा हगागे आजम क्रामात्‌ कभी उन की कसम नहीं टटी: उन को एक्र गश्हर करामत यह हे कि यह जिस बात को कुसम उठा लिया करते थे, ख़ुदा बन्दे करीम हमेशा उन की कुसम को पूरी फरमा देता था, क्योंकि हजरे अकरम ४४ ने उन ऊ बारे में यह इरशाद फ्रमा दिया था। (४३ _ (5 «०० पर )%+ हु 3 4 9 0 ४८ (न । + «0 ५३ ५ आफ कितने ही ऐसे कमबल पोश हैं कि लोग उन की कोई परवा नहीं करते, लेकिन अगर वह किसी बात की कसम खा लें तो अल्लाह तआला जरूर उन की कसम पूरी फरमा देगा और उन्हीं लोगों में अम्मार बिन यासिर हैं।) (कंजुल उम्माल जि।2, स 295) तीन मर्तबा शैतान को पछाड़ा: हजरत अलीः४ फरमाते हैं कि हुजूर ##४ ने हज़रत अम्मार £# को पानी भरने के लिए भेजा। शैतान एक काले गुलाम की सूरत में हज़रत अम्मार रजियल्लाहु अन्हु को पानी भरने से रोकने लगा और लड़ने के लिए तैयार हो गया। हजरत अम्मार ४४ ने उस को पिछाड़ दिया, तो वह गिड़गिड़ाने लगा। इसी तरह तीन मर्तबा शैतान ने पानी भरने से आप को रोका और लड़ने पर तैयार हुआ और तीनों मतबा आप ने उस को पछाड़ दिया। जिस वक्‍त शैतान से आप की कुश्ती हो रही थी हुजूरे अकरम/&#ने अपनी मजलिस में सहाब-ए-किराम को बताया कि आज अम्मार ने तीन मर्तबा शैतान को पछाड़ दिया है जो एक काले गुलाम की सूरत में उन से लड़ रहा है। हज़रत अम्मार:$ जब पानी ले कर आगए तो मैं ने उन से कहा कि तुम्हारे बारे में हुजूरे अकरम/#“ने फ्रमाया है कि तुम ने तीन मर्तबा शैतान को पछाड़ा है। यह सुन कर हजरत अम्मार%9 कहने लगे कि ख़ुदा की कुसम! मुझे यह मालूम नहीं था कि वह शैतान है। वरना में उस को मार डालता। हाँ अलबत्ता तीसरी मर्तबा मुझे बड़ा ही गुस्सा आ गया और मैं ने इरादा कर लिया था कि मैं दाँत से उस "का नाक काट लूँ, मगर मैं जब उस की नाक के क्रीब मुंह ले गया, तो [:: >> ++++-+>ततत_ नमन धन -+++++++ मम मकर डक हक. 2ककनन«भम»-झम«भान ले आना पं | कक अन्‍क. 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0//0/9५ करामाते ॥[05:/9/09५8.00/489॥5/(8|0४09॥#76_30॥9_[2/3% द _भहावा 8 ]89 मकतवा इमामे आज़म मुझे बहुत (३४ ही गंदी बदबू महसूस हुई, इस लिए मैं पीछे हट गया और उस की नाक बच गईं। [शवाहिदुन्नबुवा स 278मतबूआ लखनऊ) हज़रत श्रजील बिन्‌ हस॒ता #9 यह बहुत हो जॉबाज़ और बहादुर सहाबी हैं, उन की वालिदा का नाम हसना था उनके वालिद का नाम अब्दुल्लाह बिन मताअ था। उन के बाद उन को वालिदा हसना ने एक अन्सारी से जिन का नाम सुफयान बिन मुअमर था, निकाह कर लिया और दो बच्चे भी उन से पैदा हुए जिन का नाम जनादा और जाबिर था। हज़रत शरजील अपने दोनों भाईयों के साथ शुरू इस्लाम ही में मुसलमान हो गए थे और हिजरत करक हबशा भी गए थे और हबशा से मदीना आए, तो बनी ज़रीक्‌ में रहने लगे। फिर जब हज़रत उमर&#$# की खिलाफत में उन के दोनों भाईयों का इन्तकाल हो गया तो हज़रत शरजील :£% बनी जहरा के कबीला में रहने लगे और फारूकी दौरे हुकूमत में कई एक जिहादों में अमीरे लश्कर की हैसियत से इस्लामी फौजों के किसी एक दस्ते को कमान करते रहे। सन्‌ 8 हिजरी के ताऊन अमवास मे सरसठ (६७) बरस की उम्र पा कर विसाल फ्रमा गए। अजीब इत्तफाक है कि यह ओर हज़रत अबू उबैदा बिन जर्रहः£ दोनों एक ही दिन ताऊन में मुबतला हुए। (असदुल ग़ाबा जि 2, स 39) क्रामत्‌ किला जमीन में धंस गया: इस्लामी लश्कर शहरे असकन्दरिया पर हमला आवर था। कुफ़्फार को फौज एक बहुत ही मजबूत और नाकूबिले तस्ख़ीर किला में महफ्ज़ थी और लश्करे इस्लामी किला के सामने खुले मैदान में खेमा ज़न था। बहुत दिनों तक जंग होती रही मगर कुफ़्फ़ार किला की वजह से मगलूब (हारना)नहीं होते थे। एक दिन अमीरे लश्कर हज़रत शरजील बिन हसना ४ ने काफिरों को मुखातब करके फ्रमाया कि ऐ लश्करे कुफ़्फार के कमान्डर! सुन लो। /₹ न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_830॥9_॥0/9/% करामाते सहावा १४ 90 मकक्‍तवा इमामे आजम '-न्‍--+---०»००-नाननननननननननन-ननकननक्बबबन न +++-ननननान--ननमनक कक न कक ननन न न 9 क कक «५५ «बन नन-ञ नस िट ननननन नयी शक्‍सक्‍क्‍ेूओ ओआ आओ ।वइ एल यिअुअ््च््व्च््ख्ख्,ञ्र्टशषट्ंई्र्िय्य्ल््ञा हमारी फौजे इस्लाम में इस वक़्त ऐसे ऐसे अल्लाह वाले मौजूद जूद है कि अगर वह इस किला की दीवारों को हुक्म द॑ दें कि तुम फोरन ही जमीन में धंस जाओं तो फौरन ही यह किला ज़मीन में धंस जाणगा। यह कहा और जोश में आकर आप ने अपना हाथ किला की जानिब बढ़ाया और बलन्द आवाज में नअर-ए- तकबीर लगाया तो पूरा किला पलक झपकते ही ज़मीन के अन्दर धंस गया ओर कुफ़्फार का लश्कर जो किला के अन्दर था खुले मौदान में खड़ा रह गया। यह मंजर देख कर बादशाह असकन्दरिया का दिल व दिमाग़ हिल गया और वह डर के मारे शहर छोड़ कर अपनी फौजों के साथ भाग निकला और पूरा शहर मुसलमानों के कुबजे में आ गया। तारीख वाक्‌दी व सीरतुस्सालिहीन स 22) तबसेरा: सुब्हानललाह! औलिया अल्लाह की रूहानी ताकतों का क्या कहना। सच है:- कोई अन्दाजा कर सकता है उस के जोरे बाजू का निगाहे मर्दे मोमिन से बदल जाती है तकदीरें हजरत अम्र बिन जुमूह £# यह मदीना मुनव्वरा के रहने वाले अन्सारी हैं और हजरत जाबिर ४2 के फफा हैं यह अपाहिज थे। यह जंगे उह॒द के दिन अपने बेटे के साथ जिहाद के लिए आए तो हजरे अकृदस/##ने उन को लंगड़ाने की बिना पर मैदाने जंग में उतरने से रोक दिया। यह बारगाहे रिसालत में गिड़ गिड़ा कर अर्ज करने लगे या रसूलल्लाह! मुझे जंग में लड़ने की इजाजत दीजिए। मेरी तमन्ना है कि मैं लंगड़ाता हुआ जन्नत में चला जाऊं उन की बे करारी और गिरया व जारी को देख कर रहमते आलम/#&#का दिल इन्तहाई मुतअस्सिर हो गया। और आप ने उन को जंग करने की इजाजत दे दी। यह खुशी से उछल पड़े और काफिरों के हुजूम में घुस कर बहादुरी से जंग करने लगे, यहाँ तक कि शहादत से सरफ्राज हो गए। (मदारिजुन्नबुवा जि2, स 24) न कर हक 5 56व7606 ५शशंगा एद्वा75टवयगा6/ [05://.क्‍76/5 07॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_830७॥9_॥20/9/%५ मकक्‍तवा इमामे आजम करामाते सहावा 52 9॥ लाश मैदाने जंग से बाहर नहीं गई: लड़ाई हो जाने के बाद जब हज़रत अम्न बिन जुमूह की बीवी हज़रत हिन्द ७ मैदाने जंग में गईं तो उन का लारा का ऊट पर लाद कर दफून के लिए मदीना मुनव्वरा लाना चाहा ता हज़ारां काशिशों के बावजूद वह ऊँट मदीना की तरफ नहां चला, बल्कि वह मदाने जंग ही की तरफ भाग भाग कर जाता रहा। हज़रत हिन्द “४ ने जब दरबार रिसालत में यह माजरा अर्ज किया, तो आप ने फ्रमाया कि क्या अम्न बिन जुमूह ने घर से निकलते वक्त कुछ कहा था? हजरत हिन्द ने अर्ज किया कि जी हाँ! वह यह कर घर से निकले थे। »७५ 9» »»»१ «६०॥(ऐ अल्लाह! मुझ को मंदाने जंग से अपने अहल व अयाल में वापस आना नसीब मत कर! आप न इरशाद फरमाया कि यही वजह है कि ऊंट मदीना मुनव्वरा को तरफ नहीं चल रहा है, इस लिए तुम उन को मदीना ले जाने की कोशिश मत करो। (मदारिजुन्नबुवा जि?, स 24) तबसेरा: अल्लाहु अकबर। क्‍या ठिकाना है, इस जज़ब-ए- इश्क और जोशे जिहाद का? और क्‍या कहना उस शोके शहादत का। सुब्हानल्लाह। दो कृदम भी चलने की है नहीं ताकृत मुझ में इश्क खींचे लिए जाता है, मैं क्‍या जाता हूँ द्ुदा की शान देखिइए कि उन की तमन्ना पूरी हो गई। जिहाद भी कर लिया, शहादत से भी सरफ्राज़ हो गए। और मैदाने जंग ही में उन का मदफन भी बन गया। यह सच. हें। जो मांगने का तरीका है उस तरह मांगो दरे करीम से बन्दे को क्‍या नहीं मिलता ४४78४: 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥70[/0/9॥५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6208099776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा ४7 ।92 मकक्‍तवा इमामे आजम का मम___ ना हजरत अबू सअलबा खशबनी यह दअवते इस्लाम के शुरू ही में मुशर्रफ ब इस्लाम हा गए थ, सिलसिला चूँकि ''खशीने वाइल'' से मिलता है, इस लिए यह ख़शनी कहलाते हैं। सुलह हुदैबिया में हुजूरे अकृदस/&#क साथ थ। बैअते रिजवान करके रज़ाए ख़ुदावन्दी की सनद्‌ हासिल को। हुजूर ##$%ने उन को मुबल्लिग बना कर भेजा, चुनानचे उन को काशिशां से उन का पूरा कुूबीला जल्द ही दामने इस्लाम में आ गया। मुल्क शाम फुतह होने के बाद यह शाम में ठहर गए। सच्चाई और साफ गोई में यह अपना जवाब नहीं रखते थे। रात के सन्‍नाटे में अक्सर यह घर से बाहर निकल कर आसमान पर नजर डालते और सज्दा में गिर कर घंटों सर बसुजूद रहते। मुल्के शाम में बस गए थे।और वहीं सन्‌ 75 हिजरी में वफात पाई उन का नाम जरहिम बिन नाशिब हे, मगर कुन्नियत ही मशहूर है। (अकमाल स 589 व असदुल ग़ाबा जिल्द नं०4, सफा नं०276) क्रामत्‌ अपनी पसन्द की मौत मिली: यह अक्सर कहा करते थे ओर दुआएं भी मांगा करते थे कि या अल्लाह! मुझ को आम लोगों की तरह एड़ियाँ रगड़ रगड़ कर और दम घुट घुट कर मरना पसन्द नहीं है। मुझे ऐसी मौत मिले कि उस में दम घुटने और ऐड़ियाँ रगड़ने की परीशानी न उठानी पड़े, चुनान्चे उन की यह करामत है कि हज़रत अमीरे मआविया #9 की हुकूमत के दौरान यह आधी रात गुजरने के बाद नमाज में मशगूल थे कि उन की बेटी ने यह ख़्वाब में देखा कि उन के वालिद साहिब का इन्त॒काल होगया। वह इस परेशान कुन ख़्वाब से घबरा कर उठ बैठी और आवाज दी तो देखा कि आप नमाज पढ़ रहे हैं। थोड़ी देर बाद दूसरी मर्तबा आवाज़ दी, तो कोई जवाब नहीं मिला, पास जाकर देखा, तो सर सजदा में था और रूह परवाज़ कर वि मिमिि मत... फकाा--- कक + ५ +क भा बभब्भणभ्शश्त चष चर ् खचु >बटा््् डट2सासि;सससस.स.)_नओ>७>!॥!:>-““॑75-:55<:२:<>रनऋाऋऋफवा 0 का 75 छू. ्वकमनममकूछ:. शकममकबब७---..... आओ. आाकम्नमााकाका..क्‍ नमबक का -.. चबब. न कर हक 5 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥॥_।॥0 0/9/५ | दर [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/62098099776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा &; ]93 मकक्‍तवा ड्मामे आजम ....... अधननम«म«०»०«--ाा---म»०..-आमआआ»आ»मआक- “सका मा .. चुकी थी।........... (असदुल ग़ाबा व असाबिही) हज़रत कुस बिन खरशा £/४ यह कबीला बनी कैस बिन सअलबा से तअल्लुकु रखते थे। उन के इस्लाम लाने कौ तारीख मुतअय्यन नहीं की जासकी, लेकिन यह मालूम हैं कि हुजूर /#& के मदीना तशरीफ लाने के बाद यह अपने वतन से मदीना मुनव्वरा आए और हुजुर ### के सामने हाजिर होकर बोले, कि या रसूलल्लाह! मैं हर उस चीज़ पर जो खुदा तआला की तरफ से आप के पास आई है और उम्र भर सच बोलने पर आप से ब॑अत करता हूं। आप ने फरमाया कि ऐ कैस! तुम क्‍या कहते हो। मुमकिन है तुम को ऐसे जालिम हाकिमों से सामना पड़े जिन के मुकाबले में तुम हक्‌ गोई से काम न ले सको। अर्ज किया कि या रसूलल्लाह! ऐसा कभी हरगिज़ हरगिज़ नहीं हो सकता। खुदा की कसम! में जिन जिन चीजों पर आप से बैअत करता हूँ, उस को जरूर ज़रूर पूरा करूँगा। यह सुन कर सरकारे रिसालत मआब/&##ने अपने प॑गम्बराना लहजे में इरशाद फ्रमाया कि अगर ऐसा हे तो तुम इत्मीनान रखो कि तुम को किसी शर से कभी भी नुक्सान नहीं पहुँच सकता, चुनान्चे आप उम्र भर अपने उस वादे पर पूरे इरादे से सख्ती के साथ कायम रहे। बनू उमैया के दौरे हुकूमत में ज़याद और उब॑दुल्लाह बिन ज़याद जैसे जालिम गवर्नर पर बरमला नुक्ता चीनी करते रहते थे। यहाँ तक कि उबेदुल्लाह बिन ज़॒याद ज़ालिम गवर्नर के मुंह पर खुल्लम खुल्ल यह कह दिया कि तुम लोग अल्ला व रसूल पर झूठ बाँधने वाले मुफतरी हो। क्रामृत्‌ जान गई मगर आन नहीं गई: उबैदुल्लाह बिन जयाद गवर्नर आप का दुश्मन हो गया था। उस ने आप को कृत्ल की धमकी दी। आप ने न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | ॥05:॥/8/079५8.0/5/06698/5/6)0808/76_9५॥8 _॥0/8/५ करामाते सहावा छ& 94 मकतवा इमामे आज़म उस से कह दिया कि तू मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। उबैदुल्लाह बिन जयाद ने गुस्से में आकर जल्लादों को बुलाया और हुक्म दे दिया कि तुम लोग कुस बिन ख़रशा के मकान पर जाकर उन की गर्दन उड़ा दो, जललाद आ गए, लेकिन जब आप की गर्दन उड़ाने के लिए आप के मकान पर पहुँचे तो यह देख कर हैरान रह गए कि वह अपने बिस्तर पर लेटे हुए हैं और उन की मुकृद्दस रूह परवाज़ कर चुकी है। जलल्‍लाद उन के बदन को हाथ भी न लगा सके और नाकाम व. नामुराद वापस चले गए और इस तरह आप एक ज़ालिम की सज़ा के शर से बच गए। (इस्तियाब जि 2, स 54) तबसेरा: आप ने उबैदुल्लाह बिन ज़याद से फ्रमाया था कि “तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता" हालाँकि उस ने अपनी गवर्नरी के गुमान में यह चाहा कि जल्लाद से उन को कृत्ल कराकर बदला ले ले, मगर उस का यह मनसूबा में मिल गया और जल्लाद नाकाम व नामूराद होकर वापस चले गए। सुब्हानल्लाह! सच है कि। जो जज़्ब के आलम में निकले लबे मोमिन से वह बात हकीकत में तकदीरे इलाही है हज़रत उबे बिन कअब अन्सारी #£ अन्सार में कुबीला खज़रज से उन का खानदानी तअल्लुक्‌ है। यह दरबारे नुबुवत में वही के कातिब थे और यह उन छ: सहाबियों में से हैं जो अहदे नबवी में पूरे हाफिज़े कुरआन हो चुके थे और हुजूर /##४#की मौजूदगी में फ्‌तवे भी देने लगे थे। सहाबा-ए-किराम उन को सैय्यदुल कुरा (सब कारियों का सरदार) कहते थे। हुजूरे अकरमः#£ने: उन को कुन्नियत अबू मनज़र रखी थी, और हज़रत उमर5#$ उन को अबूल तुफैल की कुन्नियत से पुकारा करते थे। दरबारे नुव॒ब॒त से उनको सैय्यदुल अन्सार (अन्सार का सरदार) का खिताब मिला था ओर हज़रत अमीरूल मोमिनीन उमर &9£ने उनको सैय्यदुल मुस्लमीन का लक्‌ब अता फ्रमाया था। उन के शागिर्दो की फेहरिस्त बहुत न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | ॥05:॥/8/079५8.0/5/0698/5/6)808/76_9५॥8 _॥0/8/% करागाते राहावा ८४ 0५5 मकक्‍तवा इमामे आज़म लम्बी है। हुजूरे अक्दस ४#ने एक दिन उन से इरशाद फ्रमाया कि ऐ उले बिन कठाब! अल्लाह तआला ने मुझे हुबम दिया है कि मैं तुम्हार सामने सूरह लम यकुन पढ़ कर तुम्हें सुनाऊं, तो हज़रत उबे बिन कअब:ः# ने आअर्ज किया कि या रसलुल्लह४:/!क्या ख़ुदा ने मरा नाम ले कर आप से फ्रमाया है? आप ने फ्रमाया कि हाँ! यह सुन कर हजरत उबे बिन कअब%०४रोते हुण यह कहने लगे। _..४॥ ०) ++ ० # 4 (यअनी अल्लाह तआला के दरबार में मरा जिक्र किया गया) (अकमाल स 586 व कंजुल उम्माल जि 5, स 258 व बुखारी शरीफ) करामात हजरत जिब्रईल अलैहिस्सलाम की आवाज सुनी:उन को एक मशहूर करामत यह है कि उन्हों ने हज़रत जिब्नईल ## की आवाज़ सुनी। इस का वाकिआ यह है कि हजरत अनस #&2 रावी हैं कि हज़रत उबे बिन कअब ४ ने कहा कि मैं ज़रूर मस्जिद में दाखिल होकर नमाज पढ़ूँगा। और अल्लाह तआला की ऐसी तअरीफ्‌ करूँगा कि किसी ने भी ऐसी नहीं की होगी, चुनान्चे वह नमाज के बाद जब खुदा को हम्द व तअरीफ के लिए बैठे तो उन्होंने एक बलन्द आवाज़ अपने पीछे सुनी कि कोई कह रहा है:- 3५७४ ,>४)७४...)५७ ६00) 50 ,«७ .००० ४४ ५४ क्र ० ४४ 25 २8 ५७०६० ०५००४ ६४० ,०)५००४ ४४ )४३ ६ +२ 5 . 2# ५०) ७४ ४० ५३४ % |) ४५०० +3))3७)०+ (४ ४४ ५०) ००००१ 2५) (३ (ऐ अल्लाह! तेरे ही लिए तअरीफ है कुल की कुल और तेरे लिए बादशाही है तमाम की तमाम और तेरे ही लिए भलाई है सब को सब और तेरी ही तरफ तमाम मामलात लौटते हैं ज़ाहिरी भी और बातिनी भी। तेरे ही लिए तअरीफ है। यकौनन तू हर चीज पर कुदरत वाला है, मेरे उन गुनाहों को बख़्श दे जो हो चुके और मेरी उम्र के बाको हिस्से में तू मुझे अच्छे अअमाल की तौफोक्‌ दे और तू उन अअमाल के ज़रिइए मुझ से राज़ी हो जा और मेरी तौबा कूबूल फ्रमा ले) पल लक मल... नि क 6 ब 5 56व॥66 ५शशंगरी एद्वया)5टदया6/ [[05:/.86/5 7 ।॥00/8५ ाआ [[[05:/9/079५8.0/0/0895/(0[08/088706_30७॥9_॥0/8/% करामाते सहावा 62 [96 मकतवा डइमामे आजम हजरत उब॑ बिन कअब मस्जिद से निकल कर रहमते आलम /#/क दरबार में हाजिर हुए और माजरा स॒नाया। आप ने फरमाया तुम्हारे पीछे उलन्द आवाज़ से दुआ पढ़ने वाले हज़रत जिब्रईल ५% थे। (किताबुज़्जिक्र लि इब्ने अबिद्दुनिया बदली का रूख फेर दिया: हज़रत इब्ने अब्बास:४ फरमाते हैं कि हज़रत उमर&# एक काफिला के साथ मक्का म॒कर्रमा जा रहे थे और म॑ और हज़रत उब बिन कअब5%४ दोनों उस काफिले के पीछे चल न रहे थे। अचानक एक बदली उठी तो हजरत उबे बिन कअब #£9 ने फरमाया कि या अल्लाह! हम को उस बट्ली की तकलीफ से बचा ले और उस बदली का रूखू फेर दे, चुनान्चे बदली का रूख फिर गया और हम दोनों पर बारिश की एक बूम्द भी नहीं गिरी। लेकिन जब हम दोनों काफिले मे पहुँचे तो हम ने यह देखा कि लोगों की सवारियों और सब सामान भीगे हुए हैं। हम को देख कर हज़रत उमर #४ ने फरमाया कि क्‍या यह बारिश जो हम पर हुई है, तुम लोगों पर नहीं हुई? में ने अर्ज़ किया कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! हजरत उबै बिन कअब ने बदली देख कर ख़ुदा से दुआ मांगी कि हम इस बारिश की परिशानी से बच जाएँ, इस लिए हम पर बिल्कुल बारिश नहीं हुई और बदली का रूख फिर गया। यह सुन कर हजरत उमर ५४ ने फरमाया तुम दोनों ने हमारे लिए क्‍यों नहीं दुआ मांगी? काश तुम हमारे लिए भी दुआ मांगते ताकि हम लोग भी इस बारिश की तकलीफ से महफूज़ रहते। (कजुल उम्माल जि।5, स 232) बुखारं में सदा बहार: एक दिन हुजूर सैय्यदे आलमः<##ने इरशाद फरमाया कि बुखार के मरीज को अल्लाह तआला बहुत ज़्यादा नेकियाँ अता फ्रमाता है। यह सुन कर हज़रत उबै बिन कअब&£ ने यह दुआ मांगी कि या अल्लाह! में तुझ से ऐसे बुखार की दुआ मांगता हूँ जो मुझे जिहाद और बेतुल्लाह शरीफ के सफ्र और मस्जिद की हाज़िरी से न रोके, आप की दुआ मकूबूल हुई। चुनान्चे आप के बेटों का बयान है कि मेरे बाप हज़रत उबै बिन कअब ##9 को हर वक़्त न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.706/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_830॥9_॥0/9/%५ ऊकरामाते सहावबा ३» "रामात सहाबा ६७ 97 मक्‍तवा इमामे आज़म बुखार रहता था और बदन जलता रहता था, मगर उस हालत में भी वह हज व जिहाद के लिए सफर करते और मस्जिदों में भी हाजिरी देते थे और इस कुदर जोश व ख़रोश के साथ उन कामों को करते थे कि कोई महसूस भी नहीं कर सकता था कि यह बुखार के मरीज हैं। (कजुल उम्माल जि।5, स 234 मतबूआ हैदराबाद) हज़्रत्‌ अबू दरदा £/ यह कबीला अन्सार में खानदान खूजरज से नसबी तअल्लुक्‌ “अत हैं। उनका नाम अवेमर बिन आमिर अन्सारी है। यह बहत ही इल्म व फूज़ल वाले फकोह और साहिबे हिकमत सहाबी हैं। और परहेज़गारी व इबादत में भी यह बहुत ही बलन्द मर्तबा हैं। हुजूरे अकृदस /###क बाद उन्हों ने मदीना मुनव्वरा छोड़ कर शाम में सुकूनत इख्रतियार कर ली। और सन्‌ उ2 हिजरी में शहर दमश्कु के अन्दर विसाल फ्रमाया। (अकमाल सफा 594 वगैरा) क्रामत हांडी और प्याले की तसबीह:ः एक मर्तबा आप अपनी हांडी के नीचे आग सुलगा रहे थे और हज़रत सलमान फारसी ££ भी उन- के पास ही बेठे हुए थे। अचानक हांडी में से तसबीह पढ़ने की आवाज बलन्द हुई। फिर ख़ुद बख़ुद वह हांडी चुलहे पर से गिर कर ओंधी हो गई। फिर ख़ुद बख़ुद ही चुलहे पर चली गई, लेकिन उस हांडी में से पकवान का कोई हिस्सा भी जमीन पर नहीं गिरा। हज़रत अबू दरदा £2 ने हज़रत सलमान&£ से कहा कि ऐ सलमान! यह तअज्जुब ख़ेज ओर हैरत अंगेज़ मामला देखो। हज़रत सलमान फारसी £४ ने फ्रमाया कि ऐ अबू दरदा! अगर तुम चप रहते तो अल्लाह तआला की निशानियों में से बहुत सी दूसरी बड़ी बड़ी निशानियाँ भी तुम देख लेते। फिर यह दोनों एक ही प्याला में खाना खाने लगे तो प्याला भी तसबीह पढ़ने लगा और इस प्याला में जो खाना था उस खाने के दाने न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा /४? 98 मकक्‍तवा इमामे आजम “*०>>जनजन्अअवट2क्‍फ।अडओक्‍चदंंिा चखटटटिचाखेा दिदेाट्ाट्ूथथ्/श्शड्ट_- क्‍अ अ ््््स्््््चछ््ललिलिआआडडिंिि सा डड्डडडििडिडिडिडटसस 33333 सवा नम सबबबमक मनन कई दाने से भी तसबीह पढ़ने की आवाज़ सुनाई देने लगी। (हुल्यतुल औलिया जि। ,स224 ता289) अकदे मुवासख्यात (भाईचारगी) में हुजूरे अकरम सलल्‍लल्लाहो अलैहिवसल्लम ने हज़रत अबू दरदा और हज़रत सलमान फारसी रजीअल्लाहो तआला अनन्‍्हु को एक दूसरे का भाई बना दिया था। हज़रत अम्र बिन अबसा # उन को कुन्नियत अब नजीह है और यह कृबीला बनू सलीम म॑ से थे। इस्लाम के शुरू ही में यह दौलते ईमान से माला माल हो गए थे। मुसलमान होने के बाद हुजूरे अकरम/#“ने उन से फ्रमाया कि तुम अपनी कौम में जाकर रहो और जब तुम यह सुन लो कि में मक्का से हिजरत करके मदीना मुनव्वरा चला गया हूँ तो -य वक़्त तुम मरे पास चले आना। यह अपनी कौीम में ठहर गए। यहाँ तक कि जंगे खैबर के बाद मदीना मुनव्वगा आए और उस मुकृद्दस शहर में बस गए। उन के शागिदों में बड़े बड़े बलन्द पाए मुहद्देसीन हैं। हज़रत अली:& क दोर खिलाफूत में उन्हों ने दुनिया सं रिहलत फरमाइ। (अकमाल स 607) क्रामत्‌ अब्र (बादल) ने उन पर साया किया: हजरत कअब ££# के गुलाम का बयान है कि एक दिन सफर में हजरत अप्र बिन अबसा 5 जानवरों को चराने के लिए मैदान में चले गए। में दोपहर की धूप और गर्मी में उन्हें देखने के लिए जानवरों की चरागाह में गया तो क्‍या देखता हूँ कि हज़रत अम्र बिन अबसा एक जगह मैदान में सो रहे हैं और एक बादल का टुकड़ा उन पर साया किए हुए है। मैं ने उन्हें बेदार किया तो उन्हों ने फरमाया कि खबरदार। ख़बरदार! जो कुछ तुम ने देखा है, हरगिज़ हरगिज़ किसी से मत कहना, वरना तुम्हारी खैरियत नहीं रहेगी। हज़रत कअब&& क गुलाम 3, मम अमल 0 मे लक सम न कप मय सके जन सबक 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ ५ द् [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6208099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते राहावा( |[ 06 गकक्‍्ववा हंगामे आजम कहते थे कि ख़ुदा की कुसम जब तक उनकी वफात न हो गई, मैंने किसी से उन को इस करामत का तज्किरा नहीं किया। (असाबा जि3, स6) हज़रत अब्दुल्लाह बिन कुरत ४४ उन का खानदानी तअल्लुक्‌ बनी अज़्द से है, इस लिए अज़्दी कहलाते हैं। जमाना-ए-जाहिलियत में उन का नाम “'शैतान'' था। मुसलमान हो जाने के बाद नबी अकरम/&/#ने उन का नाम अब्दुल्लाह रख दिया। यह जंगे यरमूृक और फतहे दमश्क्‌ु की लड़ाइयों में बड़ी बहादुरी और जांबाज़ी के साथ कफ़्फार से लड़ते रहे। हज़रत अबू उब॑दा बिन जर्राह#४ ने उन को दो मर्तबा '“हमस'' का हाकिम बनाया। फिर अमीरे मआविया&$ की हुकूमत में भी यह ''हमस'' के हाकिम बनाए गए। उन का शुमार मुहद्देसीन की फेहरिस्त में होता है। ओर मुहद्देसीन की एक जमाअत ने उन के हलकु- ए-दर्स में हदीसों ' का पाठ पढ़ा है। सन्‌ 56 हिजरी में रूम की जमीन में कुफ़्फार से लड़ते हुए शहादत से सरफ्राज़ हो गए। (असदुल ग़ाबा जि०्ड, स०42 व अकमाल स०605) क्रामत्‌ मुस्तजाबुद्डअवात (दुआ): उन को एक करामत यह है कि उन की दुआएँ बहुत ज़्यादा और बहुत जल्द कूबूल हुआ करती थीं और उन का ब्यान हे कि एक मर्तबा में बहालते सफर खालिद बिन वलीद रजियल्लाह अन्ह के साथ था, मगर अचानक मेरा ऊंट इस कृदर थक गया कि चलने के कुबिल ही न रहा, चुनान्चे में ने इरादा कर लिया कि हजरत खालिद बिन वलीद#9 का साथ छोड़ दूँ, लेकिन फिर में ने अल्लाह तआला से दुआ मंगी तो बिल्कुल अचानक मेरा ऊंट तैयार होकर तेजी के साथ चलने लगा। (तबरानी) 6[05:/.76/5फ॥॥#_|ाताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62009099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा /४/7 200 मक्‍तवा इमामे आजम हज़रत सायब बिन अकुरअ #४ यह कबीला बनू सकौफ की होनहार और नामवर शख्सियत हैं, इस लिए '“सकफी'' कहलाते हैं। उन को वालिदा का नाम “मलीका' था। उनकी वालिदा उनकी बचपन ही में अपने साथ लेकर बारगाहे नुबूबत में हाज़िर हुई तो नबी करीम#|##ने उन के सर पर अपना दस्ते मुबारक फेरा और उन के लिए दुआ फरमाई। यह बड़े मुजाहिद थे। निहावन्द की फतह में यह हज़रत नौमान बिन मक्रन%£ को झंडे के नीचे ख़ुब जम कर कुफ़्फार से लड़े। अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर ##ने उन को ''मदायन'' का गवर्नर मुकूररर फरमा दिया था। असफूहान" में उन का इन्तकाल हुआ। (असदुल गाबा जि?, स 249) क्रामत्‌ तस्वीर ने खजाना बताया: अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर £$ ने उन का मदायन'' का गवर्नर मुकरर फरमाया। यह एक दिन _ किसरा के महल में बैठे हुए थे तो देखा कि महल में एक ऐसी तसवीर है जो उंगली से एक मकाम की तरफ इशारा कर रही है, चुनान्चे आप ने उस मकाम- को खोदने का हुक्म दिया तो वहाँ से एक बहुत बड़ा खजाना निकला जो वहाँ दफन था। आप ने मदीना मुनव्वरा बारगाह ख्िलाफत में उस की इतलाअ देकर यह पूछा कि उस खज़ाना को मुसलमानों ने जंग करके हासिल नहीं किया है, बल्कि मैंने उसको अकेले तलाश किया है तो मैं उस रकम को क्‍या करूँ? हज़रत अमीरूल मोमिनीन#४ ने यह हुक्म सादिर फ्रमाया कि चूँकि तुम मुसलमानां क॑ अमीर हो, इस लिए इस रकम को मुसलमानों पर तकसीम (बॉट) कर दो। (रवाहुल ख़तीब कज़ा फिल कंज़ जिउ, स 305) न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6208099776_30॥9_॥0/8/%५ करामाते सहावा ४2 20] ब्््््ख्ंचलल्ललाोोि 22023. का... ऑआऊआ झ झील मकक्‍तवा इमामे आजम हजरत इर्बाज़ बिन सारिया #£ उनकी कुन्नियत “अबू नजीह'' है और उन का ख़्ानदानी तअल्लुक बनी सलीम से है, गरीब मुहाजिर थे, इस लिए मस्जिदे नबवी कि असहाबे सुफ़्फा के साथ रहते । आखिर में मुल्के शाम चले गए और वहीं बस गये। हज़रत अब अमामा और ताबईन की एक जमाअत ने उन से हदीसों की रिवायत की है। सन्‌ 75 हिजरी में शाम म॑ उन का विसाल हुआ। (असदुल गाबा जि3उ, अमाल स 606) क्रामत्‌ फरिश्ते से मुलाकात और बातः एक दिन यह दमश्क्‌ की जामा मस्जिद में इस तरह दुआ मांग रहे थे कि या अल्लाह! अब मेरी उम्र बहुत ज़्यादा होगई है और मेरी हड्डियाँ बहुत ज़्यादा कमज़ोर हो चुकी हैं, लेहाज़ा अब तु मुझे वफात दे दे। अचानक उन के पीछे से एक हरा कपड़ा पहने हुए नौजवान जो बहुत ही खूबसूरत था बोल उठा, ऐ. शख्स! यह कसी दुआ मांग रहा है? तुम्हें इस तरह दुआ करनी चाहिए कि या अल्लाह! मेरे अमल को अच्छा कर दे और मुझ को मेरी मौत की मुद्दत तक पहुँचा दे। यह नौजवान की डांट सुन कर चौंके और पुछा कि अल्लाह तआला आप पर रहम फरमाए आप कौन हें? नौजवान ने कहा में “रीबाइल'' फ्रिश्ता हे और खुदा तआला की तरफ से मेरी यह डियोटी है कि में मोमिनीन के दिलों से रंज व गम को दूर करता हूँ। (कालश्शीमी जि 40, स 484) तबसेरा: फरिश्ता का दीदार करना और उस से आमने सामने बात करना बिला शुबहा यह एक बड़ी करमात है जो शर्फ सहाबियत के तुफैल में सहाबा किराम &##को मिलती रही है। वलल्‍लाहु तआला अअलम। नि कं हद 56वख766 ५शशंग्रा एद्वया)5टदया6/ [05://.क्‍76/5 07॥॥/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/62098099776_830॥9_॥0/9/% करामाते तहावा ४72 202 मकक्‍तवा डमामे आजम हज़रत खब्बाब बिन आरिस #४ उन की कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह है। यह गुलाम थे, उन को कुबीला तमीम को एक औरत ने ख़रीद कर आजाद कर दिया था, इस लिए यह तमीमी कहलाते हैं। शुरू ही में उन्होंने इस्लाम कृबूल कर लिया था और क्‌फ़फारे मक्का ने हज़रत अम्मार व बिलाल ५४ की तरह उन को भी तरह तरह के अज़ाबों में मुबतला किया। यहाँ तक कि उन को कोइलों के ऊपर लिटाते थे और पानी में इस कृदर डुबकी दिलाते थे कि उन का दम घुटने लगता और यह बेहोश हो जाते। मगर सब्र व इस्तकामत का पहाड़ बन कर यह सारी मुसीबतों और तकलीफों को झेलते रहे और उन के इस्लाम में बाल बराबर भी तज़बजुब या ढ़ीलापन नहीं हुआ। हुजूरे अकदस/#“के विसाल के बाद मदीना मुनव्वरा से उन का दिल उठ गया और यह कूफा में जाकर मुकीम हो गए और वहीं सन्‌ उ7 हिजरी में 73 बरस की उम्र में इन्तकाल फरमा गए। (अकमाल स 592) क्रामत्‌ खुश्क (सूखा) थन दूध से भर गया: उन की एक करामत यह है यह एक मर्तबा जिहाद केलिए निकले, तो एक ऐसे मकाम पर पहुँच गए जहाँ पानी का नाम व निशान भी नहीं था। जब यह और उन के सा थी प्यास की सख्ती से बेगैर पानी की मछली की तरह तड़पने लगे ओर बिल्कुल ही निढाल और बे ताब हो गए, तो आप ने अपने एक साथी को ऊंटनी को बैठाया और बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ कर उस के थन को हाथ लगाया, तो एक दम उस का हुआ थन इस कदर दूध से भर गया कि फूल कर मश्क के बराबर हो गया। उस ऊँटनी का दूध दूृह कर सब साथियों ने पेट भर कर पी लिया और सब की जान बच गई। (काललहशीमी जि6, स 20) कल _्ऋ्ु्टााडडड़़३़़ लााीा)ोोोिोिोिििाोाॉोोोोोोार्ॉोोोोोोोोोोसगस ... अधि अअनननमन-ममम-ममनभ-नम-मननननमननमनन-न--+मनमनन«+++मन++++म+++«+»««««म»»«नममममणनम--न-मममनन»$3..3 ">>... 5८664 शशंगर ए7520वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0//0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा /४० 203 मकतवा इमामे आजम समा कम + + मम मनन नम नमन +-म+-++-++-+-+--------मनमन+ा++++++-नामस ८८ ८+--++ ििोड्डिडिडफोििििि ##आ#»/»/» आघआछ»#»+#& ॥्ृृृण॑ाणननननन 7 शक किक विश ०० हज़रत मिकुदाद बिव असब॒द कुंदी#/ उन के वालिद का नाम अम्र बिन सअलबा था। असवद के बेटे इस लिए कहलाने लगे कि असवद बिन अब्दे यगूस जहरी ने उन को अपना मुँह बोला बेटा बना लिया था, इसलिए उस की तरफ मंसूब हो गए और चूंकि कबीला बनी कुन्दा से उन्होंने दोस्ती कर लिया था और उन के करीबी बन गए थे। इसलिए इस निस्बत से अपने को कन्दी कहने लगे। उन की कुन्नियत “अबू मुअबद'' या “अबुल असद'' है और यह पहले इस्लाम लाने वालों में से हैं, मक्का मुअज़्ज़मा से हिजरत करके हबशा चले गए थे। फिर हबशा से मक्का मुकर्रमा वापस चले गए, मगर मदीना मुनव्वरा को हिजरत नहीं कर सके, क्योंकि कुफ़्फार ने हर तरफ से घेर करके मदीना का रास्ता बन्द कर दिया था, यहाँ तक कि जब हज़रत उबैद बिन हारिस% एक छोटा सा लश्कर ले कर मदीना मुनव्वरा से अकरमा बिन अबू जहल के लश्कर से लड़ने के लिए आए तो यह और हजरत उतबा बिन ग़ज॒वान #>काफिरों के लश्कर में शामिल हो गए ओर भाग कर मुसलमानों से मिल गए और इस तरह मदीना मुनव्वरा हिजरत करके पहुँच गए। यह वही हज़रत ''मिकृदाद बिन असवद'' हैं कि जब रसूले अकरम/&/#ने जंगे बद्र के मौकुअ पर सहाबा-ए-किराम से मश्वरा फ्रमाया तो उन्होंने ब आवाजे बलन्द्‌ कहा कि या रसूलल्लाह! (#£#) हम बनी इस्राईल नहीं हें जिन्हों ने अपने नबी हजरत मूसा /& से जंग के वक़्त यह कहा था कि ''आप और आप का ख़ुदा दोनों जाकर जंग करें हम तो अपनी जगह बैठे रहेंगे! बल्कि हम तो आप के वह जा निसार हैं कि अगर ख़ुदा की कसम! हम को आप “'बरकुल ग़माद तक ले जाएँगे, तो हम आप के साथ चलेंगे और हम आप के आगे, आप के पीछे, आप के दाएँ, आप के बाएँ से उस वक्त तक लड़ते रहेंगे जब तक कि हमारे बदन में खून का आखिरी कृतरा और ज़िन्दगी को आखिरी सांस बाकी हे। वि कफ 3222-73», ऋचच ५ | ँ 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 527 204 मक्‍तवा इमामे आज़म हजरत अब्दल्लाह बिन मसऊद #छैन फरमाया कि मक्का मुकरमा में सात लोग ऐसे थे, जिन्हों ने मक्का मुकरमा म॑ कफ़्फार क॑ सामने सब से पहले खुल्लम खुल्ला अपने इस्लाम का ऐलान किया। उन मे से एक हजरत ''मिक॒दाद बिन असवद' भी हैं। हुजूर अनवर (&/४ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने हर नबी को सात जाँ निसार साथी दिए हैं। लेकिन मुझ को हज़रत हक्‌ जल मजदहू ने चौदह दोस्तों की जमाअत अता फ्रमाई है जिन की फेहरिस्त यह है () अबू बकर (2) उमर (3) अली (4) हमज़ा (5) जाफ्र (6) हसन (7) हुसैन (8) अब्दुल्लाह बिन मसऊद /9) सलमान (0) अम्मार ()) हुज़ैफा (2) अबुज़र (3) मिक्दाद (4) बिलाल रजियल्लाहु अन्हुम (6४) अहादीस पाक म॑ उन के फजाइल व खूबियों बहुत ज्यादा है। यह तमाम इस्लामी लड़ाइयों में जिहाद करते रहे और फतह मिस्र की जंग में भी उन्होंने ने डट कर कुफ़्फार से जंग की। सन्‌ उउ हिजरी में हजरत अमीरूल मोमिनीन हजरत उस्मान£9 की ख्िलाफत के दौरान मदीना मुनव्वरा सं तीन मील दूर मकामे ““जफ'' में सत्तर बरस की उम्र पाकर विसाल फ्रमाया और लोग पूरी अकौदत से अपने कंधों पर उन क जनाज़ा मुबारक को “जर्फ'से उठा कर मदीना मुनव्वरा लाए और जनन्‍्नतुल बकीअ में दफन किया। (अकमाल स642 व असदुल ग़ाबा जिल्द 4, सफा 40) क्राम्‌त्‌ चुहे ने सत्तरा अशर्फियाँ नज़र कीं: ज़बाआ बिन्ते जुबैर कहती हैं कि यह इस कदर तंग दस्ती में मुब्तला थे कि पेड़ों के पत्ते खाया करते थे। एक दिन एक वीरान जगह में रफअ हाजत के लिए बैठे तो अचानक एक चुहा अपने बिल में से एक अशरफी मुंह में ले कर निकला और उन के सामने रख कर चला गया। फिर वह इसी तरह बराबर एक एक अशरफो लाता रहा। यहाँ तक कि सत्तरा अशर्फियाँ 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा &[ ( जता कल ननननन-ततत-+ 20: भक्‍तवा इमामे आज़म दे 205 बा इमामे आज लाया। यह सब अशरफियों को लेकर बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और पूरा माजरा अर्ज़ किया तो आप ने फ्रमाया कि तुम्हारे लिए इस माल 4 कुछ सदका करना ज़रूरी नहीं है। अल्लाह तआला तुम्हें इस माल + बरकत अता फरमाए। हज़रत जबाआ##का बयान है कि उन में से आखिरी अशरफी अभी ख़त्म नहीं हुई थी कि मैं ने चाँदी के ढेर हज़रत मिकृदाद ££के घर में देख लिए। (अबू नईम फिल दलाइल जिल्द 2,सफा 596) तबसेरा: इस किस्म का वाकिआ दूसरे बुजुर्गों के लिए भी हुआ है, चुनानचे हज़रत अबू बकर अलखाज़ब मुहद्दिस भी रात में कछ लिख रहे थे तो चुहे का एक जोड़ा उछलता कूदता उन के सामने आया। उन्होंने एक को प्याले से ढंप दिया। उस के बाद दूसरे चुहे ने बार बार एक एक अशरफो लाकर उन के सामने रखना शुरू किया, यहाँ तक कि आखिर में एक चमड़े की थैली उठा लाया जिस में एक अशरफी थी, उस से उन्होंने समझ लिया कि चुहे के पास अब कोई अशरफी बाकी नहीं रह गई है। फिर उन्होंने प्याला उठा लिया और चुहा निकल कर अपने जोड़े के साथ उछलता कुदता भाग निकला और उन अशरफियों की बदौलत हज़रत अबू बकर बिन अल खाजबा की तंग दस्ती का दौर ख़त्म हो गया और वह खुशहाल हो गए। (तहतुल यमन वगैरा) इस किसम के वाकिआत को अल्लाह तआला के फजल और उन बुजुर्गो की करामत के सेवा और क्‍या कहा जा सकता है?5।; )| ४५0 ७ «० 5 »0॥ )४ (यअनी अल्लाह तआला बहुत बड़ा रोज़ी देने वाला और बहुत बड़ी कुदरत और ताकत का मालिक हे) उन बुजुर्गों ने शर्फें सहाबियत से सरफ्राज़ होकर ख़ुदा के महबूब की जिस जज़बा और जाँ निसारी के साथ ख्विदमत गुजारी की और उस के सिला में हक जलल जलालह ने दुनिया ही में उन शमए नुबुवत के परवानों को ऐसी ऐसी करामतें अता फ्रमाई हैं जो यकौनन हैरान करने वाले हैं और अभी आखिरत में वह रहीम व करीम मौला न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वया)56वया6/ [05://.706/5 ७7॥॥#/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809/776_30॥9_॥0/9/% करामाते राहावा ॥(९ 200 मकतवा इमामे आजम अपने फजल व करम से उन आशिकाने रसूल को जो अजरे अजीम अता फरमाने वाला है उस को कोई सोच भी नहीं सकता कि उस की कमियत व कैफियत (कैसा) की अजमत का क्‍या आलम होगा। हदीस शरीफ की रोशनी में बस इतना ही कहा जा सकता है।.....> ४ अपन पर (बम अमित ५० 3०-०० ७0४) -)(यअनी उन नअमतों को न किसी आँख ने देखा, न किसी कान ने सुना, न किसी आदमी के दिल पर कभी उस का झुयाल गुज़रा।) हज़रत उरवा बित्‌ अबी जुअद बारकी#/४ उन के मोरिसे आला का नाम ''बारिक'' था। उस निसबत से उन को “बारकौ'' कहते हैं। उन को अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर ४४ने अपने दौरे ख्विलाफृत में कूफा का काज़ी मुकरर फ्रमा दिया था। यह बरसों कूफा ही में रहे, इस लिए कुफा के मुहद्देसीन में शुमार होते हैं। और उनके शागिदों में बहुत ही मश्हूर व मुमताज़, और निहायत बलन्द पाया और नामवर मुहद्दिस हैं। (अकमाल स 606 वगैरा) हक दीनार दे कर हुक्म फरमाया कि वह एक बकरी खरीद लाऐं उन्होने बाज़ार जाकर एक दीनार में दो बकरियाँ , फिर रास्ते में किसी आदमी क हाथ एक बकरी एक दीनार में बेच (फरोख़्त) करके दरबारे रिसालत में हाजिर हुए और एक बकरी एक दीनार खिदमत अकदस में पेश कर दी और बकरी की खरीदारी का पूरा वाकेआ भी सुना दिया- हुजूर अकरम#&“ने खुश होकर उनकी खरीद व फरोख्त में बरकत को दुआ फरमा दी और उस दुआएऐ नबवी की बरकत का यह असर हुआ: 43 6» ४४ ४ ,/-। +/ ४5४ (यअनी अगर वह मिट्टी भी खरीदते तो उस में भी उन को नफ्‌अ ही नफ्‌अ होता)यह उनकी करामत थी। (मिश्कात जि। स254 बाबुश्शरकतु वल वकालत बहवाला बुखारी) मिटटी भी खरीदते तो नफ्‌्आ्‌ उठाते: उन को रसूलुल्लाह&/#ने एक 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0//0/9॥५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा ४2 207 मकक्‍तवा इमामे आजम हज़रत अबू तलहा अन्सारी ४४ यह कबीला अन्सार के खानदान बनू नज्जार में से थे। हज़रत अनस बिन मालिक ££ को वालिदा हज़रत बीबी उम्मे सलीम &£ ने बेवा हो जाने के बाद उन से निकाह कर लिया था। यह बहुत ही मशहूर तीर अनदाज़ और निशाना बाज थे। उन के बारे में हुजरे अकरम/£#ने इरशाद फ्रमाया था कि लश्कर में अबू तलहा की एक ललकार एक हज़ार सवारों से बढ़ कर है। यह हुजूरे अकरम /&#क हिजरत फ्रमाने से पहले ही हज के मौकुअ पर मिना की घार्टी में अपने सत्तर साथियों के साथ हुजूरे अकृदस/&से बैअते इस्लाम करके मुसलमान हो गए थे। फिर जंगे बद्र व जंगे उहुद और उस के बाद की तमाम इस्लामी लड़ाइयों में इन्तहाई जज़बा- ए-ईमानी और जोशे इस्लामी क साथ जिहाद करते रहे और बड़े बड़े मुजाहिदाना कारनामों का मुज़ाहिरा करके और इस्लामी स्थ्रिदमात के कारनामे पेश करके सन्‌ 3 हिजरी में सतहत्तर (77) बरस की उम्र में वफात पा गये। (अकमाल स 604 व कंजुल उम्माल जि 42 पेज-277) करामत्‌ लाश ख़राब नहीं हुईं: हज़रत अनस#&४ रावी हैं कि एक दिन बुढ़ापे में हज़रत अबू तलहा अन्सारी 59 सूरह बरात की तिलावत कर रहे थे। जब इस आयत पर पहुँचे “)॥४ ,७५-। ५ ४४” तो आप ने फ्रमाया कि ऐ मेरे बच्चो! मुझे तुम लोग जिहाद का सामान दो, क्योंकि मेरा रब जवानी और बुढ़ापे दोनों हालतों में मुझे जिहाद का हुक्म फ्रमाता है। उन के बेटों ने कहा कि आप ने हुजूर/#६०और हजरत अबू बकर सिद्दीक व हजरत उमर फारूकु&#के दौर में तमाम जिहादों में शिरकत की सआदत हासिल कर ली। अब आप बूढ़े हो चुके हैं, इस लिए अब जिहाद में न जाइए। हम लोग आप की तरफ से जिहाद कर रहे हें और करते रहेंगे। मगर यह किसी तरह भी घर बैठने पर राज़ी नहीं हुए किक अमन अल न नकी 66 ५शशा॥) ए752८वाा6श [05:/.76/5 077 _|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830॥9_॥0/3/%५ कराम तो राहावा, ॥ 75 ही || ] ३ लशकफदावा हमामे जाजम मिनी कम कमककबककबइ इक 2७++०++४० बन ३ ८०००-०० +--->->->ऋअिजण्ड्णन्टडनननलनननिि्ड्डिआसभससडट्ट सन “मन. .किराय--3---.-..--3 आधा और जिहाद का सामान जमा करके जिहाद में जाने वाली एक कश्ती पर सवार होकर जिहाद के लिए रबाना हो गण०। ख़ुदा को शान कि उस कश्ती ही पर उन की वफात हो गई। इत्तेफाकु से उन की कब्र के लिए समन्दर में कोई जजीरा भी नहीं मिला। सात दिनों तक करती में आप की लाश मुबारक रखी रही। सातवें दिन समन्दर में एक जजीरा मिला तो आप उस जजीरा मे मदफन हुए। सात दिन गुजरने के बावजूद आप के जिसमे अतहर पर किसी किस्म का कोई बदलाव जाहिर नहीं हुआ था। (इस्तीआब लिइब्ने अब्दुल बर जि।, स 550) तबसेरा: अल्लाहु अकबर! यह जजबा-ए-ईमानी और जोशे जिहाद ऐ आसमान बता! ऐ सूरज बोल! क्‍या तुम ने ज़मीन के बे शुमार चक्कर काटने के बावजूद उस की कोई मिसाल देखी है? यह है मेरे प्यारे रसूले अकरम/#/#के प्यारे सहाबी का बे मिसाल कारनामा। हज़्र्त अब्दुल्लाह बिन्‌ हजश #£ क्रैश के एक खानदान '“बनू असद'' से उन का नसबी तअल्लुक॒ है। यह हज़रत उम्मुल मोमिनीन जैनब बिन्ते हजश##के भाई हैं। यह शुरू इस्लाम ही में ईमान की दौलत से माला माल हो गए थे और पहले हबशा फिर मदीना मुनव्वरा की दोनों हिजरतों के शर्फ से सरफराज़ होकर “'साहिबुल हिजरतैन'' का लक॒ब पाया। जंगे बद्र में इन्तहाई जाँ बाजी और सरफरोशी के जज़्बे से जंग की और सन ३ हिजरी को जंगे उहुद में कुफ़्फार से लड़ते हुए जामे शहादत नोश फ्रमाया। उन को एक करामत यह भी है कि यह बहुत ही “'मुस्तजाबुच्द- अवात' थे यअनी उन की दुआएँ बहुत ज़्यादा और बहुत ही जल्दी मकूबूल हुआ करती थीं। (अकमाल स 205 व असदुल गाबा जि4, स 34) नि ड़ हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍06/5 07॥#_।+॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/62/098099776_830॥9_॥0/9/% करामाते सहावा 82 209 मक्तवबा इमामे आजम क्रामत्‌ अनोखी शहादत: आप ने जंगे ड्हुद्‌ से एक दिन पहले यह दुआ मांगी कि या अल्लाह! मैं तुझे तेरी कसम देता हँ कि जब कफ्फारे मक्का से लड़ने के लिए कल मैदाने जंग में निकलूँ तो मेरे मुकाबले में ऐसा काफिर आए जो सख्त हमला करने वाला और इन्तहाई जंग जू हो और में उस से लड़ते हुए बराबर ज़द्भधम खाता रहूँ यहाँ तक कि वह मुझे कृत्ल कर दे और कुफ़्फार मेरा पेट फाड़ डालें और नाक, कान को काट कर मेरी सूरत बिगाड़ दें और मैं जब उसी हालत में कुयामत क दिन तेरे हुजूर खड़ा किया जाऊँ तो उस वक़्त तू मुझ से यह पूछे कि ऐ अब्दुल्लाह! किस वजह से और किस ने तेरी नाक और कान को काट डाला है? तो मैं यह जवाब में अर्ज़ करूँ कि ऐ अल्लाह! तेरे ओर तेरे रसूल के दुश्मनों ने तेरे रसूल के बारे में मुझे कृुतल करके मेरी नाक और कान को काट कर मेरी सूरत व शकल बिगाड़ दी है। मेरा यह जबाब सुन कर फिर ऐ मेरे अल्लाह तू सिर्फ इतना फ्रमा दे कि ऐ अब्दुल्लाह! तू सच कहता है। आप को यह दुआ हर्फ बहफ कबूल हुई, चुनान्वे हज़रत सअद बिन अबी वकास का बयान हे कि में ने ही उन की दुआ पर अमीन कही थी और में ने अपनी आँखों से देखा कि जंगे उहुद में क॒फ़्फार ने उन को शहीद करके उन के पेट को फाड़ डाला और उन की नाक, कान और दूसरे हिस्से काट कर एक थागे में पिरों दिया था और उसी हालत में आप हज़रत हमजा#8 के साथ एक ही कब्र में दफन किए गए। (कंजुल उम्माल जि०6 स०98व असदुलग़ाबा जि०उ स०3] वगैरा) तबसेरा: अल्लाहु अकबर! किस कदर उन शमए नुबुवत के परवानों को शौके शहादत था? इस जमाने में उसे कोई सोच भी नहीं सकता, क्‍योंकि ईमानी हरारत की बे हद कमी हो गई है, वरना हकीकत यह है। ब्न्नकून ब्ण्जी है ।॥॥ [) 57 4 .]] 8/5 (॥।१॥[॥| _ ण'! ॥] 0 ] |_ | |) 8 [५ 5८766 ५शा। एव्वा52८वागा6/ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830॥9_॥0/9/% करामाते राहावा >| (| व जवां छतागे आजम 2 - अकाल. ध्यान जमा, का शहादत # मतलुद् व पकग॒दे गॉपिन न पमाले गनीपत न किशवर कणशाई हस्त ब्रा बिन मालिक ४४ यह बहत ही नामवर सहाबी और हजर #॥/८क खादिम खास हजरत अनस बिन मालिक:४क 'भाई हैँ। बहुत ही बहादुर आओ निहायत ही जंगज और सरफराश म॒जारहिंद हैं। मस्लिमतुल कज़्जाब से जंग क वक़्त जिस बाग म॑ यह झट मुद्ई नुतुब॒त छुप कर अपनी फाजा की कमान कर रहा था उस बाग का फाटक किसी तरह फतह नहीं हा रहा था और वहाँ घमसान की जंग हो रही थी तो आप न मुसलमान मुजाहिदीन से फरमाया कि तुम लोग मुझे उठा कर बाग का दाबार के उस पार फंक दो। में अन्दर जा कर फाटक खोल दगा। चुनान्च मुसलमान मुजाहिदों ने उन को उठा कर दीवार के उस पार डाल दिया और उन्हों ने बिल्कल तनन्‍्हा दृश्मनों से लड़ते हए बाग का फाटक खाल दिया ओर इस्लामी फौज बाग म॑ दाखिल हा गई। यह वाकिआ हज़रत अबू बकर सिद्योक्‌ अकबर ४४£ की खिलाफत क॑ दौरान हुआ, मगर बाग का फाटक खोलने की जबरदस्त लड़ाई में हजरत बरा बिन मालिक:£४ क जिस्म पर तीर व तलवार ओर भालां क जख्म जब गिने गए तो अस्सी (80) से कुछ जायद जख्म थे, चुनान्चे उन के ण्लाज क लिए अमीर लश्कर हजरत खालिद बिन वलीद ४ को उस जगह एक महीने तक रूकना पड़ा। उन को इसी दिलेराना जाँ बाजियों की बिना पर हजरत उमर 5 अपनी खस्विलाफूत क जमान म॑ फोजों को सख्त हक्‍म फरमाते रहते थे कि “ख़बरदार! बरा बिन मालिक को कभी फौज का कमान्डर न बानाया जाए, वरना वह सारी कौम को हलाकत में डाल देंगे, क्योंबि वह अन्जाम से व॑ परवा होकर दुश्मनों की सफों में घुस जाते हैं। उन के बारे में हुजूर अकरम&/न इरशाद फ्रमाया कि “बहुत से ऐसे लोग हें जिनके बाल परागन्दा और वह गरदों गुबार में अटे हुए मैले कुचैले 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥70/0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62009099776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते राहावा (४7 2]] - मकक्‍तवा इमामे आज़म रहते है और लोग उन की परवा भी नहीं करते, मगर यह लोग अल्लाह तआला क दरबाः में इस कदर महबूब व मकबूल होते हैं कि अगर यह लोग किसी बात की कुसम खा लें तो अल्लाह तआला उन को कसम का पूरो फरमा दगा। और बरा बिन मालिक उन्हीं लागों म॑ से है। बहत हो खुश आवाज भी थे और बंहतरीन हदो ख़्वाँ थे (अरब शुत्रबानों का नग़मा थ) जिन के गीतों के नग़्मों पर ऊंट मस्त हो कर चला करते थ और शुतुर सवार भी मस्ती में रहा करते थे। उन को बहादुरी ओर जवांमर्दी के सिलसिले में यह रिवायत बहुत ही मडदहर हैँ कि इराक की लड़ाइयों में यह अपने भाई हजरत अनस बिन मालिक£#४के साथ दुश्मनों के एक किला के घेराव किए हुए थे जो “'हरीक'' में था। कफ़्फार गरम गरम जुंजीरों में लोहे के आंकड़े लगा कर किला की दीवार से मुसलमानों पर डालते थे और उन को आंकड़ों में फंसा कर अपनी तरफ खींच लेते थे। उन काफिरों ने हज़रत अनस बिन मालिक £9४ को भी आंकडों में फंसा लिया और खींचने लगे। जब हज़रत बरा बिन मालिक&£ ने यह मंज़र देखा तो तड़प कर उछले और किला की दीवार पर चढ़ कर जलती हुई जंजीर को पकड़ा और फिर उसी रस्सी को काट दिया जिस में जंजीर बन्धी हुई थी। इस लिए हज़रत अनस बिन मालिक की जान बच गई, मगर हजरत बरा बिन मालिक &% ने गरम जंजीर को जो हाथ से पकड़ा तो उन की हथेलियों का पूरा गोश्त जल गया और सफेद हड्डियाँ नज़र आ रही थीं। सन्‌ 20 हिजरी जंगे तसतर में एक सौ काफिरों का अपनी तलवार से क॒त्ल करके ख़ुद भी उरूसे शहादत से हमकनार हो गए। (असदुल ग़ाबा जि०4, स०।73उ व असाबा जि०, स०43) क्रामत्‌ फतह व शहादत एक साथ: उन की एक खास करामत दुआओं की मक्‌बूलियत है। मन्कूल है कि जंगे ““तसतर'' में जब लम्बी जंग के बावजूद मुसलमानों को फतह नसीब नहीं हुई तो मुजाहिदीने इस्लाम 5८664 ५शशंगर ए752८वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥70[/0/9५ है [2 5:॥/5/0०09५86.0/70/06/[ वांध्रव्वा6 बषांध् शिवा करामाते राहावा ४४ बकिक! 4 ६ - मगंवंतवबा इमागे आजम अर ७ रण आज न ++ 6७००-०० ०७०० > का बल नकन -नपहटाना- "जहा 8 अकन्‍«ब»--अबब»। -क तरन-ओमण-- -अ- जाअमननन-अकाकामम- “कक. ने जमा हो कर उन से गजारिश को कि आप आपने रब की कमम दे कर फतह की दुआ मांगिए। उस बचत आप ने इस तरह दुआ मांगी कि या अल्लाह! में तुझ की तैरी ही कुसम दे कर दुआ करता हूँ कि त कुफ़्फार क बाज हम लागा क हाथा मे द द ओर मुझ अपन नबी करीम/%४४#क पास पहुंचा दें। फोरन ही आप की दुआ मकबुल हो गई और इस्लामी लश्कर फ्तहयाब हो गया और क॒फ़्फार मुसलमानों क॑ हाथों में गिरफ्तार हो गए और आप उसी लड़ाई में शहादत से सरफराज हां कर हुजूर रहमते आलम/&/#क दरबार म॑ पहंच गए। (असाबा जि०, स०46) हजरत अबू हरैरा ४४ यमन क कूबीला दोस से उन का खानदानी तअल्लुक्‌ है। ज़मानए जाहिलियत में उन का नाम “अबदे शमस'' था, मगर जब यह सन्‌ 7हिजरी में जंगे खैबर के बाद दामने इस्लाम में आ गए तो हजूरे अकरम /#&४# ने उन का नाम अब्दुल्लाह या अब्दुररहमान रख दिया। एक दिन हुजूर/#&% ने उन की आसतीन में एक बिल्ली देखी तो आप ने उन को ०.» ४/ ४(ऐ बिल्ली के बाप) कह कर पुकारा। उसी दिन से उन का लकब इस कदर मशहूर हो गया कि लोग उन का असली नाम ही भूल गए। यह बहुत ही इबादत गुजार इन्तेहाई मुत्तकी और परहेजगार सहाबी हैं। हज़रत अबू दरदा £# का बयान है कि यह रोज़ाना एक हज़ार रकअत नमाजे नफल पढ़ा करते थे। आठ सौ सहाबा और ताबईन आप के शागिर्द हैं। आप ने पाँच हजार तीन सौ चौहत्तर हदीसें रिवायत की हैं जिन में से चार सो छियालीस बुखारी शरीफ में हैं। सन ५९ हिजरी में अठहत्तर साल की उम्र पा कर मदीना मुनव्वरा में वफात पाई और जन्नतुल बकौअ में मदफून हुए। (अकमाल स०622 व कुसतलानी जि०।, स०22 वगैरा) 5८664 ५शशंगर ए7520वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0/]0/9५ [[[05:/9/079५8.0/0/0895/(0708/08/76_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा (२ 2]3 मकतवा ड्मामे आज़म क्रामत्‌ करामत वाली थैली: उन को हुजरे अकरम/४5/ने चन्द छोहारे अता फरमाए और हुक्म दिया कि “उन को अपनी थैली मे रख लो और जब जी चाहे तुम उस में से हाथ डाल कर निकाल लो और खू खाओ, दूसरों को खिलाओ, मगर ख़बर दार उस थैली को कभी खाली कर के मत झाड़ना। यह छोहारे कभी ख़त्म न होंगे।'' सुब्हानल्लाह! यह थेली ऐसी बाबरकत हो गई कि तीस बरस तक हज़रत अबू हुरैरा£# उस थैली में से छोहारे निकाल निकाल कर खाते रहे और लोगों को खिलाते रहे बल्कि कई मन उस में से खैरात भी कर चुके, मगर छोहारे खत्म नहीं हुए, यहाँ तक कि हज़रत उस्मान गनी ः४ की शहादत के दिन हंगामों की भीड़ भाड़ में वह थेली कमर से कट कर कहीं गिर पड़ी जिस का उम्र भर हज़रत अबू हुरैरा ##को बे इन्तहा सदमा और रंज व गम रहा। रास्तों में रोते हुए और निहायत रिक्कृत अंगेज और दर्द भरे लेहजे में यह शेअर पढ़ते हुए घुमते फिरते थे:- 3्म+ ल्|ी [53 री ४७ गे... 3५०४ ८०४) | (५3 ४-१ (/४-- (यानी सब को आज एक ही तो ग़म है मगर मुझे दो गम हैं। एक गम है थैली के गुम होने का, दूसरा ग़म हज़रत अमीरूल मोमिनीन उस्मान गनीः£ की शहादत का) (अलकलामुल मबीन) हज़रत उबाद बिन ब॒श्र ## यह मदीना मुनव्वरा के रहने वाले अन्सारी हैं जो खानदान ''बनी अब्दुल असहल'' के एक बहुत ही नामवर शख्स हैं। हुजूर /#&को हिजरत से पहले ही हजरत मुसअब बिन उमैर&9£ के हाथ पर इस्लाम कबूल किया। बहुत बहादुरी और जॉबाज़ सहाबी हें। जंगे बद्र और जंगे उह॒द वगैरा की तमाम लड़ाइयों में बड़ी जुरगाअत व बहादुरी के साथ कफ़्फार से जंग किए हुए। '“कअब बिन अशरफ' 'यहदी जो हुजूर /#&का बदतरीन दुश्मन न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209४09776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ह 2]4 मकतवा इमामे आजम था आप हज़रत मुहम्मद बिन मुस्लेमा व अबू अबस था आप हज़रत मुहम्मद बिन मुस्लेमा व अब अबस बिन जबर व व अबू नाइला वग्ैरा चन्द अनसारियों को अपने साथ ले कर उस के मकान पर गए और उस को कत्ल कर डाला। बड़े सहाबा में आप का शुमार है। हज़रत आइशा सिद्योका ##का बयान है कि हुजरे अकरमः/&/४ने हजरत उबाद बिन बशर ##की आवाज़ सुनी तो फरमाया कि अल्लाह तआला हज़रत उबाद बिन बशर पर अपनी रहमत नाजिल फरमाए। सन १२ हिजरी को जंगे यमामा में शहीद हो गए, जब कि आप की उम्र शरीफ सिर्फ पैंतालिस (45) साल की थी। (अकमाल स०605 व असदुल ग़ाबा जि०ड, स०400) फकरमात लाठी रोशन होगई: एक मर्तबा यह और हजरत उसैद बिन हजीर £/दोनों दरबारे रिसालत से काफी रात गुजरने के बाद अपने घरों को रवाना हुए। अंधेरी रात में जब रास्ता नज़र नहीं आया तो अचानक उन को लाठी टार्च को तरह रोशन हो गई और यह दोनों उस की रोशनी में चलते रहे जब दोनों का रास्ता अलग अलग हो गया तो हजरत उसैद बिन हज़ीर#£ को लाठी भी रोशन हो गई, और दोनों रोशनी में अपने अपने घर पहुँच गए। . (असदुल ग़ाबा जि०्ड, स०404 ) करामत वाला ख़्वाब: जंगे यमामा में जब कि अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दोक &£ का लश्कर मुस्लिमतुल कज्जाब की फोज़ों के साथ मसरूफे जंग था और मुरतदीन बहुत हो बड़ी तअदाद में जमा हो कर बहुत सख्त जंग कर रहे थे। हज़रत उबाद बिन बशर ##ने फ्रमाया कि में ने रात में एक ख़्वाब देखा है कि मेरे लिए आसमान के दरवाज़े खोल दिए गए और जब मैं आसमान में दाखिल हो गया तो दरवाज़े बन्द कर दिए गए। मेरे इस ख़्वाब की तअबीर यही है कि इन्शाअल्लाह तआला मुझे शहादत नसीब होगी। चुनान्चे हज़रत अबू सईद खुदरी#४ का बयान है कि जंगे यमामा के दिन हजरत उबाद 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0[/0/9५ ॥0[05:॥/8/0798.0/5/06७68/5/6)/808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहावा ८८ 2]5 मकक्‍तवा इमामे आजम बिन बशर जोर ज़ोर से यह ऐलान कर रहे थे कि मोमिनीन मेरे पास आजाड उस आवाज़ पर चार सो अन्सारी उन के पास जमा हो गए। फिर आप हज़रत अबू दुजाना और हज़रत बरा बिन मालिक># को साथ ल कर उस बाग़ के दरवाज़े पर हमला आवर हुए जहाँ से मुस्लिमतुल कज़्जाब अपनी फौजों की कमान कर रहा था। उस हमला म॑ इन्तहा३ सख्त लड़ाई हुई, यहाँ तक कि हज़रत उबाद बिन बशर£ शहांद हां गए। उन क चेहरे पर तलवारों के ज़छ़म इस कदर ज़्यादा लगे थ कि कोई उन को पहचान न सका। उनके बदन मुवार्क पर एक आस निशान था, जिसको देख कर लोगों ने पहचाना कि यह हजरत उबाद बिन बशर&£ की लाश है। (इब्ने सअद जि०्ड, स०44) तबसरा: अल्लाहु अकबर! जिहाद में यह जोशे ईमानी और यह जज़्बर सरफरांशी, मुश्किल ही से उस की मिसाल मिलेगी। इस किसम को जा निसारियाँ सिर्फ सहाबा-ए-किराम और अहले ईमान मुजाहिदीन इस्लाम ही का तरीका है। सहाबा-ए-किराम की उन्हीं कूरबानियों का सदका है कि आज तमाम दुनिया में इस्लाम की रोशनी फंली हुई है। काश! दुश्मनाने सहाबा रवाफिज व झ़ावारिज उन चमकतो हुईं हिदायत दने वाली रवायतों से ईमान का नूर हासिल करते। हज़रत उसैद बित अबी अयास अदव॒#£ हज़रत सारिया बिन जनीम रजियल्लाहु अन्हु जिन को हज़रत उमर ४४ ने मदीना मुनव्वरा में मस्जिदे नबवी के मिंबर से पुकारा था और वह निहाबन्द में थे। यह उन्हीं क॑ भतीजे हैं, यह शायर थे और हजूर नबी करीम अलैहिस्सलात वस्सलाम की बुराई में अश्आर कहा करते थे। फतहे मक्का के दिन भाग कर ताइफ चले गए थे। यह उन इश्तिहारी मुजरिमों में से थे जिन क॑ बारे में यह फ्रमाने नबवी था कि यह जहाँ और जिस हाल में मिलें कृत्ल कर दिए जाएँ। इत्तेफाक्‌ से हज़रत सारिया:% का ताइफ में गुज़र हुआ। जब मुलाकात हुई तो आप ने असीद बिन अबी अयास को बताया कि अगर तुम बारगाह रिसालत 5 5८664 शशंगर ए752०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209४099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 2९ 2]60 मक्तबा छगागे आजम में हाज़िर हो कर इस्लाम कबूल कर लो तो तुम्हारी जान में हाज़िर हो कर इस्लाम कबूल कर लो तो तम्हारी जान बच जाएगी।. उसौैद यह सुन का ताइफ से अपने मकान पर आए और कर्ता पहन हे ओर अमामा बांध कर खिदमते अकदस में हाजिर हो | [ए और अज् किया कि क्‍या आप ने उसैद बिन अयास का म् न जाएज फरमा दिया है? आप ने फरमाया कि हाँ! उन्हों ने आर्ज किया कि अगर व्रह मुसलमान हो कर आप की ख़िदमते अकदस में हाजिर हो जाए, तो क्या आप उस का कूसूर मआफ फ्रमा देंगे? इरशाद हआ कि हाँ! यह सुन कर उन्होंने अपना हाथ हुजूरे अकरम ८४४ के हाथ अकदस में दे कर कलमा पढ़ा और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह! उसेद बिन अबी अयास मैं ही हूँ हुजूरे अकरम/४“ने फोरन ही णक आदमी को भेज कर ऐलान करा दिया कि उसैद बिन अबी अयास मुसलमान हां गए हैं और सरकारे रिसालत ने उन को > यन का _ग्वाना अता फरना दिया है। फिर उन्हों ने हुजूरे अकुदस/#/“की तझञराफ मे एक कूसीदा पढ़ा। (असदुल ग़ाबा जि०4 , स०89 ) क्रामत्‌ चेहरा से घर रोशन: जब यह मुसलमान हो गए तो हुजूरे अनवर “ने होकर करम करते हुए उन के चेहरे और सीने पर अपना हाथ फरा जिस से उन को यह करामत नसीब हो गई कि यह जब किसी अंधेरे घर में कृदम मुबारक रखते थे तो उस घर में उन के नूरानी चहरे को राशनी से उजाला हो जाया करता था। (कजुल उम्माल जि०5, स०255) तबसेरा:-सुब्हानल्लाह! जब तक सरकार रहमते मदार/४#उन से नाराज़ रहे उन का ख़ून मुबाह था और कहीं उन का ठिकाना नहीं था। भागते लक फिरते थे और जान की अमान नहीं मिलती थी और जब 'हमतुल्लिल आलमीन/###उन से खुश हो गए तो उन को दुनिया में करामत ओर आखिरत में जन्नत दोनों जहाँ की दौलत मिल गई। यह सच है: 6[05:/.076/5फ॥॥# | फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते राहावा 8 2]7 मकतवा इमामे आज़म जिस से तुम रूठो, वह सर गशता दुनिया हो जाए... जिस को तुम चाहो, वह कृतरा हो तो दरिया हो जाए हज़रत बश्र बिन मआविया बकाई #9 यह अपनी कोम के वफद में अपने वालिद मआविया बिन सोर ४? के साथ बारगाहे रिसालत में हाजिर हुए। उन के वालिद ने उन से फरमा दिया था कि तुम बारगाहे रिसालत में तीन बातों के सिवा कुछ न कहना () अस्सलामु अलेक या रसलल्लाह (2) या रसूलल्लाह! हम इस लिए हाज़िर हुए हैं ताकि हम इस्लाम कुबूल करके आप के फरमाबरदार बन जाएँ (3) आप हमारे लिए दुआ फ्रमाएँ। उन को उन तान बाता का सुन कर हुजूर रहमते आलम /#/ने खुश होकर मुहब्बत म॑ उन के चेहरे और सर पर हाथ मुबारक फेरा और उन के लिए दुआ फरमाइ। (असदुल ग़ाबा जि०१, स०।90) करामत्‌ हाथ हर मरज॒ की दवा: हुजूरे अकृदस£#ने जैसे ही अपना दस्ते मुबारक फेरा उन को दो करामतें मिल गई। एक तो यह कि हमेशा के लिए उन का चेहरा रोशन हो गया और दूसरी करामत यह मिली कि यह जिस बीमार पर अपना हाथ फेर देते फौरन ही शिफायाब हो जाया करता था। (कंजुल उम्माल जि०5,स०267 मतबूआ हैदराबाद) हजरत बशर&9 के साहबज़ादे ''मुहम्मद बिन बशर'' फख़र के तौर पर इस बारे में अशआर पढ़ा करते थे जिसका पहला शेअर यह हे:- ०७ तब (यअनी मेरे बाप वह हैँ जिन के सर पर हुजूर नबी करीमए#/ने हाथ फेर कर खैरों बरकत को दुआ फ्रमाई है।) (असदुल गाबा जि०4 , स०90) [05:/.076/50॥॥#_|ात।फरावा५ ४ /ह2 न होम की ड निकी दल लकी मम र्फ् 99॥8 4५४१ ० ता कक 7रामाते सहावा (४४१ 9 (]८ हजरत उसामा बिन जैद #४ यह हुजूरे अकरम/&/“के आज़ाद किये हुए गुलाम मुँह बोले बेटे हज़रत “जैद बिन हारिसा''%£ के बेटे हैं। उन की माँ की कुन्नियत '“उम्मे ऐएमन'' और नाम “'बरका' था और हज़रत उसामा :»४ का लकब “'महबूबे रसूल'' है। वफाते अकृदस के वक्‍त उन की उग्र सिर्फ बीस साल की थी मगर हजूर /#&#ने उन को उस लश्कर का कमान्डर बनाया था जो रूमियों से जंग के लिए जा रहा था और जिस लश्कर में तमाम बड़े बड़े सहाबा-ए- किराम मौजद थे। लेकिन हुजूर /४४:को वफाते अकृद्स की वजह से यह लश्कर वापस आ गया। मगर फिर अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्यीक्‌ ££ ने दोबारा इस लश्कर को भेजा जो फ्तहयाब हो कर आया। चूँकि यह ''महबबे रसूल ' थे, इसी लिए अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर %9£ उन का बे हद इकराम व एहतराम फरमाते थे। जब आप ने अपने दोरे खिलाफत में मुजाहिदीन की सैलरी मुकूर्रर फ्रमाइ तो उन की तनख्वाह साढ़े तीन हज़ार दिरहम मुक्रर फ्रमाई और अपने बेटे हज़रत अब्दुल्लाह ४7 को तनख़्वाह सिर्फ तीन हज़ार द्रिहम मुक्‌रर फ्रमाई। बेटे ने अर्ज किया कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! आप ने हज़रत उसामा की तन्ख्वाह मुझ से ज़्यादा क्‍यों मुकरर फ्रमाई जब कि वह किसी जिहाद में भी मुझ से आगे नहीं रहे उस के जवाब में अमीरूल मोमिनीन + फरमाया इस लिए ? उसामा क॑ बाप “जैद'' तुम्हारे बाप ““उमर''-से ज्यादा रसूले ख़ुदा/£#के महबूब थे और ''उसामा'' तुम से ज़्यादा हुजूर नबी-ए-करीम /४%#के महबूब हैं। (कजुल उम्माल जि०5, स०24। व अकमाल स०505) बे अदबी करने वाले काफिर हो गए: हुजूरे अकरम##४ने हज्जतुल विदाअ में तवाफे ज़ियारत को इस लिए कुछ लेट कर दिया कि हजरत उसामा &४ किसी जरूरत की वजह से कहीं चले गए थे। थोड़ी देर के बाद हज़रत उसामा वापस आए। लोगों ने देखा कि चिपटी नाक और सका -ममभ मन." इमामे आजम न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवयगा6/ [[05://.क्‍06/5 ७7॥॥_।॥0 0/9/५ | [[05:/9/079५8.0/0/089|5/(9[08/08/706_30॥9_॥0/9/%५ मकतवा इमामे आजम करामाते सहावा ३ काले रंग का एक लड़का है, तो यमन को कछ जात 4 हिद्याप् हु हिकारत के अन्दाज़ म॑ यह कहा कि क्‍या उसी चिपटी नाक वाले काले लड़के की वजह से आज हम लोगों को हुजूर/£#ने तवाफे जियारत से रोक रखा था? इस तरह उन यमन वालों ने हजरत उसामा ९ की बे अदबा का [हज़रत उरवा बिन जुबैर कहते हैं कि उस बे अदबी करने ही का वबाल था कि हुजूरे अकृदस/&“की वफात के बाद यमन के यह बे अदबा करने वाल लाग काफिर व मुरतद हो गए और हज़रत अबू बकर सिद्यौक ४£# की फोजों ने उन लोगों से जिहाद किया, तो कछ उन में से तोबा करके फिर मुसलमान होगए और क॒छ कत्ल हो गए। (कजुल उम्माल जि०5, स०24 3) हजरत नाबगा रजियल्लाहु अन्हु ““नाबग्ा'" उन का लकृब है, उन के नाम में इख््तिलाफ है। बाज उन का नाम “केस बिन अब्दुल्लाह'' और बाज ने “हब्बान बिन कैस'' बताया है। यह जमाना जाहिलियत में बहुत अच्छे शायर थे, मगर तीस बरस क॑ बाद शेअर गोई बिल्कल छोड़ दी। उस के बाद जब दोबारा शोअर कहना शुरू किया तो इस कदर बलन्द मर्तबा और बाकमाल शायर हो गए कि उन के जमाने वालो ने उन को “'नाबगा'' (बहुत ही माहिर) का लकब दे दिया। एक सो अस्सी बरस की उम्र पाई। (हाशिया कंजुल उम्माल जि०6, स०244 मतबूआ हैदराबाद) 'क्रामत्‌ सौ बरस तक दाँत सलामतः उन्हों ने हुजरे अकरम/##को चन्द अशआर सुनाए जो आप को बहुत ही ज़्यादा पसन्द आए। आप ने त्रुश हो कर उन को यह दुआ दी। “अल्लाह तआला तेरे मुंह को न तोड़े" इस दुआए नबवी की बदोलत उन को यह करामत मिली कि तमाम उम्र उन के दाँत सलामत रहे और ओले को तरह साफ और चमकदार ही रहे। हज़रत अबू यअला &9 कहते हैं कि मैं ने हज़रत ... ७३... ८७-यथ। ...५९३.२७७७७"०हिििकि 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/%५ नाव 28 को उस वक़्त देखा जब कि वह सो बरस के हो गए व मगर उन क तमाम दाँत सलामत थे। (बैहकी व अस्ताबा जि०३, स०539) हज़रत अम्र बिन तुफुल दोसी ££ यह अपने बाप हज़रत तुफैल #£ के साथ- मदीना मुनव्वरा में आकर इस्लाम से मुशर्रफ हुए और तमाम उम्र मदीना मुनव्वरा ही में रहे। अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दीक &£ की म॑ जब कि मुरतदीन से जिहाद के लिए मुसलमानों का लश्कर मदीना मुनव्वरा से रवाना हुआ, तो यह दोनों बाप बेटे भी उस लश्कर में शामिल हो कर जिहाद के लिए चल पड़े। चुनान्चे हज़रत तुफैल # _यमामा में शहीद हो गए और हज़रत अम्र बिन तुफेल#$ का एक हाथ कट गया और सख्त तौर पर जख्मी हो गए लेकिन सिहतयाब होगए। फिर जब हज़रत उमर #£ के दौरे स्थिलाफ्‌त में जंग यरमूक की लड़ाई दर पेश हुई तो हज़रत अम्र बिन तुफेल %% उस जिहाद में मुजाहिदाना शान के साथ गए और क॒फ़्फार से लड़ते हुए जामे शहादत से सैराब हुए। (असदुल ग़ाबा जि०4, स०45) कूरामत्‌ _ नूरानी कोड़ा: हुजूरे अनवर/&#ने उन को घोड़ा हांकने के कोड़े के बारे में दुआ फरमा दी, तो उन का कोड़ा रात के अंधेरे में इस तरह रोशन हो जाया करता था कि यह उसी की रोशनी में रातों को चलते फिरते थे। (कंजुल उम्माल जि०6, स०60 मतबूआ हैदराबाद ) हज़रत अम्र बिन मुर्र जहनी ४४ यह ज़माना जाहिलियत में हज करने गए तो मक्का मुकर्रमा में एक ख्वाब देखा और एक गैबी आवाज सुनी जिस में उन को नबी आखिरूज़्जमा #&# पर ईमान लाने पर उभारा गया। यह उस ख़्वाब से ब॑ हद मुतअस्सिर हुए और नबी आखिएरूज्जमा/#के आने के इन्तेजार नि ड़ हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.क्‍76/5 07॥॥/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/62/09809776_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहावा 82 हैक मकतबा इमामे आज़म में रहे, चुनान्चे हुजूरे अकृदस/&#ने अपनी नुब॒बत का ऐलान फरमाया तो उन्हों ने बारगाहे नुबुवत में हाजिर होकर इस्लाम कबूल कर लिया और फिर अपनी कौम में आकर इस्लाम की तबलीग़ करने लगे और उन को कौम के बहुत से लोगों ने इस्लाम कूबूल कर लिया। फिर उन मुसलमानों को साथ लेकर बारगाहे नुबुवत में दोबारा हाज़िर हुए, बहुत ही बहादुर मुजाहिद भी थे और अकसर इस्लामी जिहादों में डट कर कुफ़्फार से जंग भी को। आख़िर में मदीना मुनव्वरा से मुल्क शाम में जाकर बस गये और हज़रत अमीरे मआविया #9 के दौरे हुकमत में वफात पाई।(अकमाल स०607 व कंजुल उम्माल जि०46 स०5) करामत्‌ दुश्मन बलाओं में गिरफ्तार: उन की एक करामत यह है कि मुस्तजाबुद् अवात थे, यअनी उन की दुआएं बहुत ज़्यादा और बहुत जल्द मकबूल हुआ करती थीं। चुनान्वे मनकल है कि जब अपनी कौम को इस्लाम की दअवत देने के लिए तशरीफ ले गए तो एक शख्स ने उन की बहुत ज़्यादा बुराई और मज़म्मत की और उन की शान मे तोहीन वाले अलफाज़ बकने लगा और आप को झूठा कहने लगा। उस वक्‍त आप ने जख्मी दिल के साथ इस तरह दुआ मांगी। या अल्लाह! उस की ज़िन्दगी को तलख बना दे और उस की जबान को गुंगी और उस की आँखों को अंधी कर दे। आप की दुआ का यह असर हुआ कि यह शख्स गुंगा और अंधा हो गया और इस कदर बुढ़ा हो गया कि उस के दाँत टूट गए और जबान के बेकार हो जाने से उस को किसी चीज़ का मज़ा महसूस नहीं होता था। हज़रत जैद बिन खारिजा अन्सारी £४ यह अन्सारी हैं और उन का वतन मदीना मुनव्वरा है। उन्हों ने कबीला बनी हारिस बनी ख़ज़रज में अपना घर बना लिया था। यह न कं हद 56व7606 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.क्‍76/5 07॥#/_।॥0 0/9/५ | [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा (८४ 22052, मवतबा इमामे आजम हज़रत उस्मान%£ की ख्वलाफत के दौरान आप ने दुनिया से रिहलत फ्रमाई। (बेहकी असदुल ग़ाबा जि०2, स०227) क्रामत्‌ मौत के बाद बात: हजरत नुअमान बिन बशर£& का बयान हे कि हजरत जैद बिन खारिजा सहाबी ££ मदीना मुनव्वरा के बाज़ रास्तों में जुहर व असर क बीच चले जा रहे थे कि अचानक गिर पड़े और उन को वफात हो गई। लोग उन्हें उठा कर मदीना मुनव्बरा लाए ओर उन को लिटा कर कमबल आओगढ़ा दिया। जब मग्रिब व इशा के बीच कुछ औरतों ने रोना शुरू किया तो कमबल क अन्दर से आवाज़ आई। “ऐ रोने वालियो! खामूश रहो।'' यह आवाज़ सुन कर लोगों ने उन के चेहरे से कमबल हटाया तो वह बेहद दर्द मन्दी से निहायत ही बलन्द आवाज से कहने लगे। हजरत मुहम्मद रसूलुल्लाह&#नबीए उम्मी खातिमुल नबीईन हैं ओर यह बात अल्लाह तआला की किताब में है।'' इतना कहकर कुछ देर तक बिल्कुल ही खामूश रहे, फिर बलन्द आवाज़ से यह फ्रमाया। सच कहा, सच कहा अबू बकर सिद्दीक “8 ने जो नबीए अकरम 7>के खुलीफा हैं, क॒वी हैं, अमीन हैं। जिस्म के हिसाब से कमज़ोर थे, लेकिन अल्लाह तआला के काम में क्‌वी थं। यह बात अल्लाह तआला की पहली किताबों में हैं।'' इतना फरमान के बाद फिर उन की जबान बन्द हो गई। और थोड़ी देर तक बिल्कुल खामूृश रहे फिर उन की जबान पर यह कलमात जारी हो गए और वह जोर जोर से बोलने लगे। ''सच कहा सच कहा बीच क स़ालीफा अल्लाह तआला के बन्दे अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर बिन ख़त्ताब ४2 ने जो अल्लह तआला के बारे म॑ किसी मलामत करने वाले की मलामत को खातिर में नहीं लाते थे। न उस की कोई परवा करते थे और वह लोगों को इस बात से रोकते थे कि कोई ताकृतवर किसी कमज़ोर को खा जाए और यह बात ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ ॥005:॥/8/079५8.0/6/0668/5/6)0808/76_9५॥8 _॥0/8/9 करामाते सहावा ४7 2243 मकतवा इमामे आज़म अल्लाह तआला की पहली किताबों में लिख गीहुईहै।।...रररः़ इस क बाद फिर वह थोड़ी देर तक खामृश रहे, फिर उन की ज़बान पर यह कलमात जारी हो गए और जोर जोर से बोलने लगे। . सच कहा सच कहा हजरत उस्मान गनी :४£४ ने जो अमीरूल मोमिनीन हैं और मोमिनों पर रहम फरमाने वाले हैं। दो बातें गुजर गई और चार बाकी है जो यह हें। ]:- लोगों में इखितलाफ हो जाएगा और उन के लिए कोई निज़ाम न रह जाए गा। 2:- सब आरतें रोने लगेंगी और उन की परदा दरी हो जाएण्गी। उ:- कृयामत करीब हो जाएगी। 4:- बाज़ आदमी बाज को खा जाएगा। इस के बाद उन की जबान बिल्कुल बन्द हो गई। (तबरानी वल बदाया वन्निहाया जि०2, स०56 व असदुल गाबा जि०2, स०227) हज़्र्त राफिअ बिच खदीज ££ उन की कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह है और शजरए नसब यह हे। राफिअ बिन ख़ुदीज बिन अदी बिन जेद बिन जसम बिन हारिस बिन ख़ुज़रज बिन अमर बिन मालिक बिन औस। यह अन्सारी हैं और उन का वतन मदीना मुनव्वरा है। यह जंगे बद्र में कुफ़्फार से लड़ने के लिए आए उन को कम उम्री की वजह से हजूरे अकृदस/&#ने लश्कर में शामिल करने से इन्कार कर दिया। लेकिन जंगे उहुद में इस्लामी फौज में शामिल कर लिए गए और ख़ूब जम कर कुफ़्फार से लड़ते रहे। फिर खंदक वगैरा अकसर लड़ाइयों में यह जेहाद किए। उम्र भर मदीना मुनव्वरा ही में रहे ओर इस्लामी लड़ाइयों में डट कर और कफन बरदोश हो कर काफिरों से लड़ते रहे और अपनी कौम के सरदार और मुखिया भी रहे। सन 73 हिजरी या सन 74 हिजरी में छियासी बरस की उम्र पाकर मदीना मुनव्वरा में वफात पाई। (अकमाल स०594 व कंजुल उम्माल जि०6 स 5 व असदुल गाबा जि2, स 54) 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा #£ 224 मकतवा इमामे आज़म करामत्‌ बरसों गले में तीर चुभा रहा: सन्‌ उ हिजरी में जंगे उहद में कुफ़्फार ने आप के गले पर तीर मारा और यह तीर आप के गले में चुभ गया। उन के चचा उन को हुजूरे अकरम/&/#की स्क्िदमते अकदस में लाए। आप ने इरशाद फ्रमाया कि अगर तुम्हारी ख्वाहिश हो तो हम उस तीर को निकाल दें और अगर तुम को शहादत की तमन्ना हो तो तुम उस तीर को न निकलवाओ। तुम जब भी और जहाँ कहीं भी वफात पाओगे, शहीदों की सफ में तुम्हारा शुमार होगा। उन्हों ने शहादत को आरजू में तीर निकलवाना पसन्द नहीं किया और उसी हालत में सत्तर बरस तक जिन्दा रहे और जिन्दगी के तमाम मअमूलात पूरे करते रहे, यहाँ तक लड़ाइयों में कुफ़्फार से जंग भी करते रहे और उन को किसी किस्म की उस तीर की वजह से तकलीफ भी नहीं होती थी, लेकिन सत्तर (70) बरस की मुद्दत के. बाद सन ७३ हिजरी में तीर का यह ज़र्ूम ख़ुद बख़ुद फटगया और उसी जख्म की हालत में उनका विसाल हो गया। बिला शुबहा यह उन को बड़ी करामत है जो बहुत ज़्यादा मशहूर है। (कजुल उम्माल व हाशिया कंजुल उम्माल जि०46 स०5 व असदुल ग़्ाबा जि०2, स०54) हज़्रत्‌ मुहम्मद बिन साबित बिन कैस ४ हजरत मुहम्मद बिन साबित बिन कैस#? जब अपनी वालिदा जमीला बिन्ते अब्दुल्लाह बिन उबै के पेट में थे तो उन के वालिद ने उन को वालिदा को तलाक्‌ दे दी। उन की वालिदा ने गुस्सा में उन की पैदाइश के बाद यह कसम खाली कि मैं इस बच्चे को हरगिज हरगिज दूध नहीं पिलाऊँगी। उस का बाप उस को दूध पिलाने का इन्तजाम करे। हज़रत साबित बिन कैस %$ उस बच्चे को एक कपड़े में लपेट राकनननन कक कक न कक न न कक कक र कक क कन रन +- क कक न कवर कक. बरस ३ ३ ३ क्-स्फ्जफ----._त॥-त7मन. नम: -<५०५०००००००-००-परर 3 नर सन॒ ककस्‍्ऊमनक रस न" 5» » कं «न +या-5नन नम थक ऊन + मम कर व«_स सम कक + क + ++म «मनन जज की च््ख 3” 3 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05://.06/5 077 |॥ताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा £/(४ 2724 मकक्‍तवा इमामे आज़म आलमाः#ने उस बच्चे को अपने गोद में लेकर पहले अपना मक्‌द्दस लुआबे दहन (थुक) उस बच्चे क मुंह मं डाला। फिर अजवा खुजूर चबा कर उस बच्चे के मुह में डाला और ''मुहम्मद'' नाम रखा और इरशाद फरमाया कि उस को घर ले जाओ अल्लाह तआला इस बच्चे को रिज़्क्‌ देने वाला है। फकरामत्‌ बच्चे को दुध केसे मिला: हज़रत साबित बिन कुस&£ का गांद म॑ लिए हुए किसी दूध पिलाने वाली औरत की तलाश में घूम रह थ मगर कोई दूध पिलाने वाली औरत नहीं मिली। यह उसी फिक्र में हेरान व परेशान फिर रह थे कि अचानक एक अरबी औरत उन से मिली और पूछा कि साबित बिन केस कौन शख्स हैं? और उन से कहाँ मुलाकात होंगी? उन्हों ने पूछा! तुम को साबित बिन कस स॑ क्‍या काम हं? आरत ने कहा कि म॑ ने कल रात यह ख़्वाव दखा कि मे साबित बिन कंस के बच्चे को दध पिला रही हँ। यह सन कर हज़रत साबित बिन कस 52 ने फरमाया कि साबित बिन कंस में ही हँ और मेरा लड़का “मुहम्मद यही है जो मरी गोद में है। औरत ने फौरन बच्चे को गांद म॑ ले लिया और दूध पिलाने लगी। मुहम्मद विन साबित बिन कुस££ सन्‌ 25 हिजरी म॑ं जंग हुर्णा कु दिन मदीना मुनव्वरा में यजीद बिन मआविया की मनहस फौजों क॑ हाथ से शहीद हो गए। (कजुल उम्माल व हाशिया क॑जुल उम्माल जि०46 व असदुल गाबा जि०4, स०3उ3) हजरत कृतादा बिन मलहान #: क्रामत्‌ चेहरा आइना बन गया: हयान बिन उमैर#£का बयान है कि हजूरे अनवर&5#ने हज़रत कृतादा बिन मलहान 59 के चेहरे पर एक्क मर्तबा 5८694 ५शशंगर ए752०वा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0/]0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_830॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४7? 220 मकक्‍तवा डमामे आजम ह»०-->->--++++ल_++33%-++++++++++++++ 4 -++-_+++-++++-++_+-_-++-+-35+33+++++3++-+3332-++333+333433333+3+++++++++++----:े--५७७७७७५ मम मन++-ननन++++++++-६_२7३7 7 ६७ 5 अपना हाथ मुबारक फेरा। उस के बाद उन को यह करामत मिल गई कि यह बहुत ही बूढ़े हो चुके थे और उन क॑ बदन के हर हिस्से में कमजोरी के आसार जाहिर थे। लेकिन उन के चेहरे पर बदस्तृर जवानी की खूबसूरती बाकी थी और उन का चेहरा इस कदर चमकता था कि म॑ उन की वफात के वक्त उन की ख्त्रिदमत में हाजिर हुआ, तो उस वक़्त एक औरत उन के सामने से गुज़री। उस वक़्त में ने उस औरत के अक्स उन के चेहरे में इस तरह देख लिया, गोया .मैं आइना में उस का चेहरा देख रहा हूँ। (असाबा जि०3, स०225) हज़रत मआविया बिन मकुरन ££ उन के वालिद के नाम में इख्तिलाफ है। कुछ लोगों ने उन के वालिद का नाम “मआविया''और बाज ने '“मकरन'' लिखा है इसी तरह उन के कूबीला के नाम में भी इख्तिलाफ है कि यह “मजनी'"' या ' लंसी''हैं। हज़रत अबू उमर ने इस कौल को दुरूस्त करार दिया है कि यह 'मआविया बिन मक्रन''मजनी हैं। हुजूरे अकुदस/##&जिस वक्त ग़ज़वा-ए-तबूक में तशरीफ फूरमा थे उन का विसाल हो गया। करामत्‌ दो हज़ार फ्रिश्ते नमाजे जनाजा में: उन की यह मशहूर करामत हे कि जब मदीना मुनव्वरा में उन की वफात हुई तो हजरत जिब्राईल & ने मकामे तबूक में उतर कर दरबारे रिसालत में अर्ज किया: या रसूलल्लाह! (४&४) मआविया मजनी का मदीना मुनव्वरा में इन्तकाल हो गया है और हमारे लिए मुनासिब है कि हम लोग उन की नमाजे जनाज़ा पढ़ेंगे। फिर हज़रत जिब्राईल%ने इस कृदर जोर से अपना बाजू जमीन पर मारा कि तमाम पेड़ पत्थर, टीले और पहाड़ियाँ हिलने लगीं और तमाम पर्दे इस तरह उठ गए कि उन का जनाज़ा हुजूरे अकरम /#/7की निगाहों के सामने आ गया और जब हुजूरे अकृदस/##ने उन की नमाजे जनाज़ा पढ़ाई तो सहाबा-ए-किराम के तीस हज़ार मजमअ ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05:/.06/5 077 _|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62/09809776_30॥9_॥0/9/%५ करामात्ते सहावा 8२ 227 मक्तवा डमामे आजम के अलावा फरिश्तों की भी दो सफें थीं और हर सफ (लाइन) में एक हज़ार फरिश्ते थे। एक रिवायत में है कि हर सफ में साठ हजार फरिश्ते थे। नमाज़ के बाद हुजूरे अकरमः/&7ने हजरत जिब्राईल /& से पुछा कि अल्लाह तआला ने मेरे इस सहाबी को इतना बड़ा रूतबा कोन से अमल की वजह से अता फ्रमाया? तो हज़रत जिब्राईल % ने अर्ज किया या रसूलल्लाह/&£“यह शख्स सूरह कूल हुवललाहु अहद से बे हद मुहब्बत रखता था और हर वक्त उठते बैठते उस सूरह की तिलावत किया करता था। (असदुल ग़ाबा जि०4, स०389) तबसेरा:अल्लाहु अकबर! सूरह इख़लास (कुल हुवललाहु अहद! को तिलावत करने वालों की फजीलत और उनके अजरो सवाब और फजलो करम का क्या कहना? ख़ुदा वन्दे करीम |» );#हम मुसलमानों को ज़्यादा से ज़्यादा उस मुकृदस सूरह की तिलावत का शर्फ अता फरमाए। (आमीन) हजरत अहबान्‌ बिन सैफी गिफारी&/४ उन की कुन्नियत अबू मुस्लिम है, उन को बेटी हज़रत अदीसा ४ कहती हें कि जब अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली व हजरत अमीरे मआविया &£ के बीच जंग की नोबत आ पड़ी तो अमीरूल मोमिनीन हजरत अली £9 मेरे वालिद के मकान पर तशरीफ लाए और फरमाया कि तुम इस जंग में मेरा साथ दो और अब तक तुम को कौन सी चीज़ मेरी हिमायत से रोके हुए है? तो मेरे वालिद हजरत अहबान बिन - सैफी ५४४ ने कहा कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! बस सिफ यही एक रोकावट है कि नबीए अकरम<&४ने मुझे यह वसियत फरमाई थी कि ऐ अहबान! जब मुसलमान आपस में एक दूसरे से जंग करने लगें तो तुम उस वक्‍त लकड़ी की तलवार बना लेना, चुनान्‍्चे मैं ने इरशादे नबवी के मुताबिकु लकड़ी की तलवार बना ली है। आप देखिए वह लटक रही है। अब लकड़ी की तलवार से भला में किस तरह जंग कर सकता हूँ यह कह कर वह बिल्कुल ही उस लड़ाई में गैर सकता हूँ यह कह कर वह बिल्कुल ही उस लड़ाई में गैर जानिब दार दार _ / _+#| 5टवया606 शशंगर ए752८वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/0/9॥५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/620909776_30७॥9_॥0/9/% करामाते सहाबा /४7 228 मकतवा इमामे आज़म ल्‍ शिनिनगन-+- ८ पलञटञा-िि2७२५तझिथि₹७ ७ि?७?)तथी;िय?तयखयखयखयद ततततततततततततत तन तततत+++++++++_++______________+ैै_+_++++++++++++++++++“+““““ _“__++_+फेल्लन्‍न्‍काान - कक ७५७०७५%०शवि ्््ःश्े ख ख आओ आओ आओ आखनििि89 8७ ७ला+<प>नननन न यनननन5 3 ययतयययतयतयतयययययययययययययय तय ७ 3 रस बारात नम ५७... (॥॥779/॥98| ) बन गए। करामत्‌ कब्र से कक्न वापस: यह साहिबे कराम्त सहाबी थे, चुनान्चे उन की एक मशहूर करामत यह है कि उन्हों ने जसियत फ्रमाई थी कि मरे कफन में सिर्फ दो ही कपड़े दिए जाएँ, मगर लोगों ने उनकी वसिय पर अमल नहीं किया, और उनके कफन मे तीन कपड़े शामिल करके उन को दफन कर दिया। घर वाले जब सुबद की नींद से बेदार हुए तो यह देख कर हेरान रह गए कि तीसरा कपड़ा कब्र से वापस हो कर खूंटी पर लटक रहा है। (असदुल ग़ाबा जि०4, स०358) हजरत नजला बिन मआविया अन्सारी#४ क्‌रामत्‌ हजरत ईसा अलैहिस्सलाम के सहाबी:- हजरत नजला बिन मआविया #&जंगे कादसिया में अमीरे लश्कर हज़रत सअद्‌ बिन अबी वकास &#&क मातहत म॑ जिहाद के लिए तशरीफ ले गए। अचानक अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर #$४का फरमान आया कि हजरत नजला बिन मआविया &£ को ''हलवानुल इराक्‌'' में जिहाद के लिए भेज दिया जाए। चुनानचे हज़रत सअद बिन अबी वकास :9$ने उन को तीन सौ मुजाहिदीन का अफ्सर बना कर भेज दिया और उन्हों ने मुजाहिदाना हमला करके “हलवानुल इराक्‌'' की बहुत सी बस्तियों को फतह कर लिया और बहुत ज़्यादा माले गनीमत ले कर वहाँ से रवाना हुए। बीच राह में एक पहाड़ के पास नमाजे मगरिब का वक्त हो गया। हज़रत नज़ला बिन मआविया #& ने अज़ान पढ़ी और जैसे ही अल्लाह अकबर-अल्लाहु अकबर कहा तो पहाड़ के अन्दर से किसी जवाब देने वाले ने बलन्द आवाज़ से कहा «७४७ ,...६ >/ ४ + 5) इसी तरह 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0[/0/9५ [[[05:/9/079५8.070/089/|5/(09[08/088706_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा #| 5१५) मक्तवा इमासे आजम आप को पूरी अज़ान के हर हर कलमा का जवाब पहाड़ के अन्दर से सुनाई पता रहा। आप हरान रह गए कि आखिर इस परहा ? ने उान्‍्दर कोन है जो मेरा नाम लेकर अज़ान का जवाब दे रहा है। फिर आप ने बलन्द आबाज से फरमाया कि ४स्ट्स! स्ुदा तुम पर रहम फरमाए तू कान हं? तू फ्रिश्ता है या जिन्‍न या रिजाल गैब्र में से है ? जब तृने अपनी आवाज़ हम को सुना दी है तो फिर अपनी सरत भी हम को दिखा द क्‍योंकि हम लोग&४४ आर हजरत उमर :४ के साथी है। आप क यह फरमात हां पहाड़ फट गया आर उस क॑ अन्दर से णएक निहायत हा बूढ़ें और बुजुर्ग आदमी निकल पड़े और उन्हों ने सलाम किया। आप ने सलाम का जवाब दे कर पूछा आप कौन हैं? तो उन्हो न॑ जवाब दिया में हज़रत ईसा ४. का सहाबी और उन का वसी हँ। मेरे नबां हज़रत इंसा ४ ने मेरे लिए लम्बी उप्र की दआ फरमा दी है और मुझे यह हुक्म दिया कि तुम मेरे आसमान से उतरने के वक्त तक इसी पहाड़ म॑ ठहरे रहना। चुनान्चे मैं अपने नबी हज़रत ईसा॥2 आने क इन्तज़ार म॑ यहाँ ठहरा हुआ हूँ। आप मदीना मुनव्वरा पहुँच कर हज़रत उमर 5४४ से मेरा सलाम कह दें और मेरा यह पैगाम भी पहुंचा द कि ऐ उमर! सीधे रास्ते पर रहो और ख़ुदा का कार्ब ढूंडते रहो। फिर चन्द दूसरी नसीहतें फ्रमा कर वह बुजुर्ग एक दम उसी पहाड़ में गायब हो गए। हजरत नजला बिन मआवियाः£ने यह सारा वाकिआ हजरत सअद बिन अबी वकास £६£ के पास लिख कर भेजा और उन्हों ने उस को खबर दरबारे ख्थिलाफृत में भेज दी तो अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर ४££ ने हज़रत सअद बिन अबी वबकास ५9 के नाम यह फरमान भेजा कि तुम अपने पूरे लश्कर के साथ ''हलवानुल इराक्‌'' में उस पहाड़ के पास जाओ, अगर तुम्हारी उन बुजुर्ग से मुलाकात हो जाए तो उन से मेरा सलाम कह देना। चुनानचे हज़रत सअद्‌ बिन अबी वकास #४ अपने चार हज़ार सिपाहियों के साथ उस मकाम पर पहुँचे और चालिस दिन तक ठहरे रहे, मगर फिर भी वह बुजुर्ग न ज़ाहिर हुए, न ..... यतयअननननमभभममम»ननननननन तनमन लक. 6[05:/.076/5फ॥॥#_|ाताफावा५ करामाते सहाबा टू[ श[29:/8/07५8 09/06०७॥॥३॥६००9०76 3५॥4 ॥5फ्रकतवा डइमामे आजम उनकी आवाज़ किसी ने सुनी। (अजालतुल सख्िफा मकसद 2, स०।67 ता 68) तबसेरा: वह बुजुर्ग भला क्‍्योंकर और किस तरह फिर जाहिर हए? उन से मुलाकात और बात करने की करामत ता हज़रत नजला बिन मआविया £$ के नसीब में लिखी हुई थी जो उन्हें मिल गई। मसल मरहूर है। 0.०० ०.०. ) ०० (-- |-5.(यअनी हर आदमी का अपना नसीब है जिसको वह पा लेता है।) हजरत उमेर बित्‌ सअद अत्सारी £# अनसार क कूबीला ओस से उन का खानदानी तअल्लुक है। और उन का असली वतन मदीना मुनव्वरा है। मुल्के शाम की फतूहात के सिलसिले में जितनी लड़ाइयाँ हुई उन सब जंगों में उन्‍्हों ? बड़े बड़े बहादुराना कारनाम अन्जाम दिए। अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर £४ ने अपने जमाने ख्िलाफ॒त में उन को मुल्के शाम में हमस का गवर्नर मुक्रर फरमा दिया था। यह इस कदर इबादत गुज़ार व ज़ाहिद थे कि उन को इबादत व रियाज़त और उन का जुहद व तक॒वा हद्दे करामत को पहुँचा हुआ था, यहाँ तक कि अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर 5! फ्रमाया करते थे कि काश! '“उमेर बिन सअद'' जैसे चन्द्‌ लोग मुझे मिल जाते जिन को में मुसलमानों पर हाकिम बनाता। (हाशिया कंजुल उम्माल जि०१6, स०62 बहवाला इब्ने असअद) करामत्‌ जाहिदाना जिन्दगी: उन को जाहिदाना व आबिदाना जिन्दगी बिलाशुबहा एक बहुत बड़ी करामत है, जिस का एक नमूना मुलाहिज़ा फरमाइए। मुहम्मद्‌ बिन मज़ाहिम कहते हैं कि जिन दिनों हज़रत उमेर बिन सअद ££ ' हमस ' क गवर्नर थे, अचानक उन के पास अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर &# का एक फरमान पहुँचा लिस का मज़मून अर. टूल मिनी यान ञन-------ननममाधाधना००--+क--+430 ८ -००“““०-०-7-“--“-“-->“-3 ०-27 777 न ननबान- नाप पा» ६532:-.._तम_.-+ पा नम न» ग्म्ग्भ्फुनाकरकवक कमा 5. > अममन«म«ण»ण--.. अम»»»बब»»»»%बक»...33ज्नननन«क गम्म्६ह्गा ली अमन .. जाता. काका ०००० बूइइइब तू ००-५०. कर 8०००० हननमममररमह का... न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम करामाते सहावा 8२ [[[05:/8/079५86.00/0 ४0७४ ७: [2809/76_ _0॥9 9 कतिंया डमामे आजम यह था। “*ऐ उमेर बिन सअद! हम ने तुम को एक अहम ओहदा सुपुर्द करके ““हमस'' भेजा था, मगर कुछ पता नहीं चला कि तुम ने अपने उस उहदा को अच्छी तरह से संभाला है या नहीं, इस लिए जिस वक्‍त मेरा यह फरमान तुम्हारे पास पहुँचे, फौरन जिस क॒दर माले गनीमत तुम्हारे खज़ाना में जमा है, सब को ऊँटों पर लाद कर और अपने साथ लेकर मदीना मुनव्वरा चले आओ और मेरे सामने हाजिर हो जाओ।'' दरबारे खिलाफत का यहं फरमान पढ़ का फौरन ही आप उठ खड़े हुए और अपनी लाठी में अपनी छोटी सी महक और खुराक की थेली और एक बड़ा प्याला लटका कर लाठी कंधे पर रखी और मुल्के शाम से पैदल चल कर मदीना मुनव्वरा पहुँचे और दरबारे लाफत म॑ हाजिर हो गए और अमीरूल मोमिनीन को सलाम किया। अमीरूल मोमिनीन ने उन को उस बुरी हालत में देखा, तो हेरान रह गए और फ्रमाया: क्‍यों ऐ उमेर बिन सअद! तुम्हारा हाल इतना खराब क्यों है? क्‍या तुम बीमार हो गए थे? या तुम्हारा शहर, बहुत बुरा शहर है? या तुम ने मुझे धोका देने के लिए यह ढोंग रचाया है? अमीरूल मोमिनीन के उन सवालों को सुन कर उन्हों ने निहायत ही सुकुन और सन्‍्जीदगी के साथ अर्ज किया: ऐ अमीरूल मोमिनीन! क्‍या अल्लाह तआला ने आप को मुसलमान के छपे हुए हालात की “जासूसी से मना नहीं फ्रमाया? आप ने यह क्‍यों फरमाया कि मेरा ख़राब हाल है? क्‍या आप देख नहीं रहे हैं कि में बिल्कल तन्‍्दुरूस्त व तवाना हूँ और अपनी पूरी दुनिया को अपने कंधों पर उठाए हुए आप के दरबार में हाज़िर हूँ अमीरूल मोमिनीन ने फरमाया ऐ उमेर बिन सअद! दुनिया का कौन सा सामान तुम ले कर आए हो? मैं तो तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं देख रहा हूँ। आप ने अर्ज किया: ऐ अमीरूल मोमिनीन! देखिए यह मैरी ब्र्राक की थैली है, यह मेरी मश्क है जिस से में बुजू करता हूँ और न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम ॥0[05:॥/8/079५8.0/5/06७98/5/6)/808/76__9५॥8 _॥0/8/9 करामसहॉबा 232 मकतबा इमामे आजम उसी में अपने पीने का पानी रखता हूँ और यह मेरा प्याला है और यह मेरी लाठी है जिस से मैं अपने दुश्मनों से ज़रूरत क वक़्त जंग भी करता हँ और साँप आदि जहरीले जानवरों को भी मार डालता हूँ। यह सारा सामान मेरी दुनिया नहीं है तो और क्‍या है? यह सुन कर अमीरूल मोमिनीन ने फरमया: ऐ उमेर बिन सअद! ख़ुदा तुम पर अपनी रहमत नाजिल फ्रमाए, तुम तो अजीब ही आदमी हो। फिर अमीरूल मोमिनीन ने अवाम का हाल पूछा और मुसलमानों की इस्लामी जिन्दगी और ज़िम्मियां (वह काफिर जो मुस्लिम देश में अमान ले कर रहते हों) के बारे में पुछ गछ फ्रमाई, तो उन्हों ने जवाब दिया कि मेरी हुकूमत का हर मुसलमान अरकाने इस्लाम का पाबन्द और इस्लामी ज़िन्दगी के रंग में रंगा हुआ है और में ज़िम्मियों से टंक्‍्स लेकर उन कौ पूरी पूरी हिफाज़त करता हूँ और मैं अपने उहद को ज़िम्मेदारियों को निभाने की भर पूर कोशिश करता रहा हूँ। फिर अमीरूल मोमिनीन ने खज़ाना के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि ख़ज़ाना कैसा? मैं हमेशा माल दार मुसलमानों से जकात व सदकात वसूल करक गरीबों व मसाकीन में तकुसीम (बाँट) कर दिया करता हू। अगर मर पास कुछ माल बचता, तो मैं जरूर उस को आप के पास भेज देता। ६" े फिर अमीरूल मोमिनीन ने फ्रमाया कि ऐ उमेर बिन सअद| तुम हमस से मदीना मुनव्वरा तक पैदल चल कर आए हो। अगर तुम्हार पास कोई सवारी नहीं थी, तो क्‍या तुम्हारी सलतनत की सरहद म॑ मुसलमानों ओर ज़िम्मियों में भला आदमी कोई भी नहीं था जो तुम को सवारी का एक जानवर दे देता। आप ने अर्ज किया: ऐ अमीरूल मोमिनीन! में ने रसूलुल्लाह/#“से यह भी सना है कि मेरी उम्मत में कुछ ऐसे हाकिम होंगे कि अगर रेआया [म्‌श रहेगी. तो यह हक्काम उन को बरबाद करेंगे और अगर रिआया फरियाद करेगी तो यह हुक्काम उन कौ गर्दनें उडादेंगे और में ने रसूलुल्लाह/४/“से यह भी सुना है कि तुम लोग अच्छी बातों का हुक्म देते रहो भी सुना हैं कि तुम लोग अच्छी बातों का हुक्म देते रहो और बुरी 606 ५शशां॥ ए75टवाग6 [05:/.क्‍6/5 077 _|॥ताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209809776_30॥9_॥0/9/% करामाते सहावा ४२ 2३3३ मकक्‍तवा इमामे आजम क. अभि थझदणन स्‍क्‍्यआ. बातों से मना करते रहो, वरना अल्लाह तुम पर ऐसे लोगों को कब्जा अता फरमा देगा जो बदतरीन इंसान होंगे। उस वक्त नेक लोगों की दुआएँ मकबूल नहीं होंगी। ऐे अमीरूल मोमिनीन! मैं उन बुरे हाकिमों में से होना पसन्द नहीं करता इस लिए मुझे पैदल चलना गवारा हे, मगर अपनी रिआया से कुछ तलब करना या उन के तोहफों को कुब॒ल करना हरगिज़ हरगिज़ पसन्द नहीं है। ह उस के बाद अमीरूल मोमिनीन ने फरमाया: ऐ उमेर बिन सअद। मैं तुम्हारी कार गुज़ारियों से बेहद खुश हूँ, इस लिए तुम अपनी गवर्नरी क उहदा पर बहाल हो कर फिर हमस जाओ ओर वहाँ जाकर हुकूमत करो। आप न॑ निहायत ही नर्मी क॑ साथ गिड़ गिड़ा कर अर्ज किया: ऐ अमीरूल मोमिनीन! मैं आप को ख़ुदा का वासता देकर अब उस उहदा का कबूल करने से मआफी का तलब गार हैँ और अब में हरगिज़ हरगिज़ कभी भी उस अहम उहदा को कबूल नहीं कर सकता, इस लिए आप मुझे मआफ फरमा दीजिए। यह सुन का अमीरूल मोमिनीन ने फ्रमाया कि अच्छा अगर तुम इस उहदा का कबूल नहीं कर सकते हो, तो फिर मेरी तरफ से इजाजत हे कि तुम अपने घर वालों में जाकर रहो, चनानन्‍चे यह मदीना मुनव्वरा से तीन दिन की दूरी पर एक बस्ती में जहाँ उन क॑ अहलो अयाल रहते थे, जाकर बस गए। इस वाकिआ क क॒छ दिनों के बाद अमीरूल मोमिनीन ने एक सौ अशफियाँ की एक थैली अपने एक साथी को जिस का नाम “हबीब'' था यह कहर कर दी कि तुम उमेर बिन सअद के मकान पर जाकर तीन दिन तक मेहमान बन कर रहो। फिर तीसरे दिन यह थेली मेरी तरफ से उन की ख़्िदमत मे पेश करके कह देना कि वह इन अशर्फियों को अपनी ज़रूरियात में ख़र्च करें। चुनानवे हज़रत हबोब ££ अशफियों की थैली ले कर हजरत उमेर बिन सअद &£ के मकान पर पहुँचे और अमीरूल मोमिनीन का सलाम अं किया। आप ने सलाम का जवाब दिया और अमीरूल मोमिनीन न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/॥.776/50॥॥_॥|॥॥009/8/%५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6208099776_830७॥9_॥0/9/%५ 234 करामाते सहाबा /४2 मकतवा इमामे आजम की स्रियत पूछी और उन की हुक्मरानी की कैफियत के बारे में सवाल किया। फिर अमीरूल मोमिनीन के लिए दुआएँ कीं। हज़रत हबीब%#$# तीन दिन तक उन के मकान पर ठहरे रहे और हर दिन खाने में दोनों वक़्त एक एक रोटी और जैतून का तेल उन को मिलता रहा। तीसरे दिन हज़रत उमेर बिन सआद #9 ने फरमाया: ऐ हबीब! अब तुम्हारी मेहमानी की मुद्दत ख़त्म हो गई, इस लिए आज अब तुम अपने घर जा सकते हो। हमारे घर में बस इतना ही का सामान था जो हम ने ख़ुद भूके रह कर तुम को खिला दिया। यह सुन कर हज़रत हबीब #४ ने अशर्फियों की थैली पेश कर दी और कहा कि अमीरूल मोमिनीन ने आप के खूर्च के लिए इन अशर्फियों का भेजा है। आप ने थैली हाथ से लेकर यह इरशाद फरमाया। जक ऐ हबीब! में रसूलुल्लाह/&#की सोहबत से सरफराज हुआ, जीकन उस वक़्त दुनिया को दोलत से मेरा दामन कभी दागदार नहीं डी कर में ने हज़रत अमीरूल मोमिनीन अबू बकर सिद्दीकु ££ की साहबत पाई लंकिन उन के दौर में भी दौलते दुनिया की गन्दगी से में महफूज ही रहा, लेकिन यह जमाना मेरे लिए बद तरीन दौर साबित हुआ कि में अमीरूल मोमिनीन के हुक्म से मजबूर होकर ना चाहते हुए हमस के, गवर्नर बना और अब अमीरूल मोमिनीन ने यह दुनिया की दौलत मेरे घर में भेज दी है।'' इतना कहते कहते उन की आवाज़ भर्रा गई और चीख मार कर जार जार रोने लगे और उन के आँसुओं की धार उन के रूख्सार (गाल) पर तेज़ बारिश की तरह बहने लगी और उन्हों ने अशर्फिियों को थंली वापस कर दी। यह देख कर घर में से उन की बीवी साहिबा ने कहा कि आप उस थैली को वापस न कीजिए , क्योंकि यह जानशान पग्मम्बर हज़रत उमर #£ का तोहफा है। उस को रद कर देने से हज़रत अमरूल मामिनीन की बहुत बड़ी दिल शिकनी (द्लि डुटना) होगी और यह आप की शान के लाइक नहीं है कि आप हज़रत अमीरूल मोमिनीन के दिल को सदमा पहुँचाएं इस लिए आप 5८664 ५शशंगर ए752८वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0[/0/9५ 05:॥/8/09४6.00/क्‍७8॥5/6)08098/06_80॥8 _॥0/89५ _कः माते सहावा ४ &35 मकतवा इमामे आज़म स थैली को ले कर गयेबा का दे कदण कज्ञ जाए को ले कर गरीबों को दे दीजिए। बीवी साहिबा मुख्लि नाना गाय का कबूल करत हणए आप न थैली अपन पास रख ली आर फरन हो गरीबों व मसाकीन को बुला कर तमाम अशर्फियों को बॉट दिया और उस में से एक पैसा भी अपने पास नहीं रखा। हजरत हबाब ४४ इस मंजर को देख कर हैरान रह गए आर मदाना पुगव्वरा पहुच कर जब हज़रत अमीरूल मोमिनीन से सारा माजरा अर्ज़ किय। तो अमीरूल मोमिनीन पर भी रिक्क्॒त तारी हो गई और हट फूट कर रौने लगे ओर दर तक रोते रहे। फिर जब उन के आँसू थम गए, ता फौरन ही उन की तलबी क॑ लिए एक फरमान लिखा आर एक कासिद के जरिए यह फरमान उन के घर भेज दिया। हज़रत उमर बिन सआद ## ने फरमान पढ़ कर इरशाद फरमाया कि अमीरूल मोमिनीन के हुक्म को मानना मझ पर जरूरी हे, यह कहा आर फारन पदल झदाना मुनव्वरा के लिए घर से निकल पड़े आर तीन दिन का सफर करके दरबारे खिलाफत में हाजिर हो गए। अमारुल मामिनीन ने फरमाया कि ऐ उमेर बिन सअद! जो अशरफियाँ मैंने तुमहारे पास भेजी थीं: उनको तुमने कहाँ कहाँ खर्च किया? अर्ज किया! ऐ अमीरुल मोमिनीन।! मैने उसी वक्‍त उन सब अशरफियों को खुदा की राह में खर्च कर दिया। अमीरूल मामिनीन हरत म॑ उन का मुंह देखते रह गए। फिर अपने बेटे हज़रत अबद्धदुल्लाह बिन उमर&& से फरमाया कि तुम बंतुल माल में से दा कपड़े लाकर उमर बिन सअद को पहना दो और एक ऊंट पर ठ्ाज्रे लाद कर उन को दे दो।आप ने अर्ज किया: ऐ अमीरूल मोमिनीन! कपड़ों को तो में कुबूल कर लेता हूँ, क्‍योंकि मेरे पास कपड़े नहीं हैं, मगर खुजरें में हरगिज़ न लूँगा क्‍योंकि में एक साआ्‌ खजरें अपने मकान पर रख कर आया ह जो मेरी वापसी तक मेरे अहलो अयाल के लिए काफो हैं। फिर हज़रत उमर बिन सआद & अमीरूल मोमिनीन से रूख्सत होकर अपने मकान पर चले आए और उस के चन्द ही दिनों बाद उन का विसाल हो गया। न 5८वया664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ करामाते राह्ावा 28 -//०॥५४७.०0/06/ था यह मत नल ॥8 _॥ ०4 +तवा डुमामे आगम जब अमीरूल मोमिनीन को आप की रिहलत की ग्वृबर | ग्ूबर पहुँची, तो आप बे इग्ल्तियार ये पड़े और दरबार में मौजद लोगों से फरमाया कि अब तुम सब लोग अपनी अपनी बड़ी ख्वाहिशों को मेरे सामने बयान करो। फौरन ही तमाम हाजिरीन ने अपनी अपनी बड़ी स॑ बड़ी तमन्‍नाओं को जाहिर कर दिया। सब की तमनन्‍नओं का जिक्र सुन कर आप ने फरमाया लेकिन मेरी सब से बड़ी तमन्ना यह है कि काश!उमेर बिन सअद जैसे अन्दर से साफ व पाक और पंकरे अख़्लाक्‌ चन्द मुसलमान मुझे मिल जाते, तो में उन स मुसलमानों क कामों म॑ मदद लेता। इस के बाद आप ने हज़रत उमेर बिन सअद #छ#& के लिए दुआए मग्फिरत फरमाई और यह कहा कि अल्लाह तआला उमर बिन सअद्‌ 2४ पर अपनी रहमत नाजिल फरमाए। (कजुल उम्माल जि०6, स०62 ता 66 मुझ्तसरन) हज्रत्‌ अबू कृरसाफा ४2/2 उन का असली नाम जन्दरा बिन खेशना है, मगर यह अपनी कुन्नियत “अबू क्रसाफा'' से ज़्यादा मश्हूर हैं। यह कुरैश नसल से हैं। यह शुरू इस्लाम में यतीम बच्चे थे और उन की वालिदा और खाला दानों ने उन की परवरिश की। यह बचपन में बकगियाँ चराने जाया करते थे और उन की वालिदा और खाला उन को सख्त ताकीद किया करती थीं कि ख़बरदार! तुम मक्का में कभी उन की सोहबत में न बैठना जिन्हों ने नुबुवत का दअवा किया है। मगर यह बकरियाँ चरागाह में छोड़ कर हुजर :#&४ को ख्विदमत में हर दिन चले जाया करते और बकरियों के चराने पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते थे। धीरे धीरे बकरियाँ कमज़ोर हो गई और उन के थन सूख गए। उन की वालिदा और खाला ने जब इस मामला के बारे में उन से सख्त पूछ ताछ की तो उन्होंने हुज्रे अकरम ##&के सामने उस का तज़्किरा किया, तो आप ने उन की बकरियों क॑ खुश्क (सूखे) थनों पर 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४० 2३37 मकक्‍तवा इमामे आजम अपना दस्ते मुबारक लगा अपना दस्ते मुबारक लगा दिया तो सब बकरियों के ख़श्क थन दस से भर गए। जब उन को वालिदा और खूाला ने उस का सबब प॒छा तो उन्हा ने हुजूर अकरम/#&#क दस्त मुबारक लगा देने का वाक्ििआ और हुजूरे अक्दस##7“को मुकूदइस तअलीम और म॒अजिजात का तजकरा कर दिया। यह सुन कर उन को वालिदा और खाला ने कहा, ऐ मेरे प्यारे बेटे! तुम हम को भी उन के दरबार में ले चलो। चनानन्‍्चे उन की वालिदा और खाला खिदमते अकदस में हाजिर हो गई और जमाले नुबुवत दखत हा कलमा पढ़ कर इस्लाम की दौलत से माला माल हो गई और अपने घर पहुँच कर उन दोनों ने यह कहा कि हम ने अपनी आँखा से देखा कि जब हुजूरे अकृदस/&#कलाम फ्रमाते थे तो क मुंह मुबारक से एक नूर निकलता था और हम ने हुस्न अखलाक्‌ और जमाले सूरत व कमाले सीरत के ऐतबार से किसी इंसान को हुजूर /#&से बेहतर और अच्छा नहीं देखा। यह आखिरी उम्र में मुल्के शाम के शहर फिलसतीन में बस गए थे और शाही मुहद्दसीन उन के हलका-ए- दरस में शामिल हुआ करते थे। इमाम तबरानी ने उन कौ निस्बत के एतबार बार से ३ “लेसी'' तहरीर फरमाया है कि उन को “बनी लेस बिन बकर का आज़ाद करदा गुलाम लिखा है।? (वल्लाहु तआला अअलम) (कंजुल उम्माल जि०6, स०229 मतबूआ हेदरा बाद व असदुल गाबा जि०। , स०507) क्रामत्‌ सैंकड़ों मील दूर आवाज पहुँचती थी: उन की यह करामत थी कि रूमी कफ्फार ने उन के एक बेटे को गिरफ़्तार करके जेल खाना में बन्द कर दिया था। हजरत अबू क्रसाफा&£जब नमाज का बक़त आता तो असकलान की चार दीवारी पर चढ़ते और बलन्द आवाज़ से पुकार कर कहते कि ऐ मेरे प्यारे बेटे! नमाज़ का वकुत आ गया है और नर ब ड्ढ पं 56व7766 ५शं।ग एद्चा]52टवागाहा [[05:/॥.776/50॥॥_॥|॥॥0॥09/8/%५ कम करामाते राहावा री //80०07७ 09/72/999९ 9 98778 वरांध्रि ॥/बक्तवा डमामे आजम उन की इस पुकार को हमेशा उन के साहबजादे सुन लिया करते थे हालाँकि यह सैकड़ों मील की दूरी पर रूमियों क कृदख़ाना म॑ कंद थे। (तबरानी) तबसेरा: यह करामत अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर%&४£ ओर दूसरे बुजुर्गों से भी मनकूल है। और यह करामत भी इस बात को दलील हे कि महबूबाने ख़ुदा हवा पर भी हुकूमत फ्रमाया करते हैं, क्योंकि आवाज़ को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना हवाओं ही का काम जिस पर पहले भी हम रोशनी डाल चुक हैं। इस किसम की करामतों से पता चलता है कि ख़ुदा वन्दे कुद्दूस अपने औलियाए किराम को दुनिया में तसरूफात को एसी हुक्मरानी व बादशाही बल्कि शहंशाही अता फरमाई है कि वह दुनिया को हर हर चीज़ पर अल्लाह तआला के हुक्म से हुकूमत करते हैं। हजरत हस्साव बिन साबित यह कबीला अन्सार के खानदान झछ़ाजरज के बहुत ही नामी गिरामी शख्स हैं और दरबारे रिसालत के बहुत खास शायर होने की हैसियत से तमाम सहाबा-ए-किराम में एक ख़ुसूसी दर्ज के साथ मुमताज़ हैं। आप ने हुजूरे अकरमा/&#की तअरीफ में बहुत से कुसायद नखे और क॒फ़्फारे मक्का जो शाने रिसालत में बुराई लिख कर बे अदबियाँ करते थे। आप अपने अशआर में उन का मुँह तोड़ जवाब दिया करते थे। हुजूर शहंशाहे मदीना£#“उन के लिए खास तौर पर मस्जिदे नबवी में मिंबर रखावाते थे, जिस पर खड़े हो कर यह रसूलुल्लाह/&7की शाने अकृदस में नअत ख़्वानी करते थे। उन की कुन्नियत “अबूल वलीद'' है और उन के वालिद का नाम ''साबित'' और उन के दादा का नाम ''मंज़र' और पर दादा का नाम “हराम'' है और उन चारों के बारे में एक तारीखी लतीफा यह है कि उन चारों की उम्रें एक सौ बरस हुई जो दुनिया की अजीब चीजों में से एक अजूबा है। न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05:/6.86/5 7 _।॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209809776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते साहावा £ 23० पमक्तवा डगागे आजम हनन -+--++--मनक»»मनमकककक»--ानन--न पर... ज........... >> हज़रत हस्सान बिन साबित ४ की एक सो बीस बरस की उम्र में से साठ बरस जाहलियत और साठ बरस इस्लाम में गुज़रसन ४० हिजरी में आप का विसाल हुआ। (अकमाल स॒०560 मिश्कात बाबुल बयान वश्शुअरा स०40 व हाशिया बुखारी बहवाला किरमानी जि०?, स०594 ) क्रामात्‌ हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम मददगार: उन को एक खास करामत यह है कि जब तक यह नअत खझ़ुबानी फ्रमात रहते थ, हज़रत जिब्राईल*£उन की इमदाद व नुसरत क लिए उन क पास मौजूद रहते थे। क्‍योंकि हुजूरे अकृदस##&#ने उन क॑ बार म॑ इर्शाद फरमाया है: 00 ),०, ६०७) 6४४० ० ८),३०- ०४५० ०'(यिअनी जब तक हस्सान मेरी तरफ से कुफ़्फार को डफन्सीव जवाब दत आर मेरे बारे में इजहारे फरूर करते रहते हैं, हज़रत जिब्राईल“£#उन का मदद फरमाते रहते हैं।। (मिश्कात बाबुल बयान वश्शुअर स०440) करामत वाली क्ृव्वते शामा:-(सुंघने को ताकत) जबला ग़साना जा खानदाने जुफना का एक शख्स था। उस ने हज़रत हस्सान5&४ क लिए तोहफा के तौर पर कुछ सामान हज़रत अमीरूल मोमिनीन उमर £# को तोहफा सुपुर्द करने के लिए बुलाया।हजुरत हस्सान बारगाह नाफत में पहुँचे तो चौखट पर खड़ें हो कर सलाम किया और अर्ज किया कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! मुझे खानदान जुफना क ताहफा का ख़ुश्बू आ रही है जो आप के पास हैं। आप ने इस्शाद फ्रमाया कि हा जबला गस्सानी ने तुम्हारे लिए हदिया भेजा है जो कि मेरे पास है, इसी लिए मैं ने तुम को तलब किया है। ु ॥॒ इस वाकिआ को नकल करने वाले का बयान है कि खुदा का कसम! हजरत हस्सान%#£ की यह हैरत अंगेज़ व तअज़्जुब ख़ेज़ बात से कभी भी भूल नहीं सकता कि उन्हें इस हदिया की किसी ने पहले से कोई ख़बर नहीं दी थी। फिर उन्हें चौखट पर खड़े होते ही बी न कं हब 56766 ५शशंगरा एद्वया)5टवया6/ [[05:/.76/50॥॥_॥।॥॥0॥09/8/9५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9_॥2/9/% करामाते सहावा /£४/ 240 मक्‍तवा इमामे आजम इस हदिया की ख़ुश्बू कैसे और क्योंकर महसूस हो गई ? ओर उन्हों ने इस चीज को कैसे सूंघ लिया कि वह हदिया खानदाने जुफूना से यहाँ आया है। (शवाहिदुन्नबूवा स०232) तबसेरा: बिला ख़ुश्बू वाले सामानों को सूंघ कर जान लेना और फिर यह भी सूंघ लेना कि हदिया देने वाला किस ख़्ञानदान का आदमी है? ज़ाहिर है कि यह चीजें सूंघने की नहीं हैं, फिर भी उन को सूंघ लेना उस को करामत के सिवा और क्या कहा जा सकता हं? हज़रत जैद बिव हारिसा## यह हुजूरे अकुदसा/&#के गुलाम थे, लेकिन आप ने उन को आज़ाद फूरमा कर अपना मूँह बोला बेटा बना लिया था और अपनी बांदी हज़रत उम्मे यमन ४#से उनका निकाह फ्रमा दिया था जिन के पेट से उनके साहबज़ादे हज़रत उसामा बिन जैद%४£ पैदा हुए। उन को एक बड़ी खास ख़ससियत यह है कि उन के सिवा कुरआन मजीद में दूसरे किसी सहाबी का नाम जिक्र नहीं है। यह बहुत ही बहादुर मुजाहिद थे। गुलामों में सब से पहले उन्हों ने ही इस्लाम कूबूल किया। ““जंगे मौता'' की मरहूर लड़ाई में जब आप तमाम इस्लामी फौजों के कमान्डर थे सन्‌ 8 हिजरी में कुफ़्फार से लड़ते हुए जामे शहादत नोश फरमाया। (अकमाल स०595 व असदुल ग़ाबा जि०2, स०224 ता 227) क्रामत्‌ सातवें आसमान का फरिश्ता जमीन पर: आप को एक करामत बहुत ज़्यादा मशहूर और मुस्तनद है कि एक मर्तबा आप ने सफर के लिए ताइफ में एक ख॒च्चर केराया पर लिया। ख़च्चर वाला डाकू था। वह आप को सवार करके ले चला और वीरान व सुनसान जगह पर लेजाकर आप को ख़च्चर से उतार दिया और एक खूंजर लेकर आप की तरफ हमला के इरादे से बढ़ा। आप ने यह देखा कि वहाँ हर तरफ लाशों के ढांचे बिखरे पड़े हुए हैं। आप ने उस से फ्रमाया कि ए न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [[05://.86/5 07 _।॥0 08५ कम [[05:/9/07५8.0/0/0895/(0[08/088706_30॥9_॥0/9/%५ करामाते राहावा ८(/ ?24] मकक्‍तवा इमामे आजम सके --+-क--्कम---माकका . शख्स! तृ मुझे कृत्ल करना चाहता है तो ठहर! मझे इतनी छट दे दे कि म॑ दो रकअत नमाज पढ़ लूं। उस बदनसीब ने कहा कि अच्छा त नमाज पढ़ ले। तुझ से पहले भी बहुत से मक॒त॒लों ने नमाजें पढ़ी थी मगर उन को नमाज़ों ने उन की जान न बचाई। हजरत जैद बिन हारिसा ४४ का बयान है कि जब मैं नमाज से फारिंग़ हां गया तो वह मुझे कृत्ल करने के लिए मेरे करीब आ गया तो मे नं दुआ मागो ओर ( ....>। ,! ,> | ७) कहा गैब से यह आवाज आई कि ४ शख्स! तू इन को कृत्ल मत कर। यह आवाज सन कर वह डाकू डर गया आर इधर उधर देखने लगा। जब कोई नजर नहीं आया तो वह फिर मेरे कृतल के लिए आगे बढ़ा तो मैं ने फिर बलन्द आवाज़ स ( ......>! »!| ५) ०.2) कहा और गैबी आवाज़ आई। फिर तांसराी मतंबा जब म न ( ....>! /! «>) ७) कहा तो में ने देखा कि एक शख्स घाड़े पर सवार ह॑ और उस क॑ हाथ में नेजा है और नेजे की नाक पर आग का एक अंगारा है। उस शख्स ने आते ही डाक को सान म इस जार स॑ नंज़ा मारा कि नेज़ा उस के सीने का छंदता हुआ उस का पाठ क पार निकल गया और डाक जमीन पर गिर कर मर गया। फिर वह सवार मुझ से कहने लगा कि जब त॒म ने पहली मर्तबा या अरहमर्रहिमीन ( ....>| )| ,> ) ५.) कहा, तो में सातवें आसमान पर था ओर जब दूसरी मतंबा तुम ने या अरहमर्रहिमीन ( ....>। .॥ ,» |.) कहा, तो म॑ आसमान दुनिया पर था और जब तीसरी मर्तबा तुम ने या अरहमरहिमीन ( ...>! | *+? ) ४ ) कहा, ता म॑ तुम्हारं पास इमदाद व नुसरत क लिए हाज़िर हो गया। (इस्तियाब जि० , स०548) तबसेरा: इस से सबक्‌ मिलता है कि ख़ुदावन्दे कुद्दूस के असमाए हुसना (नामे पाक) और मोमिन की दुआओं से बड़ी बड़ी बलाएं टल जाती हैं और ऐसी ऐसी इमदाद और आसमानी नुस्रतों का जुहर हआ करता ह॑ जिन को ख़ुदावन्दे करीम के फजल के सिवा कछ भी नहीं कहा जा सकता, मगर अफ्सोस कि आज कल के मुसलमान मुसीबतों 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥#0[/07/9५ [[[05:/9/079५8.0/0/0895/(9[08/08876_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा &[; 242 मकक्‍तवा इड्मामे आज़म के हुजूम में भी दुनियावी बसीलों की तलाश में भागे भागे फिरते हैं और लोडरा, हाकिमां और दोलत मंदों क॑ मकानों का चक्कर लगाते रहते हें मगर ( (व कन्ल न-। (भी ) |) जाए ( (दी, >प। ("०-० । कं दरबार अज़मत में , ड़ गिड़ा कर अपनी दुआओं की अर्जी नहीं पेश करते और अल्लाह जलल्‍ल जलालहू से इमदाद व नसरत की भीक नहीं मांगते, हालांकि ईमान यह है कि बेगैर फजले रब्बी के कोई इंसानी ताकत किसी की भी कोई इमदाद लत नुसरत नहीं कर सकती। अफसोस! सच कहा है किसी हकौकृत पहचानने वाले ने। इस तरफ उठते नहीं हाथ जहाँ सब कुछ है पावों चलते हैं उधर को कि जहाँ कुछ भी नहीं हजरत उकृबा बिन नाफिअ फृहरी £ हज़रत अमीरे मआविया&& ने अपने दौरे हुकमत में उन को अक्राका का गवनर मुक्रर फरमा दिया था और उन्हों ने अफ्रीका के कुछ हिस्सों को फूतह कर लिया और बरबरी लोग जो इस मुल्क के असली रहन वाले थे, उन के बहुत से बाशिन्दे दामने इस्लाम में आ गए। उन्हां न इस मुल्क में इस्लामी फौजों के लिए एक छावनी बनाने ओर एक इस्लामी शहर आबाद करने का इरादा फरमाया, लेकिन इस मकसद क लिए आबादकारी के माहीरीन ने जिस जगह का चुनाव किया, वहाँ एक निहायत ही और गुनजान जंगल था जो जंगली दरिन्दों और हर किस्म की तकलीफ पहँचाने वाले और जहरीले कीड़ों और जानवरों का गढ़ था। उस मौका पर हजरत उकबा बिन नाफिअ &% की एक अजीब करामत का जुहूर हुआ। क्राम्‌त्‌ एक पुकार से दरिन्दे फरार:-मरवी है कि हजरत उकबा बिन नाफिअ ££ के उस लश्कर में अट्ठारा सहाबी मौजूद थे। आप ने उन मुकूदस सहाबियों को जमा फ्रमाया और उन बुजुर्गों को अपने साथ |. थे. सामा-रा।......थथप++-<यक.. 5८694 शशंगरा ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0[//0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_830॥9_॥0/9/% करामाते सहावा ४2 243 मकक्‍तवा इमामे आज़म ले कर उस खौफनाक और घने जंगल ने जंगल में तशरीफ ले गए और बलन्द में तशरीफ ले गए और बलन्द बा से ०) फरमाया। द्रिन्दोी! ओर हलाक करने वाले जानवरों! हम /2+के सहाबा ता ह आर हम इस जगह अपनी बस्ती बसा का जा होना चाहते हैं, इस लिए तुम सब यहाँ से निकल जाओ वरना उस के बाद हम तुम में से जिस को यहाँ देखेंगे कत्ल कर देंगे।'' श्स एलान क बाद उस आवाज म॑ खुदा ही जानता है कि क्‍या असर था कि सब दरिन्दा और कोड़ों में हल चल मच गई और गोल दर गाल उस जगल क जानवर निकलने लगे। शेर अपने बच्चों को उठाए हुए, भड़ अपने पिल्‍्लों को लिए हुए साँप अपने संपोलियों को कमर स॑ चिमटाए हुए जंगल से बाहर निकले जा रहे थे और यह एक अजीब हैबत नाक और दहशत अंगेज़ मंजर था जो न उस से पहल दखा गया न यह किसी के वहम व गुमान में था। यहां तक कि पूरा जगल जानवरा स॑ खाली हां गया और साहाबा-ए-किराम और पूरे लश्कर ने उस जगल का काट कर सन्‌ 50 हिजरी में एक शहर आबाद किया, जिस का नाम “'कुंरवान'' है। यह शहर इसी लिए मुसलमानों में बहुत ज़्यादा काबिले एहतराम शुमार किया जाता है कि इस शहर की आबादी में सहाबा-ए-किराम के मुक॒द्स हाथों का बहुत ज़्यादा हिस्सा है और यही वजह है कि हज़ारों बड़े बड़े उलमा व मशाइख्् उस सर ज़मीन को आगूशे खाक से उठे और फिर इसी मुकृहस जमीन की आग्रोशे लहद में दफन होकर उस जमीन का बन गए। (मुअजमुल बलदान तज॒करहु कैरवान घोड़े की टाप से चश्मा जारी: हजरत उकबा बिन नाफिअ :४४की यह करामत भी बहुत हंरत अंगेज़ और इबरत खेज है कि अफ्रीका के जिहादों में एक मर्तबा उन का लश्कर एक ऐसे मकाम पर पहुँच गया जहां दूर दूर तक पानी नहीं था। जब इस्लामी लइ्कर पर प्यास का ग़लबा हुआ ओर तमाम लोग प्यास से परीशान हो कर बे पानी की मछली को तरह तड़पने लगे तो हज़रत उकूबा बिन नाफिअ ££ने दो 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6209099776_30७॥9 *॥0/9% करामाते सहाबा /४72 244 मकक्‍तवा डहमामे आजम ००००-०० न न ननन ७ कक नन मनन कक कक + न नी क्‍॑क्‍ ी।॑श्र् शो रा च्््व्व््च्च््थओ2छ2?..ह। आर » ्च चाचा ्रजशय हशशकश्ंख्ऊऊखऊ्ं्ंरऊ्े्ाीााओ८2७ इ अअ का रकअत नमाज पढ़ कर दुआ मांगी। अभी आप की दुआ ख़त्म नहीं हुई थी कि आप के घोड़े ने अपने खुर से ज़मीन को क्रेदना शुरू कर दिया। आप ने उठ कर देखा, तो मिट्टी हट चुकी थी और एक पत्थर नजर आ रहा था। आप ने जैसे ही उस पत्थर को हटाया तो एक दम उस के नीचे से पानी का एक चश्मा फूट निकला और इस कदर पानी बहने लगा कि सारा लश्कर सैराब हो गया और तमाम जानवरों ने भी पेट भर कर पानी पिया और लश्कर के तमाम सिपाहियों ने अपनी अपनी मश्कों को भी भर लिया और उस चश्मे को बहता हुआ छोड़ कर लश्कर आगे रवाना हो गया। (मुअजमुल बलदान तज़करहु केरवान) हज़रत अबू जैद अन्सारी £/४ अबू जैद उन की कुन्नियत है। उन के नाम में इख्तिलाफ है। बाज का कोल है कि उन का नाम सईद बिन उमेर'' है और बाज कहते हैं कि उन का नाम केस बिन सकन'' है। उन का खानदानी तअल्लुक कूबीला अन्सार से है और उन का वतन मदीना मुनव्वरा है। यह उन सहाबा-ए-किराम में से हैं जो हुजूर/###की मौजूदगी में हाफिजे क्रआन हो चुके थे। करामत्‌ सौ (१00) बरस का जवान:-हुजूरे अकदस/&४#ने अपना दस्ते मुबारक एक मर्तबा उन के सर पर फेरा और उन को यह दुआ दी कि या अल्लाह इस के हुस्न व खूबसूरती को हमेशा कायम रख। रावी का बयान हे कि सौ बरस के कुछ ज़ायद उम्र के हो गए थे, लेकिन उन के सर और दाढ़ी का एक बाल भी सफेद नहीं हुआ था, न उन क चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ी थीं। वफात के वक़्त तक उन के चेहरे पर जवानी का जमाल बर करार रहा जो बिला शुबहा उन की एक करामत हेै। (दुलाइलुन्नबुवा लिअबी नईम स०66) [05://.क्‍6/50॥7_|॥ता|फावा५ [[[05:/9/079५8.0/0/0895/(0[08/088706_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 8 245 मक्तबा इमामे आजम हजरत औफ्‌ बिन मालिक ४ उन को कुन्नियत के बारे में इख़्तिलाफ है। बाज का कौल है कि उन को कुन्नियत “'अबू अब्दर्रहमान'' है। और बाज के नजदीक अबू हम्माद ' और कुछ लोगों ने कहा कि ''अबू उमर'' है। इस्लाम लान॑ क बाद सब से पहला जिहाद जिस में उन्होंने शिरकत को, वह जंगे खैबर है। यह बहुत ही जाँबाज और मुजाहिद सहाबी -थे। फ्‌तहे मक्का के दिन कबीला अशजअ का झण्डा उन्हीं के हाथ में था। मुल्के शाम में सुकनत कर ली थी। और हदीस में कुछ सहाबा और बहुत से ताबईन उन के शागिर्द हैं। शहरे दमश्क में सन्‌ 75 हिजरी में उन का विसाल शरीफ हुआ। (असदुल गाबा जि०4, स०456) क्रामत्‌ पुकार पर जानवर दौड़ पड़े: हज़रत मुहम्मद बिन इसहाक्‌ का बयान है कि हज़रत औफ बिन मालिक £४ को कुफ़्फार ने गिरफ्तार करके उन्हें तांतों से बांध रखा था। उन के वालिद मालिक अशजई ५४ हुजरे अकृदस ## की स्िदमते अकदस में हाजिर हुए और माजरा अर्ज किया। आप ने इरशाद फरमाया कि तुम अपने बेटे औफ के पास किसी कासिद के ज़रिए यह कहला दो कि वह बकसरत पढ़ते रहें।: +८००५ी (2०४ ५४५ ४६ ४ ५) )+४) चुनानचे हज़रत औफ बिन मालिक&४ यह वज़ीफा पढ़ने लगे। एक दिन अचानक उन की तमाम तांतें टूट गई और वह आज़ाद होकर क॒फ़्फार की कृद से निकल पड़े और एक ऊंटनी पर सवार होकर चल पड़े। रास्ता में एक चरागाह के अन्दर कृफ़्फार के सैकड़ों ऊंट चर रहे थे। आप ने उन ऊँटों को पुकारा, तो वह सब के सब दौड़ते भागते हुए आप की ऊंटनी के पीछे चल पड़े। उन्होंने मकान पर पहुंच कर अपने वालिदेन को पुकारा तो वह सब उन को आवाज़ सुन कर माँ बाप न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]5टवया6/ [05://.776/5 07॥॥#_।॥0 0/9/५ | शव रह [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/620298099776_830७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा ४ 246 मकतबा इमामे आज़म कक" रन दपरपरस#परसररप मय रपरस्‍पपपन्््स्‍्-+-्वकचय? स्‍स्‍ ल्‍ञऱखच् | २2७०७: . हरा: ००००० -....... ऑकड७२२२७३७७३७७००--<-ममवनततत..3 रथ. क्‍ शक और नौकर दौड़ पड़े और यह देख कर हैरान रह गए कि हज़रत औफ्‌ |. बिन मालिक :£9 ऊँटों के ज़बरदस्त रेवड़ के साथ मौजूद हैं सब खुश हो गए। क्‍ उन के वालिद हजरत मालिक अशजई 5४ ने बारगाहे नुबुवत में पहुँच कर सारा किस्सा सुनाया और ऊटों के बारे में भी अर्ज &4 किया तो आप ने इरशाद फरमाया कि उन ऊँटों को तुम जो चाहो करो, तुम्हारा बेटा उन ऊँटों का मालिक हो चुका, में उन ऊंटों में कोई दखल नहीं करूँगा। यह अल्लाह तआला की तरफ से एक रिज़्क है जो तुम्हें अता किया गया। रिवायत है कि उसी मौकूअ पर यह आयत नाज़िल होई। पा 50 ४० 2००) सर ४ “न 0० ५)२ 3 ७३४७4 (०६ 4 एर 0०१ (सूरा तलाक्‌ पारा 28) तर्जमा: और जो शख्स अल्लाह तआला से डरता है, अल्लाह तआला उस के लिए नुकसान की चीजों से निजात को शकल निकाल देता है और उस को ऐसी जगह से रिज़्क्‌ पहुँचाता है जहाँ उस को गुमान भी नहीं होता और जो शख्स अल्लाह तआला पर भरोसा करेगा तो अल्लाह तआला उस के लिए काफी है। (अत्तरगीब वत्तरहीब जिल्द उ, सफा 05 व तफूसीर इब्ने कसीर जिल्द4, सफा 580) हजरत फृातिमतुज्जहरा #£४ यह हुजूर शहंशाहे दो आलमं/#&7की सब से ज़्यादा प्यारी बेटी हैं। उन का लक्‌ब ( ...॥५॥ /..; ०५.०) (सारे जहाँ की औरतों की सरदार हैं। हुजुरे अकदसा#ने उन के बारे में इरशाद फरमाया कि फातिमा मेरी बेटी मेरे बदन का हिस्सा है। जिस ने उस का दिल दुखाया, उस ने मेरा दिल दुखाया और जिस ने मेरा दिल दुखाया उस ने अल्लाह तआला को तकलीफ दी। उन के फज़ाइल व खूबियों में बहुत सी अहादीस वारिद हुई हैं। रमजान सन्‌ 2 हिजरी में मदीना मुनव्वरा में उन का निकाह हज़रत अली बिन अबी तालिब&४ के साथ हुआ और ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05:/.क्‍6/507॥7_|॥ताफावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6208099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते राहावा ४५ 247 मकक्‍तवबा इमामे आजम ज़िलहिज्जा सन २ हिजरी में रूछ्सती हुई। उन के पेट से हजरत इमाम हसन व इमाम हुसेन और इमाम मुहसिन तीन साहबजादगान और हज़रत जैनब व रोकृय्या व उम्मे कुलसूम तीन बेटियाँ पैदा हुई। हजरे अकृदस /£#/के बाद सिर्फ छः माह ज़िन्दा रहीं। 28 बरस की उम्र में आलमे फानी से आलमे जावदानी (आखिरत) की तरफ रिहलत फ्रमा हुई। हज़रत अब्बास %#£ ने नमाज़े जनाज़ा पद्ाई और रात को स॒पूर्द खाऊ कः गई। भज़ार मुबारक मदीना मुनव्दरा में हे। (अकमाल स॒ 63 वगैरा) क्रामात्‌ बरकत वाली सेनी: आप की करामतों मे से एक करामत यह हैं कि आप एक दिन एक बोटी और दो रोटियाँ ले कर बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुई। रहमते आलम/&#ने अपनी प्यारी बेटी के उस तोहफे को कबूल फ्रमा कर इरशाद फ्रमाया कि ऐ लख्ते जिगर! तुम उस सेनी को अपने ही घर में ले कर चलो। फिर ख़ुद हुजूर सैय्यदे आलम (&#ने हजरत सैय्यदा फातिमा&#के मकान पर रौनक अफरोज़ होकर उस सेनी को खोला, तो घर के तमाम लोग यह देख कर हैरान रह गए कि वह सेनी रोटियों और बोटियों से भरी हुई थी। हुजूरे अकरमा/&/£न फरमाया( ४७ _४! »)(ऐ बेटी! यह सब तुम्हारे लिए कहाँ से आया?)तो हजरत फातिमा&#ने अर्ज किया, .« ८५ ० 53.2 ५४॥ 3 ५0॥.७ -« +-+) (>> (यअनी यह अल्लाह तआला की तरफ्‌ से आया है, वह जिस को चाहता है, बे शुमार रोज़ी देता है।) फिर हुजूरे अकृदस&#ने हज़रत अली व हज़रत फातिमा व हज़रत इमाम हसन व हज़रत इमाम हुसैन और दूसरे अहले बैत &# को जमा फरमा कर सब के साथ सेनी में खाना खाया। फिर भी उस खाने में इस कदर हैरत नाक और तअज्जुब ख़ेज़ बरकत ज़ाहिर हुई कि सेनी रोटियों और बोटियों से भरी हुई रह गई और उस को हज़रत बीबी 5८664 शशंग ए7520वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0[/0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/6208099776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते राहावा :£« 2408 मकतवा इमामे आजम फातिमा 39 ने अपने पड़ोसियों और दूसरे फकीरों को खिलाया।.... और दूसरे फकीरों को खिलाया। (रूहुल बयान आले इमरान स०3523) शाही दअवतः रिवायत है कि एक दिन हजरत उस्मान गनी :&ने शहंशाहे मदीना हजर नबीए करीम/£#की दअवत की। जब दानों आलम के मेजबान, हजरत उस्मान#£#के मकान पर गए तो हजरत उस्मान गनी£#आप के पीछ चलते हुए आप के कदमों का गिनन लगे और अर्ज किया कि या रसूलल्लाह! मरे माँ बाप आप पर कुरबान! मेरी तमन्ना है कि हुजूर के एक एक कृदम के बदले में आप को तअजीम व तकरीम के लिए एक एक गुलाम आज़ाद करू चुनानन्‍्च हज़रत उस्मान ग़नी£४ के मकान तक जिस कदर हुजूर/#£ के कृदम पड़े थे, हज़रत उस्मान गनी ££ ने इतनी ही तअदाद में गुलामों को ख़रीद कर आज़ाद कर दिया। हजरत अली #४ ने उस दअवत से मुतअस्सिर होकर हजरत सैय्यदा फातिमा # से कहा: ऐ फातिमा! आज मेरे दीनी भाई हजरत उस्मान ने हुजूर अकरम/&# को बड़ी ही शान दार दअवत की है और हुजूर अकरम #£#क हर हर कृदम के बदले एक गुलाम आज़ाद किया है। मरी भी तमन्ना है कि काश! हम भी हुजर /## की इसी तरह शान दार दअवत कर सकत। हज़रत फातिमा&#£ने अपने शौहर हजरत अला दुलदुल क सवार क उस तअस्सुर से मुतअस्सिर होकर कहा बहुत अच्छा जाइए। आप भी हुजूर ॥#४० को उसी किस्म की दअवत पते आइए। इन्शाअल्लाह तआला हमार घर में भी उसी किस्म का सारा इन्तेज़ाम हो जाएगा। चुनान्च हज़रत अला &£ ने बारगाहे रिसालत में हाजिर हो कर दअवत द्‌ दा और शहशाह दो आलम #%/ अपने सहाबा-ए-किराम बडी जमाअत को साथ लेकर अपनी प्यारी बेटी के घर में तशरीफ फ्रमा होगए। हजरत सैय्यदा खातूने जन्नत #£ अकेले तराराफ ल॑ जाकर खुदावन्दे कुदूस की बारगाह में सर बसुजूद हो गई और यह दुआ मारगीं। 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.776/50॥॥_|॥0/]/0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869|5/6209809776_30७॥9_॥0/9/%५ कर।मात राहावा |[० 4 कसा ह ३. 249 मकक्‍तवा ड्मामे आजम या अल्लाह! तेरी बन्दी फातिमा ने तेरे महब॒ब ओर महवब के अर्छात का दञवत को है। तेरी बन्दा का सिफ तझ ही पर भगेसा ७ जहाज़ा ए मर रब! तू आज मेरी लाज रख ले और इस दअबत के खाना का तू गैब से इन्तजाम फरमा।'' 36 3आ माग कर हजरत बीबी फातिमा४##ने हांडियों को चल्हों पर चढ़ा दिया। प्युदावन्द तआला का दरियाण करम एक दम जाश म॑ आ गया आर उस रज़्जाक मुतलक्‌ ने एक ही पल में उन हांडियों को जन्नत क खाना से भर दिया। हज़रत बीबी फातिमा ४४ने उन हांडियों में से खाना निकालना शुरू कर दिया और हुजूर॥#& अपने सहाबा-ए -किराम के साथ खाना खान स फारिंग हो गए, लेकिन खुदा की शान की हांडियों में से जाना कुछ भा कम नहों हुआ और सहाबा-ए-किराम उन खानों की खुरबू ओर लज़्जत से हेर' गए। हुजुर अकरम /%/ न सहाबा -ए-किराम की हैरत देख कर फरमाया कि क्‍या तम लोग जानते कि यह खाना कहाँ से आया हे? सहाबा-ए-किराम ने अर्ज किया कि नहा या रसूलल्लाह! आप न इरशाद फरमाया कि यह खाना अल्लाह तआला न हम लोगों क॑ लिए जन्नत से भेज दिया है। फिर हज़रत फातिमा&& अकंले में सजदा रेज़ हो गई और यह दुआ मांगने लगीं कि या अल्लाह! हज़रत उस्मान ने तेरे महबूब के एक एक कृदम क बदल एक एक गुलाम आज़ाद किया है, लेकिन तेरी बन्दी फातिमा का इतनी हेसियत नहीं है। इस लिए ऐ ख़ुदावन्दे करीम। जहाँ तू ने मेरी खातिर जन्नत से खाना भेज कर मेरी लाज रख ली हे, वहाँ तू मरी खातिर अपने महबूब क॑ उन कृदमों के बराबर जितने क॒दम चल कर मेरे घर तशरीफ लाए हैं अपने महबूब की उम्मत के गुनहगार बन्दों को जहन्नम से आज़ाद फ्रमा दे। हज़रत फातिमा&#ज ही इस दुआ से फारिग हुई एक दम अचानक जिब्राईल ४ यह खुशखबरी ले कर बारगाहे रिसालत में उतर पड़े कि या रसूलल्लाह! हज़रत फातिमा #£की दुआ बारगाहे इलाही में है हर 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहावा 2 250 मक्‍तवा इमामे आजम मकबूल हो गई। अल्लाह तआला ने फ्रमाया है कि हम ने आप के हर कदम के बदले मे एक एक हज़ार गुनहगारों को जहन्नम से आज़ाद कर दिया। (जामिउल मुअजिज़ात मिस्री स० 65 बहवाला सच्ची हिकायात) सिद्दीकु ## यह अमीरूल मोमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दीक्‌ ##को बेटी हैं और हुजूरे अकरम##की अज़्वाज मुतहहरात म॑ रुब स॑ ज़्यादा आप को महबूब हैं। उन से बहुत ज़्यादा अहादीस मरवी हैं। फिक्‌ही मालूमात म॑ भी उन का दर्जा बहुत ही बलन्द है। बड़े सहाबा##£उन से मसाइल पूछा करते थे। रोज़ा व नमाज़ और दूसरी इबादतों व रियाज़तों में भी आप अज़्वाजे मुतहहरात में र्ुसूसी इम्तियाज़ के साथ मुमताज़ थीं। सन्‌ 57 हिजरी या सन्‌ 58 हिजरी में मदीना मुनव्वरा में दुनियाए फानी से आलमे आखिरत की तरफ उनको रेहलत हुई और जन्‍्नतुल बकौअ में मदफून हुई। (अकमाल स०642) करामत्‌ हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम उन को सलाम करते थे: उनकी एक करामत यह है कि हज़रत जिब्राईल ££/उन को सलाम करते थे चुनान्चे बुख़ारी शरीफ में एक हदीस हैं कि रसूलुल्लाह#£#ने फरमाया कि आइशा! यह हज़रत जिब्राईल£#हं जो तुम को सलाम कहते हैं, तो आप ने जवाब में अर्ज़ किया७९६,, | 4॥ ७. ,, .५..॥ ५८, वअलैहिस्सलाम व रहमतुल्लाहि बरकातहू बुखारी जि०4, स० 532) उन के लिहाफ में वही उतरी: हुजुर£#ने फ्रमाया कि आइशा के सिवा मेरी किसी दूसरी बीवी के कपड़ों में मुझ पर वही नहीं उतरी और हजरत आइशा##फरमाती हैं कि मैं और रसूलुल्लाह ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः 0[05:/.क्‍6/50॥7_|॥ता|फिवा५ करामाते सहावा शत ([[05 //9/0०॥५७ कलम उतारे 20 ॥8 _॥ ०4 तवा इमामे आजम लिहाफ में सोए रहते थे और आप पर ख़ुदा लआला की वही नाजिल हुआ करती थी। . (मिश्कात जि०2, स०575 व कंजुल उम्माल जि6, स०207) आप के वसीले से बारिश: एक मर्तबा मदीना मुनव्यग म॑ बारिश नहीं हुई और लोग सख्त कृहत (सूखे) में मुब्तला होकर बिलबिला उठे। जब लोग कृहत की शिकायत ले कर हजरत उम्मुल मामिनीन आइशा##की खिदमते अकृदस में पहँचे, तो आप ने फ्रमाया कि मेरे कमरे में जहाँ हुजूरे अनवर&£#की कृत्रे अनवर है, उस हुजरे मुबारका की छत में एक सूराख कर दो ताकि हुजरा (कमरा) मुनव्वर से आसमान नज़र आने लगे, चुनान्चे जैसे ही लोगों ने छत म॑ सुराख्त बनाया, फौरन ही बारिश शुरू हो गई और मदीना मुनव्वरा के इर्द गिर की ज़मीन हरी भरी हो गई और उस साल घास और जानवरों का चारा भी इस कदर ज़्यादा हुआ कि कसरते (ज्यादा) ख़ुराक से ऊँट मोटे हो गए और चरबी की ज़्यादती से उन के बदन फूल गए। (मिश्कात जि०2, स०545) हज़रत उम्मे अमन उन का नाम “बरका'' है यह हुजूरे अक्दस£#के बालिद माजिद हजरत अब्दुल्लाह की बांदी थीं जो हुजरे अकरम/&#को आप के वालिद माजिद की वरासत में से मिली थीं। उन्हों ने हुजुरे अकरम की बचपन में बहुत ज़्यादा स्थिदमत की है। यही आप को खाना खिलाया करती थीं, कपड़े पहनाया करती थीं, ऐलाने नुब॒ुवत के बाद जल्द ही उन्हों ने इस्लाम कबूल कर लिया। फिर आप ने अपने आज़ाद किय॑ हुए गुलाम हजरत जुद बिन हारिसा£&४£ से उन का निकाह कर दिया। उन के पेट से हज़रत उसामा &£ पैदा हुए जिन से रसूले अकरम/#£” इस कदर ज़्यादा मुहब्बत फरमाते थे कि आम तौर पर सहाबा-ए-किराम हज़रत उसामा ##को ''महबूबे रसूल'' कहा करते थे। न कं हक 5 टव॥60 ५शंगरी ए75८ववगा6ह/ 0[05:/.6/50॥7_|॥ता|फावा५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62098099776_30॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा &2 252 मकतवा इमामे आज़म क्रामत्‌ कभी प्यास नहीं लगी: हज़रत उम्मे अमन#४ का बयान है कि जब मैं मक्का मुकर्रमा से हिजरत करके रवाना हुई तो मेरा खाना पानी रास्ता में सब ख़त्म हो गया और मैं जब ““मकामे रोहा'' में पहुँची तो प्यास की सख्ती से बे करार हो कर ज़मीन पर लेट गई, इतने में मुझे महसूस हुआ कि मेरे सर के ऊपर कुछ आहट हो. रही है। जब मैं ने सर उठा कर देखा तो यह नज़र आया कि पानी से भरा चमकदार रस्सी में बंधा हुआ आसमान से जमीन पर एक डोल उतर रहा है, मैंने लपक कर उस डोल को पकड़ लिया और ख़ूब जी भर कर पानी पी लिया। उस क॑ बाद मेरा यह हाल है कि मुझे कभी प्यास नहीं लगी। में सख्त गरमियों म॑ रोज़ा रखती हूं और रोज़ा की हालत म॑ सख्त चिलचिलाती हुई धूप में कअबा मुअज़्जमा का तवाफ करती हूँ ताकि मुझे प्यास लग जाए लेकिन उस के बावजूद मुझे कभी प्यास नहीं लगी। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि०2, स०874 बहवाला बैहकी) हजरत उम्मे श्रीक्‌ दोसिया £४ यह कबीला दोस की एक सहाबिया हैं जो अपने वतन से 'हिजरत करके मदीना मुनव्वरा चली आई थीं। क्रामात्‌ गैबी डोल: यह अपने कृबीला दोस से हिजरत करके मदीना मुनव्वरा जा रही थीं और रोज़ादार थीं शाम को एक यहूदी के मकान पर पहुंचीं ताकि पानी पी कर रोज़ा इफ्तार कर लें। दुश्मने इस्लाम यहूदी को जब उन के मुसलमान और रोज़ादार होने का इल्म हुआ तो उस जालिम ने उन को मकान की एक कोठरी में बन्द कर दिया ताकि उन को एक कृतरा पानी न मिल सके जिस से यह रोज़ा इफृतार कर सकें। हज़रत उम्मे शरीक&£ अन्हा बन्द कोठरी में लेटी हुई थीं और ]60 ५शं। ए5ट5गशाहशः [05:/.6/50॥7_|॥ताफँवा५ ॥05:॥/8/0798.0/5/06७68/5/6)/809/76__9५॥8 _॥0/8/9५ करामाते सहाबा /४2 253 मकक्‍तवा इमामे आज़म बेहद फिक्र में थीं, सूरज डूब चुका है और कोठटरी में खाने पीने की कोई चीज मौजूद नहीं है। आरिब्र मैं किस चीज से रोज़ा इफतार करू? इतने में बन्द और अंधेरी कोठरी में अचानक किसी ने उन के सीने पर ठंडे पानी से भरा हुआ डोल रख दिया और उन्हों ने उस पानी को पी कर रोजा इफुतार कर लिया। (हुज्जतुल्लाह जि०2, स०875) खाली कुप्पा घी से भर गया: रिवायत है कि हज़रत उम्मे शरीक दोसिया##के पास चमड़े का एक कुृप्पा था जिस को वह अक्सर लोगों को उधार दे दिया करती थीं। एक दिन उन्होंने उस कुप्पा में फूंक मार कर उस को धूप मे रख दिया तो वह घी से भर गया। फिर हमेशा उस कृप्पा में से घी निकलता रहा। इस बात का पूरे शहर और इलाकों में इस कदर चरचा हो गया था कि लोग आम तौर पर यह कहा करते थे कि हज़रत उम्मे शरीक ४४ का कृप्पा खुदा की निशानियों में से एक बहुत बड़ी निशानी है। (हज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि०2, स०875 बहवाला इब्ने सअद) हजरत उम्मे सायब #£ यह एक बुढ़िया नाबीना सहाबिया थीं जो अपने वतन से हिजरत करके मदीना मुनव्वरा चली आई थीं।. क्रामत्‌ दुआ से मुर्दा जिन्दा हो गया: हज़रत अनस बिन मालिक ५9फरमाते हैं कि हजरत उम्मे सायब##का बेटा च॑व उम्री में अचानक इन्तकाल कर गया। हम लोगों ने उस लड़के की आँखों को बन्द करके उस को एक कपड़ा उढ़ा दिया और उस की माँ के पास पहुंच कर लड़क को मौत की ख़बर सुनाई और तअज़ियत व तसल्‍्ली के कलमात कहने लगे। हजरत उम्मे सायब ४&£अपने बेटे की मौत को ख़बर सुन कर चौंक गई, और रोने लग गई। फिर उन्हों ने अपने दोनों हाथों को उठा ! "लक ध्ै न है |] न कं हद 56766 ५शशंगरा एद्वा]56वया6/ [[05://.86/5 7 _।॥॥00/8५ कम [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62028099776_30७॥9_॥0/9/%५ करामाते सहाबा ६४४ 254 मक्तवा इमामे आजम कर इस तरह दुआ मांगी। ''या अल्लाह! मैं तुझ पर ईमान लाई और में ने अपना वतन छोड़ कर तेरे रसूल की तरफ हिजरत की है, इस लिए ऐ मेरे ख़ुदा! मैं तुझ से दुआ करती हूँ कि तू मेरे लड़के को मुसीबत मुझ पर मत डाल। *' क्‍ यह दुआ ख़त्म होते ही हज़रत उम्मे सायब&#का मुर्दा बंटा अपने चेहरे से कपड़ा उठा कर उठ बैठा और जिन्दा होगया। (इब्ने अबिदुनिया व बेहकी वल बदाया वन्नहाया जि०6, स०54 ता 259) तबसेरा: इस किस्म की करामत बहुत से बुजुर्गंन दीन ख़ुससन हजरत स॑य्यदना शैख अब्दुल कादिर जीलानी #&%& वगैरा औलिया -“ए-उम्मत से बारहा जुहूर में आ चुकी हैं। क्योंकि अल्लाह तआला अपने महबूब बन्दों की दुआओं और उन की ज़बान से निकले हुए अलफाज़ को अपने फूज़ल व करम से रद नहीं फ्रमाता, चुनान्चे किसी सच्चे ने कहा हे। जो वज्द के आलम में निकले लबे मोमिन से वह बात हक्ौकृत में तकदीरे इलाही है हजरत जनीरा£४ क्रामत्‌ _ अधी आंखें रोशन हो गई:-यह हज़रत उमर#9के घराने की लौंडी थी। इस्लाम को सच्चाई उन के दिल में घर कर गई। हजरत उमर £#9 उस वक़्त मुसलमान नहीं हुए थे,जैसे ही हज़रत जनीरा 6 ने अपने इस्लाम का एलान किया तो हज़रत उमर#$आपे से बाहर हो गए और उन्हां ने ख़ुद भी उन को ख़ूब ख़ूब मारा और उन के घर के लोग भी बराबर मारते रहे, यहाँ तक कि मक्का के कुफ़्फार ने सरे बाज़ार उन को इस कदर मारा कि मार से उन की आँखों की रोशनी जाती रही च्च्््््चचतत,ाीांस2ररसत पते ]60 ५शं। (75ट5गगग6शः [05:/.क्‍6/50॥7_|॥ता|फावा५ [[[05:/8/079५8.0।0/0869/|5/62009099776_30७॥9_॥0/8/%५ करामाते सहावा &7 255 मकतंबा इमामे आज़म और यह अंधी हो गई। इस के बाद कुफ़्फारे मक्का ने तअना देना शुरू किया कि ऐ जनीरा! चूँके तुम हमारे मअबूदों यअनी लात व उज़्ज़ा को बुरा भला कहती थीं, इस लिए हमारे उन बुतों ने तुम्हारी आँखो की रोशनी छीन ली है। यह खून खौला देने वाला तअना सुन कर हजरत जनीरा०&# को रगों में इस्लामी ख़ून जोश मारने लगा और उन्हों ने कहा:- ''“हरगिज़ हरगिज नहीं! ख़ुदा की कुसम तुम्हारे लातु-उज़्जा में हरगिज़ हरगिज़ यह ताकृत नहीं है कि वह मेरी आँखों की रोशनी छीन सकें। मेरा अल्लाह जो वहद॒हु ला शरीक लहु है, वह जब चाहेगा, मेरी आँखों में रोशनी आजाएगी।'' उन अलफाज का उनकी ज॒बाने मुबारक से निकलना था कि बिल्कुल एक दम ही अचानक उन की आँखों में रोशनी वापस आगई। (हज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि०2, स०876 हवाला बेहको व जरकानी अलल मवाहिब जि०4, स० 270) 5६5४५ 44.5 4 $ 4६5: ७5 5 5 06 ३॥ तबाअत व्‌ इशाअत के लिएऐ राष्ता करें हमारे यहाँ केलेन्डर, पोस्टर, रसीद, कार्ड, पम्फलेट, रमजान कार्ड, रमजान क्‍ पोस्टर, और किताबों की तबाअत के सभी काम तसलल्‍ली बख्शण किए. जाते हैं। तशरीफ लाकर खिदमत का मौका दें। राबते का पता: म्‌क॒त॒बा इमामे आजम -425/2 मटिया महल, जामा मस्जिद, दिल्‍ली-6 मोबाईल नं0:- 995842355, 9560054375, 9582458244, 9958724473 5८664 शशंग ए75०वाा6श [[05://.76/50॥॥_|॥0/0/9५ [[[05:/8/079५8.0।0/05869/|5/6209809776_30७॥9_॥0/8/% कि अमान मी >मानव कली जी ०६ कमा किन ॥..हरजनी >नण-व | नथी वन $ ऐड ही | ७, 90,2% हंघ | न9ज्टिक्‍ं:. 4 ०००:६७7७ | ६ ह् ह् | ब्रा क- । बात चना था | .“म क&. नल || ध | । / | / | । । जा, क्‍ ्रष | ब / ! । क्‍ । है है | | | /7/२।॥।ध]६&।२ - 7?[।8.45/+ &/२ - छ700।<5६&। ।॥ ८&।र 425/2, (58॥ >िधव76 ४४3, ।9॥9 ४8।॥9|, ।8778 |/35]0, 08॥॥-6 (00.: +9]-9958423554, +9-9560054375, +9-9958724473 हज : तवत/वतवााएयाश जा हैं छुत9।, (07॥, ॥79770070॥/|7 30 073, €0॥॥ न ड़ न] 56वखथ॥66 ५शशंगरा एद्वा75टवदया6/ [05://.86/50७7॥ _॥|॥0| 08५ कप